Tuesday, April 27, 2010

ना बनने दे, घर का आँगन कोठरियों मैं ......>>>> संजय कुमार


कहते हैं एकता मैं जो शक्ति है ! वह किसी अकेले इन्सान मैं नहीं है ! यह बात बिलकुल सही है ! हमने देखी है एकता की शक्ति, फिर चाहे वह युवा संगठन हो या, या फिर कोई छोटा मोटा संगठन, हम सब इसकी ताक़त को जानते हैं ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ, अपने पारिवारिक संगठन की, या संयुक्त परिवार की! एक समय था जब हम किसी के घर जाते थे तो वहां हमें एक परिवार के सारे सदस्यों से मुलाकात होती थी ! उस घर मैं दादाजी -दादीजी, माता -पिता , चाचा-चाची,भैया-भाभी, और कई रिश्ते जिनसे एक परिवार बनता है !सब से मुलाकात करके मन को एक अनूठी ख़ुशी मिलती थी ! हम कभी नहीं भुला पाते थे उस घर का प्यार , अपनापन, मान-सम्मान , और सच्चे रिश्तों की महक ! पर जैसे जैसे समय गुजर रहा है , इन्सान अपने आप से मतलब रखने लगा है, सिर्फ अपने बारे मैं सोचता है , नहीं परवाह परिवार मैं किसी अन्य सदस्य की , और शुरू हो जाता है , विघटन और वदलाव उस परिवार की एकता मैं ! आज हम देख रहे हैं , कि इन्सान आज कितनी जल्दी अपना सब्र खो रहा है , जिस कारण से आये दिन घर परिवार मैं लड़ाई झगडे कि स्थिति बन रही है ! और आज इन्सान इस आयेदिन होने बाले झगड़ों के कारण दूर हो रहा है अपनों से अपने परिवार से , या खींच रहा दीवार अपने ही घर परिवार मैं ! तो क्या स्थिति हो जाती है , उस घर परिवार कि , एक बड़ा सा घर बदल जाता है , चिड़ियों के घोंसलों जैसा ! और जब एक बार दीवार खिचजाती है तो फिर नहीं कहलाता घर परिवार ! बन जाता है ईंट पत्थर से निर्मित एक मकान !

इस विघटन और वदलाव से हमारा कितना अहित हो रहा है , शायद हम सब यह जानते है , लेकिन जानकार भी अनजान हैं ! आज इसका असर हमे देखने को मिल रहा है , अपने बच्चों मैं खोते संस्कार के रूप मैं , खोते रिश्तों कि महक मैं , खो रही हैं भावना अपनत्व कि , खो रही लोगों का मान-सम्मान करने कि भावना ! सब कुछ परिवार के बंटने से ! जब से हमने अकेले रहना शुरू कर दिया है , तब से वदल गयी , घर परिवार कि कहानी !जब हम लोग सारे परिवार के साथ मनोरंजन करते थे तो कैसा महसूस करते थे आप , और जब आप आज एक बंद कमरे मैं अपना मनोरंजन करते हैं , वह भी अकेले तो कैसा महसूस करते हैं ! यह आप जानते हैं ! आज इन्सान का घर आँगन बदल रहा है छोटी छोटी कोठरियों मैं .........

ना निर्मित होने दें अपने घर आँगन कोठरियों मैं ............................

धन्यवाद

5 comments:

  1. ना निर्मित होने दें अपने घर आँगन कोठरियों मैं ......
    सुन्दर आलेख

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  2. samyik aur bahut sandeshatmak lekh...
    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  3. आपकी मान्यता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। जीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  4. सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  5. gambhir wa sundar aalekh..
    aake vicharo se main puri tarah sahmat hun!

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