Friday, October 26, 2012

बचपन और यादें ......... >>> गार्गी की कलम से

किसी आलौकिकता से 
कम नहीं होते 
बचपन छुटपन के दिन ,
बहुत ज्यादा तड़पा जाता है मुझे 
वर्तमान और बचपन की 
यादों का संगम 
" माँ " आपकी गोद सा सुकून 
ईश्वर की पूजा में भी नहीं है शायद 
अब जब भी आपकी याद आती है 
तो ईश्वर में आपका 
चेहरा , कर , कदम 
उकेरता है , ये मन
" भईया " अपने बड़े बेटे में 
आप दिखाई पड़ते हैं मुझे 
और छोटे में खुदकी सी 
नादानियाँ नजर आती हैं मुझे 
" माँ " आपका वो छोटा सा कमरा , जहाँ 
बरसात में हमें , गोद में लेकर 
बैठ जाया करती थी वहां 
आज उस कमरे के आगे 
सारा जहाँ छोटा नजर आता है मुझे !
मैं तो चाहती हूँ कि , 
बचपन भूल जाऊं तुझे 
पर हर वार तुझे भूलने में 
नाकाम हो जाती हूँ मैं !

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

Tuesday, October 23, 2012

विजयदशमी पर हम सभी को विजय चाहिए ... ( दशहरा पर्व ) ....... >>> संजय कुमार

आप सभी साथियों को विजयदशमी, दशहरा पर्व की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
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जैसा की हम जानते हैं कि , विजयदशमी , दशहरा , रावण दहन पर्व हम विजय उत्सव के रूप में मनाते हैं ! असत्य पर सत्य की जीत , अधर्म पर धर्म की जीत, बुराई पर अच्छाई की जीत , नारी सम्मान की जीत , के रूप में कई बर्षों से मनाते आये हैं और आगे भी मनाते रहेंगे क्योंकि विजयदशमी का पर्व तो सिर्फ एक दिन मनाया जाता है ! क्या रावण का अंत करने के साथ ही झूंठ -बुराई , अधर्म और अत्याचार  का अंत हो गया ? क्या बुराई रुपी रावण ( पुतला ) का दहन करने से सब कुछ खत्म हो जायेगा ? जी नहीं कुछ भी खत्म नहीं होगा ! आज भी हमारे आस-पास सौ सिरों वाले अनेकों रावण उपस्थित है जो " रामायण " के रावण से कहीं अधिक ताकतवर और शक्तिशाली हैं ! रावण में शायद उतनी बुराइयाँ नहीं थीं जितनी कि आज के रावणों में है ! दशानन लंकेश तो अपनी शक्ति के मद में चूर था , उसे सच का ज्ञान था उसे पता था कि " श्रीराम " के हांथों उसका अंत होना है फिर भी उसने बुराई और अधर्म का सम्पूर्ण नाश करवाने के लिए ऐसा किया ! आज अगर हमें सही मायने में विजयदशमी का पर्व और उसकी उपयोगिता को समझना है तो हमें अपने आसपास व्याप्त झूंठ-फरेब , बुराई , असत्य , पाप-दुरचार, को मिटाना होगा ! हमें अपने आस-पास का माहौल अच्छा बनाने के लिए , अपनों की ख़ुशी के लिए , अपना जीवन सुखमय बिताने के लिए अपने अन्दर से अहम् , काम , क्रोध , लालच , मोह को पूरी तरह त्यागना होगा ! क्योंकि ये भी दशानन , रावण का ही एक रूप है ! जिस तरह प्रभु " श्रीराम " ने रावण का अंत कर इस दुनिया से असत्य , अधर्म और बुराई का अंत किया था ठीक उसी प्रकार अब हम सबको अपने जीवन में " राम " बनना होगा और इन समस्त बुराइयों का अंत करना होगा ! आज इस देश में ऐसे रावणों का बोलबाला है जिनके अंत के लिए कई राम प्रयासरत है किन्तु इनकी शक्ति देखकर तो ऐसा लगता है जैसे इन्होने " अमृतपान " किया हो , जैसे कभी इनका अंत ही नहीं होगा , हमें इन पर कभी विजय प्राप्त नहीं होगी ! ये आज रावण है जिसे हम " भ्रष्टाचार " के नाम से जानते हैं ! इस भ्रष्टाचार रुपी रावण से इसके अनेकों शीश उत्पन्न हुए है ....... गरीबी ,  बेरोजगारी , कुपोषण , घोटाले , बेईमानी , आतंकवाद , नक्सलवाद और सबसे बड़ा रावण मेंहगाई जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया ...... क्या इस विजयदशमी पर्व पर हमें इन रावणों पर विजय प्राप्त होगी ? यदि इनमें से हम किसी भी एक रावण पर विजय प्राप्त कर लें तभी कहलायेगा सही मायने में विजयदशमी , दशहरा पर्व !   
क्या आप रावण का दहन करने से पहले अपने अन्दर के रावण का दहन करेंगे ? क्या आप चहुँ ओर व्याप्त रावणों का अंत कर उन पर विजय प्राप्त करेंगे ?  यदि ऐसा करेंगे तो सच में आप कहलायेंगे विश्व विजेता 

