Wednesday, April 27, 2011

गब्बरसिंग और विदेश में जमा कालाधन ....>>> संजय कुमार



" कितने आदमी थे " तेरा क्या होगा कालिया " पचास -पचास कोस दूर जब बच्चा रोता है तो " माँ " कहती है बेटा सो जा वर्ना गब्बर आ जायेगा " ये डायलौग आज भी इतने मशहूर हैं जितने की आज से ३५-३६ साल पहले ! आज मैं आपको आज २०११ के गब्बर से मिलवाना चाहता हूँ ! मिलिए गब्बर सिंग और साम्भा से ! गब्बर सिंग अब बूढ़ा हो चुका है , उसके शरीर में अब कडकडाती हड्डियों के अलावा कुछ भी नहीं बचा है ! " साम्भा " सहित सभी डाकू भी बूढ़े हो चुके हैं ! आज डाकुओं के गिरोह में कुछ ज्यादा ही हलचल दिख रही है ! कुछ डाकू " माँ काली " की मूर्ति की साफ -सफाई में लगे हुए हैं ! और कुछ डाकू आपस में बात कर रहे हैं " लगता है आज अपना सरदार कुछ करने वाला हैं , लगता है आज सरदार अपने माथे पर खून का टीका जरुर लगायेंगे और आज इस बीहड़ से बहार जरुर निकलेंगे " ! तभी एक अखबार की कतरन कहीं से गब्बर के हाँथ लग जाती है और उसे पढ़ता है और पढ़कर गब्बर कुछ सोचता है और गब्बर की आवाज आती है " अरे ओ साम्भा ये विदेश कहाँ है रे और ये काला धन क्या होता है रे पूरा अखबार कालाधन से भरा पड़ा है " आज हम यहीं डांका डालेंगे , तुम घोड़ों को तैयार करो " तभी चट्टान पर बैठा साम्भा जो हमेशा निगरानी में व्यस्त रहता है ! बोल पड़ा " लगता है अपुन का सरदार पगला गया है जो ऐसी बात कर रहा है " अरे सरदार तुम्हें क्या लगता है विदेश कोई पच्चीस- तीस कोस दूर है जो अपने मरियल से घोड़ों से वहां तुरंत पहुँच जाओगे " अरे विदेश का मतलब है सात समंदर पार वहां ऐसे ही कोई नहीं जा सकता ये कोई " रामगढ़ " नहीं है की मुंह उठाकर कभी भी चले गए " वहां जाने के लिए पासपोर्ट लगता है ! और ये कालाधन जानते भी हो कि क्या होता है ? और ये कालाधन किसी साहूकार कि तिजोरी में पड़ा हुआ धन नहीं है ! जब चाहा लूट लाये ! तुम्हें मालूम भी है आज ये पूरा देश और देश कि सभी पार्टिया मंत्री-संत्री सब उसको लाने के लिए पता नहीं क्या क्या कर रहे हैं और तुम कह रहे हो कि उसे लूट लायें ! आम आदमी की जेब से निकला हुआ मेहनत और खून-पसीना बहाकर कमाया गया धन है ! जिसे देश चलाने वाले भ्रष्ट नेताओं ने देश कि जनता से लूटकर अपने - अपने खातों में जमा कर रखा है ! ये कालाधन तो लूटा हुआ ही है जो वहां की चोरों की बैंक मतलब " सुस बैंक " में जमा है .... समझे ! " क्या कहा सात समंदर पार " बहुत नाइंसाफी है रे " इन हरामजादों को इतनी दूर जाने की क्या जरुरत क्या थी ? हमारे यहाँ के बैंक बंद हो गए हैं क्या ? लगता है गब्बर के डर से यहाँ नहीं रखते ! तभी साम्भा बोला " नहीं सरदार अब इस देश में तुम डाकुओं से कोई नहीं डरता अब इस देश में तुमसे भी बड़े-बड़े डाकू , आतंकवादी , भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज पैदा हो गए हैं ! " गब्बर के ताप से तो एक बार आदमी बच भी जायेगा सरदार लेकिन देश में रह रहे देश को चला रहे सफेदपोश डाकुओं से कोई नहीं बच सकता, ये एक बार में ही इतना बड़ा डांका डालते है जितना तुम सात जनम लेने के बाद भी नहीं डाल पाओगे समझे " मालूम है कितना माल पड़ा है वहां ७००००००००००००००००००० कितनी बिंदियाँ लगी हैं इन्हें गिनते गिनते कई जनम लग जायेंगे सरदार ! इन सफेदपोश चोरों ने देश का कितना माल विदेशों में पहुंचा दिया है और आज भी पहुंचा रहे हैं ! और हम कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं हम तो एक एक रूपए के लिए मोहताज हैं ! तभी गब्बर बोलता है ! " कितना इनाम रख्हे है सरकार हम पर , पूरे 50000 " साम्भा बोला " सरदार ये भी कोई इनाम है इससे दस गुना ज्यादा की कमाई तो कोई भी चुटकी बजा कर कर लेता है ! अब घोड़ों पर बैठकर डांका डालने वाले डाकुओं का ज़माना लद गया अब तो बड़े - बड़े डाकू तो अपनी " बुलेट प्रूफ " गाड़ियों में बैठकर सफ़र करते हैं वो भी कमांडो से घिरे हुए ! गब्बर कहता है " हम तो सोच रहे थे की हमसे बड़ा और कोई डाकू है ही नहीं लेकिन मैं तो गलत निकला ! " अरे साम्भा क्या कोई नहीं है इस देश में जो इन डाकुओं को ऐसा करने से रोके और इस देश का धन बापस लाये , क्या सब के सब चोर हैं ?! साम्भा बोला " अरे नहीं सरदार आज के समय में इस देश में ईमानदारों की कमी है ! लेकिन इन सब में एक बात बहुत अच्छी है ये सब के सब देश का धन मिलबांटकर खाते हैं ! सब के सब "एक ही थैली के चट्टे -बट्टे " हैं ! इतना सुनकर गब्बर चिल्लाता है " अरे ओ साम्भा तुमने जो इस देश की हालत बताई है उसे सुनकर " सरदार क्या खुश होगा " आज सरदार खुश नहीं बहुत दुखी हुआ है ! आज इस देश को ये जो दिन देखना पड़ रहा है वो सफेदपोशों की वजह से देखना पड़ रहा है ! हम डाकू तो किसी मजबूरी वश डाका डालते हैं , हम तो किसी ना किसी के द्वारा सताए हुए होते हैं , हमारा तो हर बार दमन होता है हमें तो हर बार कुचला जाता है , तब हम जाकर मजबूरी वश वदला लेने कहीं हथियार उठाते हैं , और आम जनता का लूटा हुआ धन साहूकारों कि तिजोरी से लूटते हैं ! हम तो डाकू कहलाते हैं और हमारा अंत क्या होता है ? बस एक गोली और इस दुनिया से विदा, किन्तु आज तो बड़े - बड़े सफेदपोशों को डाकू कहना गलत नहीं होगा ! आज अगर मैं इन सफेदपोशों द्वारा लूटा हुआ धन लूटकर विदेश लाता हूँ तो आप मुझे क्या कहेंगे ?


