Friday, April 26, 2013

गरीबी का जहर और बाल श्रम .......>>> गार्गी की कलम से

मैंने अपने बेटे को देखा 
प्लेटफ़ॉर्म पर हाँथ फैलाते हुए 
ढावों पर चाय - पानी देते हुए 
गलियों में कचरा बीनते हुए 
खाने - पीने की चीजें चोरी करने पर 
पब्लिक से मार खाते हुए ........
यूँ तो मेरा  बेटा 
अच्छे स्कूल में पढ़ता  है 
अच्छा खाता है 
पहनता है 
खेलता है !
उसे वो सब मिलता है 
जो उसे मिलना चाहिए 
वो उसका हक है !
पर जब भी मैं , किसी 
बेबस , लाचार 
बच्चे को देखती हूँ 
तो उसमें मुझे 
अपने बेटे का 
चेहरा नज़र आता है !
" बाल श्रम " अपराध है 
ऐसा कह देने से,
कानून बन जाने से 
अपराध रुका नहीं 
क्योंकि समाज और देश का 
सिस्टम नहीं बदला 
जब तक सिस्टम नहीं बदलेगा 
गरीबी का जहर 
इस देश इस समाज  में 
फैला ही रहेगा , और 
बचपन 
दम तोड़ता ही रहेगा 

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

Wednesday, April 3, 2013

होनहार बच्चे और उनके माता - पिता जरा ध्यान दीजिये . ... आपकी खुशियों का सवाल है ....>>> संजय कुमार