आप  सभी को विजयदशमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं ढेरों अनेकों शुभ-कामनाएं

जय श्रीराम ------ जय श्रीराम ----------- जय श्रीराम 



धन्यवाद

Saturday, October 20, 2012

सड़क छाप मंजनू ....... और .. और .. ...>>> संजय कुमार

हमारे यहाँ एक बहुत पुरानी कहावत है ..... " जो पकड़ा गया वो चोर है ....और जो ना पकड़ा वो .... पता नहीं .... शायद इसी तरह की कोई कहावत है ........ ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ कि , क्योंकि मैं यहाँ ऐसे प्रेमियों का जिक्र कर रहा हूँ ... जो लुक-छिप कर प्रेम करते है और इस बात का विशेष ध्यान रखते हैं कि , कोई उन्हें ऐसा करते देख ना ले..... वर्ना ... वर्ना बहुत कुछ हो जाता है ...... जो नहीं पकड़े जाते या नहीं पकड़े गए वो प्रेमी और जो पकड़ा गया वो कहलाया मंजनू ..... अरे बही लैला का मंजनू ..... माफ़ कीजिये आजकल मंजनू - बंजनु  वाली बात कोई नहीं करता ... क्योनी आजकल प्रेम करने के तरीके जो  बदल गए हैं .. खैर हम मुद्दे की बात पर आते है ... आज का मुद्दा है हमारे देश के सड़क छाप मंजनू ..  
मंजनू , नाम सुनते ही किसी सड़क छाप आशिक का ख्याल हमारे मन  में आता है ! वह युवा (लड़का ) जो आपको सड़कों पर आवारागर्दी करते नजर आते हैं , बेलगाम , लापरवाह और माँ-बाप की बातों को अनसुना करने वाले अपनी मस्ती में मस्त लड़के ,  इन्ही में से ही ज्यादा संख्या में सड़क छाप मंजनू भी होते हैं ! हिन्दुस्तान में हजारों किस्से कहानियां भरे पड़े हैं  इन मजनुओं और इनकी प्रेम कहानी से उदहारण ... जैसे लैला-मंजनू , सोहनी-महिवाल , हीर-राँझा और भी बहुत हुए हैं , लेकिन हिंदुस्तान में तो यही ज्यादा  Famous हैं , और इन्ही को लेकर आज के कई युवाओं को ये मंजनू नाम दिया जाता  है ! ये मंजनू आपको हर देश में मिलेंगे , किन्तु भारत में इनकी संख्या लाखो-करोड़ों में है ! ये आपको कहीं भी , कभी भी  देखने को मिल जायेंगे , स्कूल, कॉलेज , पिकनिक स्थल , शादी-पार्टी , मेले , पार्क, ट्यूशन के अन्दर कोचिंग के बाहर, लगभग सभी जगह ! आजकल नवरात्र का त्यौहार चल रहा है तो इनकी संख्या वर्तमान में ज्यादा हो जाती है ! इस देश में कई स्पॉट तो ऐसे हैं जो  इन मंजनुओं के कारण ही प्रसिद्ध हैं ! लेकिन एक जगह और है जहाँ आजकल इनकी संख्या आम जगह से कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रही है , और वो जगह है " मंदिर " जी हाँ यह बात बिलकुल सही है , आज कल हमारे देश में " नवरात्री " गरबा "  का त्यौहार पूरे जोर-शोर से मनाया जा रहा है . और इन्ही मंदिरों की आड़ में आज इन मंजनुओं का प्रेम , परवान चढ़ रहा है ! क्योंकि ये तो वो  जगह है , जहाँ किसी के भी आने-जाने पर कभी कोई पावंदी और रोक-टोक नहीं होती ! मंदिरों पर जब ऐसे युवा  ( मंजनू- टाइप ) आते  है और सुबह - शाम  दोनों वक़्त आते हैं , तो  हमें लगता है कि , माता की भक्ति के लिए आया है , किन्तु आप अगर गौर से देखें तो आप महसूस करेंगे , की इनकी नजरें किसी ना किसी लैला की तलाश में होती हैं !  " काश यहाँ तो कोई हमें लाइन दे दे और हमारी भी फिल्मों के जैसे "लव-स्टोरी " बन जाये ( मन में इस तरह के ख्याल उमड़ना कोई नयी बात नहीं ... ये उम्र ही ऐसी है ) ! आजकल मंदिरों पर जरुरत से ज्यादा भीड़ होती है और इसी भीड़ में होते हैं मंजनू , पाकेटमार और भगवान् के सच्चे भक्त .... कुछ ऐसे भी युवा इन दिनों में  इन मंदिरों पर आते -जाते हैं , जिनका  ना तो ईश्वर भक्ति और मंदिरों से दूर दूर तक कोई लेना देना होता है ! कुछ ऐसे भी इन मंदिरों पर देखने को मिल जायेंगे जो शायद कहीं और मंजनू गिरी करने और अपनी प्रेमिकाओं से मिलने से घबराते हैं , किन्तु यहाँ पर बड़ी आसानी से मिल लेते हैं वो  भी बिना रोक-टोक और बिना किसी के शक किये हुए ! सभी मंजनुओं के लिए ये नवरात्र के नौ दिन बहुत मायने रखते हैं ! जितना इन्तजार इनको अपनी परीक्षाओं का नहीं रहता उससे कहीं ज्यादा इन्तजार इनको इन दिनों का रहता है ! ( विशेष शारदीय नवरात्र का )

