Monday, March 29, 2010

टूटता सब्र, बिखरते परिवार ........>>>> संजय कुमार

आज क्यों रंग रहे हैं अपनों के हाँथ अपनों के ही खून से ! आज जहाँ देखो वहां ये ही ख़बरें देखने और सुननेको मिल रही हैं ! पति पत्नि ने गुस्से मैं आकर अपने छोटे -छोटे बच्चों सहित खुदखुशी कर ली ! एक पुत्र ने गुस्से मैं आकर अपने ही माँ-बाप को मार डाला , प्रेमी ने प्रेमिका की हत्या कर दी , किसी छात्राने छत से कुन्दकर अपनी जान दे दी ! इस तरह की ख़बरें आज आम हो गयी हैं ! क्यों हो रहा है यह सब, क्या है इन सब घटनाओं के पीछे कारण ! क्यों आज इन्सान जल्दी अपनी सुध-बुध खो देता है ! और बन जाता है अपनों के खून का प्यासा और , बन जाता है एक अच्छे परिवार का दुश्मन ! इन सबका कारण हैं आज के इन्सान के पास सब्र का ना होना ! और अगर सब्र है तो वह भी छोटी छोटी बातों पर टूट जाता है ! और उत्पन्न होती हैं इस तरह की घटनाएँ और बिखरता परिवार ! रहें अपनों के साथ और करें उन पर विश्वास कि वह आपके अपने हैं ........
कहते हैं कि जब इन्सान का सब्र टूटता है तो कहीं न कहीं कोई ज्वालमुखी फटता है , या भूचाल आता है, या कुछ अच्छा होता है , या बहुत बुरा ! पर आज सिर्फ बुरा ही, बुरा हो रहा है ! इसका कारण है आज के इन्सान के अन्दर सब्र का कम होना ! आज बहुत जल्दी लोगों का सब्र टूट जाता है , और बहुत कुछ हाँथ से निकल जाता है ! और फिर बाद मैं सिर्फ पछतावा और पश्चाताप

आज हम सब के जीवन मैं एक ना एक दिन ऐसा आया होगा जब हमारा सब्र टूटा होगा ! अगर हमने गुस्से मैं आकर कोई गलत निर्णय लिया होगा! जिससे उपजे हुए कुछ गलत परिणाम ! जिसका पछतावा आज कहीं ना कहीं, हमारे मन होगा ! सब कुछ सब्र टूटने का परिणाम !
आज क्यों टूटता जा रहा है इन्सान का सब्र ! इस सबके पीछे यह इन्सान ही है , इन्सान ने आज के इस दौर मैं अपने आपको इतना व्यस्त कर लिया है की वह अपनी किसी भी परेशानी या दुख मैं किसी वाहर बाले की दखलंदाजी नहीं चाहता ! जब हमारे घरों मैं होने वाली छोटी-छोटी बातें को हम जब अपने दिल मैं घर करने देते हैं तो यह छोटी-छोटी बातें एक दिन बड़ी घटनाओं का रूप ले लेती हैं ! आज जिस तरह का माहौल हमारे समाज मैं है वहां पर हम एक दुसरे से कहीं ना कहीं बड़े बनना चाहते हैं ! और कहीं ना कहीं इसमें हम लोग दिखावा ही करते हैं ! किसी भी बात पर झुकना नहीं चाहते ! जब हमारे अंदर ही इस तरह के भाव नहीं होंगे तो ! कहाँ पर टिकेंगे आज के पारिवारिक रिश्ते ! कहीं ना कहीं हमें इस और ध्यान देना होगा ! अपनी दुख तकलीफ को अपनों के साथ बांटें ! और बचें ऐसी किसी घटना से ! क्योंकि आज के समय मैं आपका परिवार ही आपकी ताक़त बन सकता है !
तो ना टूटने दें अपने सब्र को ! और ना बिखरने दें अपने परिवार को


