Friday, April 30, 2010

अगर है आप मैं हिम्मत, तो अपने घर से बाहर निकालकर बताओ .....>>>> संजय कुमार

कहते हैं जब कोई बात इन्सान के दिल मैं घर कर जाती है , तो उस बात को उस इन्सान के अंदर से बड़ी मुस्किल से दूर कर पाते हैं ! और अगर वह बात उसके अंदर से बाहर नहीं निकलती ,तो उसका परिणाम कभी कभी बहुत घातक होता है! और वह कहीं ना कहीं उस इन्सान का अहित ही करती है ! ठीक उसी तरह हम अपने घर मैं किसी भी गलत बात को जिस तरह घर नहीं करने देते , और जल्द से जल्द उसे बाहर करना चाहते हैं ! यह तथ्य बिकुल सही है ! और हम सब इस बात से सहमत है! अगर कोई नहीं है , तो बताओ .....................

लेकिन आज स्थिति बदल गयी है ! आज एक ऐसी चीज हमारे घर मैं अपनी पकड़ दिन बा दिन इतनी मजबूत करती जा रही है , जिसके घातक या बुरे परिणाम हम लोगों को भविष्य मैं , देखने को मिलेंगे ! शायद अभी तक आप समझे नहीं ! मैं बात कर रहा हूँ , आज हमारे घरों मैं घर करती अंग्रेजी की , और अपना मूल्य खोती हमारी अपनी हिंदी की ! आज जिस तरह के परिवेश मैं हम सब जी रहे हैं ! उस परिवेश को आधुनिकता का युग कहते हैं ! और जब से इन्सान ने अपने आप को इस आधुनिकता की दौड़ मैं अपने आपको सबसे आगे करने का ढोंग किया , वहीँ इन्सान ऐसी चीजों को अपनाने लगा जो कभी उसकी थी ही नहीं ! और भूल गया अपनी असली चीजें ! जहाँ आज के युग मैं हम सभी ने अंग्रेजी को एक स्टेट सिम्बल के रूप मैं ग्रहण कर लिया है ! तो उसने भी धीरे धीरे हमारे घरों मैं घर कर लिया ! और ख़त्म कर रही है हमारी अपनी हिंदी भाषा ! आज कई लोग भले ही हिंदी स्पष्ट ना बोल पायें , इस बात का उन्हें जरा भी गम नहीं होता , लेकिन अगर कहीं अंग्रेजी बोलने मैं कहीं कोई गलती हो जाये तो , अपने आपको शर्मिंदा सा महसूस करते हैं ! आज का युवा तो बस अंग्रेजी ही बोलना चाहता है इसके आलावा कुछ नहीं ! आज हम अपने बच्चों को सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी ही सिखाना चाहते हैं, उसको नहीं देते हिंदी का पूर्ण ज्ञान ! जो उसको सर्वप्रथम जरूरी है ! आज आप गौर करें तो, आज कल आपको आपके पास, जो ज्यादा पड़े लिखे या अनपढ़ परिवार हैं ! उन घरों मैं भी आपको अंग्रेजी के कई शब्द सुनने को मिल जायेंगे !
आज हम सब भाग रहे हैं अंग्रेजी के पीछे , छोड़ अपनी हिंदी , जिसे विश्व मैं हर कोई सीखना चाहता है !और दूर दूर से लोग आज भारत मैं आ रहे हैं सिर्फ और सिर्फ हमारी अपनी हिंदी भाषा को सीखने और समझने !हिंदी भाषा मैं जो अपनत्व का भाव है वो आपको कहीं किसी भी भाषा मैं सुनने नहीं मिलेगा ! जिस हिंदी भाषा के बड़े बड़े विद्यालय हमारे हिंदुस्तान मैं हैं ,और जिन मैं बड़े बड़े विद्वान सिर्फ हिंदी को बचाने मैं लगे हैं ! वहीँ आज हम लोग अपनी ही मात्र भाषा को भूलकर , अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं बिना कुछ सोचे समझे !

अगर आप को हिंदी का पूर्ण ज्ञान हैं , आप अगर हैं हिंदी के ज्ञाता, तो आप फक्र कर सकते हैं अपने उपर , और यदि आपको नहीं हैं हिंदी का पूर्ण ज्ञान , तो पहले हिंदी सीखो , फिर सीखो अंग्रेजी ............. और ना करने दो अंग्रेजी को अपने घर मैं घर .........................

धन्यवाद

Thursday, April 29, 2010

मैं इन्सान किस काम का ....>>> संजय कुमार

मैं इन्सान हूँ , पर हूँ किस काम का
मैंने रचे इतिहास , किये कई अविष्कार
मै नित नित करता, बड़े -बड़े काम
फिर भी आ न सकूँ कभी किसी के काम
फिर भी है इस जग मेरा बड़ा नाम
मै इन्सान हूँ, इन्सान बस नाम का
मै इन्सान किस काम का मै..................
इन्सान हूँ बस नाम का ...................


मै नेता, मंत्री , और बड़ा राजनेता इस देश का
हूँ मैं भविष्य इस देश का, आज सब कुछ करने बाला

जनता का रखवाला, इस देश को चलानेवाला
पर मै नेता हूँ किस काम का
मै नेता हूँ बस नाम का
न कर सका गरीबी को दूर, ना मंहगाई को
रोक न सका अपराध, ना ही भ्रष्टाचार
ऩा आतंकबाद और ना ही, जातिवाद,
मै नेता किस काम का , मै नेता बस नाम का
इन्सान हूँ बस नाम का ...................


मै हूँ साधू - संत, हूँ ज्ञानी बड़ा
मेरे आगे सब नतमस्तक , हो छोटा या बड़ा
मैं करता हूँ धर्म और ज्ञान की बातें,
देता हूँ लोगों को प्रवचन और ज्ञान
जिनसे मै बन गया आज बड़ा और महान
पर मैं महान साधू - संत , हूँ किस काम का
मैं साधू - संत हूँ बस नाम का
ऩा दूर कर सका अधर्म, और लोगों व्याप्त अज्ञान
ऩा चल सका कोई सदमार्ग पर,
ऩा चल सका इन्सान धर्म पर
आज मैं कर रहा हूँ , इंसानियत को शर्मशार
और करता रहूँगा, धर्म के नाम पर बार बार
मैं साधू - संत किस काम का , मैं साधू -संत बस नाम का
मैं इन्सान किस काम का .................................


धन्यवाद

Tuesday, April 27, 2010

ना बनने दे, घर का आँगन कोठरियों मैं ......>>>> संजय कुमार


कहते हैं एकता मैं जो शक्ति है ! वह किसी अकेले इन्सान मैं नहीं है ! यह बात बिलकुल सही है ! हमने देखी है एकता की शक्ति, फिर चाहे वह युवा संगठन हो या, या फिर कोई छोटा मोटा संगठन, हम सब इसकी ताक़त को जानते हैं ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ, अपने पारिवारिक संगठन की, या संयुक्त परिवार की! एक समय था जब हम किसी के घर जाते थे तो वहां हमें एक परिवार के सारे सदस्यों से मुलाकात होती थी ! उस घर मैं दादाजी -दादीजी, माता -पिता , चाचा-चाची,भैया-भाभी, और कई रिश्ते जिनसे एक परिवार बनता है !सब से मुलाकात करके मन को एक अनूठी ख़ुशी मिलती थी ! हम कभी नहीं भुला पाते थे उस घर का प्यार , अपनापन, मान-सम्मान , और सच्चे रिश्तों की महक ! पर जैसे जैसे समय गुजर रहा है , इन्सान अपने आप से मतलब रखने लगा है, सिर्फ अपने बारे मैं सोचता है , नहीं परवाह परिवार मैं किसी अन्य सदस्य की , और शुरू हो जाता है , विघटन और वदलाव उस परिवार की एकता मैं ! आज हम देख रहे हैं , कि इन्सान आज कितनी जल्दी अपना सब्र खो रहा है , जिस कारण से आये दिन घर परिवार मैं लड़ाई झगडे कि स्थिति बन रही है ! और आज इन्सान इस आयेदिन होने बाले झगड़ों के कारण दूर हो रहा है अपनों से अपने परिवार से , या खींच रहा दीवार अपने ही घर परिवार मैं ! तो क्या स्थिति हो जाती है , उस घर परिवार कि , एक बड़ा सा घर बदल जाता है , चिड़ियों के घोंसलों जैसा ! और जब एक बार दीवार खिचजाती है तो फिर नहीं कहलाता घर परिवार ! बन जाता है ईंट पत्थर से निर्मित एक मकान !

इस विघटन और वदलाव से हमारा कितना अहित हो रहा है , शायद हम सब यह जानते है , लेकिन जानकार भी अनजान हैं ! आज इसका असर हमे देखने को मिल रहा है , अपने बच्चों मैं खोते संस्कार के रूप मैं , खोते रिश्तों कि महक मैं , खो रही हैं भावना अपनत्व कि , खो रही लोगों का मान-सम्मान करने कि भावना ! सब कुछ परिवार के बंटने से ! जब से हमने अकेले रहना शुरू कर दिया है , तब से वदल गयी , घर परिवार कि कहानी !जब हम लोग सारे परिवार के साथ मनोरंजन करते थे तो कैसा महसूस करते थे आप , और जब आप आज एक बंद कमरे मैं अपना मनोरंजन करते हैं , वह भी अकेले तो कैसा महसूस करते हैं ! यह आप जानते हैं ! आज इन्सान का घर आँगन बदल रहा है छोटी छोटी कोठरियों मैं .........

ना निर्मित होने दें अपने घर आँगन कोठरियों मैं ............................

धन्यवाद

Monday, April 26, 2010

आखिर, मैं एक पिता हूँ .....>>>>>>> संजय कुमार


भारतीय परम्पराओं और संस्कारों मैं माता -पिता का स्थान ईश्वर से भी बढकर माना जाता है ! इसका कारण है कि एक बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले अपने माता- पिता को ही जानता है , बाकि सब उसके बाद उसे बताया जाता है ! कहते हैं माँ सबसे ज्यादा समय अपने बच्चों के साथ गुजारती है , सबसे ज्यादा प्यार वही करती है ! क्योंकि पिता रहता है दिन भर बाहर वह भी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! इसलिए कभी कभी कुछ बच्चों को ये लगता है कि शायद पिता उतना प्यार नहीं करता जितना की उसकी माँ उसे करती है ! और कभी कभी यह बात बच्चों के मन मैं घर कर जाती है !पर एक पिता होने के नाते उसका फर्ज होता है ,कि वह अपने परिवार और बच्चों कि देखभाल करे ! जीवन कि हर जरूरतों को पूरा करे , और वह ऐसा ही करता है , और अपना पूरा जीवन समर्पित करता है अपने परिवार अपने बच्चों के लिए ! जीवन भर हर कष्ट सहते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है ! घर मैं बच्चों कि जिम्मेदारी माँ के हाँथ मैं रहती है , और बाहर पिता कि ! जब बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय अपनी माँ के साथ गुजारते हैं !तो कई बार यह देखा गया है कि बच्चे माँ के लाडले हो जाते हैं ! और उन्हें कई बार यह लगता है की उन्हें अब पिता के प्यार की जरूरत ही नहीं है ! और वह इस गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं कि, हमें तो हमारे पिता प्यार ही नहीं करते ! और जब कभी बच्चों के सामने माँ के द्वारा पिता से यह बोला जाता है कि, तुम्हे तो बच्चों कि जरा भी फिक्र नहीं हैं , और न तुम्हें बच्चों से प्यार ! इस तरह कि बातें जब बच्चे रोज सुनते हैं, तो एक गलत असर उनके दिमाग पर पड़ता है ! और धीरे एक विरोध कि भावना पिता के लिए उत्पन्न हो जाती है ! घर मैं जब माँ हर बात मैं बच्चे का पक्ष लेने लगे , चाहे सही हो या गलत तो , तो भविष्य मैं होती हैं कई परेशानियाँ !आज आधुनिकता इतनी बढ़ गयी है ! कि व्यक्ति के पास तो बैसे ही समय नहीं हैं ! फिर कहाँ हम लोग संस्कारों कि बात कर पाते हैं ! आज कई घरों मैं यह देखने को मिल जाता है , कि जिस पिता ने अपना खून-पसीना बहाकर जिन बच्चों को बड़ा किया, उन्हें समाज मैं उठने बैठने लायक बनाया ! आज वही बच्चे उन्हें दे रहे हैं दिन प्रतिदिन अपमान और तिरस्कार ! आज कई जगह यह देखने को मिल जायेगा की, माँ के लाड-प्यार की कीमत पिता को भुगतनी पड़ती है ! जो किसी पिता के दिल को सिर्फ आघात पहुंचाती है ! जो पिता बचपन से लेकर जवानी, शादी और शादी के बाद की सभी छोटी मोटी गलतियों को बिना किसी झिझक के माफ़ कर देता है ! वहीँ जब कभी पिता द्वारा कोई गलती अगर हो जाये तो वही बच्चे जरा भी नहीं चूकते अपने ही पिता का अपमान करने से ! एक पिता बच्चे की बचपन से लेकर तह जिन्दगी सिर्फ भला सोचता है ! पर आज के इस कलियुग मैं राम अब देखने नहीं मिल सकते ! पर दशरथ आज भी बहुत हैं जो सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों से प्यार करते हैं , और उनकी जरा सी तकलीफ मैं अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं ! पर आज की उनकी संतान नहीं ! आखिर एक पिता अपने बच्चों से क्या चाहता है , थोडा सा प्यार , पिता का मान-सम्मान और कुछ नहीं !
जिस तरह माँ की ममता महान होती है , उसी तरह पिता भी एक महान आत्मा होती है , ना करें पिता का अपमान , भला हो या बुरा , पिता तो पिता ही होता है , उसका दर्द भी समझें ..................................।