मेरा ऐसा मानना है ... कुछ भी हो कम से कम हमारा आज का भटका हुआ युवा किसी बहाने से मंदिर तो जाता है ! भगवान् के सामने शीश तो झुकाता है ! वर्ना आज का युवा तो अपनी मस्ती में ही मस्त है ! आज का ज्यादातर युवा अपने आस-पास के माहौल और समाज की गतिविधियों से बहुत दूर हैं ! आज के युवा एक ऐसे दुनिया में जीते है जहाँ ना तो प्रेम - स्नेह, संस्कार और अपनेपन का कोई महत्त्व है क्योंकि आज देश में " रेव पार्टियाँ  " रेन डांस  " और " पव "कल्चर का चलन तेजी से बढ़ रहा है ! ऐसे  युवाओं ने ना तो अपने जीवन में कोई सिद्धांत बनाये हैं और ना ही कोई लक्ष्य ! बस चकाचौंध भरी दुनिया को ही अपना भविष्य समझ रहे हैं ! इस चकाचौंध भरी दुनिया में कई युवा अपना भविष्य भी बिगाड़ रहे हैं ! सिगरेट , शराब , शबाब , ड्रग्स और अन्य नशीली बस्तुएं आज इनके मुख्य शौक के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं ! यह बात अब छोटे - छोटे गाँव , कस्बों , शहरों और महानगर में किसी संक्रामक बीमारी के जैसे फ़ैल रही है , या फ़ैल चुकी है ! 