अभी पिछले दो हफ्ते पहले की बात है , हमारे शहर ग्वालियर में एक नौंवी कक्षा की होनहार स्कूल छात्रा ने अपने ही पिता की बन्दूक से अपने आप को गोली मारकर आत्महत्या कर ली , इस दिल दहला देने वाली घटना को जिसने सुना दंग रह गया , आखिर क्यों उसने ऐसा किया ?  जब कारण मालूम चला तो लोगों के होश उड़ गए .. कारण था उस छात्रा का परीक्षा में गणित का पेपर बिगड़ना .. क्या इतनी छोटी सी बात पर आत्महत्या कर लेना सही था ...?  मैं तो कहता हूँ कि , किसी भी बात पर आत्महत्या कर लेना सबसे बड़ी बुजदिली की निशानी है ! आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है अपितु इससे अनेकों प्रश्न हमारे सामने उत्पन्न होते हैं ! फिर भी इस तरह के मामले हम हर साल सुनते और देखते हैं ! इस तरह के अनेकों मामले हमारे सामने कई बार आये हैं ! जब किसी छात्र -छात्रा ने परीक्षा में फ़ैल होने पर अपने गले में फाँसी का फंदा डालकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली ?  जरा जरा सी बात पर बच्चों का इतनी जल्दी आप खो देना अपनी जान लेने की कोशिश करना .? आखिर क्यों .? क्या गुजरती होगी ऐसे माता - पिता के दिल पर जब वो अपने ही बच्चों की लाश अपने कन्धों पर ढोते होंगे , जिन कन्धों पर बैठाकर उनको उज्जवल भविष्य के सपने दिखाए ? क्या इसी दिन के लिए माता-पिता अपना पेट काटकर अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना देखते हैं ! अब इस तरह के मामलों में हम किसको दोष दें  ?  कौन है इसके लिए जिम्मेदार ? शायद हम सभी जिम्मेदार हैं इस तरह के हादसों के लिए ! एक कारण ... माता - पिता द्वारा बच्चों पर अधिक प्रेशर का डालना कि,  हर हाल में , किसी भी कीमत पर अच्छे नंबरों से पास होना ही पड़ेगा, फिर चाहे इसके लिए तुम्हें २४  घंटे ही क्यों ना पढ़ना पड़े ? हमें तुमसे बहुत उम्मीदें हैं इत्यादि ! स्कूल का प्रेशर हमेशा होनहार बच्चों पर रहता है,  क्योंकि स्कूल की रेपुटेशन का सवाल होता है जहाँ टीचर्स बच्चों पर कुछ ज्यादा ही दबाब बनाते हैं ! या फिर बच्चे स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है जो जरा जरा सी बातों पर अपनी सुध-बुध खो देते हैं ! एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ जिसके लिए कुछ भी कर गुजरें ! सच कहूँ तो जिम्मेदार हम सभी हैं और हम सभी को इसकी जिम्मेदारी लेनी भी होगी ! क्योंकि किसी की एक गलती हमसे हमारी खुशियाँ छीन सकती हैं ! फिर भी सच तो ये है कि बच्चे तो बच्चे होते हैं उनमें बचपना भी बहुत होता है और लम्बे समय तक ये उनके साथ भी रहता है ! बच्चों में ज्ञान की कमी होती है , उन्हें सही गलत का अनुमान नहीं होता , कौन सी बात उनके मन में कब घर कर जाये इसका अनुमान हम लोग नहीं लगा सकते ! फिर भी बच्चों की उम्र के इस पड़ाव में उन्हें माता-पिता के साथ की आवश्यकता हमेशा होती है ! इस उम्र में बच्चों की सोच उनके हाव-भाव , व्यवहार में तेजी से परिवर्तन होता है ! कुछ बच्चे वक़्त के साथ ढल जाते हैं और सही गलत का अनुमान लगा लेते हैं फिर भी सभी बच्चों को उचित मार्ग-दर्शन की आवश्यकता होती है ! जब से हमने अपने आप को जरूरत से ज्यादा व्यस्त कर लिया है तब से हम लोगों का ध्यान अपने बच्चों से और उनकी दिनचर्या , क्रिया-कलाप , व्यवहार से पूरी तरह हट गया है और आज अधिकांश परिवारों में  यही स्थिति है ! बच्चों के लिए माता-पिता का प्यार , स्नेह , मार्ग-दर्शन , उनके लिए समय निकालना किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है ! अगर बच्चों के लिए माता-पिता के पास समय नहीं है तो इस तरह की  स्थिति उनके साथ भी निर्मित हो सकती है ! खास तौर पर होनहार बच्चे इस तरह की वारदात को ज्यादा अंजाम देते हैं ! क्योंकि वो इस बात को बहुत गहराई से सोचते हैं और असफल होने पर उन्हें शर्मिंदगी महसूस होगी ! बस यहीं वो गलती कर जाते हैं  ! माता-पिता जब बच्चों को ज्यादा होशियार समझने लगते हैं तो उनका भी ध्यान बच्चों से उनकी दिनचर्या से हट जाता है और वो बड़ी बेफिक्री महसूस करते हैं ! यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो आप अलर्ट हो जाइये !
मैं सभी होनहार बच्चों से गुजारिश करूंगा कि , हमारा जीवन बहुत ही अनमोल है और ये जीवन हमें एक बार ही मिलता है ! हमें कभी भी छोटी - छोटी असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए और छोटी - छोटी सफलता पर किसी भी तरह का घमंड नहीं करना चाहिए ! क्योंकि ये दोनों स्थिति हमारे लिए हितकर नहीं हैं ! क्योंकि जान है तो जहान है और हम जिन्दा रह कर ही इतिहास बना सकते हैं ! सभी माता - पिता से गुजारिश है , कृपया अपने बच्चों को अपना समय दीजिये और जीवन उपयोगी बातों से उन्हें अवगत करायें ! 
विशेष ......>> जिन घरों में नन्हें - मुन्हें बच्चें हैं उन घरों में कृपया अपनों की ही मौत का सामान ना रखें जिन्हें हम हथियार कहतें हैं क्योंकि जब गोली चलती है तो वो ये नहीं देखती की कौन अपना है कौन पराया वो सिर्फ खुशियाँ छीनती है ..... इसलिए कहता हूँ कि , ... ये सवाल आपकी अपनी खुशियों का है !  

(एक छोटी से बात )