धन्यवाद

Friday, April 22, 2011

अब नहीं रहे अपने घर, पहले के जैसे .....>>> संजय कुमार



कहा जाता हैं कि, हिंदुस्तान वो जगह है जहाँ की हर चीज अपने आप में बहुत महत्त्व रखती है ! यहाँ के संस्कार , अपनापन , रिश्तों का मान-सम्मान , रीति -रिवाज और भी बहुत कुछ है ! हिन्दुस्तान के हर एक घर में कुछ ना कुछ विशेषताएं होती हैं ! चाहे वह घर अपने और दूसरों के मान-सम्मान के लिए जाना जाता हो या परंपरा और संस्कारों के लिए जाना जाता हो ! हिन्दुस्तान का हर घर कुछ नहीं, बहुत कुछ कहता है ! जब ये बात हम सुनते हैं तो अपने आप में फक्र सा महसूस करते हैं ! अपने घर परिवार में माता-पिता का सम्मान हो या बड़े भाई बहनों का आदर या फिर छोटों से प्यार या फिर अपने पडोसी से अच्छे सम्वंध जब ये सब कुछ होता है तो मन प्रसन्न रहता है ! हम सब अच्छे सुख समृधि कि कामना करते हैं ! एक वक़्त था जब ये सारी चीजें हमारे पास थीं लेकिन आज शायद ये सभी चीजें हमारे पास नहीं हैं ! अब ये सारी चीजें हमारे बीच से लगभग खत्म सी हो गईं हैं ! माता-पिता का सम्मान लगता हैं कहीं खो गया है ! हम भूल गये बड़ों का आदर करना , और छोटों से प्यार करना ! आज के पड़ोसी तो हमें किसी दुश्मन की तरह लगते हैं ! आज पडोसी अपने दुःख से कम दुखी है लेकिन पडोसी के सुख से कहीं ज्यादा दुखी ! आज परम्पराएँ भी आधुनिकता में कहीं खो गई हैं ! आज सब कुछ बदल गया है ! ऐसा लगता है जैसे हम किसी की मुट्ठी में कैद हो गए हों और जिसने हमारी सोच बदल दी हो ! जी हाँ यह सच है ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ आज हमारे घरों में घर चुके टेलीविजन की और आने बाले डेली सोप प्रोग्राम और सीरियल की जिन्होंने हमारे दिमाग के साथ साथ हमारे घरों पर किसी दुश्मन की तरह कब्ज़ा कर लिया है ! आज शायद ही कोई ऐसा घर हो जिस घर में डेली सोप सीरियल की चर्चा ना होती हो ! घर में "माँ" हो या पिताजी , पत्नि , भाई या भाभी , बहन या हमारे प्यारे बच्चे , इन सभी पर इन सीरियल और प्रोग्राम का असर देखा जा सकता है ! आज इनको देखकर हमारे परिवार के सदस्यों की दिनचर्या एवं उनके वयवहार में कितना परिवर्तन आ गया है यह हम सब देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं ! हम तो आज पूरी तरह इन पर निर्भर से हो गए हैं ! यदि हम किसी दिन कोई पसंदीदा प्रोग्राम अगर देखने से चूक जाएँ तो फिर आप देखिये स्थिति, जो तड़प ऐक प्यासे को पानी के लिए होती है उससे कहीं ज्यादा और ना बुझने वाली तड़प हम देख सकते हैं ! यह सब आज की आधुनिकता का ही नतीजा है आज हम जरुरत से ज्यादा इन पर निर्भर हो गए हैं और उस पर दिन - प्रतिदिन बढ़ते टीव्ही चैनलों कि बाढ़ ! जितने ज्यादा चैनल उतने ज्यादा प्रोग्राम ! अब तो हम लोग सीरियल किरदारों में अपने लोगों तक को देखने लगे हैं ! अपनों की तुलना , अपने घर की तुलना इनसे करने लगे हैं ! अब सब कुछ बदल सा गया है ! अब नहीं रहे अपने घर पहले के जैसे ! अब हर घर इनकी गिरफ्त में है ! यह सब कुछ हुआ है पिछले पंद्रह बर्षों में ! जरा याद कीजिये उस वक़्त को जब हम सब अपने परिवार के सदस्यों साथ बैठकर रामायण और महाभारत जैसे संस्कार देने वाले सीरियल देखा करते थे , तो उस वक़्त सब कुछ बड़ा अच्छा लगता था ! उस वक़्त हम सब नियमित रूप से अपने सभी काम करते थे ! तब यही टीव्ही हमें अच्छा लगता था पर अब नहीं ! क्योंकि आज बहुत कुछ गलत दिखाया जा रहा है ! आज बहुत से घर परिवार इन सीरियल के कारण बर्बाद हो रहे हैं ! फिर चाहे प्रतिदिन का बढता सास-बहु का झगडा , देवरानी - जिठानी की " तू-तू मैं- मैं " सब कुछ कहीं ना कहीं इसके कारण ही है ! अब संयुक्त परिवार तो बहुत कम बचे हैं अगर हैं भी तो परिवार के सदस्यों में अब वो बात नहीं है , क्योंकि वो तो संयुक्त होते हुए भी अलग जैसे ही हैं ! आज परिवारों में मनोरंजन तो होता है किन्तु बंद कमरों में कैदियों की तरह , जब हम लोग बंद कमरों में अपना मनोरंजन करते हैं तो फिर कब ? हम अपनों को समय देंगे और उनका हाल चाल जानेंगे और कब उनके साथ मनोरंजन करते हुए प्यार के दो पल , वो कभी ना भूलने वाले पल बिताएंगे !