धन्यवाद

Saturday, April 24, 2010

कहाँ गया बो चना जोरगरम बाला....>>>> संजय कुमार


बचपन मैं हम जब स्कूल जाते थे ! तो स्कूल के बाहर एक बूढी औरत जो बेर और चने बेचा करती थी ! आज भी याद होगा आप सभी को बो औरत जिससे आपने कभी ना कभी बेर और चने खाए होंगे ! आपको याद होगा बो चना जोरगरम बाला जो अपने कंधों पर एक छोटी सी पेटी लटकाकर आपके मोहल्ले मैं आया करता था ! तब हम सभी अपने माता पिता से चवन्नी अठन्नी लेकर उससे चने खाया करते थे ! ठीक इसी तरह बचपन की बहुत सी चीजें ऐसी हैं जिन्हें हम कभी नहीं भूल सकते ! चाहे बो गली गली फेरी लगाकर कुल्फी बेचने बाला हो या , गुडिया के बाल बेचने बाला हो, या बर्फ बेचने बाला ! यह सब जुड़े थे हमारे बचपन से ! पहले हर चीज मैं स्वाद होता था ! और यह सारी चीजें होती थी हमारे स्वास्थ के लिए लाभदायक !

समय गुजरता गया ,और धीरे धीरे यह सब हमलोगों के जीवन से कहीं ओझल हो गए ! आज के बच्चे ना तो यह जानते हैं कि बेर और चने होते क्या हैं ! क्योंकि अब इनका अस्तित्व लगभग मिट गया है ! आज हमारे घरों मैं यह सब कहीं देखने को नहीं मिलेगा ! अगर मिलेगा तो uncle chips, kurkure और स्वास्थ्य को ख़राब करने बाले cold-drinks आज सिर्फ यही रह गया और कुछ नहीं ! जैसे जैसे आधुनिकता बड़तीजा रही है , नए नए उत्पाद बाजार मैं आ रहे हैं , बैसे बैसे हमारी पुरानी चीजें अपना अस्तित्व खोतीजा रहीं हैं ! अब इन्सान गर्मी मैं अपनी प्यास और अपना गला तर करने केलिए गन्ने का रस, और मटके कि ठंडी कुल्फी या दही कि ताजा लस्सी नहीं पीता, पीता है तो सिर्फ बाजार मैं बिकने बाले घटिया पेय पदार्थ , जो हानिकारक हैं हमारे स्वास्थ्य के लिए !

आज जब हम अपने बच्चों को अपने बचपन के बारे मैं बताते हैं, तो बच्चे हम से पूंछते हैं कि ये चना जोरगरम बाला क्या होता है ! आज हम लोग ही हैं इन सबके पीछे ! कहीं ऐसा ना हो जिस तरह हमारी पुरानी चीजों को हम और आज कि युवा पीडी भूलती जा रही हैं , और एक दिन वह ये भी भूल जाएँ कि ये माता पिता क्या होता है !

ना भूलें पुरानी चीजे , पुराने लोग, वह भी कभी हमारे जीवन का हिस्सा थे ! पर आज गुमनाम हो रही है यह सारी चीजे ! और हम सोचते रह जायेंगे कि, कहाँ गया बो चना जोरगरम बाला !

धन्यवाद

Friday, April 23, 2010

ना रखें अपनी ही मौत का सामान अपने ही घर मैं .......>>>> संजय कुमार

कहते हैं अस्त्र -शस्त्र वीरों और योद्धाओं का आभूषण होता है ! जिसे वीर अपनी रक्षा और दुश्मनों को मारने के लिए अपने पास रखते हैं ! अब ना तो वीर वचे हैं, और ना ही योद्धा! पर अस्त्र शस्त्र अब भी जीवित हैं ! पर जैसे जैसे समय गुजरता गया अस्त्र शस्त्र की परिभाषा भी बदल गयी है ! आज अस्त्र -शास्त्र बन गए हैं हथियार ! ऐसे जो ले रहे हैं अपनों की जान ! अब इन्सान अस्त्र शस्त्र सिर्फ शौक के लिए रखने लगा है ! आज हथियार रखना एक अच्छे रुतबे की निशानी माना जाता है ! बहुत से व्यक्ति अपने पास हथियार रखते हैं! इस शौक के चक्कर मैं कुछ इन्सान अपने घर मैं अपनी मौत का सामान ले आते हैं ! शायद इन्सान इन हथियारों का उपयोग कभी दुश्मन पर ना कर पाए , उसका गलत जगह उपयोग जरूर करते हैं !उपयोग करता है तो झूंठी शान के चक्कर मैं ,कभी किसी कि शादी पार्टी मैं या बच्चे के जन्म पर इन हथियारों का खूब प्रदर्शन करते हैं ! और करते हैं ऐसी गलती जिसके लिए उन्हें जीवन भर पछताना पड़ता है ! जब इनके द्वारा इन हथियारों का झूंठा प्रदर्शन किया जाता है , ऐसी ही किसी जगह , जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता हैं ! किसी निर्दोष और मासूम को ! पर यह अस्त्र शस्त्र रखने बाले यह नहीं जानते, कि कब यह हथियार जो हम अपनी सुरक्षा के लिए रख रहे हैं ! वही हथियार हमारी गलती से किसी मासूम की जान तक ले लेती है ! कभी कभी यह हथियार अपनों पर भी चला देते हैं ! पर आज कल घटनाएं बढती जा रही हैं !सभी हथियार रखने बाले ऐसा नहीं करते ! पर आजकल ऐसा हो रहा है! जोश मैं होश खो रहे हैं !
हम सभी , रोज अख़बार पड़ते हैं , रोज टी व्ही देखते हैं , रोज यह खबर सुनते हैं कि , किसी व्यक्ति ने अपनी ही पिस्तोल से अपने माँ-बाप कि हत्या करदी , या अपने बच्चे को , या अपनी पत्नि को या , जिस पिता ने जन्म दिया उसी को अपने घर मैं रखी हुई बन्दूक से गोली मार दी ! या गुस्से मैं खुद को गोली मार ली ! क्यों हो रहा है यह सब ! यह मैं पहले ही कह चूका हूँ कि आज के इन्सान के पास सब्र बिलकुल भी नहीं हैं ! और जब इन्सान का सब्र टूटता है तो , वह इस तरह कि घटनाओं को अंजाम देता है ! इन्सान का गुस्सा आज इतना ख़राब हो गया है ! की वह कब इन हथियारों का प्रयोग अपनों पर करदे नहीं कह सकते ! यह हमेशा देखा गया है , की इन्सान जब अपने पास हथियार रखने लगता हैं ,तो वह अपने आप को जरूरत से ज्यादा ताकतवर समझने लगता है ! आज इस आधुनिक दुनिया मैं छोटे छोटे बच्चे बहुत होशियार हो गए हैं ! बस टी व्ही पर फिल्म देखी और तैयार हो गए चोर पुलिस का खेल खेलने ! और उठा ली घर मैं ही रखी पिस्तोल ! और हो गया एक और हादसा ! आज घर मैं रखा हथियार दुश्मनों को कम अपनों को ज्यादा मार रहा है ! और ले रहा है ! अपनों की जान ! और इन्सान कभी कभी ले लेता अपनी खुद की जान !


गुजारिश है उन सभी लोगों से जो हथियार अपने घर मैं रखते हैं ! इनको दूर रखें अपने बच्चों की पहुँच से ! दूर रखें अपने गुस्से से ! और गुजारिश है उन सभी से जो रखते हैं सिर्फ शौक और झूंठी शान के लिए .................
ना रखें अपनी ही मौत का सामान अपने ही घर मैं .....................................................

धन्यवाद

Thursday, April 22, 2010

क्यों करते हैं जिस्मफरोशी का धधा.........>>> संजय कुमार


जहाँ हमारे देश मैं अब आये दिन कोई ना कोई साधू संत पकड़ा जा रहा है ! और हो रहा है बेनकाब किसी ना किसी सेक्स स्कैंडल मैं ! फिर चाहे बह भीमानंद स्वामी हो या नित्यानंद स्वामी , सब के सब एक ही घाट पर पानी पीने बाले हैं ! और इनके चक्कर मैं हमारे समाज की कुछ सभ्य लड़कियां धंस रहीं है ! जिस्मफरोशी के दलदल मैं !
आज कल यह बात अब आम हो गयी है , देश मैं जिस्मफरोशी का धंधा पूरे जोर शोर से चल रहा है ! जिसे देखो घुस गया इस धंधे मैं ! चाहे बो नेता हो धार्मिक संत हो , या कोई समाज का बड़ा आदमी ! जिसे देखो इस चमड़ी की कमाई खाने को व्याकुल हो रहा है ! सही बात है! कहावत तो आपने सुनी होगी , कि "हींग लगे ना फटकरी और रंग भी चोखा आये " बस तलाश कि ऐसे लोगों कि जो पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं , फिर चाहे अपनी आबरू , इज्जत ही क्यों ना देनी पड़े !आज हमारा पड़ा लिखा युवा वर्ग किस तरह पागल हो गया है , अपनी अय्याशियों को पूरा करने के लिए , अपने शौक पूरा करने के लिए , अपनी झूंठी खुशियों के लिए, और भूल जाता है सारी मान-मर्यादायें, और घुस जाता है , जिस्म्फरोसी के दलदल मैं ! और नहीं परवाह किसी कि भी , अब इस धंधे मैं हमारी युवा पीड़ी का पूरा का पूरा इस्तेमाल किया जा रहा है ! आप कोई भी बड़ा सेक्स रैकिट उठा कर देख लीजिये , पकड़ी गयी लड़कियों मैं वही हमारी युवा पीड़ी , बड़े बड़े घरों की लड़कियां , MBA छात्राएं , Air hostess , और ना जाने कितनी ऐसी लड़कियां जो ताल्लुक रखतीं हैं कई उच्च घरानों से ! आज हम जब अपने बच्चों को बाहर शहर मैं पड़ने भेजते हैं , और छोड़ देते हैं उनको पूरी तरह आजाद ! क्या यह सब करने के लिए ! क्यों आप ध्यान नहीं दे रहे हैं उनकी जिंदगी मैं , वह क्यों भटक रहे हैं इस ओर ! क्यों आप लोगों का नियंत्रण नहीं रहा आज अपने बच्चों पर ! जरा ध्यान दीजिये अपने बच्चों पर ! आज क्यों हमारी पड़ी लिखी युवा लड़कियां इस ओर ज्यादा आकर्षित हो रहीं हैं ! क्या कारण है ? अब यह जानना हम लोगों को बहुत जरूरी है ! क्यों इतनी जल्दी बहक जाती हैं ! क्यों इन साधू महात्माओं और ऐसे धंधा चलाने बालों के चक्कर मैं अपना जीवन तबाह कर रहीं हैं ! कैसे फंस जाती हैं ऐसे लोगों के चक्कर मैं , ऐसा क्या लालच देते हैं , ऐसी क्या मजबूरी होती है ! इन उच्च घरों की लड़कियों की , जो इस तरह का घ्रणित कार्य कर रहीं हैं ! जहाँ देश मैं बारबालाओं को हम और हमारा सभ्य समाज घिनोनी द्रष्टि से देखता है , लेकिन यह तो सब अपना पेट भरने के लिए यह सब करती हैं , इनकी तो मजबूरी होती है, पर यह जो कर रहीं हैं , इन्हें हम कुछ नहीं कह सकते , क्यों ? यह सब किसी रुतबे दार घर या समाज से सम्बन्ध रखती हैं ! फिर क्या अंतर रह जाता हैं उन वेश्याओं मैं और इन लड़कियों मैं ! जो शराफत का चोला पहनकर समाज और अपने परिवार की आँखों मैं धुल झोंक रहीं हैं ! कुछ तो शर्म करो ! क्या पैसा कमाने का यही एक रास्ता बचा है ! आपके पास .............