हमें ध्यान देना होगा अपने बच्चों पर की आज वह क्या कर रहे हैं ? किस हालात में जी रहे हैं ? उन्हें क्या चाहिए ? और उन्हें हम क्या दे रहे हैं ? या उन्हें क्या मिल रहा है ? आज हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ सच्चा प्रेम कम ही देखने को मिलता है ! यदि आपके बच्चे किसी से सच्चा प्रेम करते हैं और यदि आपको लगता है कि , आपके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हांथों में है ! तो अंतिम निर्णय आपका होगा !

मेरी इस बात से कई सड़क छाप मंजनू मुझे गलियां भी देना चाह रहे होंगे , किन्तु में खुश हूँ , कि कभी हम भी उनकी तरह मदिरों पर किसी लैला की तलाश में गए थे ! वहां लैला तो नहीं मिली , परन्तु ईश्वर का आशीर्वाद जरूर मिला !

जय माता दी ............ जय माता दी .............जय माता दी ..........जय माता दी 

धन्यवाद
संजय कुमार

Tuesday, October 16, 2012

कलियुग के नौ राक्षसों का अंत होना ही चाहिए ....... " जय माता दी " ....>>> संजय कुमार

सभी साथियों को परिवार सहित नवरात्र पर्व की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं
हिन्दू पंचांग के आश्विन माह की नवरात्रि शारदीय नवरात्रि कहलाती है। विज्ञान की दृष्टि से शारदीय नवरात्र में शरद ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं और रात्रि बड़ी। वहीं चैत्र नवरात्र में दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि घटती है, ऋतुओं के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर न पड़े, इसीलिए साधना के बहाने हमारे ऋषि-मुनियों ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया।संभवत: इसीलिए कि ऋतु के बदलाव के इस काल में मनुष्य खान-पान के संयम और श्रेष्ठ आध्यात्मिक चिंतन कर स्वयं को भीतर से सबल बना सके, ताकि मौसम के बदलाव का असर हम पर न पड़े। इसीलिए इसे शक्ति की आराधना का पर्व भी कहा गया। यही कारण है कि भिन्न स्वरूपों में इसी अवधि में जगत जननी की आराधना-उपासना की जाती है।नवरात्रि पर्व के समय प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ जाता है। ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का साक्षात् रूप यही है। प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ वातावरण सुखद होता है। आश्विन मास में मौसम में न अधिक ठंड रहती है न अधिक गर्मी। प्रकृति का यह रूप सभी के मन को उत्साहित कर देता है । जिससे नवरात्रि का समय शक्ति साधकों के लिए अनुकूल हो जाता है। तब नियमपूर्वक साधना व अनुष्ठान करते हैं, व्रत-उपवास, हवन और नियम-संयम से उनकी शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक शक्ति जागती है, जो उनको ऊर्जावान बनाती है।इस काल में लौकिक उत्सव के साथ ही प्राकृतिक रूप से ऋतु परिवर्तन होता है। शरद ऋतु की शुरुआत होती है, बारिश का मौसम बिदा होने लगता है। इस कारण बना सुखद वातावरण यह संदेश देता है कि जीवन के संघर्ष और बीते समय की असफलताओं को पीछें छोड़ मानसिक रूप से सशक्त एवं ऊर्जावान बनकर नई आशा और उम्मीदों के साथ आगे बढ़े।