यहाँ पर मैंने बहुत सारी बुराई लिख दी हैं किन्तु ये भी सत्य है कि, हर बुरी चीज के साथ अच्छी चीज भी जुडी होती है ! यह आज के समय की जरूरत भी है ! लेकिन जरुरत को कभी लत नहीं लगना चाहिए ! किन्तु आज हम सब इस पर पूरी तरह निर्भर हैं ! या यूँ कह सकते हैं हम हैं इनकी मुट्ठी में ! हमारे साथ साथ हर इक घर हैं इनकी मुट्ठी में ! अपने घर को पहले जैसा बनाने की जिम्मेदारी परिवार के सभी सदस्यों की होती है तो अब कोशिश कीजिये सब के साथ मनोरंजन करने की !

जय हो "बुद्धू बक्से" की ...........( ऐक छोटी सी बात ) जरा गौर कीजिये .................

धन्यवाद

Monday, April 18, 2011

हिन्दुस्तान का सच्चा हीरो ( तात्या टोपे ) 18 .अप्रैल .1859.. कोटि कोटि नमन ( धन्य हुआ मेरा शहर शिवपुरी ) .... >>> संजय कुमार

तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। तात्या का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट पटौदा जिले के येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पाण्डुरंग राव भट्ट़ (मावलेकर), पेशवा बाजीराव द्वितीय के घरू कर्मचारियों में से थे। बाजीराव के प्रति स्वामिभक्त होने के कारण वे बाजीराव के साथ सन् १८१८ में बिठूर चले गये थे। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। तात्या का जन्म सन् १८१४ माना जाता है। अपने आठ भाई-बहनों में तात्या सबसे बडे थे।सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्श किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, राव साहब, बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।कुछ समय तक तात्या ने ईस्ट इंडिया कम्पनी में बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में भी काम किया था, परन्तु स्वतंत्र चेता और स्वाभिमानी तात्या के लिए अंग्रेजों की नौकरी असह्य थी। इसलिए बहुत जल्दी उन्होंने उस नौकरी से छुटकारा पा लिया और बाजीराव की नौकरी में वापस आ गये। कहते हैं तोपखाने में नौकरी के कारण ही उनके नाम के साथ टोपे जुड गया, परंतु कुछ लोग इस संबंध में एक अलग किस्सा बतलाते हैं। कहा जाता है कि बाजीराव ने तात्या को एक बेशकीमती और नायाब टोपी दी थी। तात्या इस टोपे को बडे चाव से पहनते थे। अतः बडे ठाट-बाट से वह टोपी पहनने के कारण लोग उन्हें तात्या टोपी या तात्या टोपे के नाम से पुकारने लगे।सन् १८५७ के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुँचीं और वहाँ के सैनिकों ने नाना साहब को पेशवा और अपना नेता घोषित किया तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की। तात्या टोपे को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया। जब ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की कमान में अंग्रेज सेना ने इलाहाबाद की ओर से कानपुर पर हमला किया तब तात्या ने कानपुर की सुरक्षा में अपना जी-जान लगा दिया, परंतु १६ जुलाई, १८५७ को उसकी पराजय हो गयी और उसे कानपुर छोड देना पडा। शीघ्र ही तात्या टोपे ने अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया और कानपुर से बारह मील उत्तर मे बिठूर पहुँच गये। यहाँ से कानपुर पर हमले का मौका खोजने लगे। इस बीच हैवलॉक ने अचानक ही बिठूर पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि तात्या बिठूर की लडाई में पराजित हो गये परंतु उनकी कमान में भारतीय सैनिकों ने इतनी बहादुरी प्रदर्शित की कि अंग्रेज सेनापति को भी प्रशंसा करनी पडी।तात्या एक बेजोड सेनापति थे। पराजय से विचलित न होते हुए वे बिठूर से राव साहेब सिंधिया के इलाके में पहुँचे। वहाँ वे ग्वालियर कन्टिजेन्ट नाम की प्रसिद्ध सैनिक टुकडी को अपनी ओर मिलाने में सफल हो गये। वहाँ से वे एक बडी सेना के साथ काल्पी पहुँचे। नवंबर १८८७ में उन्होंने कानपुर पर आक्रमण किया। मेजर जनरल विन्ढल के कमान में कानपुर की सुरक्षा के लिए स्थित अंग्रेज सेना तितर-बितर होकर भागी, परंतु यह जीत थोडे समय के लिए थी। ब्रिटिश सेना के प्रधान सेनापति सर कॉलिन कैम्पबेल ने तात्या को छह दिसंबर को पराजित कर दिया। इसलिए तात्या टोपे खारी चले गये और वहाँ नगर पर कब्जा कर लिया। खारी में उन्होंने अनेक तोपें और तीन लाख रुपये प्राप्त किए जो सेना के लिए जरूरी थे। इसी बीच २२ मार्च को सर ह्यूरोज ने झाँसी पर घेरा डाला। ऐसे नाजुक समय में तात्या टोपे करीब २०,००० सैनिकों के साथ रानी लक्ष्मी बाई की मदद के लिए पहुँचे। ब्रिटिश सेना तात्या टोपे और रानी की सेना से घिर गयी। अंततः रानी की विजय हुई। रानी और तात्या टोपे इसके बाद काल्पी पहुँचे। इस युद्ध में तात्या टोपे को एक बार फिर ह्यूरोज के खिलाफ हार का मुंह देखना पडा।कानपुर, चरखारी, झाँसी और कोंच की लडाइयों की कमान तात्या टोपे के हाथ में थी। चरखारी को छोडकर दुर्भाग्य से अन्य स्थानों पर उनकी पराजय हो गयी। तात्या टोपे अत्यंत योग्य सेनापति थे। कोंच की पराजय के बाद उन्हें यह समझते देर न लगी कि यदि कोई नया और जोरदार कदम नहीं उठाया गया तो स्वाधीनता सेनानियों की पराजय हो जायेगी। इसलिए तात्या ने काल्पी की सुरक्षा का भार झांसी की रानी और अपने अन्य सहयोगियों पर छोड दिया और वे स्वयं वेश बदलकर ग्वालियर चले गये। जब ह्यूरोज काल्पी की विजय का जश्न मना रहा था, तब तात्या ने एक ऐसी विलक्षण सफलता प्राप्त की जिससे ह्यूरोज अचंभे में पड गया। तात्या का जवाबी हमला अविश्वसनीय था। उसने महाराजा जयाजी राव सिंधिया की फौज को अपनी ओर मिला लिया था और ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर कब्जा कर लिया था। झाँसी की रानी, तात्या और राव साहब ने जीत के ढंके बजाते हुए ग्वालियर में प्रवेश किया और नाना साहब को पेशवा घोशित किया। इस रोमांचकारी सफलता ने स्वाधीनता सेनानियों के दिलों को खुशी से भर दिया, परंतु इसके पहले कि तात्या टोपे अपनी शक्ति को संगठित करते, ह्यूरोज ने आक्रमण कर दिया। फूलबाग के पास हुए युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई १८ जून, १८५८ को शहीद हो गयीं।