हम सब तो इन युवाओं को अपने देश का भविष्य कहते नहीं थकते ! जहाँ देश के कई युवा देश का नाम सारे विश्व मैं रोशन कर रहे हैं ! वहीँ कुछ देश का नाम डुबो रहे हैं ! और बन रहे हैं इस तरह रोज टी व्ही और समाचार पत्रों की सुर्खियाँ !


अब भी वक़्त है ................अगर आगे नहीं किया कुछ ..................तो ......................

धन्यवाद

Wednesday, April 21, 2010

ये बचपन क्या होता है , क्या आप जानते हैं ?.....>>> संजय कुमार

कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं , यह बच्चे हमारे देश का आने बाला भविष्य होते हैं ! पर हिंदुस्तान के कितने बच्चे हैं , जो बनते हैं हमारे देश का भविष्य ! जब हम सब बड़े हो गए, तो हम अक्सर यह बात करते हैं, कि कितना अच्छा था हमारा बचपन , और मन ही मन सोचते हैं कि , काश वापस पहुँच जाएँ हम अपने बचपन मैं , और लौट कर आ जाएँ वह बचपन के दिन ! पर कहाँ हैं आज के बहुत से बच्चे ! आज सेंकडो बच्चे गुमनामी कि जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं , ऐसे कई बच्चे हैं जिनके पैदा होते ही दीमक लग जाती है , उनके बचपन को ! कई केश इस तरह के सुनने मैं आये हैं , कि किसी महिला ने अपना पाप छुपाने के लिए अपने नवजात बच्चे को फेंक दिया , कहीं कचरे के ढेर मैं , यदि वह कुत्तों और सूअरों का भोजन नहीं बना तो , जीवन भर झेलेगा नरक सी जिंदगी ! इस नरक सी जिंदगी को हिंदुस्तान मैं बहुत से बच्चे जी रहे हैं ! हमारे देश का भविष्य और भगवान का रूप आज आपको देखने को मिल जायेगा ! किसी चाय कि दुकान पर लोगों के झूंठे गिलास धोते हुए ! कई बच्चों कि जिंदगी निकल जाती है , ढावों कि अँधेरी कोठरी मैं ! बहुत सी संख्या मैं ये भगवान हमें भिखारियों के रूप मैं मिल जायेंगे ! कुछ बच्चे तो यह सब मजबूरी बस करते हैं , और कुछ बच्चों से यह सब करवाया जाता है ! जहाँ सरकार यह कह रही है कि, देश के हर बच्चे को शिक्षा पाना उसका कानूनी अधिकार है , वहीँ बहुत से बच्चे उसी सरकार के बहुत से मंत्रियों और अधिकारियों के यहाँ दिन रात महनत करते हैं , और यह सब चलता रहता है , पीड़ी दर पीड़ी ! जब सरकार कि नाँक के नीचे यह सब होता है , तो फिर अन्य जगह क्यों नहीं ! आज कई बच्चे परिवार कि जिम्मेदारियों को अपने ऊपर ले लेते हैं , जिन्हें करनी पड़ती है बचपन से ही महनत ! और कब यह बच्चे बड़े हो जाते हैं , यह उन्हें भी नहीं होता मालूम ! कुछ बच्चे पड़ना चाहते हैं ,पर उनके माँ -बाप अपने शौक पूरा करने के लिए झोक देते हैं उन्हें मजदूरी कि भट्टी मैं ! आज स्थिति बहुत गंभीर हो गयी है , हिंदुस्तान मैं कई ऐसे गैंग हो गए गए हैं , जो इन मासूमों का इस्तेमाल गलत जगह कर रहे हैं , यह लोग बच्चों को अगवा कर , उनके अंग काटकर भिखारी तक बना देते हैं ! हिंदुस्तान मैं ऐसे लाखों करोड़ों बच्चे हैं, जिन्हें यह नहीं मालूम की बचपन क्या होता है ! और बचपन कहते किसे हैं ! ऐसे लाखों बच्चे हैं जिनके सर पर ना तो छत है और ना ही माँ-बाप का साया ! ऐसे बच्चे जिनके सर पर माँ-बाप का साया नहीं है , वो जीवन भर पिसते रहते हैं , यूँ ही किसी साईकिल कि दूकान पर ! या यूँ ही भटकते रहते हैं मारे मारे सड़कों पर ! सरकार आज इन बच्चों के लिए कुछ भी नहीं कर रही हैं ! कर रही है तो बस खानापूर्ति बाल श्रमिक अधिनियम के नाम पर !
जब मैंने एक ऐसे बच्चे से यह जानना चाहा जो सुबह ५ बजे अख़बार देने आता था ! कि तुम इतना जल्दी कैसे उठ जाते हो और इतनी सुबह सर्दी, गर्मी और बरसात मैं अखबार बांटते हो, तो वह बोला यह तो कुछ नहीं है "बाबूजी "
अख़बार बाँटने के बाद मैं एक राशन कि दूकान पर काम करने जाता हूँ , और शाम को एक चाय कि दुकान पर रात १० बजे तक काम करता हूँ , अगर एक दिन भी मैं यह सब ना करूँ तो पता नहीं मेरे घर चूल्हा जलेगा या नहीं इसका अंदाजा आप बड़े लोग नहीं लगा सकते ! हमारा तो जीवन ही इसलिए बना है कि हम बस काम करते रहें और कुछ नहीं ! जब यह बच्चे बड़े हो जाते हैं ! और कोई इनसे अगर यह पूँछ लेता है कि , आपका बचपन कैसा था ! तो यही बच्चे कहते हैं कि , ये बचपन क्या होता है , और किस चिड़िया का नाम हैं , हम तो सिर्फ काम करना जानते हैं और कुछ नहीं ! बचपन तो अमीरों का होता है , हम तो गरीब और बेसहारा पैदा हुए हैं और यूँ ही लावारिशों कि तरह एक दिन ख़त्म हो जायेंगे
हमारा यह दुर्भाग्य है कि हमारे देश का भविष्य यूँ दर दर , यूँ गली गली ठोकर खा रहा है ! और हम सब चुप हें

ये बचपन क्या होता है , क्या आप जानते हें ?


धन्यवाद

Tuesday, April 20, 2010

देर से ही सही पर मिल गया इंसाफ...(जेसिका लाल )...>>> संजय कुमार


आखिर इस अंधे कानून के द्वारा ठीक ११ साल बाद जेसिका लाल के परिवार को इंसाफ मिल ही गया ! अब होगी सही श्रधांजलि जेसिका लाल को ! पर यह कैसे हो गया, कौन है जिसने इतनी मेहनत की, इंसाफ दिलाने मैं, शायद इसका श्रेय हमारे अख़बार या मीडिया बालों को जाता है ! आखिर यह एक चर्चित मामला जो था ! जिस पर हमारे देश के कितने ही लोगों की नजरें थी ! सो कानून के द्वारा इंसाफ मिल ही गया ! अगर इस तरह का केश दिल्ली के अलाबा किसी छोटी मोटीजगह हुआ होता तो क्या इंसाफ मिल पाता ! ? आज हमारे देश मैं ऐसे लाखों मामले हैं जो पिछले बीस बीस सालों से चले आ रहे हैं, पर आज तक जिनका कोई फैंसला नहीं हुआ , यहाँ तक की कई मामलों मैं तो पीड़ित की मृत्यु तक हो चुकी है , पर मामला विचाराधीन हैं ! जेसिका लाल और उस जैसे कई मामलों मैं अगर इंसाफ मिला तो, इसका एक बड़ा कारण है, फरियादी और मुजरिम दोनों ही कहीं न कहीं कोई बड़ी हस्तियाँ थी या बड़ी हस्तियों से जुड़े थे ! इसलिए यह मामला इतना चर्चा मैं था ! आज तक वही मामले प्रकाश मैं आये हैं , जिन मामलों कहीं ना कहीं कोई high-porfile या ऊंचा रसूखदार , या बड़ा नेता , या कोई business men या कोई बड़ा आदमी शामिल होता है ! पर जिन मामलों ऐसी कोई हस्ती शामिल नहीं होती , क्या वह इंसाफ के लिए नहीं बने ? आज बहुत से लोग दर दर भटक रहे हैं इंसाफ की लिए ! पर इंसाफ आज तक नहीं मिल पाया ! यह सच है ! हम लोग यह सब देख रहे हैं ! आज कितने ही मामले अदालत तक नहीं पहुँच पाते, कारण वह छोटा आदमी या जिसके पास कोई बड़ी पहुँच नहीं है ! आज हमारा कानून कितना लाचार है , आज क्या कारण है की इंसाफ मिलने मैं लोगों को इतना लम्बा इंतजार करना पड़ता है ! इतना इंतजार की उनके जख्म और उनकी आँख के आंसू पूरी तरह सूख जाते हैं ! और मरने बाले की आत्मा इंसाफ के लिए यूँ ही तड़पती रहती है !
हमारे अख़बार और मीडिया भी बही मामले उठाती है , जिनमे पब्लिसिटी ज्यादा होती है ,
वो सारे मामले इसी तरह उठाये जाएँ जिनमे इंसाफ मिलना जरूरी है ! तभी हम कहेंगे की कानून अँधा नहीं होता !
वर्ना कानून तो अँधा है ही और उसका इंसाफ भी .........................
सत्यमेव जयते.......................... सत्यमेव जयते


धन्यवाद

Monday, April 19, 2010

क्यों नहीं उठा एक भी हाँथ, आज तक मेरे लिए......>>>> संजय कुमार


आप सभी ने फिल्म "उपकार " का यह गीत जरूर सुना होगा ! " मेरे देश की धरती सोना उगले , उगले हीरे मोती , मेरे देश की धरती , इस गीत को सुनकर शायद आप धरती , मिटटी , या किसान के बारे मैं सोचेंगे ! जी नहीं मैं यहाँ इनमें से किसी के बारे मैं नहीं कह रहा हूँ ! यह सब मेरे बिना सूने हैं ! अब यह भी सुन लीजिये इसी गीत की दो लाइन ! " बैलों के गले मैं जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं , गम कोसों दूर हो जाता है , खुशियों के कमल मुस्कुराते हैं ! जी हाँ मैं हूँ श्रम का सबसे बड़ा प्रतीक ! जी हाँ सही पहचाना आपने मैं हूँ गौ-माता वंशज बैल ! आज मेरा अस्तित्व लगभग ख़त्म होता जा रहा है ! कारण वही आधुनिकीकरण ! आज मेरा अस्तित्व ट्रेक्टर के भारी पहियों मैं कहीं खोता जा रहा है ! इस देश मैं जहाँ गौ माता की संख्या बढरही है , वहीँ मेरी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है ! इसका कारण है आप लोग पूरी तरह भूल गए हैं मुझे और मेरा महत्व ! आज लोगों की आस्था और वोट की गन्दी राजनीति ! जहाँ गौ माता के संरक्षण मैं कई हिन्दू संगठन और ये राजनेता अपनी चुनावी रोटियां सेकने सामने आ जाते हैं ! वहीँ हम जो गौ माता के वंशज हैं, हमें वचाने कोई संगठन आगे नहीं आता और हमें भेज दिया जाता है बूचडखानो मैं सिर्फ मरने, कटने के लिए ! मेरा क्या कसूर है ! क्या आपने कभी यह महसूस किया है ! जब से आप लोगों ने मुझे कृषि और माल ढोनेके कार्य से हटाया है तब से मेरा सिर्फ और सिर्फ प्रतिदिन ह्रास हो रहा है ! सीधी रोटी से जुड़े श्रम, ईमानदारी और परिश्रम के प्रतीक हम बैल , दिन प्रतिदिन कम हो रहे हैं !
एक समय था जब बैलों के जन्म पर किसान खुशियाँ मनाता था ! उसे लगता था जैसे मेरे घर बालक ने जन्म लिया है , जो उसका आगे चलकर सहारा बनेगा ! पर आज किसान के यहाँ अगर मैंने जन्म ले लिया तो आज किसान सिर्फ मातम मनाता है ! की क्यों इसने जन्म लिया हम तो पहले ही इस मंहगाई से मर रहे हैं ! और ऐसी मंहगाई मैं इसका पालन कैसे होगा ! आज का किसान मजबूर है , जब किसान अपने बच्चों का ठीक ढंग से लालन-पालन नहीं कर पता तो कैसे करेगा इनका पालन पोषण ! और दो तीन सालों मैं , मैं हो जाता हूँ बूचडखानों के हवाले ! देश मैं जो गौ मांस का ग्राफ बड़ा है उसमे सबसे ज्यादा संख्या मेरी है ! क्यों नहीं उठा कोई हाँथ आज तक मुझे वचाने के लिए ! क्यों आप इतना आधुनिक हो गए हैं ! मैं पिछले तीन हजार वर्षों से आपके साथ हूँ ! और मेरे द्वारा यह देश अर्थजगत मैं अपना नाम कर पाया है ! मैं धुरी था आपके अर्थ तंत्र की ! जब मैं नहीं रहा तो किसे कहेंगे आप अर्थ तंत्र की पारंपरिक धुरी ! इन आधुनिक उपकरणों को , जिनसे आज इन्सान पंगु बन के रह गया है !
काश एक हाँथ उठे मेरे लिए .......................................................................
सोचिये जरूर सोचिये ......................एक बार अवश्य सोचिये ...........................