इस देश के सबसे बड़े नौ राक्षस 

इस बार नवरात्री पर माता रानी से विनती है कि , जिस तरह आपने अनेकों दुष्ट राक्षसों का अंत कर आपने हम मानवों की रक्षा की थी ठीक उसी प्रकार आज के अनेक दानवों , राक्षसों से हमारी रक्षा करें जिनके प्रतिदिन के प्रहार से मानवजाति आज पीड़ित है ! नवरात्र के नौ दिनों में मातारानी इस देश से नौ राक्षसों का अंत कर इस देश की आम जनता का भला कर उनकी सम्रद्धि का मार्ग प्रशस्त करें ! पाप - अत्याचार - बुराई ( ये राक्षस आज घर घर में पाए जाते हैं ) , गरीबी ( आज का सबसे बड़ा अभिशाप ) , बेरोजगारी ( गरीबी की सबसे बड़ी बजह ), मेंहगाई  ( आज की मेंहगाई ने अच्छे अच्छों को गरीबों की श्रेणी में ला दिया ) , बेईमानी ( देश में इतने बेईमान हैं कि ईमानदारों को ढूँढना पड़ता है  ) , हिंसा  ( जब से हमारे अन्दर का सब्र खत्म हुआ तब से  ये राक्षस पैदा हुआ ) , घोटाले  ( अब तो ऐसा लगता है कि , इंसान का जीवन तो सिर्फ और सिर्फ घोटाले करने के लिए ही हुआ है ) , आतंकवाद  ( ये राक्षस सिर्फ बेक़सूर और मासूम लोगों की जान लेता है ) , नक्सलवाद ( शायद अपने लोगों के  द्वारा  ही फैलाया गया या बनाया गया राक्षस है जो अब अपनों को ही मार रहा है ) अंत में नौंवा और सबसे बड़ा राक्षस अगर हम इसे पहला और इन सभी का मूल कारण कहें तो गलत नहीं होगा ! क्योंकि आज देश में चारों ओर फैली अराजकता का कारण यही है जिसे हम " भ्रष्टाचार " के नाम से जानते हैं ! आज के इस राक्षस को हम  " रक्तबीज " नाम के राक्षस की तरह ही देखते हैं .. जिस प्रकार रक्तबीज के ऊपर प्रहार करने  पर उसके रक्त की बूँदें जहाँ - जहाँ जिस जगह गिरती थीं वहां उतने ही रक्तबीज और पैदा हो जाते थे ! ठीक बैसे ही ये भ्रष्टाचार नाम का राक्षस जहाँ - जहाँ जाता है वहां उससे कहीं और अधिक भ्रष्टाचारी पैदा हो जाते हैं ! इस  राक्षस नंबर एक ने  आज  पूरे देश को तबाह और बर्बाद कर दिया है यदि इसका अंत हो गया तो ये मान लीजिये सब अपने आप खत्म हो जायेगा ! अब जल्द से जल्द इस राक्षस का अंत होना चाहिए .........