इसके बाद तात्या टोपे का दस माह का जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा जीवन है। लगभग सब स्थानों पर विद्रोह कुचला जा चुका था, लेकिन तात्या ने एक साल की लम्बी अवधि तक मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेज सेना को झकझोरे रखा। इस दौरान उन्होंने दुश्मन के खिलाफ एक ऐसे जबर्दस्त छापेमार युद्ध का संचालन किया, जिसने उन्हें दुनिया के छापेमार योद्धाओं की पहली पंक्ति में लाकर खडा कर दिया। इस छापेमार युद्ध के दौरान तात्या टोपे ने दुर्गम पहाडयों और घाटियों में बरसात से उफनती नदियों और भयानक जंगलों के पार मध्यप्रदेश और राजस्थान में ऐसी लम्बी दौड-दौडी जिसने अंग्रेजी कैम्प में तहलका मचाये रखा। बार-बार उन्हें चारों ओर से घेरने का प्रयास किया गया और बार-बार तात्या को लडाइयाँ लडनी पडी, परंतु यह छापामार योद्धा एक विलक्षण सूझ-बूझ से अंग्रेजों के घेरों और जालों के परे निकल गया। तत्कालीन अंग्रेज लेखक सिलवेस्टर ने लिखा है कि ’’हजारों बार तात्या टोपे का पीछा किया गया और चालीस-चालीस मील तक एक दिन में घोडों को दौडाया गया, परंतु तात्या टोपे को पकडने में कभी सफलता नहीं मिली।‘‘ग्वालियर से निकलने के बाद तात्या ने चम्बल पार की और राजस्थान में टोंक, बूँदी और भीलवाडा गये। उनका इरादा पहले जयपुर और उदयपुर पर कब्जा करने का था, लेकिन मेजर जनरल राबर्ट्स वहाँ पहले से ही पहुँच गया। परिणाम यह हुआ कि तात्या को, जब वे जयपुर से ६० मील दूर थे, वापस लौटना पडा। फिर उनका इरादा उदयपुर पर अधिकार करने का हुआ, परंतु राबट्र्स ने घेराबंदी की। उसने लेफ्टीनेंट कर्नल होम्स को तात्या का पीछा करने के लिए भेजा, जिसने तात्या का रास्ता रोकने की पूरी तैयारी कर रखी थी, परंतु ऐसा नहीं हो सका। भीलवाडा से आगे कंकरोली में तात्या की अंग्रेज सेना से जबर्दस्त मुठभेड हुई जिसमें वे परास्त हो गये।कंकरोली की पराजय के बाद तात्या पूर्व की ओर भागे, ताकि चम्बल पार कर सकें। अगस्त का महीना था। चम्बल तेजी से बढ रही थी, लेकिन तात्या को जोखिम उठाने में आनंद आता था। अंग्रेज उनका पीछा कर रहे थे, इसलिए उन्होंने बाढ में ही चम्बल पार कर ली और झालावाड की राजधानी झलार पाटन पहुँचे। झालावाड का शासक अंग्रेज-परस्थ था, इसलिए तात्या ने अंग्रेज सेना के देखते-देखते उससे लाखों रुपये वसूल किए और ३० तोपों पर कब्जा कर लिया। यहाँ से उनका इरादा इंदौर पहुँचकर वहाँ के स्वाधीनता सेनानियों को अपने पक्ष में करके फिर दक्षिण पहुँचना था। तात्या को भरोसा था कि यदि नर्मदा पार करके महाराश्ट्र पहुँचना संभव हो जाय तो स्वाधीनता संग्राम को न केवल जारी रखा जा सकेगा, बल्कि अंग्रेजों को भारत से खदेडा भी जा सकेगा।सितंबर, १८५८ के शुरु में तात्या ने राजगढ की ओर रुख किया। वहाँ से उनकी योजना इंदौर पहुंचने की थी, परंतु इसके पहले कि तात्या इंदौर के लिए रवाना होते अंग्रेजी फौज ने मेजर जन. माइकिल की कमान में राजगढ के निकट तात्या की सेना को घेर लिया। माइकिल की फौजें थकी हुई थीं इसलिए उसने सुबह हमला करने का विचार किया, परंतु दूसरे दिन सुबह उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तात्या की सेना उसके जाल से निकल भागी है। तात्या ने ब्यावरा पहुँचकर मोर्चाबंदी कर रखी थी। यहाँ अंग्रेजों ने पैदल, घुडसवार और तोपखाना दस्तों को लेकर एक साथ आक्रमण किया। यह युद्ध भी तात्या हार गये। उनकी २७ तोपें अंग्रेजों के हाथ लगीं। तात्या पूर्व में बेतवा की घाटी की ओर चले गये। सिरोंज में तात्या ने चार तोपों पर कब्जा कर लिया और एक सप्ताह विश्राम किया। सिरोंज से वे उत्तर में ईशागढ पहुँचे और कस्बे को लूटकर पाँच और तोपों पर कब्जा किया। ईशागढ से तात्या की सेना दो भागों में बँट गयी। एक टुकडी राव साहब की कमान में ललितपुर चली गयी और दूसरी तात्या की कमान में चंदेरी। तात्या का विश्वास था कि चंदेरी में सिंधिया की सेना उसके साथ हो जाएगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ। इसलिए वे २० मील दक्षिण में, मगावली चले गये। वहाँ माइकिल ने उनका पीछा किया और १० अक्टूबर को उनको पराजित किया। अब तात्या ने बेतवा पार की और ललितपुर चले गये जहाँ राव साहब भी मौजूद थे। उन दोनों का इरादा बेतवा के पार जाने का था परंतु नदी के दूसरे तट पर अंग्रेज सेना रास्ता रोके खडी थी। चारों ओर घिरा देखकर तात्या ने नर्मदा पार करने का विचार किया। इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी।नरमदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस येाजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं।मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे।तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा।परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था।


यह समस्त जानकारी google. com से एकत्रित की गयी है .................