धन्यवाद

Saturday, April 17, 2010

एक शाम इस शहीद के नाम ..18 .अप्रैल .1859.....(तात्या टोपे ) संजय कुमार

तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। तात्या का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट पटौदा जिले के येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पाण्डुरंग राव भट्ट़ (मावलेकर), पेशवा बाजीराव द्वितीय के घरू कर्मचारियों में से थे। बाजीराव के प्रति स्वामिभक्त होने के कारण वे बाजीराव के साथ सन् १८१८ में बिठूर चले गये थे। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। तात्या का जन्म सन् १८१४ माना जाता है। अपने आठ भाई-बहनों में तात्या सबसे बडे थे।
सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्श किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।
कुछ समय तक तात्या ने ईस्ट इंडिया कम्पनी में बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में भी काम किया था, परन्तु स्वतंत्र चेता और स्वाभिमानी तात्या के लिए अंग्रेजों की नौकरी असह्य थी। इसलिए बहुत जल्दी उन्होंने उस नौकरी से छुटकारा पा लिया और बाजीराव की नौकरी में वापस आ गये। कहते हैं तोपखाने में नौकरी के कारण ही उनके नाम के साथ टोपे जुड गया, परंतु कुछ लोग इस संबंध में एक अलग किस्सा बतलाते हैं। कहा जाता है कि बाजीराव ने तात्या को एक बेशकीमती और नायाब टोपी दी थी। तात्या इस टोपे को बडे चाव से पहनते थे। अतः बडे ठाट-बाट से वह टोपी पहनने के कारण लोग उन्हें तात्या टोपी या तात्या टोपे के नाम से पुकारने लगे।
सन् १८५७ के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुँचीं और वहाँ के सैनिकों ने नाना साहब को पेशवा और अपना नेता घोषित किया तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की। तात्या टोपे को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया। जब ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की कमान में अंग्रेज सेना ने इलाहाबाद की ओर से कानपुर पर हमला किया तब तात्या ने कानपुर की सुरक्षा में अपना जी-जान लगा दिया, परंतु १६ जुलाई, १८५७ को उसकी पराजय हो गयी और उसे कानपुर छोड देना पडा। शीघ्र ही तात्या टोपे ने अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया और कानपुर से बारह मील उत्तर मे बिठूर पहुँच गये। यहाँ से कानपुर पर हमले का मौका खोजने लगे। इस बीच हैवलॉक ने अचानक ही बिठूर पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि तात्या बिठूर की लडाई में पराजित हो गये परंतु उनकी कमान में भारतीय सैनिकों ने इतनी बहादुरी प्रदर्शित की कि अंग्रेज सेनापति को भी प्रशंसा करनी पडी।
तात्या एक बेजोड सेनापति थे। पराजय से विचलित न होते हुए वे बिठूर से राव साहेब सिंधिया के इलाके में पहुँचे। वहाँ वे ग्वालियर कन्टिजेन्ट नाम की प्रसिद्ध सैनिक टुकडी को अपनी ओर मिलाने में सफल हो गये। वहाँ से वे एक बडी सेना के साथ काल्पी पहुँचे। नवंबर १८८७ में उन्होंने कानपुर पर आक्रमण किया। मेजर जनरल विन्ढल के कमान में कानपुर की सुरक्षा के लिए स्थित अंग्रेज सेना तितर-बितर होकर भागी, परंतु यह जीत थोडे समय के लिए थी। ब्रिटिश सेना के प्रधान सेनापति सर कॉलिन कैम्पबेल ने तात्या को छह दिसंबर को पराजित कर दिया। इसलिए तात्या टोपे खारी चले गये और वहाँ नगर पर कब्जा कर लिया। खारी में उन्होंने अनेक तोपें और तीन लाख रुपये प्राप्त किए जो सेना के लिए जरूरी थे। इसी बीच २२ मार्च को सर ह्यूरोज ने झाँसी पर घेरा डाला। ऐसे नाजुक समय में तात्या टोपे करीब २०,००० सैनिकों के साथ रानी लक्ष्मी बाई की मदद के लिए पहुँचे। ब्रिटिश सेना तात्या टोपे और रानी की सेना से घिर गयी। अंततः रानी की विजय हुई। रानी और तात्या टोपे इसके बाद काल्पी पहुँचे। इस युद्ध में तात्या टोपे को एक बार फिर ह्यूरोज के खिलाफ हार का मुंह देखना पडा।
कानपुर, चरखारी, झाँसी और कोंच की लडाइयों की कमान तात्या टोपे के हाथ में थी। चरखारी को छोडकर दुर्भाग्य से अन्य स्थानों पर उनकी पराजय हो गयी। तात्या टोपे अत्यंत योग्य सेनापति थे। कोंच की पराजय के बाद उन्हें यह समझते देर न लगी कि यदि कोई नया और जोरदार कदम नहीं उठाया गया तो स्वाधीनता सेनानियों की पराजय हो जायेगी। इसलिए तात्या ने काल्पी की सुरक्षा का भार झांसी की रानी और अपने अन्य सहयोगियों पर छोड दिया और वे स्वयं वेश बदलकर ग्वालियर चले गये। जब ह्यूरोज काल्पी की विजय का जश्न मना रहा था, तब तात्या ने एक ऐसी विलक्षण सफलता प्राप्त की जिससे ह्यूरोज अचंभे में पड गया। तात्या का जवाबी हमला अविश्वसनीय था। उसने महाराजा जयाजी राव सिंधिया की फौज को अपनी ओर मिला लिया था और ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर कब्जा कर लिया था। झाँसी की रानी, तात्या और राव साहब ने जीत के ढंके बजाते हुए ग्वालियर में प्रवेश किया और नाना साहब को पेशवा घोशित किया। इस रोमांचकारी सफलता ने स्वाधीनता सेनानियों के दिलों को खुशी से भर दिया, परंतु इसके पहले कि तात्या टोपे अपनी शक्ति को संगठित करते, ह्यूरोज ने आक्रमण कर दिया। फूलबाग के पास हुए युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई १८ जून, १८५८ को शहीद हो गयीं।
इसके बाद तात्या टोपे का दस माह का जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा जीवन है। लगभग सब स्थानों पर विद्रोह कुचला जा चुका था, लेकिन तात्या ने एक साल की लम्बी अवधि तक मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेज सेना को झकझोरे रखा। इस दौरान उन्होंने दुश्मन के खिलाफ एक ऐसे जबर्दस्त छापेमार युद्ध का संचालन किया, जिसने उन्हें दुनिया के छापेमार योद्धाओं की पहली पंक्ति में लाकर खडा कर दिया। इस छापेमार युद्ध के दौरान तात्या टोपे ने दुर्गम पहाडयों और घाटियों में बरसात से उफनती नदियों और भयानक जंगलों के पार मध्यप्रदेश और राजस्थान में ऐसी लम्बी दौड-दौडी जिसने अंग्रेजी कैम्प में तहलका मचाये रखा। बार-बार उन्हें चारों ओर से घेरने का प्रयास किया गया और बार-बार तात्या को लडाइयाँ लडनी पडी, परंतु यह छापामार योद्धा एक विलक्षण सूझ-बूझ से अंग्रेजों के घेरों और जालों के परे निकल गया। तत्कालीन अंग्रेज लेखक सिलवेस्टर ने लिखा है कि ’’हजारों बार तात्या टोपे का पीछा किया गया और चालीस-चालीस मील तक एक दिन में घोडों को दौडाया गया, परंतु तात्या टोपे को पकडने में कभी सफलता नहीं मिली।‘‘
ग्वालियर से निकलने के बाद तात्या ने चम्बल पार की और राजस्थान में टोंक, बूँदी और भीलवाडा गये। उनका इरादा पहले जयपुर और उदयपुर पर कब्जा करने का था, लेकिन मेजर जनरल राबर्ट्स वहाँ पहले से ही पहुँच गया। परिणाम यह हुआ कि तात्या को, जब वे जयपुर से ६० मील दूर थे, वापस लौटना पडा। फिर उनका इरादा उदयपुर पर अधिकार करने का हुआ, परंतु राबट्र्स ने घेराबंदी की। उसने लेफ्टीनेंट कर्नल होम्स को तात्या का पीछा करने के लिए भेजा, जिसने तात्या का रास्ता रोकने की पूरी तैयारी कर रखी थी, परंतु ऐसा नहीं हो सका। भीलवाडा से आगे कंकरोली में तात्या की अंग्रेज सेना से जबर्दस्त मुठभेड हुई जिसमें वे परास्त हो गये।
कंकरोली की पराजय के बाद तात्या पूर्व की ओर भागे, ताकि चम्बल पार कर सकें। अगस्त का महीना था। चम्बल तेजी से बढ रही थी, लेकिन तात्या को जोखिम उठाने में आनंद आता था। अंग्रेज उनका पीछा कर रहे थे, इसलिए उन्होंने बाढ में ही चम्बल पार कर ली और झालावाड की राजधानी झलार पाटन पहुँचे। झालावाड का शासक अंग्रेज-परस्थ था, इसलिए तात्या ने अंग्रेज सेना के देखते-देखते उससे लाखों रुपये वसूल किए और ३० तोपों पर कब्जा कर लिया। यहाँ से उनका इरादा इंदौर पहुँचकर वहाँ के स्वाधीनता सेनानियों को अपने पक्ष में करके फिर दक्षिण पहुँचना था। तात्या को भरोसा था कि यदि नर्मदा पार करके महाराश्ट्र पहुँचना संभव हो जाय तो स्वाधीनता संग्राम को न केवल जारी रखा जा सकेगा, बल्कि अंग्रेजों को भारत से खदेडा भी जा सकेगा।
सितंबर, १८५८ के शुरु में तात्या ने राजगढ की ओर रुख किया। वहाँ से उनकी योजना इंदौर पहुंचने की थी, परंतु इसके पहले कि तात्या इंदौर के लिए रवाना होते अंग्रेजी फौज ने मेजर जन. माइकिल की कमान में राजगढ के निकट तात्या की सेना को घेर लिया। माइकिल की फौजें थकी हुई थीं इसलिए उसने सुबह हमला करने का विचार किया, परंतु दूसरे दिन सुबह उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तात्या की सेना उसके जाल से निकल भागी है। तात्या ने ब्यावरा पहुँचकर मोर्चाबंदी कर रखी थी। यहाँ अंग्रेजों ने पैदल, घुडसवार और तोपखाना दस्तों को लेकर एक साथ आक्रमण किया। यह युद्ध भी तात्या हार गये। उनकी २७ तोपें अंग्रेजों के हाथ लगीं। तात्या पूर्व में बेतवा की घाटी की ओर चले गये। सिरोंज में तात्या ने चार तोपों पर कब्जा कर लिया और एक सप्ताह विश्राम किया। सिरोंज से वे उत्तर में ईशागढ पहुँचे और कस्बे को लूटकर पाँच और तोपों पर कब्जा किया। ईशागढ से तात्या की सेना दो भागों में बँट गयी। एक टुकडी राव साहब की कमान में ललितपुर चली गयी और दूसरी तात्या की कमान में चंदेरी। तात्या का विश्वास था कि चंदेरी में सिंधिया की सेना उसके साथ हो जाएगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ। इसलिए वे २० मील दक्षिण में, मगावली चले गये। वहाँ माइकिल ने उनका पीछा किया और १० अक्टूबर को उनको पराजित किया। अब तात्या ने बेतवा पार की और ललितपुर चले गये जहाँ राव साहब भी मौजूद थे। उन दोनों का इरादा बेतवा के पार जाने का था परंतु नदी के दूसरे तट पर अंग्रेज सेना रास्ता रोके खडी थी। चारों ओर घिरा देखकर तात्या ने नर्मदा पार करने का विचार किया। इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी।
नरमदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस येाजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं।
मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे।
तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा।
परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था।

यह जानकारी google. com से ली गयी है .................