जय मातादी ............. जय मातादी ...................... जय मातादी

धन्यवाद


Tuesday, October 9, 2012

क्यों मजबूर हैं बेटियां ? ......>>> संजय कुमार

जहाँ हमारे देश में गिरते हुए लिंगानुपात को देखते हुए कई प्रदेशों में सेंकड़ों " बेटी बचाओ आन्दोलन " चलाये जा रहे हैं ! कन्या भ्रूण हत्यायें रोकने के लिए दुनियाभर की धाराएँ , नियम - क़ानून बनाये जा रहे हैं ! वहीँ दूसरी ओर बेटियों पर कई अत्याचार हो रहे हैं , जो मानवता को एक बार नहीं कई बार शर्मसार कर चुके  है ! सामूहिक बलात्कार और निर्वस्त्र घुमाने की घटनाएँ अब आम बात हैं ! गुवाहाटी , नॉएडा प्रकरण  इसके ताजा उदाहरण हैं ! ऐसे मामले हमारी मानवता , इंसानियत को झझकोरने के लिए काफी हैं ! जो बेटियां अभी तक पैदा भी नहीं हुई हैं उनके लिए ना जाने  कितने अभियान चलाये जा रहे हैं , किन्तु जो बेटियां अस्तित्व में हैं और उनमें से कितनी ही बेटियां ऐसी हैं जिनका जीवन आज कष्ट में है ! कितनी ही बेटियां ऐसी हैं जो हम लोगों के होते हुए आज जिस्मफरोशी के बाजार में उतारी जा रही हैं ! हम और हमारी अंधी - बहरी सरकार हाँथ पर हाँथ धरे बैठी है ! मजबूर बेटियों के दामन को दागदार और फटते हुए  देख रही है ! मजबूर बेटियों को चाहे हमारे पडौसी मुल्क बांग्लादेश , नेपाल से तस्करी कर उनको भारत के बाजारों में बेचा जा रहा हो , या फिर हमारे गांव , कस्बों में रहने वाले गरीब , मजबूरों की बेटियों का सौदा किया जा रहा हो !  हर तरफ से बेटियों का ही शिकार किया जा रहा है ! आज देश का कोई भी शहर हो  वैश्यावृति ( जिस्मफरोशी ) जैसे घ्रणित  धंधे से अछूता नहीं है ! छोटे - छोटे कस्बों , गांवों से लेकर शहर , महानगर की पाश कालोनियों तक ये धंधा अपने पैर पूरी तरह पसार चुका है और ना जाने कितनी मासूम लड़कियां इस धंधे की बलि चढ़ चुकी हैं और ना जाने कितनी लड़कियों की इज्जत की बलि अभी चढ़नी बाकी  है ! मुंबई में छापे के दौरान 400 ग्राहक और लड़कियों का एक साथ पकड़ा जाना , दिन प्रतिदिन  वाली ख़बरें इस बात का सबूत है कि , ये देश और आज की युवा पीढ़ी ( लड़कियां ) किस ओर जा रही है या उन्हें इस ओर धकेला जा रहा है ! कभी ब्यूटीपार्लर की आड़ में , कभी किरायदार बनकर , कभी होटलों में ,कभी पार्टियों के नाम पर  इस धंधे को दलालों  द्वारा चमकाया जा रहा है , और इस काम में गरीब , मजबूर से लेकर अमीर , रसूखदार , नेता , मंत्री , पुलिस , डॉक्टर , साधू - संत सभी इस धंधे में लिप्त हैं ! उदाहरण कई हैं ! अगर इस धंधे में सबसे ज्यादा दुर्गति किसी की होती है तो वो हैं,  इस धंधे में  लिप्त लड़कियां हैं , जिन्हें पकड़े जाने पर " वैश्या " नाम के दंश को जीवनभर झेलना होता है ! आखिर क्यों मजबूर हैं इस देश की बेटियां ? ऐसे काम को करने के लिए ! इसके लिए कौन जिम्मेदार है ?  सरकार , मंत्री , अफसर या फिर लड़कियां या उनकी मजबूरी , गरीबी , जिम्मेदारी , पैसा , भूख , माँ-बाप का दबाव या हमारा सभ्य समाज या फिर इन सभी से बढकर आज की मंहगाई , भ्रष्टाचार , घोटाले , पाश्चात्य संस्कृति , हमारे संस्कारों में कमी , उनका धीरे -धीरे क्षीण होना , आज की आधुनिक चमक-दमक में खोकर अपना आपा  खो देना ..... ऐसी अनेकों  बातें हैं जिनके चलते जिस्मफरोशी जैसे धंधे फलफूल रहे हैं ! और हमारी  बेटियों को मजबूरीवश ये घिनौना काम करना पड़ता है ! कभी झूंठे प्यार के चक्कर में फंसकर ऐसे दलदल में धकेला जाता है ! कभी चंद रुपयों की खातिर माँ-बाप द्वारा बेटी का सौदा कर दिया जाता है ! कभी ऐश की जिंदगी जीने और अधिक पैसे के लालच में आकर लड़कियां खुद ऐसे धंधों में उतर आती हैं ! क्यों जिस्मफरोशी का बाजार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है ? कौन  जिम्मेदार है इसके लिए !  
गरीबी , मजबूरी इस कलियुग का सबसे बड़ा अभिशाप हैं ! इस अभिशाप से हमें बेटियों को बचाना होगा , उनकी  मजबूरियों का फायदा नहीं उनकी मजबूरियों को मिटाना होगा ! तभी कारगर सिद्ध होगा हमारा  " बेटी बचाओ आन्दोलन "