धन्यवाद

Saturday, March 27, 2010

अगर मैं रूठ गई तो .......>>>>> संजय कुमार

अगर मैं रूठ गई तो जानते हैं आप क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का ! कुछ नहीं वचेगा इस प्रथ्वीपर हर जगह सिर्फ तवाही ही तवाही, इसलिए मैं कहती हूँ , मुझे रूठने पर मजबूर मत करो ! बल्कि मुझे बचानेका पूरा प्रयत्न करो ! मैं पर्यावरण और प्रकृति हूँ ! विश्व की ब्रह्माण्ड की सबसे कीमती धरोहर ! जैसे जैसे इन्सान आधुनिक होता जा रहा है , वैसे वैसे मेरी सुन्दरता कम होती जा रही है, आज इन्सान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है की उसका ध्यान अब मेरी और से पूरी तरह हट गया है ! वह मुझे भूलता जा रहा है ! मैंने तो हमेशा से इस कायनात को अपना सर्वश्व दिया है , और इन्सान ने मुझे क्या दिया , जिसे देखो मेरा दोहन कर रहा है , कभी पैसे के लिए तो कभी अपने शौक के लिए , फिर भी मैं कुछ नहीं कहती ! शायद कभी मेरे बारे मैं सोचेगा ! मैंने तो इस इन्सान को इतने उपहार दिए हैं ! जिसका ऋण ये मानव कभी नहीं उतार सकता ! पर यह सब मुझे बर्बाद किये जा रहे हैं !
आज मैं इस मानव जाति से नाराज हूँ ! अगर आप लोग मेरी सलामती के लिए आगे नहीं आये तो मैं जल्द ही आप सब से रूठ जाऊंगी ! अगर मैं आप सब से रूठ गई तो क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का इसका शायद आप लोग अंदाजा भी नहीं लगा सकते ! कुछ करो मेरे लिए ! मैं चाहती हूँ अब आप मेरे लिए थोडा सा सहयोग और थोडा श्रमदान करें ! मैं चाहती हूँ आप सब अपने जीवन मैं कम से कम एक वृक्ष जरूर लगायें ! अगर सारे इन्सान सिर्फ एक एक वृक्ष ही लगायें तो मैं आपसे वादा करती हूँ मैं सब कुछ पहले जैसा कर दूँगी ! आज तो मेरा स्वरुप ही बदल गया है ! जिससे मैं काफी दुखी हूँ !


मेरा आप सभी से विनम्र निवेदन है , कृपया मुझे वचाने आप सब लोग आगे आये और सहयोग प्रदान करें ! मैं आप सभी का धन्यवाद करती हूँ और आशा करती हूँ , की आप मुझे अपने से रूठने नहीं देंगे !


आपकी
प्रकृति और पर्यावरण


धन्यवाद

Friday, March 26, 2010

थोडा और रुक जाते तो .........>>>>> संजय कुमार

थोडा रुक जाते तो यह चीज और सस्ती मिल जाती, थोडा और रुक जाते तो शायद लड़की और अच्छी मिल जाती ! अक्सर हम लोग इस तरह की बात अपने जीवन मैं, अपनी रोज की दिनचर्या मैं कई बार अपनों के साथ करते रहते हैं ! कभी कभी लगता है की हम शायद सही कह रहे हैं ! पर कभी इस बात पर हम लोगों ने कभी गहराईसे नहीं सोचा, बात ये सही है उन लोगों के लिए जो किसी भी चीज या समय का महत्व नहीं जानते ! क्योंकि समय पर किया गया कोई कार्य कभी गलत नहीं होता ! हर चीज के दो पहलू होते हैं ! पर थोडा सोचना होगा ! अगर हम सब थोडा रुक जाएँ , तो क्या होगा , और क्या हो सकता था ! इसका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते !
अगर हम थोडा रुक जाते तो कभी भी मंजिल हांसिल नहीं कर पाते ! थोडा रुक जाते तो शायद हम आज भी अंग्रेंजों के गुलाम होते , थोडा रुक जाते तो कैसे करते एक सुनहरे भविष्य का निर्माण, थोडा और रुक जाते तो कैसे देश का नाम विश्व मैं रोशन कर पाते ! नहीं कुछ भी नहीं होता ! अगर हम सब थोडा और रुक जाते ! न बनते इतिहास न बनते भविष्य ! हम जहाँ थे वहीँ रहते ! गुमनाम और दुनिया से अनजान ! न हमारी कोई पहचान होती और न हमारा कोई नाम !
अगर हम और थोडा रुक जाएँ तो क्या होगा ? इसका शायद हम अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे ! आज अगर हम थोडा रुक गए तो, यह देश बिकने मैं कुछ वक्त नहीं लगेगा, थोडा रुक गए तो मजहब की खाई और गहरी हो जाएगी , इन्सान, इंसानियत भूल जायेगा , और हम खड़े होकर देखते रहेंगे अपनों की बर्बादी ! थोडा रुक गए तो पूरी तरह ख़त्म हो जायेंगे बचे कुचे इंसानी रिश्ते ! थोडा रुक गए तो कभी न पा सकेंगे वह बुलंदी जिसकी चाह मैं जी रहे हैं हम सब ! जी नहीं अब वक्त नहीं थोडा और रुकने का ! अब वक्त आ गया आगे बड़ने का और अपनी मंजिल हांसिल करने का !..................

थोडा अगर मैं रुक जाता तो शायद कभी भी लिख नहीं पता ! सारा जीवन हमने निकाल दिया थोडा और थोडा और के चक्कर मैं !



धन्यवाद

Thursday, March 25, 2010

क्या हम फिर से गुलाम होते जा रहे हैं .............