धन्यवाद

Friday, April 16, 2010

सत्यानाश हो इन हड़ताल करानेबालों का.............>>> संजय कुमार


आजकल हमारे देश मैं एक चीज नियमित हो गयी है , और बो चीज है हड़ताल, देश मैं जिसे देखो ,जब देखो हड़ताल कर देता है ! और ठप्प कर देता है, चलता फिरता सामान्य जनजीवन ! इस रोज रोज की हड़ताल से देश की अर्थव्यवस्था रूकती हो तो रुक जाये, करोड़ों का नुकसान होता है तो हो जाये ! एक बीमार आदमी रास्ते मैं दम तोड़ दे फर्क नहीं पड़ता ! छोटे छोटे मासूम बच्चे दूध की एक एक बूँद को तरस जाएँ ! पर हड़ताल बालों पर ऐसा जूनून होता है कि उन्हें यह सब मंजूर है ! पर हड़ताल बंद नहीं करेंगे ! आज हड़ताल से सिर्फ लोगों का नुकसान हो रहा है ! और कुछ नहीं ! हम सब यह जानते हैं कि इन हड़ताल से आज तक कितनी समस्याए हल हुई हैं !और कितनी समस्याएं पैदा हुई हैं ! क्या आज हर समस्या का हल सिर्फ हड़ताल है !
एक वक़्त था जब लोग अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए विरोध करते थे ! पर उस समय विरोध होता था सही तरीके से और पूरी योजनाओं के साथ ! और तब होता था हड़ताल का असर सरकार पर ! पर अब नहीं ! आज हड़ताल होगई है नेताओं की एक सोची समझी चाल ! जब चाहा हड़ताल कर दी ! उसका असर किन किन लोगों पर पड़ेगा ,और उसका क्या परिणाम होगा नहीं जानते ! या जानबूझकर अनजान बनते हैं ! आज कल हर पार्टी अपना उल्लू सीधा करने के लिए जब चाहे हड़ताल करबा देती है ! सिर्फ अपना फायदा सोचते हैं , और भूल जाते हैं , उन लोगों की तकलीफ और दर्द जो इस आये दिन होने बाली हड़ताल से पीड़ित होते हैं !
इस रोज रोज की हड़ताल से सबसे ज्यादा तकलीफ उन गरीब और छोटे छोटे लोगों को होती है ! जो प्रतिदिन कुआँ खोदकर पानी पीते हैं ! अर्थात यदि वह एक दिन काम ना करें तो उस दिन उनके घर मैं चूल्हा नहीं जलेगा और सोना पड़ेगा उनको, उनके परिवार को भूंखा ! इस हड़ताल का फर्क पड़ता हैं उन लोगों को जो दूर दूर गाँव से शहरों मैं रोज आते हैं रोजी रोटी की तलाश मैं ! क्या गुजरती है उन पर यदि एक दिन हड़ताल हो जाये ! क्या कभी सोचा है हड़तालियों ने ! कितनी वद्दुआ देते हैं इन हड़तालियों को ऐसे पीड़ित लोग ! सिर्फ यह लोग नहीं हैं , और भी लम्बी फेहरिस्त है ऐसे लोगों की जो दुखी हैं , इस आये दिन की हड़ताल से , और उनके दिल से निकलती है सिर्फ एक ही बात ! की सत्यानाश हो इन हड़ताल कराने बालों का ........................
आज हर रोज होने बाली हड़ताल ने रूप ले लिया है महामारी का , जो धीरे धीरे फ़ैल रही है हमारे समाज मैं !

धन्यवाद

Wednesday, April 14, 2010

इंसानियत और मानवता के दुश्मनों, बंद करो अपने को आधुनिक कहना ......>>>> संजय कुमार

जहाँ हम लोग इक्कीसंवी सदीमैं जीने की बात कर रहे हैं , वहीँ हम लोग ऐसे घ्रणित और इंसानियत को शर्मशार कर देने बाले कार्य कर रहे हैं ! जो मानव जातिके लिए एक धब्बा हैं ! जो धकेल देते हैं हमें सेकड़ों साल पहले ! आज हमारे देश मैं ऐसी घटनाएँ घट रही हैं ! जिससे यह मालूम हुआ कि इंसानियत और मानवता इन्सान के अंदर बिलकुल भी नहीं वची ! और इन्सान रह गया बस रूडी वादी और खोखली परम्पराओं का पुतला ! आज इन्सान को इन्सान कहने मैं भी शर्म आती है ! जहाँ पंजाब के एक गाँव मैं एक प्रेमी प्रेमिका ने शादी कर ली ! और सजा के रूप मैं मिली उन्हें सिर्फ मौत ! गाँव बाले कहते हैं कि बो एक ही गोत्र के थे ! यही उनका अपराध था ! सो दे दी मौत कि सजा ! और सारा गाँव समर्थन कर रहा है उन हत्यारों का, जिन्होंने यह घ्रणित कार्य किया ! यहाँ इन्सान कि मानवता पूरी तरह ख़त्म हो जाती है! वहीँ छतरपुर के एक गाँव मैं कुछ दबंगों ने एक अकेली महिला के साथ मारपीट कर उसे सारे गाँव मैं निर्वस्त्र घुमाया ! आज का इन्सान किस हद तक गिर सकता है , इसका अंदाजा तो आज इश्वर भी नहीं लगा सकता !
जहाँ सरकार महिला आरक्षण और महिलाओं को समाज कि मुख्यधारासे जोड़ने कि बात कर रही है ! वहीँ इस तरह के घ्रणित कार्य हो रहे हैं ! और शर्मशार हो रही है मानवता ! हमने कई बार इस तरह कि घटनाएँ सुनी होंगी ! और शायद, आगे और सुनते रहेंगे इस आधुनिक दुनिया मैं ! जहाँ इन्सान अपने आपको आधुनिक कहता है !और कहता है अपने आपको आधुनिक दुनिया का हिस्सा ! क्या यही है हमारी आधुनिकता ?अच्छे कपडे, अच्छा घर अच्छा living standard या हाँथ मैं मोबाइल, या गाड़ी , या फिर फर्राटे से अंग्रेजी बोलना ! आज बहुत से लोग इन सब साधनों से अपने आपको आधुनिक कहते हैं , या करते हैं दिखाबा अपने को आधुनिक होने का ! पर विचार ,सोच और काम सारे के सारे पिछड़े हुए स्तर का !
जीवन मैं आगे बढ़ना है , अगर देश को आगे बढ़ाना है , अपने आप को सच्चा इन्सान बनाना है, तो बंद करो ऐसे घ्रणित कार्य ! इन सब कामों से हम खो रहे हैं, अपने को इन्सान कहने का दर्जा !
इन्सान आधुनिक नहीं उसके विचार आधुनिक होने चाहिए ! तभी जी सकते हैं हम इस आधुनिक दुनिया मैं

धन्यवाद

Monday, April 12, 2010

कहीं देर ना हो जाये.......>>>संजय कुमार

जीवन की आपाधापी मैं हमें वक़्त का जरा सा भी ध्यान नहीं रहता और वक़्त कब हमारे हाँथ से निकल जाता है हमें पता भी नहीं चलता ! इस आधुनिक दुनिया मैं इन्सान ने अपने आप को एक मशीनी मानव बना लिया है ! जिसका उद्देश्य सिर्फ काम और काम इसके अलावा कुछ नहीं ! और कर लिया अपने आप को वाहरी दुनिया से बिलकुल अलग थलग ! आज इन्सान इतना व्यस्त है ! कि उसे यह तक नहीं मालूम कि आज हमारा समाज कहाँ हैं और क्या है हमारे समाज कि स्थिति ! आज पूरी तरह से इन्सान कट गया है अपनों से ! चाहे वो अपने परिवार के लोग हों या अपने दोस्त और रिश्तेदार ! आज नहीं है किसी का भी ध्यान , सिर्फ काम और सिर्फ काम ! इस व्यस्तता ने हमसे कितना कुछ छीन लिया है , इस बात का अंदाजा हमें शायद आज नहीं हो रहा है ! इसका अंदाजा हमें तब होगा जब हमारे अपने हमारा ही साथ नहीं देंगे ! क्या हम चाहते हैं कि ऐसा हो ! जिन अपनों के लिए आप दिनरात मेहनत करते हैं , जिनके कारण आप ने अपने आपको इतना व्यस्त कर रखा हैं! वही अपने हमारे ना हों ! इसलिए अभी भी वक़्त है हमारे पास ! अपनी व्यस्त जिंदगी से कुछ पल निकालने का और अपनों को मनाने का और उनको अपना साथ देने का ! कहीं देर ना हो जाये ! और वक़्त हमारे हाँथ से निकल जाये ! क्योंकि गुजरा वक़्त कभी लौट कर नहीं आता ! इस व्यस्तता ने हमें दूर कर दिया उस प्यार और आशीर्वाद से जो हमें अपने माता-पिता से मिलता है , कारण अब हम उन्हें बिलकुल भी समय नहीं दे पाते ! दूर कर दिया उन दोस्तों से जिनके साथ वचपन बीता और कसमें खाई कि हम कभी नहीं भूलेंगे अपनी दोस्ती को ! दूर कर दिया हमें अपने बच्चों से जो हमारी जान हुआ करते थे जिनसे दूर होने का भी हम नहीं सोचते थे ! दूर कर दिया अपने प्रिये जीवन साथी से, जिसके हर सुख दुःख मैं साथ निभाने कि कसमें खाई थी ! सब कुछ इस व्यस्तता के कारण ! क्या आप इन सबको खोना चाहते हैं ! कहीं ऐसा ना हो कि भविष्य मैं, हमारे अपने हमारे सामने ऐसे प्रश्न रख दें , जिनका जबाव शायद हमारे पास ना हो ! अब भी वक़्त है दीजिये वक़्त अपनों को और उठायें जीवन का सबसे सुखद आनंद ! अब ना करे जरा सी भी देर, क्यों कि वक़्त नहीं करता किसी का इंतजार .....................और

कहीं देर ना हो जाये ..........................सुखी परिवार ..........सुखी संसार ............



धन्यवाद

ये सन्देश भी होते हैं काम के.......>>>> संजय कुमार


अक्सर हम लोगों ने कई बार सड़क पर चलते हुए , ट्रकों और बसों पर लिखा देखा है की , माँ का आशीर्वाद , पापा दी गड्डी, बाबूजी लो मैं आ गयी , बुरी नजर बाले तेरा मुंह काला , तुम कब आओगे , और ना जाने कितने ही इस तरह के शब्द हमने पड़े होंगे ! हमारे मन मैं शायद किसी तरह के भाव उत्पन्न ना हों , पर जो ये लोग लिखबाते हैं , उनके लिए ये शब्द बहुत मायने रखते हैं ! और उन शब्दों मैं उनका प्यार, उनकी तड़प , या उनकी चेतावनी छुपी होती है , और वह प्रेम जो अपनों से करते हैं , जब मैंने इन शब्दों के बारे मैं जानना चाह ! और एक ट्रक बाले से पूंछा !उस पर लिखा था! माँ का आशीर्वाद , जब मैंने उससे पूंछा कि आपने यह क्यों लिखा है , तो बोला यह मेरी माँ के प्रेम और आशीर्वाद का फल है , तो मैंने भी अपना प्यार दिखाने के लिए माँ का नाम लिख दिया ! और ऐसा लिखकर मेरे मन को सकूं मिलता है , और उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ बना रहता है ! तब मुझे यह अहसास हुआ कि यह सब तो प्रेम का ही एक रूप है, इस तरह का प्रेम का इजहार तो हमने भी अपनी गाड़ियों पर या अन्य जगह लिखकर प्रदर्शित किया होगा ! मैं अपने दोनों बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ , तो मुझे लगा क्यों ना मैं इनका नाम अपने वाहन पर लिखवादूं तो मुझे बहुत खुशी होगी ! ठीक इसी तरह हम लोग किसी को चेतावनी देना चाहते हैं , तो लिख देते हैं बुरी नजर बाले तेरा मुंह काला ! यह सब हम अपनों को बुरी नजर से बचाने के लिए करते हैं ! कहीं लिखा होता है रब की देंन, जिसमे इश्वर का आशीर्वाद छुपा होता है ! जो मन को तसल्ली देता है ! यह सब भी तो प्रेम ही है ,जो हम अपनों से करते हैं !प्रेम जिसका कोई रूप रंग , कोई भाषा या परिभाषा नहीं होती, प्रेम को व्यक्त करने के कई तरीके होते हैं ! कोई मुंह से बोलकर प्रेम का इजहार करता है , तो कोई लिखकर अपने प्रेम का इजहार करता है !