धन्यवाद                                                                                                                                                                                    

Thursday, October 4, 2012

पुराने नेता अब मजा नहीं दे रहे हैं ( सब के सब बदल डालो ) ......>>> संजय कुमार

आज से ३०-४० बर्ष पूर्व इस देश की राजनीती   इतनी भ्रष्ट और गन्दी नहीं थी जितनी कि  आज की राजनीति हो गई है ! आज राजनीति का स्तर इनता नीचे गिर गया है जैसे कि ये गिरे हुए लोगों की राजनीति हो ....पहले की राजनीति में और आज की राजनीति में जमीन आसमान का  अंतर हो गया है ! पहले नेता देश के लिए जीते थे किन्तु आज के नेता सिर्फ अपने लिए और अपनी तिजोरियां भरने के लिए ही पैदा हुए हैं ! पुराने  समय के सच्चे और देशभक्त राजनेता , मंत्री इतने भ्रष्ट नहीं थे, जितने की आज के हैं ! पहले राजनीति देश को चलाने के लिए की जाती थी , जनता के हितों का ध्यान रखा जाता था , सब कुछ अनुशासन में होता था ! भ्रष्टाचार क्या होता है ? घोटाले क्या होते हैं ? कैसे अपनी और विदेशी तिजोरियों ( स्विस बैंक  ) को आम जनता के खून - पसीने की कमाई से कैसे भरा जाता है ? कैसे गरीबों के हक का पैसा अपने ऐशो आराम पर खर्च किया जाता है ? कैसे अपने सीने पर गोलियां खाकर इस देश को दुश्मनों से बचाने वाले फौजियों की विधवा औरतों और उनके बच्चों को दी जाने वाली मदद से , इस देश के नेता अपने भाई - बंधुओं , रिश्तेदारों की मदद करते हैं ?  ये तो हमने   भ्रष्टाचारी नेताओं से सीखा है ! खैर ये तो इस देश का दुर्भाग्य है कि देश की कमान अभागों के हाँथ में है , जो इस देश का भला तो नहीं कर सकते किन्तु बुरा करने में आज कोई कसर  नहीं छोड़ रहे हैं ! बात इतनी सी है कि, जब से हमें आजादी मिली है तब से हम पूरी तरह आजाद तो हुए है  वो भी  सिर्फ बोलने के लिए ,  कुछ भी , कैसे भी , कभी भी जिस पर कोई रोक या लगाम नहीं है ! पुराने और समझदार नेता कोई भी भाषण देने से पूर्व कई बार अपने भाषण का अध्यन करते थे और तब जाकर उसे आम जनता के समक्ष पेश करते थे , और इस बात का भी विशेष ध्यान रखते थे कि, वो अपने भाषण में कुछ ऐसा तो नहीं बोल रहे हैं , जिससे इस देश  की आन-बान-शान में कोई दाग ना लगता हो ! इस बात का भी ख्याल रखते थे कि उनके भाषण से देश के किसी भी नागरिक का अपमान तो नहीं हो रहा है ! धर्म, जातिवाद  विशेष का अपमान तो नहीं हो रहा है ! देश की नारियों का अपमान तो नहीं हो रहा है , उनके सम्मान में कहीं कुछ गलत तो नहीं कह दिया है ..... आदि बातों का विशेष ध्यान रखा जाता था , और इन्हीं  सब बातों को ध्यान में रखकर कोई भी बात आम जनता के बीच बोली जाती थी ! आम जनता भी इस बात से खुश होती थी, और उनके दिलों में अपने प्रिय नेता का मान-सम्मान कहीं ज्यादा होता था और अपने नेता के लिए अपनी जान न्योछावर करने तक को तैयार रहते थे ! तब कहलाती थी असली राजनीति और असली राजनेता ! किन्तु आज की जनता आज के नेताओं के भाषणों पर अपनी जान देने की बात तो नहीं करती अपितु नेताओं द्वारा दिए गए असभ्य और अश्लील भाषणों पर उनकी