धन्यवाद 

Monday, April 1, 2013

अलविदा .... दोस्तों ..........>>> संजय कुमार

आज आप सभी को अलविदा कहते हुए मुझे बड़ा ही दुःख हो रहा है ! डरिये मत मैं जीवन को अलविदा नहीं कह रहा हूँ बल्कि ब्लॉग लेखन को अलविदा कह रहा हूँ क्योंकि अब ये मेरी मजबूरी है जैसे देश में घोटाले करना सरकार की मजबूरी है ठीक वैसे ही मेरी भी है पिछले तीन सालों से मैं  अपने ब्लॉग पर अपनी ढेर सारी पोस्टें आपको जबरदस्ती पढ़वाता रहा ,यहाँ भी मेरी मजबूरी थी ! सोचा आप सभी का मनोरंजन होगा ! मनोरंजन हुआ या नहीं मेरी तो समझ में  ही नहीं आया .... मैं क्या करता  मैं तो छोटा -मोटा ब्लॉगर हूँ कोई राईटर तो हूँ नहीं जो सबकी पसंद का लिख सकूँ , और ऐसा लिख सकूँ जो आप सभी को पसंद भी आये ! फिर भी मुझे तो जो आता गाया सो सो मैं लिखता गया ! आप सभी ने मेरी ३१०  पोस्टों को झेला ये मेरे लिए फक्र की बात है ! आप सभी ने भी बड़ी ही वीरता दिखाई और दिलेरी से मेरी पोस्टों को पढ़ा और  अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देकर मेरा उत्साहवर्धन किया  जिसका मैं सदा आभारी रहूँगा ! सोचता हूँ मेरे लिखने का आखिर मुझे क्या फायदा हुआ , ना तो मैंने आज तक कोई अवार्ड जीता है और ना ही कोई पुरुष्कार , ले -दे कर दो चार पत्रिकाओं में कुछ पोस्टें छप गयी और कुछ समाचार पत्रों में .... इससे आखिर होता क्या है ....?  सच तो ये हैं कि अब लिखने का मन नहीं होता , कारण तो बहुत हैं फिर भी सबसे बड़ा कारण तो समय है जो मेरे पास अब बिलकुल भी नहीं हैं ! अपने कार्यक्षेत्र में बढती जिम्मेदारियों के कारण लेखन के लिए समय का ना निकाल पाना ! जब आप किसी काम के लिए समय नहीं निकाल पाते तो उससे जुड़े होने का कोई मतलब नहीं है ! मेरा ऐसा मानना है कि , हमें ऐसे काम से अलविदा ही कह देना चाहिए ! अब मैं जब भी सिस्टम पर बैठता हूँ तो मेरा मन ब्लॉग खोलने और उस पर कुछ लिखने का बिलकुल भी नहीं करता  बल्कि मैं जब " फेसबुक " खोलता हूँ तो उससे दूर जाने का मन नहीं करता ....अब जिससे दूर रहा ना जाय तो उसके बारे में सोचना तो पड़ेगा ही ! एक बात सच बोलूं  मुझे ऐसा लगता है कि , अब ब्लॉग पढ़ने वालों की संख्या बहुत कम हो गयी है ! जब से " फेसबुक " आया है तब से ब्लॉग तो " दूरदर्शन " के जैसा हो गया है ......... फेसबुक , ट्विटर, की दुनिया बड़ी ही रंग - रंगीली है और ब्लॉग की दुनिया वही .... शेरो - शायरी , साहित्यिक रचनायें , कवितायेँ , गीत ग़ज़ल और क्या ....... इसके विपरीत फेसबुक पर ...... रंग-बिरंगी तस्वीरें , वाद- विवाद भरी बातें , अपनी सोती-जागती तस्वीरों पर हर किसी की वाह - वाही लूटना , एक दुसरे से चैट पर बातें करना ....... इत्यादि 
अब भई चमक - दमक की दुनिया तो हर किसी को भाति है ...... आज मुझे भी भा रही है ! 
आखिर क्या रखा  है ब्लॉग में ...... अब मैं भी औरों की तरह  फेसबुक पर हाँथ आजमाना चाहता हूँ ! इसलिए तो अब ब्लॉग को अलविदा और ..... फेसबुक ,ट्विटर का तहे दिल से स्वागत कर रहा हूँ ! 
हालांकि ब्लॉग ने मुझे तीन सालों में ढेर सारे अच्छे मित्र भी दिए हैं .. लेकिन फेसबुक पर तो मैं २-४ हज़ार मित्र तो बना ही लूँगा ! अब नए मित्रों की तलाश में .... ब्लॉग को अलविदा ......

















अरे भई मैं ये क्या मुर्खता कर गया ....... जिस ब्लॉग ने मेरी पहचान बनाई है मैंने उसे ही अलविदा कह दिया ! क्या करूँ अपनी तो आदत है ! अब एक बार जो मैंने कमेटमेंट  कर दिया तो फिर मैं अपने आप की भी नहीं सुनता ......... फिर चाहे वो फर्स्ट मार्च  हो या फर्स्ट अप्रैल फूल ! अलविदा तो अलविदा 


धन्यवाद 
( मुर्खता दिवस की शुभकामनयें )