एक छोटा सा सन्देश

वाहनों पर इन सब के साथ भी बहुत कुछ लिखा होता है , जो बहुत मायने रखता है , उसे भी हमें बहुत गौर से पड़ना चाहिए और उनका पालन अच्छे से करना चाहिए! यह शब्द या सन्देश हमारे जीवन को वचाने के लिए होते हैं ! पर हम उन पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देते ! और सड़कों पर अपने वाहन ऐसे दौडाते हैं , जैसे कोई रेश हो रही हो , और भूल जाते हैं हम, वह सब जो हम दिनरात देखते और पड़ते रहते हैं , और बार बार करते हैं गलतियाँ ! तो मत लगाओ अपना जीवन खोने कि रेश ! यह जीवन अमूल्य है , पहचानो खुद का महत्व , और पालन करो यातायात नियमों का ! यह नियम हमारी रक्षा के लिए हैं ! कहीं ऐसा न हो ! हमारे जीवन को हमारी ही बुरी नजर लग जाये !

धीरे चलिए, सुरक्षित पहुँचिये ............... जाना है दूर, ना की जिंदगी से दूर .....................

धन्यवाद

Friday, April 9, 2010

मुझे तो बहुत शर्म आती है, और आप लोगों .......>>>> संजय कुमार

मैं हूँ आपका करीबी दोस्त, उससे भी बढकर , मैं रहता हूँ हमेशा आपके दिल से चिपककर , चाहें उसका परिणाम अच्छा हो या बुरा ! खैर बाद मैं बात करते हैं ! अभी मैं अपनी ताक़त आपको बता रहा हूँ ! आज किसी छोटे मोटे देश की जनसँख्या उतनी नहीं होगी जीतनी संख्या मेरी है ! आज मैं विश्व के लगभग बहुत सारे लोगों के पास रहता हूँ ! मैं ना तो जात पात देखता हूँ , ना अमीर गरीब , ना दोस्त और ना दुश्मन , आज हर छोटी जात बाले के पास या बिश्व के सबसे धनि व्यक्ति के पास मिलूंगा ! आज मैं हर घर मैं तो हूँ ही , घर के आधे से ज्यादा लोगों के पास भी मिल जाता हूँ ! मेरे बिना तो आज विश्व मैं कोई काम हो हो नहीं सकता ! आज मेरे कारण ही इस देश मैं बैठा कोई भी विदेश मैं बैठे हुए अपनों से बात कर सकता है ! यहाँ तक तो आप सब समझ गए होंगे की मैं कोन हूँ ! और मैं क्यों इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहा हूँ ! मैं हूँ आपका मोबाइल और टेलीफोन !मैंने इन्सान को इस आधुनिक दुनिया मैं एक ऐसी चीज दी हैं , इसकी अहमियत आप इस बात से लगा सकते हैं ! की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को जितना प्यार नहीं करता होगा उससे कहीं ज्यादा मुझे ! (प्रेमी प्रेमिकाएं नाराज ना हों ) आज एक छोटे से छोटा काम हो या कोई बड़ा , हर काम मैं मेरा उपयोग होता है , और मैं बहुत खुश होता हूँ ! मैं इंसानों की आपस मैं बात कराता हूँ और अब तो मैं चिट्ठी भी भेजता हूँ ! मुझ पर विडियो , फ़िल्में, गाने , और भी मनोरंजन के साधन उपलव्ध हैं !

जब मेरा उपयोग अच्छे काम के लिए होता है, अच्छे सन्देश पहुँचाने के लिए होता है , जब मेरे द्वारा किसी के व्यवसाय मैं तरक्की होती है तो मन ही मन बहुत खुश होता हूँ ! और अपने आप मैं गर्व भी महसूस करता हूँ , कि जैसे देश को जितनी जरूरत प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कि हैं, उतनी ही मेरी , आज मैं बहुत खुश हूँ .....................

पर ये क्या हो रहा है मेरे साथ , मेरा तो अब उपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है ! अरे भाई मेरा उपयोग सही से करो , आप लोग तो अपनी जान कि भी परवाह नहीं करते मेरा उपयोग करते समय कुछ तो ध्यान रखा करो ! जब आप गाड़ी चलाते हैं तो बिलकुल लापरवाह हो जाते हैं , कुछ तो शर्म करो, क्यों अपनी मौत का जिम्मेदार मुझे ठहराते हो !सरकार कितना आपको नियम कानून बताती है , पर आप लोग नहीं सुधरते और ना सुधरेंगे ! गलती आप लोग करते हैं और भुगतना आपके परिवार को ! अरे भाई ऐसा ना करे ! मुझे तो तब बहुत शर्म आती है जब आप लोग मुझे घर के टायलेट और बाथरूम तक ले जाते हैं , कृपया वहां पर मुझे ना ले जाएँ ! और मुझे बहुत शर्म जब आती है , जब आप लोग मुझे किसी कि शमशान यात्रा मैं ले जाते हैं , और वहां पर भी मेरा मुंह बंद नहीं करते , उस जगह मैं बहुत शर्मिंदा होता हूँ , थोड़ी सी शर्म आप लोग भी किया करो ..................



मुझे तो बहुत शर्म आती है, और आप लोगों को .......... थोडा सा सोचिये



धन्यवाद

अब, हर इक घर है मेरी मुट्ठी मैं .........>>>> संजय कुमार


कहते हैं कि हिंदुस्तान वह जगह है , जहाँ हर इक घर मैं कुछ ना कुछ विशेषताएं होती हैं ! चाहे वह घर अपने मान-सम्मान के लिए , परंपरा , या संस्कारों के लिए जाना जाता हो ! हर घर कुछ कहता है ! यह बात हम जब सुनते हैं ! तो अपने आप मैं फक्र सा महसूस करते हैं ! अपने घर परिवार मैं माता-पिता का सम्मान हो या बड़े भाई बहनों का आदर या छोटों से प्यार या अपने पडोसी से अच्छे सम्वंध सब कुछ होता है तो मन प्रसन्न रहता है ! और हम सब अच्छे सुख समृधि कि कामना करते हैं ! ऐसा ऐक वक़्त था , जब यह सारी चीजें हम लोगों के पास थी ! पर अब यह सब कुछ अब हर घर मैं देखने को नहीं मिलता ! माता-पिता का सम्मान कहीं खो गया, भूल गए बड़ों का आदर करना , और छोटों से प्यार , आज के पड़ोसी तो किसी दुश्मन कि तरह लगते हैं ! सब कुछ बदल गया ! अब नहीं रहीं वो परंपरा ! मिटती जा रही धीरे धीरे ! ऐसा लगता है जैसे हम किसी कि मुट्ठी मैं बंद हो गए हों ! और हमारी सोच बदल दी हो ! जी हाँ यह सच है ! हम सब आधुनिकता के गुलाम हो गए हैं ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ ! हर घर मैं घर चुके टी व्ही कि और आज आने बाले डेली सोप प्रोग्राम और सीरियल कि ! जिन्होंने हमारे दिमाग के साथ साथ हमारे घरों पर किसी दुश्मन कि तरह कब्ज़ा कर लिया है ! आज हर घर मैं ! आने बाले सीरियल कि ही चर्चा रहती है ! चाहे घर मैं माँ हो या पिताजी , भाई या भाभी , बहन या हमारे बच्चे! सब पर इन सीरियल का दबदबा देखा जा सकता है ! आज इनको देखकर हमारे घरों कि दिनचर्या या उनके वयवहार मैं कितना परिवर्तन आ गया है ! यह हम सब देख रहे हैं ! हम आज तो पूरी तरह इन पर निर्भर से हो गए हैं ! यदि ऐक दिन अगर कहीं हम यह देखने से चूक जाएँ तो फिर आप देखिये स्थिति जो तड़प ऐक प्यासे कि पानी के लिए होती है उससे कहीं ज्यादा और ना बुझने बाली तड़प देख सकते हैं ! यह सब आज कि आधुनिकता का ही नतीजा है और दिन बा दिन बड़ते टी व्ही चैनलों कि बाढ़ !और कुछ नहीं ! जितने ज्यादा चैनल उतने ज्यादा प्रोग्राम ! हम तो अब इनके किरदारों मैं अपने लोगों तक को देखने लगे हैं अपनों कि तुलना अपने घर कि तुलना इनसे कर ने लगे हैं ! सब कुछ बदल गया है ! अब नहीं रहे अपने घर पहले जैसे ! हर घर अब है इनकी गिरफ्त मैं ! यह सब कुछ हुआ है पिछले पंद्रह सालों मैं ! जरा याद कीजिये उस वक़्त को जब हम सब अपने परिवार के साथ बैठकर रामायण और महाभारत जैसे संस्कार देने बाले सीरियल देखते थे तो सब कुछ अच्छा लगता था ! हम सब नियमित रूप से हर काम करते थे ! तब यह टी व्ही हमें अच्छा लगता था पर अब नहीं ! क्योंकि आज बहुत कुछ गलत दिखाया जा रहा है ! आज बहुत से घर परिवार इन सीरियल के कारण बर्बाद हो रहे हैं ! फिर चाहे रोज बढता सास बहु का झगडा , देवरानी जिठानी कि तू-तू मैं- मैं सब कुछ इसके कारण ही है !
यहाँ पर मैंने बहुत सारी बुराई लिख दी हैं ! पर हर बुरी चीज के साथ अच्छी चीज भी जुडी होती है ! यह आज के समय कि जरूरत है ! और हम सब इस पर पूरी तरह निर्भर हैं ! या यूँ कह सकते हैं ! हम हैं इनकी मुट्ठी मैं ! और
हमारे साथ साथ हर ऐक घर हैं इनकी मुट्ठी मैं !
जय हो "बुद्धू बक्से" कि ! ऐक छोटी सी बात ....... जरा गौर कीजिये .................
धन्यवाद

Thursday, April 8, 2010

मेरे आगे तो आज का भगवान भी हारा.....>>> संजय कुमार


अरे नहीं भई मैं कोई नास्तिक नहीं हूँ ! और ना ही मेरे अन्दर इतनी शक्ति है कि मैं भगवान से टक्कर ले सकूं ! या मैं अब भगवान से बड़ा हो गया हूँ ! नहीं मैं तो एक साधारण इन्सान हूँ ! मुझमे इतना दम कहाँ ! मेरी तो किसी के आगे नहीं चलती ! चलती है तो आज के उस भगवान की जो सारे भगवानों से बड़ा है ! आप सब लोग अच्छी तरह से जानते हैं आज के उस भगवान को ! क्योंकि आज तो हर जगह या यूँ कह सकते हैं ! कि हर पल हर दिन उसी की चलती है ! उसके आगे तो सब नतमस्तक हैं ! चाहे कोई छोटा हो या बड़ा ! नेता हो या अभिनेता ! आज बड़े बड़े साधू संत भी उसके आगे नतमस्तक हैं ! अरे मैं बात कर रहा हूँ ! हम सबके प्रिये भगवान नगद नारायण की ! बस इनका नाम लेते ही सब कुछ समझ मैं आजता है ! कि मैं कोंन हूँ ! और क्या है आज मेरी ताक़त ! मैं हूँ आज का भगवान !
इस ब्रह्माण्ड कि सबसे ताक़तवर चीज ! जिसके ना होने पर सब कुछ फीका सा लगता है ! और ज्यादा होने पर खून कि नदियाँ तक वह जातीं हैं ! मैंने तो पता नहीं कितने इतिहास बना दिए और कितने बदल दिए ! और कितने बदलेंगे ! मेरे लिए तो इन्सान इतना गिर जाता है कि , पूँछिये मत ! इन्सान को इन्सान से लड्बाना , आज हर जगह मेरा ही बोलबाला है ! आज देश मैं जो बड़े बड़े कांड हो रहे हैं वो सब मेरे कारण ही हो रहे हैं ! देश मैं होने बाला हर बड़ा घोटाला मेरे लिए ही तो हो रहा है ! चाहे मेरा इस्तेमाल हिन्दू मुस्लमान को आपस मैं लडवाना हो , भाई का खून भाई के हांथो बहाना हो ! देश मैं कहीं भी दंगा करवाना हो ! सब कुछ !अब तो मेरे लिए इन्सान किसी भी वक़्त बिकने को तैयार रहता है ! अब तो मैं ये देख रहा हूँ कि यह इन्सान कितना गिर गया है ! कि वह भगवान कि भी चिंता नहीं करता ! अपने रिशते नाते तक भूल जाता है ! मेरा लालच इन्सान को इतना है कि वो कब किस हद से गुजर जाये पता नहीं ! आज इस संसार मैं ऐसा एक भी इन्सान नहीं है , जिसकी चाहत मैं नहीं ! मैं सब कुछ कर सकता हूँ ! आज मेरे आगे तो भगवान भी हार गया है ! आज इन्सान कहता है कि भले ही मुझे भगवान मिले ना मिले , अगर तुम एक बार मेरे पास आ गए तो भगवान कि मुझे शायद कभी जरूरत ना पड़े ! इतनी ताक़त है मेरे अंदर ! पल पल पर विकता ईमान , पल पल गिरगिट कि तरह रंग बदलता इन्सान सब मेरे कारण ही है ! और अब मैं आपसे क्या कहूं , आप सब लोग मेरे महत्व से भली भांति परिचित हैं !
तो एक बार सब मिलकर मेरे साथ बोले जय हो आज के भगवान , भगवान नगद नारायण कि जय
आज पैसा बोलता है , खुद कि अहमियत बताता है !
धन्यवाद