धन्यवाद

Thursday, April 14, 2011

क्या इन्हें परम्परावादी कहेंगे ? .......>>> संजय कुमार

आधार है वो हम सब का 
पर खुद निराधार है 
सिर्फ इसलिये कि,
हम समझौता नहीं कर सकते थोडा सा ,
अपनी सोच 
और वक़्त की मांग के बीच !
वक़्त नहीं अब वो 
जब हम
बच्चों को बुढ़ापे की 
पूँजी कहा करते थे !
यहाँ मैंने कही है बात 
तीन पीढ़ियों की ,
दुर्गत तो है बीच के दर्जे की 
पर यह दुर्गत 
खत्म नहीं होगी 
तब तक
जब तक 
प्रथम दर्जे यानी 
पुरानी सोच ,
वदलेगी नहीं ..
परिवार की प्रतिष्ठा 
मान , मर्यादा ,परम्परा ,
क्या चार दीवारी के अन्दर ही रहकर 
निभाई जा सकती है ?
क्या औरत की पर्दाप्रथा  ही है 
मान, मर्यादा का स्तम्भ ?
क्या ये प्रथा  
जीवन , देश और विश्व की 
और अधिक प्रगति में वाधा नहीं है ?
और वैसे भी जो परम्परा ,
वदलती नहीं वक़्त के साथ 
वो सड़ने लगती है ! 
दुर्गत तो सबसे बड़ी उनकी है 
जो फसे हुए हैं दोहरी मानसिकता वालों के बीच 
यानी जीवन की लगाम भी 
उन्हीं के हांथों में है 
वो जो किसी के लिए 
वक़्त के साथ वदले हैं 
और किसी के लिए नहीं !
क्या इन्हें परम्परावादी कहेंगे ?


प्रिय पत्नि " गार्गी " की कलम से 

धन्यवाद 

Tuesday, April 12, 2011

क्या आप हैं मर्यादा पुरुष ? जय श्रीराम .....>>> संजय कुमार


प्रिय साथियों को रामनवमी पर्व की ढेरों बधाइयाँ एवं शुभ-कामनाएं


आज है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म दिन ! भगवान राम की कथा हम त्रेतायुग से लेकर आज तक सुनते आए हैं ! किन्तु जब भी इस कथा को सुनते हैं या देखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे ये कल की ही बात हो सभी किरदार , सभी पात्र आज भी हमारे आस-पास मौजूद है ! बुराई को समाप्त करने के लिए आस-पास उपस्थित रावणों से दिन - प्रतिदिन का युद्ध ! अगर वदला है तो राम और उनके आदर्श , वदली है मित्रता और उसका महत्त्व ! वदल गया छोटे-बड़े होने का भाव ! सच्ची भक्ति और ईमानदारी , बाकि सब कुछ वैसा ही है जैसा त्रेतायुग में था ! इतने सारे वदलाव के बावजूद , आज भी हम भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलने की कोशिश करते हैं या चल रहे हैं ! जिसने भी भगवान राम के आदर्शों को अपनाया और उनका पालन किया वो व्यक्ति अपने आप में सम्पूर्ण एवं परिपक्व इंसान हैं ! एवं एक मिशाल है आज कलियुग में ! आज देश को ऐसे ही मर्यादा पुरुषों की जरूरत है ! भगवान राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में ऐसे अनेकों कार्य किये हैं , जिनका हमें अपने इस जीवन में अनुशरण करना चाहिए ! हम लोग उनका अनुशरण कहीं ना कहीं करते तो हैं किन्तु उन पर द्रण नहीं रहते ! भगवान राम को सत्यवादी राजा और मर्यादा पुरुष के रूप जाना जाता है ! उनका सबसे बड़ा व्यक्तित्व यही था कि , वह एक राजा होते हुए अपने आप को एक साधारण व्यक्ति मानते थे ! वह एक अच्छे राजा के साथ साथ एक अच्छे पुत्र, पति, भाई, एवं मित्र के रूप में जाने जाते हैं ! जिस तरह भगवान राम ने अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए वन जाना स्वीकार किया ठीक उसी प्रकार हमें आज अपने पिता का मान रखना चाहिए ! किन्तु इस देश में आज कई वृद्ध पिताओं की क्या हालत है, ये हम अच्छे से जानते हैं , मजबूर ,लाचार वृद्ध आश्रमों में रहने को मजबूर ! अगर आप अपने पिता का मान रखते हैं उनका सम्मान करते हैं , तो आप वाकई में मर्यादा पुरुष की श्रेणी में हैं ! जिस तरह राम ने बड़ा भाई होते हुए भी अपने छोटे भाई भरत को सब कुछ देने में जरा सी भी आनाकानी नहीं की और सब कुछ सहर्ष स्वीकार कर लिया ठीक उसी तरह आज हमें इस तरह बड़ा होने का भाव अपने अन्दर रखना चाहिए ! किन्तु ये कलियुग है , आज भाई , भाई का सबसे बड़ा दुश्मन है , आज भाई , भाई का गला काट रहा है ! यदि आप अपने भाई के प्रति अपनत्व का भाव रखते है , तो आप है मर्यादा पुरुष ! वह एक अच्छे मित्र थे जिन्होंने अपनी मित्रता के वचन को हर हाल में पूरा किया ! किन्तु आज इंसान मित्र बनकर अपने ही मित्र की पीठ में छुरा घोंप रहा है ! आज सिर्फ मतलब के लिए रह गयी है मित्रता ! क्या आपने कभी आपने मित्र का मान-सम्मान किया ? यदि किया है तो आप हैं मर्यादा पुरुष ! भगवान राम ने जिस तरह बुराई को ख़त्म करने के लिए १४ बर्ष का वनवास भोगा और रावण का सर्वनाश किया ठीक उसी तरह हमें अपने आस - पास व्याप्त बेईमानी , भ्रष्टाचार , लूट-खसोट जैसी रावण रुपी बुराइयों को दूर करना होगा ! मैं भी भगवान राम की तरह मर्यादा पुरुष बनाना चाहता हूँ ! आप भी अपने आप को दिल से टटोलकर देखें, आपके अन्दर भी एक मर्यादा पुरुष है ! क्योंकि आप भी अपने माता - पिता का मान रखते है ! आप भी मन में बड़े होने का भाव रखते हैं और छोटो को प्यार करते हैं ! आप भी एक अच्छा मित्र बनने का माद्दा रखते हैं और आप भी मित्रता की कसौटी पर खरे उतर सकते हैं ! आप भी अपने आस-पास की हर बुराई को दूर करना चाहते है ! एवं सत्य के मार्ग पर चलना चाहते है ! सबसे पहले हमें अपने अन्दर की बुराई को खत्म करना होगा , अपने अन्दर से " मैं " और " अहं " को नष्ट करना होगा ! बड़े होने का भाव रखना होगा ! हर कसौटी पर खरा उतरना होगा ! अगर ये सारे गुण आपके अंदर होंगे तो आप कहलायेंगे सच्चे मर्यादा पुरुष ! आज हम सब मिलकर ये कसम खाएं की हम अपने जीवन में हमेशा भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अनुशरण करेंगे ! और बनेंगे मर्यादा पुरुष ! क्या आप हैं मर्यादा पुरुष ?