जान ना ले ले इस बात के बारे में आज के घटिया नेताओं को सोचना होगा ? जैसे जैसे समय का पहिया आगे बढ़ता गया और वक़्त के साथ इस देश की  राजनीति में भी बहुत उठापटक होने लगी ! किसी के लिए भी राजनीति में आना कोई मुश्किल काम नहीं था ! जब से इस देश की राजनीति में हर किसी का आना सरल हुआ तब से राजनीति का  स्वरुप तेजी से बदला है ! जब से इस राजनीति रुपी तालाब में  गन्दी मछलियों का आगमन हुआ हैं तब से यह तालाब पूरी तरह गन्दा हो गया है ! आज हमारे यहाँ राजनीति में ऐसे ऐसे लोग भरे पड़े हैं जिन्हें राजनीति का "क ख ग " भी नहीं आता और आज देश के ऊचे पदों पर बैठकर देश की नैया को डुबो रहे हैं ! आज इस देश में  ऐसे नेताओं की बहुत लम्बी चौड़ी सूचि है जो बिना सोचे समझे, कहीं भी खड़े होकर इस देश और देश की आम जनता, धर्म-मजहब, जातिवाद, देश की रक्षा करने बाले वीर-जवान, और आम इन्सान की धार्मिक भावनाओं को लगातार ठेस पहुंचा रहे हैं !  उदाहरण कई हैं .... पूर्व में एक  नेताजी ने  जिन्होंने बिना सोचे समझे इस देश की रक्षा करने बाले वीर-जवानो ( सैनिकों ) को डकैत और तस्कर तक कह दिया था ! किन्तु आज के नेता  स्वयं क्या हैं  ? यह पूरा देश जानता हैं  ! तजा बयान देश की सरकार में ऊंचे पद पर बैठे मंत्रीजी का है जिन्होंने ये कह दिया कि " शादी जितनी पुरानी हो जाती है ...उसमें ज्यादा मजा नहीं आता ....  मैं तो कहता हूँ ....... ये बात मंत्रीजी पर भी लागू होती है ....... खैर अभी तो इन नेताओं का घटियापन अभी बहुत देखना बाकी है !  जब ऐसे नेताओं को  अपनी इस गलती का अहसास होता है या उन्हें लगता है कि अब शायद मेरी कही बात पर बबाल हो जायेगा ...... तो बही पुराना फ़ॉर्मूला जो आज तक के सभी घटिया नेता करते आये हैं ......"  थूंक कर चाटने बाला  "  तुरत-फुरत अपने बयान पर लीपापोती कर शब्दों और बयानों को बदलने की कला जिसमें वो जन्मजात माहिर हैं ! यह कोई अकेला मामला तो नहीं है इस देश में , इस तरह की बयानबाजी आज जिसे देखो एक दूसरे के बारे में बिना सोचे समझे कर रहा है ! जब कुछ गलत बोल देते हैं , और अपनी गलती का अहसास होता है, तो तुरंत अपने बयान से ऐसे पलटते हैं , जैसे हमने तो कुछ गलत कहा ही नहीं ! अगर इन नेताओं का बस चले तो पता नहीं, दिन को रात और रात को दिन कह दें ! जिस तरह इनके बार बार बयान बदलते हैं ठीक उसी प्रकार पल पल पर इनका ईमान बदलता है ! अब क्या कहूँ  ऐसे हैं आज के यह दल-बदलू माननीय नेताजी ...
किन्तु हमारे बुजुर्ग सच कह गए हैं  " जिस तरह मुंह से निकला हुआ शब्द बापस नहीं होता, बन्दूक से निकली हुई गोली, और कमान से निकला हुआ तीर " जिस तरह निकलने के बाद किसी का भी अहित कर सकते हैं ! ठीक उसी तरह किसी भी राजनेता का दिया गया बयान इस देश का अहित कर सकता हैं ! आज के भ्रष्ट नेता इस बात को पूरी तरह भूल जाते हैं , और  इस आदत को हम देशी भाषा में बोलते हैं  " थूंक कर चाटना " जो आज के नेताओं की नई आदत है ! सच तो ये है जैसे पुरानी शादी - पत्नी मजा नहीं देती ( नेताजी के अनुसार ) ठीक वैसे ही इस देश के पुराने और घटिया नेता मजा नहीं दे रहे हैं !   

धन्यवाद