Wednesday, April 7, 2010

बंद करो अब यह अफ़सोस करना.....>>>> संजय कुमार

हमें अफ़सोस है कि हम कुछ ना कर पाए , हमें अफ़सोस है कि हमसे कहीं कोई चूक हो गयी है ! हम सबको बहुत अफ़सोस होता है, जब हम इस तरह कि बयानबाजी अपनी सरकार से सुनते हैं ! अफ़सोस होता है कि किस तरह कि सरकार है यह जो सिर्फ अफ़सोस के आलावा कुछ और नहीं कर पाती सरकार सिर्फ अफ़सोस जता रही है , और देश मैं बेक़सूर लोग मारे जा रहे हैं !
अभी तक तो बाहरी दुश्मनों से खतरा था अब तो हमारे देश के ही लोग अब हमको निशाना बनाने लगे हैं ! आज मेरा मन तकलीफ मैं है , कि नक्सलवादियों ने अब तक का सबसे बड़ा हमला कर हमारे देश के ८० जवानों कि जान ले ली ! जो हमारी सरकार कि नाकामी को उजागर करती है ! इस पर भी वही सरकार का पुराना ढर्रा सिर्फ अफ़सोस करना ! यह तो सब रटारटाया शब्द है जो हमारे देश के वरिष्ठ मंत्री हर बार बोलते हैं ! किसी भी तरह कि कोई घटना छोटी हो या बड़ी बस सिर्फ अफ़सोस ! चाहे वह मुंबई का २६/११ का हमला , जयपुर का बोम्ब ब्लास्ट , या हैदरावाद कि घटना ! या कोई और बड़ी घटना !आज तक सिर्फ अफ़सोस ही कर रहे हैं ! और आगे भी अफ़सोस ही करेंगे ! यह सब तो दिखाबे कि सहानुभूति है, सिर्फ मरने बाले के परिवार के साथ ! यह सब हम हर बार सुनते हैं ! और धोखा दे रहे हैं ! इस बेक़सूर मरने बाली जनता को !
अब तो चेत जाओ हमारे देश कि निकम्मी सरकारों , वर्ना भविष्य मैं हम सबको अपने इन्सान होने का अफ़सोस ना होने लगे ! हम सिर्फ अफ़सोस करते रहेंगे , और हमारा दुश्मन हमें हमारे घरों मैं घुसकर हमको मारेगा फिर तो हम अफ़सोस भी नहीं कर पाएंगे, अपनी नाकामियों का ! बंद करो अब यह अफ़सोस करना .......
मत करो अफ़सोस बेक़सूर जनता कि मौत का, कहीं ऐसा ना हो इस अफ़सोस के चक्कर मैं ! हमारी जिंदगी हमारे हाँथ से निकल जाये और .......

धन्यवाद

Monday, April 5, 2010

यहाँ नहीं कोई पराया, सब हैं अपने.....>>>> संजय कुमार


अरे तू तो हिन्दू है , अरे तू तो मुस्लमान है , अरे वो तो छोटी जात का है , अरे वो तो बड़े पैसे बाला है , इस तरह के शब्द हमने अपने जीवन मैं कई बार सुने होंगे ! और शायद आज भी सुनने को मिलते हैं ! बड़ा दर्द सा होता है मन मैं ! कि क्यों एक इन्सान को इतने नाम दे दिए गए हैं ! इस इन्सान को हमने पता नहीं कितने भागों मैं बाँट दिया है ! इस बात को लेकर हम सभी कभी ना कभी जरूर दुखी हुए होंगे ! यह सब तो हम लोगों का ही ईजाद किया हुआ है ! यह तो तब तक चलेगा जब तक इन्सान इस श्रृष्टि पर है ! यह सब देखकर मन मैं बस एक ख्याल आता है , कि क्या ऐसी भी कोई जगह है ! जहाँ पर इस तरह का माहौल देखने को नहीं मिलता !मेरे जहन मैं आयी ऐसी एक जगह, जहाँ पर ना तो कोई पूंछता है कि तुम कोन हो हिन्दू या मुस्लमान , अमीर या गरीब , छोटा या बड़ा , कुछ नहीं होता ! यहाँ तो सब अपने ही लगते हैं , नहीं लगता यहाँ कोई भी पराया ! यहाँ तो सब अपनी अपनी परेशानियों से बचने के लिए ! या अपने दुःख दर्द दूर करने ! या एक दूसरे कि ख़ुशी के लिए ! कहते हैं कि इन्सान अगर एक बार आजये तो फिर वो यहीं का होकर रह जाता है ! यहाँ आने बाले लोग भले ही साल मैं एक बार भी मंदिर कि दहलीज पर ना जाएँ ! पर मेरे पास तो वह नियमित, साप्ताहिक या माशिक आएगा ही ! कोई पैदा हो या जन्मदिन , शादी या उसकी वर्बादी पर आएगा जरूर ! अब तो आप सब कुछ समझ गए होंगे कि वो जगह कोन सी है ! अरे भई अपना शराबखाना या यों कहें मधुशाला या मयखाना ! यहाँ पर हर व्यक्ति किसी ना किसी समस्या पर आपस मैं बात करते हुए जरूर मिल जायेगा ! यहाँ पर जो भाईचारा देखने को मिलता है ! उस भाईचारे का क्या कहना ! क्या छोटा क्या बड़ा सब एक साथ बैठकर पीते हैं और भूल जाते हैं सब कुछ ! हर दिन एक मेला सा लगता है ! हिनुस्तान मैं तो यही एक जगह है ! जहाँ हर दिन मेला लगता है ! या यूँ कह सकते हैं !

सर्व धर्म , सर्व जातीय, एक अनूठा , इंसानों का मेला ..................

मयखाना, मयखाना , मयखाना , जरा यहाँ संभलकर आना ! दुनिया भर मैं पीकर बहको, पर यहाँ संभलकर आना

इसलिए कहता हूँ , ये है दुनिया कि निराली जगह , और कहाँ मिलेगा इस तरह का भाईचारा ! यहाँ नहीं कोई पराया

सधन्यवाद


किस काम का महिला आरक्षण, अगर......>>>>> संजय कुमार


आज हमारे देश मैं कई वर्षों से महिला आरक्षण का मुद्दा चल रहा ! कुछ दिनों पहले हमारी सरकार ने यह मुद्दा ख़त्म कर महिला आरक्षण विधेयक पास कर ही दिया ! उसके वावजूद भी इस विधेयक से कुछ लोग खुश तो कुछ दुखी ! कहीं मुलायम सिंह कहते हैं ! की ऊंचे घरों की महिलाएं जब हमारे साथ बैठेंगी तो उन्हें देख लोग शीटी बजायेंगे ! यह किसी अच्छे राजनेता की निशानी नहीं हैं ! शायद वो नारी शक्ति को जानते नहीं ! और पता नहीं क्या क्या तर्क निकाल रहे हैं लोग ! बस इसके अलावा कुछ नहीं कर सकते ! विपक्ष , पक्ष की टांग खींचेगे बस और कुछ नहीं ! अरे जिस महिला आरक्षण की बात पर इतना हो हल्ला हो रहा है ! कोई इस बात पर विचार विमर्श क्यों नहीं कर रहा ! कि जिस तरह से हमारे देश मैं लड़कियों का अनुपात लड़कों कि अपेक्षा लगातार दिन बा दिन गिरता जा रहा है ! क्यों इस बात पर सरकार कोई विधेयक नहीं बनाती ! जब भविष्य मैं महिलाओं कि संख्या कम होगी तो फिर किस काम का होगा यह महिला आरक्षण ! अरे कोई ऐसा भी विधेयक वनाओ जिससे यह अनुपात ना गिरे !
राजस्थान मैं एक गाँव ऐसा है जहाँ लड़की का जन्म लेना एक अपराध माना जाता है, और इस अपराध कि सजा भी उसी लड़की को मिलती है और वो सजा है मौत ! या तो गर्भ मैं , नहीं तो पैदा होने के बाद उसे किसी ना किसी तरह मार दिया जाता है ! (यह जानकारी एक टी व्ही चैनल के द्वारा ) राजस्थान कि तरह कई जगह इस तरह के अपराध हो रहे हैं ! कई लोग इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं ! कारण कोई भी हो पर यह नहीं होना चाहिए !
हमारे देश मैं हर वर्ष लगभग १ लाख से लेकर ५ लाख तक कन्या भ्रूण हत्याएं होती हैं ! अब आप सोचिये ! भविष्य मैं जब सिर्फ ३३% ही महिलाएं रह जाएँगी तो फिर किस काम आएगा यह महिला आरक्षण ! अब सरकार को इस विधेयक को पास करने से पहले इस ओर भी ध्यान देना चाहिए !
आज हर जगह चाहे वह गाँव हो या शहर हर जगह इस तरह कि घटनाएँ बढ़ गयी हैं ! और इसका बहुत बड़ा कारण है हमारे देश कि गरीबी और वेरोजगारी ! हमारे देश मैं आज भी एक बहुत बड़ा तबका है ,जो अनपढ़ और वेरोजगार है ! जब व्यक्ति के पास रोजगार ही नहीं होगा तो क्या , और कैसे करेगा अपने परिवार का भरण पोषण , साक्षर नहीं होगा तो कैसे समझेगा महिलाओं का महत्व और उनकी शक्ति ! हम तो इस बात कि कल्पना करने से भी डरते हैं ! की इस प्रथ्वी पर अगर महिलाये ना हुई तो क्या होगा ! महिला आरक्षण का मुद्दा छोडो और महिलाओं यानि लड़कियों के गिरते अनुपात को रोको और बचाओ ! अपना भविष्य !

चाहे बेटी हो या बेटा हैं तो हमारे देश का भविष्य ...............................