जय श्रीराम ...... ...................जय श्रीराम ........................ जय श्रीराम

धन्यवाद

Friday, April 8, 2011

मंदिर, मस्जिद में होते पाप और चुप्पी साधे भगवान ....>>> संजय कुमार


धर्म और आस्था का अंतिम और सबसे बड़ा केंद्र भगवान का घर जिसे हम मंदिर ,मस्जिद गुरुद्वारा और चर्च के नाम से जानते हैं ! यहाँ पर इंसान अपनी हजारों ख्वाहिशों की पूर्ती , मनोकामना और आस लेकर आता है और ईश्वर के समक्ष अपनी विनती और प्रार्थना करता है ! इंसान छोटा हो या बड़ा , अमीर हो या गरीब , उच्च जाति का हो या निम्न , भगवान की नजर में सब एक हैं ! हाँ हमने जरुर भगवान को श्रेणी में बदल दिया है ! अमीरों के भगवान् और गरीबों के भगवान् ! ( गरीब तो तभी भगवान के पास जाता है जब वो दुखी बीमार और परेशानियों से त्रस्त होता है , अमीर भी तब जाता है जब उसे भगवान की कभी याद आ जाती है ! खैर जाने देते हैं ! यहाँ जिस विषय पर मैं आपसे बात करना चाहता हूँ उस बात पर आते हैं ! इंसान अपने आप को सिर्फ एक जगह सुरक्षित मानता है और वो जगह है , ईश्वर का द्वार मंदिर और मस्जिद ! किन्तु इस कलियुग में इंसान आज कहीं भी सुरक्षित नहीं है ! ताजा घटना ( ग्वालियर ) की है जहाँ एक कामुक , दुराचारी और इंसानियत के नाम पर कलंक एक व्यक्ति ने एक सात बर्षीय मासूम बालिका के साथ बलात्कार जैसा घिनौना अपराध कर दिया और वो भी एक मस्जिद के अन्दर ले जाकर ! मासूम बच्ची रोती बिलखती रही किन्तु उस वहसी इंसान के हांथों से वह ना बच सकी ! उस मासूम पर उसे दया तक नहीं आई ! यह सब कुछ हुआ ईश्वर के सामने , उस ईश्वर के सामने जिस पर हम आज भी कहीं ना कहीं आस लगाये रहते है ! आज भी ईश्वर चुप्पी साधे बैठा रहा ! यह कोई एक अकेली घटना नहीं है ! इस तरह की घटनाएं अब आम हो गयी हैं फिर चाहे मंदिर हो या मस्जिद , यहाँ पर भी पाप,अत्याचार और दुराचार जैसे इंसानियत को शर्मसार करने वाले कार्य हों रहे हैं ! कुछ दिनों पहले की एक घटना है ! एक 8 बर्षीय बालक प्रतिदिन की तरह मंदिर गया और एक घटना उस बालक के साथ घट गयी , उस मंदिर के अधेड़ पुजारी ने प्रसाद देने के बहाने, मंदिर के समीप बने कमरे में बालक को ले गया और उसके साथ अप्राकृतिक दुष्कृत्य कर डाला ! कहा जाता है इंसान की हवस कुछ नहीं देखती उम्र , रिश्ते -नाते , सम्बन्ध , अपना-पराया , पाप-पुन्य , अच्छा-बुरा यहाँ तक की इंसानों ने जानवरों तक को नहीं छोड़ा ! आज देश में मासूमों की क्या स्थिती है ? यह हम सब जानते हैं देश , शहर , गाँव , क़स्बा , मोहल्ला यहाँ तक की अपने घरों में भी मासूम सुरक्षित नहीं है ! कभी पिता ,चाचा , मामा , काका, बाबा, भाई सबने मिलकर हवस में अंधे होकर इंसानी रिश्तों को तार-तार किया ! जब बच्चे - बच्चियां अपने घर और मंदिर तक में सुरक्षित नहीं है तो फिर कहाँ सुरक्षित है ? धर्म के नाम पर होने वाली अश्लीलता , मंदिर -मस्जिद, गुरुद्वारा - चर्च पर होने वाली लड़कियों और महिलाओं से छेड़छाड़ सब कुछ जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है ! इस तरह का अपराध करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए वो भी बीच चौराहे पर आम जनता के सामने !


क्या मंदिर-मस्जिद में बैठा भगवान उसके घर में होने वाले पाप से हमारी रक्षा करेगा या यूँ ही चुपचाप बैठे देखता रहेगा ?


धन्यवाद

Tuesday, April 5, 2011

युवाओं अगर समय हो तो जाग जाओ ......>>> संजय कुमार


सर्वप्रथम हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्र की सभी ब्लोगर साथियों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !


आज हिन्दू नवबर्ष का प्रथम दिवस है ! आज से हम लोगों का नवबर्ष प्रारंभ होता है ! यह बात कितने लोग जानते हैं ! यह एक प्रश्न है जिसका जबाब हमारे देश के युवाओं के पास नहीं होगा ! क्योंकि उनके लिए तो प्रथम जनवरी ही नवबर्ष होता है ! हमारे लिए भी होता है ! क्योंकि हम लोग तो सिर्फ इतना ही जानते कि , जब केलेंडर पर बर्ष बदलता है तभी नवबर्ष होता है ! आज कई लोगों ने मुझे नववर्ष की बधाई दी ! जब मैंने ये महसूस किया कि ज्यादातर बधाई देने बालों में वो लोग हैं जिनकी उम्र लगभग ४०-५० बर्ष से ऊपर है ! मुझे ये देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि इन बधाई देने वालों में हमारे युवा वर्ग का दूर-दूर तक कहीं कोई नाम नहीं था ! तब मुझे ये अहसास हुआ कि आज का युवा तो पूरी तरह से सोया हुआ है जागरूक नहीं वो भी अपने धर्म और अपने संस्कारों के प्रति ! आज का युवा पूरी तरह भेड़चाल में शामिल है ! वो तो तभी जागता है जब उसे जगाया जाता है ! वर्ना वो तो आज भी सोया हुआ है ! आज का युवा हमेशा भेड़चाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करता है ! आज के युवा वर्ग को तो ये तक नहीं मालूम की आज हमारे आस-पास हो क्या रहा है ? ये समाज ये देश और स्वयं वह कहाँ जा रहा है ? क्यों हम हर जगह पिछड़ रहे हैं ? क्यों आज बुरी ताक़तें हम पर राज कर रहीं हैं ? आज का युवा तो सिर्फ अपनी मस्ती में मस्त है ! आज देश में एक बहुत बड़ा युवा वर्ग जाग्रत नहीं है ! आज अगर NEW-YEAR या VALENTINE या अन्य कोई HIGH-PROFILE गतिविधि हो तो वहां आप युवाओं का जोश देखिये , लड़ने झगड़ने से लेकर मरने मारने तक सब कुछ करने को तैयार रहते हैं ! काश ये जज्बा देश की समस्याओं को दूर करने में इस्तेमाल करते या थोड़ी सी जागरूकता दिखाते तो आज जो विकराल समस्याएँ हमारे सामने हैं वो ना होतीं ! अगर किसी युवा से ये पूंछा जाये कि आज मंहगाई दर क्या है ? आज देश में जो अराजकता फ़ैली हैं उसका क्या कारण है ? तो इसका जबाव हमारे युवाओं के पास नहीं है ! अगर फिल्मों को लेकर किसी बात पर विवाद हुआ है तो इस में सबसे बड़ा कारण हमारा युवा वर्ग ही है ! क्योंकि कई लोग इन युवाओं का सहारा लेकर देश ऐसी स्थिती और माहौल उत्पन्न करते हैं ! आज अगर हमारा युवा वर्ग जागरूक होता तो , ना खड़ी होती ये हिन्दू - मुस्लिम नाम की दीवारें , देश में फैला आतंकवाद , जातिवाद , बिगड़ते हालात , उंच- नीच का भेद -भाव , आज अपनी चरम सीमा तक फैला भ्रष्टाचार और बड़े-बड़े घोटाले और ना जाने कितनी ऐसी समस्याएँ हैं जो आज देश में हमारे समाज में घर कर गयी हैं ! ऐसा नहीं है की अनपढ़ है इसलिए जागरूक नहीं है बल्कि इस देश में तो पढ़ा-लिखा युवा भी जागरूक नहीं है ! ये सब इसलिए लिखा है अगर युवा चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है क्योंकि युवाओं में शक्ति , जोश , जज्बा सब कुछ है ! युवा वर्ग चाहे तो अपनी थोड़ी सी जागरूकता से देश ना सही कम से कम अपने आस पास के माहौल को तो सुधारने की कोशिश कर सकता है ! कहा जाता हैं कि युवा संगठन में बहुत ताक़त होती है ! अगर युवा चाहे तो कुछ भी कर सकता क्योंकि इनका संगठन एक बहुत बड़ी संख्या में होता है ! अगर युवा जागरूक हो जाएँ तो देश के ढोंगी और धर्म के नाम पर अपनी रोटियां सेंकने वाले ठेकेदारों को इस देश में अपना ये ढोंग ना होने दें ! अगर युवा जागरूक हो जाये तो इस देश की सूरत बदलने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा ! फिर से ये देश " सोने की चिड़िया " कहलाने लगेगा !


जागो जागो देश के युवाओं जागो ............. आप तो देश का भविष्य हैं ............... अपना भविष्य सवारें और देश भी !


धन्यवाद

Sunday, April 3, 2011

खेले हम जी जान से, और बन गए चैम्पियन, बहुत बहुत बधाई ....>>> संजय कुमार

कुछ दिनों पहले " आशुतोष गोवारीकर " की एक फिल्म आई थी जिसका नाम था " खेलें हम जी जान से " अभिषेक बच्चन , दीपिका पादुकोण अभिनीत ! यह फिल्म कब आई कब चली गयी किसी को पता तक ही नहीं चला ! लगता है जी जान से नहीं खेले ! फिल्म आधारित थी क्रांतिकारी प्रष्ट-भूमि पर ! भले ही इस फिल्म के क्रांतिकारी ना चले हों , किन्तु आज पूरी भारतीय टीम जी जान से खेली है और इसका फल हमारे सामने ! "वर्ल्ड-कप" भारत की झोली में आने से कोई रोक नहीं सका ! इस बार फिर १९८३ की तरह उम्मीदें पूरी हुई हैं ! आज एक भारतीय होने पर हम गर्व करते हैं ! गर्व करते हैं अपनी टीम पर ! इस बार हमारी टीम ने विरोधी टीमों को ऐसा " दिया घुमाके " कि, विरोधी टीमों के छक्के छूट गए ! अच्छे अच्छे धुरंधर हमारे सामने ना टिक सके ! सभी विश्व-विजेताओं को धुल चटाकर हम विश्व-विजेता बन गए ! हम मुबारकबाद देते हैं भारतीय टीम को , टीम के हर सदस्य को जिन्होंने आज देश और देशवासियों का नाम विश्व में रौशन किया है ! बधाई बहुत बहुत बधाई सचिन तेंदुलकर को तुमने जो सपना १० बर्ष की उम्र में देखा था , अब सपना पूरा हुआ , इसके असली हक़दार हो तुम ! वीरेंदर सहवाग आज भी तुम्हारे नाम का खौफ विरोधियों को दहला देता है ! बधाई " मुल्तान के सुलतान " महेंद्र सिंह धोनी जो कपिल देव ने १९८३ में किया था वो इतिहास तुमने दोहराया है " माही " तुस्सी ग्रेट हो पाजी ! गौतम गंभीर तुमने मुश्किल वक़्त में असली परीक्षा दी , और खेले " गंभीर " होकर ! युवराज सिंह तुम तो "छक्कों के सिकंदर" हो , माफ़ करना क्रिकेट में, तुमने दिखा दिया की असली " युवराज " तुम्ही हो , बधाई " संकट मोचन " विराट कोहली तुम अपनी जिम्मेदारी ऐसे ही निभाते रहना ! सुरेश रैना तुमने साबित कर दिया तुम्हें है टीम में " रैना " ! युशुफ पठान मौके को भुना नहीं पाए कोई बात नहीं हम जानते है तुम्हारी क्षमता को ! हरभजन सिंह सिर्फ पकिस्तान के खिलाफ ही क्यों चले कुछ करो वर्ना अब टीम के लिए दूसरा हरभजन चाहिए ! ज़हीर खान तुम अपनी गेंदबाजी में लाये हवा का बबंडर , कोई भी टिका नहीं तुम्हारे सामने ! आशीष नेहरा जो प्रदर्शन वर्ल्ड- कप २००३ में किया , वो इस बार नहीं कर पाए अब सन्यास ले लो तो अच्छा है ! एस। श्रीसंथ " बिल्ली के भाग से छींका टूटा " इस कहावत को चरितार्थ नहीं कर पाए , क्योंकि तुम्हें जगह मिली थी प्रवीण कुमार की ! पियूष चावला तुम्हें मौका मिला किन्तु साबित नहीं कर पाए " हम किसी से कम नहीं " ! मुनफ पटेल तुम भी ऐसा कुछ करते की लोग तुम्हें भी जान पाते ! आर। अश्विन तुम्हें मौका मिला और सफल भी हुए , ऐसे ही अपना काम बखूबी निभाना ! सभी खिलाडियों के साथ हम बधाई देते हैं उन सभी को जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय टीम को मजबूती प्रदान करते रहे !समस्त देशवाशियों को और भारतीय टीम को विश्व चैम्पियन बनने की बहुत बहुत बधाई धन्यवाद

Friday, April 1, 2011

प्रिय साथियों , ये मेरी अंतिम पोस्ट है ! हो सके तो मुझे माफ़ करना ...... >>> संजय कुमार

प्रिय ब्लोगर साथियों मैं पिछले १ बर्ष से लिख रहा हूँ ! मैंने क्या लिखा और क्या नहीं लिखा ये तो आप सभी अच्छे से जानते हैं ! किन्तु अब मेरे पास लिखने को कुछ भी नहीं बचा है ! मुझे लगता है कि , मैं अब तक सब कुछ लिख चुका हूँ जो मुझे आता था या जो मैंने आप लोगों से सीखा था ! मैंने आज तक बहुत कुछ लिखा और ऐसा जो कुछ लोगों को बहुत अच्छा लगा और कुछ लोगों को कुछ खास नहीं लगा , फिर भी मैं बराबर लिखता चला गया वो भी बिना रुके बिना थके ! कभी अपने व्यंग्य से आप लोगों को हँसाने की कोशिश की तो कभी अपने विचारों से आप लोगों को अवगत कराया ! कई बार अपने सन्देश आप लोगों तक पहुंचाए , वो सन्देश जो इंसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ! कभी भ्रष्टाचार पर लिखा तो कभी राजनीति पर , कभी नेता मेरे निशाने पर रहे तो कभी अभिनेता , कभी बच्चों पर लिखा तो कभी माता-पिता पर , कभी बच्चों की गलतियाँ और उनकी स्थिती को बताया तो कभी आज के युग में माँ-बाप की दयनीय स्थिती को बताया , कभी "कुत्तों" और इंसान के बीच अंतर को मुद्दा बनाया तो कभी गरीबी को , कभी संस्कारों की बात की जिन पर आज विदेशी संस्कार भरी पड़ते दिखे , तो कभी आधुनिकता को लेकर आप लोगों को आगाह किया ! कभी प्रिय पत्नि गार्गी की कवितायेँ आप लोगों तक पहुंचाई तो कभी अपनी कवितायेँ और लघु कथा ! यह सब आप लोगों ने पसंद किया और आप लोगों ने मेरे लेखन पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से मेरा मार्गदर्शन किया जिसे में कभी भूल नहीं सकता ! कभी मुझे लगा की मैंने अच्छा लिखा किन्तु मुझे ज्यादा टिप्पणीयाँ नहीं मिली ! आप लोगों के कारण मेरी कई पोस्ट चर्चामंच पर लगायी गयीं जो किसी भी छोटे-मोटे ब्लोगर के लिए फक्र की बात है , तो कुछ लेख अख़बार और पत्रिकाओं में भी छपे जिन्हें देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई ! सब आप लोगों के प्रेम और स्नेह के कारण , किन्तु अब मेरे पास कोई मुद्दा नहीं बचा जिस पर मैं कुछ लिख सकूँ ! अब मैं मुद्दे और विषय ढून्ढ-ढून्ढ कर थक गया हूँ किन्तु विषय नहीं मिल रहे है ! मैंने कई जगह जाकर विषय तलाशे , कभी विषय की तलाश में यहाँ भटका तो कभी वहां , किन्तु विषय हाँथ नहीं लगे , कभी पागलों की तरह गुमसुम और वैठे - वैठे सोचते रहना , अखबारों और पत्रिकाओं को भूखों की तरह चाटना , तो कभी पागलों और भिखारियों को पागलों की तरह देखना तो कभी होटलों पर काम करने बाले बच्चों की जिंदगी के बारे में जानना , कभी मंदिरों पर धर्म प्रेमी बंधुओं की जगह मजनुओं को देखना और पता नहीं क्या क्या किया इस लेखन के लिए विषय तलाशने में ! कभी बादलों को देखा , सूरज , चाँद , तारे , प्रक्रति , नदियाँ , पहाड़ सब कुछ देखा , कभी चिड़ियों की चहचहाहट पर लिखने की कोशिश की तो कभी कौवे की कांव-कांव पर , किन्तु सब कुछ व्यर्थ , मैं क्या ? सोचता हूँ मुझे इस लेखन से आखिर क्या मिला ? लेखन से मैंने कौन से झंडे गाढ़ दिए कौन सा ऑस्कर मिल गया ! आखिर क्या मिला मुझे ? मन की संतुष्टि , आत्मा को चैन , अपने दिल में छुपे गुस्से को बाहर किया या फिर वगैरह - वगैरह , ये सब कुछ किताबों और फिल्मों में अच्छा लगता है किन्तु वास्तविक जीवन में नहीं ! लेकिन में अब लिखना नहीं चाहता हो सके तो मुझ अनाड़ी , नासमझ और पागल इंसान को पागल और बेबकुफ़ समझकर माफ़ कर देना ! अब मेरे लेखन को आप लोग और नहीं पढ़ सकेंगे............. मुझे माफ़ करना इतना लिखने के बाद मुझे एक गाना याद आता है ! आप सभी लोगों को भी आता होगा ........ अप्रैल फूल बनाया ,क्यों आपको गुस्सा आया , इसमें मेरा क्या कसूर .......... जमाने का कसूर जिसने ये दस्तूर बनाया ! आज मैंने भी आपको .......अप्रैल फूल बनाया ( 1st April ) ( मुर्ख - दिवस ) की मूर्खतापूर्ण बधाई धन्यवाद