धन्यवाद

Saturday, April 3, 2010

पुरुष हूँ , ना समझो पत्थर दिल .......>>> संजय कुमार

अरे तुम तो पत्थर दिल हो , तुम सारे पुरुष एक जैसे होते हो , तुम्हारे अन्दर तो संवेदना नाम की चीज बिलकुल भी नहीं है , मैंने तो कभी तुम्हारी आँख मैं एक आंसू तक नहीं देखा ! इससे पता चलता है की तुम सारे मर्द एक जैसे होते हो ! तुम्हारी आँखों मैं प्यार तो मुझे कभी दिखता ही नहीं ! पत्थर दिल कहीं के ! जब इस तरह की बातें एक पुरुष को बोलीं जाती हैं , तो सोचिये क्या गुजरती है उसके दिल पर ! कितने आंसू वह मन ही मन रोता है ! शायद ये कोई नहीं जनता ! बस कह दिया की पुरुष पत्थर दिल होता है !
इन्सान भावनाओं का पुतला होता है , बहुत सारी अभिवयक्तियाँइन्सान भावनाओं के द्वारा ही हमको बताता है , यहाँ हम पुरुष भावनाओं की बात कर रहे हैं ! जहाँ हमने अपने समाज मैं देखा है कि हमें लड़कियों का ठहाका लगाकर हँसना आज भी हर जगह पसंद नहीं किया जाता ! ठीक उसी प्रकार पुरुषों का रोना आज कमजोरी की निशानी माना जाता है !क्या ये सही है ! क्या पुरुषों का रोना सिर्फ कमजोरी की निशानी है ! जी नहीं पुरुष कमजोर नहीं होता ! पुरुष एक इन्सान है , और उसके अन्दर भी संवेदनाएं होती हैं !
आज पुरुष अपने जीवन मैं कितनी चीजों से लड़ता है, यह सब हम लोग जानते हैं ! पर हर बात पर पुरुष नहीं रोता उसके अंदर सब्र का पैमाना बहुत बड़ा होता है , वो महिलाओं कि तरह वयव्हारनहीं करता ! हमारे देश मैं एक बड़ा भाग महिलाओं का, सिर्फ घर कि चाहर दिवारी और चौका बर्तन मैं ही व्यतीत करती हैं ! इसलिए उन्हें इस बात का मालूम नहीं होता कि वाहर काम करने बाले पुरुष किन किन समस्यायों का सामना करते हैं ! आज का पुरुष सिर्फ पिस के रह जाता है ! आज के वातावरण मैं !
आज पुरुष के पास कितनी समस्याएँ है ! यह भी हमें जानना होगा ! एक परिवार मैं एक पुरुष कि स्थित्ति ! माँ बाप को लगता है, कि शादी के बाद उनका बेटा उनसे दूर हो गया ! बहिन को लगता है , कि शायद अब हमे भाई का प्यार नहीं मिलेगा ! वहीँ पत्नी चाहती है कि उसका पति सिर्फ उसका होकर रहे ! इस तरह का माहोल हमने अपने आस पास जरूर देखा होगा ! उस स्थिति मैं उस पुरुष कि क्या दशा होती होगी ! इसका अंदाजा लगाना मुस्किल है !
मैं यहाँ सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ ! कि अगर पुरुष नहीं रोता या उसकी आँख मैं आंसू नहीं आता तो इसका यह अंदाजा बिलकुल भी नहीं लगाना चाहिए कि वो इन्सान नहीं पत्थर है ! वह भी महिलाओं कि तरह एक इन्सान है !अगर इन्सान नहीं होता तो! क्या एक पिता का अपनी बेटी कि विदाई पर रोना कमजोरी कि निशानी माना जायेगा ! नहीं यह अभिव्यक्तियाँ हैं जो कभी भी और किसी भी तरह एक पुरुष व्यक्त करता है !

इसलिए कहता हूँ कि मैं भी एक इन्सान हूँ ! एक पुरुष हूँ कोई पत्थर नहीं !


धन्यवाद

अब मेरे बारे मैं सोचना होगा .....वर्ना ..........>>>>संजय कुमार


आज देश मैं जिसे देखो बेफजूल की बातों मैं अपना समय बर्वाद करते रहते हैं ! सानिया का निकाह , तेंदुलकर के २०० रन , महिला आरक्षण , साधू संत , राजनीतिऔर पता नहीं क्या-क्या ! अरे भई सानिया निकाह करे या न करे क्या फर्क पड़ता है , तेंदुलकर २०० रन फिर से बना लेगा , महिला आरक्षण के बारे मैं सोचा ये भी ठीक है ! हमारे देश को जो साधू संत वदनाम कर रहे हैं , हम इन्हें भी देख लेंगे ! और गंदे नेता और राजनीति भी ! पर इन सब से मुझे फर्क नहीं पड़ने बाला है ! अब आप लोग सिर्फ मेरे बारे मैं सोचें ! नहीं तो देर हो जाएगी और बाद मैं बस सोचते रह जायेंगे ! कुछ करो मेरे लिए ! मेरी आज यह स्थिति आप इंसानों की वजह से ही है ! मुझे बचाओ !

अरे भई मैं हूँ जंगल का राजा शेर ! मैं जंगल का राजा होते हुए भी आप इंसानों से गुहार लगा रहा हूँ ! हमें बचालो ! अब तो आप लोग चेत जाईये ! अब कहीं देर ना हो जाये ! आज हमारी जो संख्या लगातार दिन बा दिन कम होती जा रही है उसके पीछे आप इन्सान ही हैं ! आपने सिर्फ अपने फायदे के लिए मेरा जरा भी ध्यान नहीं रखा ! क्या आपको मालूम है ! सन १९०० मैं मेरी संख्या ४०००० थी पर अब सिर्फ १४०० (आधिकारिक आंकड़े ) रह गई है ! है ना चोंकाने बाली बात ! तो अब आप लोग जरूर मेरे लिए कुछ करें ! आज मैं अपनी स्थिति से बहुत दुखी हूँ ! आप लोगों ने एक कहावत तो सुनी होगी कि !" जिन्दा हांथी लाख का और मरा हांथी सवा लाख का " बस इसी लालच के कारण आप लोगों ने मेरा शिकार कर -कर के आज ये स्थिति कर दी है ! मेरी अब आप लोगों से विनती है कि आप लोग मुझे वचाने आगे आये !ओर ये सबको बताएं कि इस श्रष्टि पर मेरा क्या महत्व है ! भविष्य मैं आप ये अपने बच्चों को कभी न बता पाएंगे कि जंगल मैं भी एक राजा होता था ! पर हम इंसानों ने सब कुछ ख़त्म कर दिया ! और मिटा दिया उनके वजूद को ! और उन्हें वचाने के लिए कुछ भी नहीं किया ! करो इक वादा मुझसे जैसे लड़ते हो हर हक पाने को ! तो लड़ जाओ अब मेरा अस्तित्व वचाने को ...................

अब मेरे बारे मैं सोचना होगा ............... SAVE TIGERS .................SAVE TIGERS ............SAVE TIGERS

धन्यवाद

Friday, April 2, 2010

मम्मी मैं बड़ा होकर क्या बनूँगा .......>>> संजय कुमार

मम्मी मैं बड़ा होकर क्या बनूँगा ? ये कहना है एक पांच साल के बच्चे का ! उस बच्चे को नहीं पता की उसे बड़े होकर क्या बनना है ! क्योंकि उस पर आज इतना प्रेशर है की उसे खुद समझ मैं नहीं आता की वो क्या -क्या बने ! उसकी माँ कहती हैं तुम्हे एक डॉक्टर बनना है ! पापा कहते हैं तुम्हें इंजीनीयर बनना है ! तो वहीँ दादाजी चाहते हैं कि वह वर्षों से चला आ रहा व्यवसाय को आगे बडाये ! ये सारी बातें बच्चे के मन पर क्या प्रभाव डालती हैं ! ये सारीं बातें हम जानते हैं ! पर जानकर भी अनजान बनते हैं ! उस छोटे से मन पर क्या क्या गुजरती हैं! यह सब का क्या परिणाम हमारे सामने आ सकता है ! कभी इस बारे मैं भी हमें सोचना होगा ! कहते हैं बच्चों का मन कुम्हार कि उस मिटटी के जैसा होता है , जिसे वह कोई भी रूप दे सकता है ! ठीक उसी प्रकार हमारे वातावरण का, हमारे दबाव के कारण ! हमारा बच्चाअपने मन को किस तरह निर्मित करता है , या निर्मित कर रहा है हमें इस और ध्यान देना आवश्यक है ! आज हर कोई चाहता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर नाम कमायें ! उनके जीवन का सहारा बने ! जिस कारण से उन पर हमेशा से दबाव बना रहता है ! फिर चाहे बो माँ -बाप का हो या उसके स्कूल टीचर का ! वह हमेशा दबाव महसूस करता है ! और डिप्रेशन मैं चला जाता है ! और कर बैठता है ऐसी गलती ! जिस पर हम सिर्फ पछतावा कर सकते हैं और कुछ नहीं !
आज हमें इस और बहुत ध्यान देना होगा ! कम से कम बच्चों पर अपनी मर्जी ना थोपें ! और वो क्या चाहते हैं, हम उस ओर ध्यान दें ! अगर हम बच्चों के अनुसार चलें तो बच्चे को ज्यादा अच्छा लगेगा ! और वह अच्छेसे मन लगा कर पड़ेगा और आप सबकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा ! आज हम सब ऐसे आधुनिक युग मैं जी रहे हैं जहाँ पल पल इन्सान कि सोच बदलती रहती है ! और उसका असर हम अपने बच्चों पर देख सकते हैं ! इसलिए बच्चों पर सिर्फ ध्यान रखें कि बो कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं ! उनका होंसला बडाये और आगे बदने कि लिए प्रेरित करें ओर आप पाएंगे कि आपका बच्चा आपकी उम्मीदों कैसे खरा उतरता है ! और कभी भी आपका बच्चा आपसे नहीं पूंछेगा कि .................मम्मी मैं बड़ा होकर क्या बनूँगा ....................... बच्चों के मन को सवारें , बच्चे देश का भविष्य हैं , मन संवरेगा तो भविष्य भी ...................

धन्यवाद

Thursday, April 1, 2010

मुझे तो यूँ ही वदनाम करते हैं, जबकि .........>>>> संजय कुमार

आप लोग तोह मुझे यूँ ही वदनाम करते हैं ! कहते हैं कि मैं सबसे बुरा हूँ , इस दुनिया मैं मुझसे बुरा कोई नहीं है ! मैंने ना जाने कितने ही घर बर्वाद कर दिए हैं ! जी नहीं इसमें मेरी कोई गलती नहीं है ! अगर मैं बुरा होता तो आप मेरे पास आते, नहीं, आज तो सरकारभी कह रही है और हमेशा से कहती आ रही है कि , धुम्रपान स्वास्थ्यले लिए हानिकारक है , मदिरा पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है , गुटखा खाने से कैंसर होता है , बगैरह -बगैरह
फिर भी आप मेरा इस्तेमाल करते हैं क्यों , क्यों मेरा इस्तेमाल करने के बाद आप बड़ा फक्र सा महसूस करते हैं ! और पूरी दुनिया मैं मुझे वदनाम करते फिरते हैं , कि मैं इन्सान का गम दूर करता हूँ ! मेरा सेवन करने से इन्सान अपने सरे दुखदर्द भूल जाता है , इन्सान बहुत खुश हो तो , और बहुत ज्यादा दुखी हो तो भी मेरा पीछा नहीं छोड़ता , गलती इन्सान करता है ! और भुगतना मुझे पड़ता है ! आप इन्सान से क्यों नहीं कहते कि वो अपने दिमाग का भी इस्तेमाल किया करे !
पर इन्सान तो मेरे लिए ऐसे तड़पता है , जैसे अगर मैं ना मिला तो पता नहीं क्या हो जायेगा ! इन्सान इतनी तड़प तो अपने माँ बाप के लिए भी नहीं रखता ! मेरे लिए तो इन्सान रोज अपनों से लड़ता है ! मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाता है ! चाहे माँ का अपमान करना हो या पिता का , किसी को नहीं छोड़ता , पत्नि पर हाँथ उठाना हो या अपने प्यारे बच्चों पर ! मेरे इस्तेमाल के बाद तो इन्सान, इन्सान को इन्सान ही नहीं समझता ! अपनी सारी मान मर्यादाएं भूल जाता है ! मेरी तड़प मैं तो इतना पागल हो जाता है , कि , एक बार उसे भोजन मिले न मिले पर मैं एक बार मिल जाऊं बस फिर नहीं फिक्र दुनिया जहां कि ! बड़े बड़े घर बर्वाद हो गए मेरे चक्कर मैं ! कई राज पाठ चले गए मेरे कारण ! मेरे द्वारा इस देश मैं लाखों युवा रोज बर्वाद हो रहे हैं ! बड़े बड़े महानगरों मैं तो एक सिम्बल के रूप मैं जाना जाता हूँ , अब तो मेरी तड़प मैं महिलाओं और युवा लड़कियों कि संख्या भी बदती जा रही है ! आज हर जगह मेरे मारे, हॉस्पिटल मैं भरे पड़े हैं , फिर भी नहीं छोड़ेंगे मेरा साथ .......
मैं आपको बताती हूँ मेरे कई नाम, शराब , सिगरेट , बीडी , तम्बाखू , कोकीन , चरस , भंग , और ना जाने कितने हैं नाम मेरे ! मैं नशा हूँ और ऐसा जो एक बार लग जाये तो पता नहीं इन्सान से क्या क्या करवा दे !
हमारे देश कि सरकार तो मुझसे बहुत सारा धन कमाती है ! तो वह तो कुछ नहीं करेगी ! करना आप सब को है ! तो आज के इन्सान मत करो नशा ये नशा करना आप कि संस्कृति नहीं है ! गलती आप लोग करते हैं और वदनाम मैं होता हूँ ..................
धुम्रपान निषेध है ......... तम्बाखू से कैंसर होता है ............. सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

धन्यवाद