आज़ादी के पूर्व हम सब अंग्रेजों की गुलामी में जीवन व्यतीत कर रहे थे ! इस गुलामी से आज़ादी पाने के लिए कितने इतिहास बने ये हम सब जानते हैं ! कितने ही वीरों ने अपने प्राणों की कुर्बानियां दी ! कई आन्दोलन चलाये गए तब जाकर हम गुलामी की जंजीर से आजाद हुए ! हमें धन्यवाद देना चाहिए उन सभी को जिनके कारण आज हम सब खुली हवा मैं साँस ले पारहे हैं ! आज़ादी से सब कुछ कर रहे हैं !
अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाये, चाहे हमें आपस मैं लड़ाया हो, धन दौलत का लालच या, अपने यहाँ ही गोरी चमड़ी बाली नर्तकियां, ये सरे हथकंडे अपनाके हमें अपना गुलाम बना रखा ! और हम लम्बे समय तक इन सब के मोह जाल मैं फंसे रहे ! और इसका पूरा फायदा इन अंग्रेजों ने उठाया ..........
और आज फिर से हम इस गोरी चमड़ी के मोहजाल मैं फंसकर इनके गुलाम होते जा रहें हैं ! इसका उदाहरण हम सब आज देख रहे हैं! आज हम देख रहे हैं की आज की बड़ी बड़ी महफ़िलों मैं इनका बढता चलन , जहाँ देखो बस ये ही नजर आ रही हैं ! आज किसी नेता का जन्मदिन हो या कोई रंगारंग कार्यक्रम बस यही चाहिए ! आज हमारे गाँव के चौपालों पर इन्हें आप कभी भी देख सकते हैं ! ज्यादा दूर मत जाइये आज के मनोरंजन जगत मैं इनकी एक बड़ी महफ़िल जमी रहती है ! आज जिसे देखो वो इनके पीछे भाग रहा है ! आज हम किर्केट मैं इसका चलन देख रहे हैं हम जिन्हें cheerleader के नाम से जानते हैं ! आज हमारे यहाँ इनके चलन को कुछ लोग अच्छे रुतबे की निशानीकहते है, तो कोई इसे अपनी परम्परा कह रहा है! कहते हैं की हमारे पूर्वज मनोरंजन के लिए विदेशों से नर्तकियां बुलाते थे, इस लिए ये परम्परा चल रही है ! जहाँ हम लोग इस देश की बार बालाओं को अच्छी द्रष्टि से नहीं देखते वहीँ पर हम लोग इन पर करोड़ों रूपए लुटा रहे हैं ! क्या ये गुलामी की मानसिकता नहीं है !

क्या आज हमारे देश मैं नर्तकियों की कमी है, नहीं आज हमारे देश मैं इनसे ज्यादा अच्छे नर्तक है! पर ये सारे आज दर दर की ठोकर खा रहे हैं ! और हम फिर से इन अंग्रेजों के गुलाम होते जा रहे हैं ! थोडा सा सोचिये

एक छोटी सी बात


धन्यवाद

Wednesday, March 24, 2010

मंदिर या मस्जिद, बस इक इन्सान चाहिए ..............

पिछले कई वर्षों से हमारे देश मैं एक मुद्दा चल रहा है, मंदिर या मस्जिद , हिन्दू और मुस्लमान ! यह एक ऐसा मुद्दा है, जो तब तक ख़त्म नहीं होगा, जब तक इस धरती पर इन्सान है ! क्योंकि इस तरह के मुद्दे या मजहबी वातावरण या हिन्दू , मुस्लिमों को लेकर चलाया जा रहा ये धार्मिक युद्ध आज के इंसानों द्वारा निर्मित है ! यह सब तो आज के कुछ मतलब परस्त लोगों ने इस देश मैं ऐसा माहोल बना दिया है, वर्ना यह देश तो हमेशा से हिन्दू, मुस्लिम एकता और भाईचारे के लिए जाना जाता है ! ना की हिन्दू , मुस्लिम के लिए ! जब एक इन्सान के नजरिये से सोचा तो ये महसूस किया , की यह सब कुछ नहीं , कुछ धर्म परस्त, मतलब परस्त लोग दिखाबा कर रहे हैं ! अपने को कट्टर धर्माब्लाम्बी कहलाने का .................


जब मैंने एक साधारण हिन्दू और मुस्लिम से पूंछा की, आज देश मैं मंदिर, मस्जिद और हिन्दू , मुस्लिम को लेकर जो अफरा-तफरी का माहौल है, तो इस पर आप क्या कहना चाहेंगे, तो वह बोले, आज देश मैं इतनी महगाई, लूट खसोट, बेईमानी और भ्रस्टाचार है, की आज की मासूम जनता तो इन सब से पहले ही मर रही है ! उसे कहाँ इन सब बातों से मतलब होता है ! हमारा जीवन तो गुजर बसर और जीवन की आपाधापी मैं ही निकल जाता है ! तो क्या मंदिर क्या मस्जिद ! यह सब तो धर्म की आग पर रोटियां सेंकने बालों का काम है ! हम वह हिन्दू मुस्लिम हैं जो सभी धर्मों को एक समान द्रष्टि से देखते हैं! हम ईद पर अपने मुस्लिम भाइयों के गले लगते हैं उनके यहाँ , ईद की सिवैयां खाते हैं और उनका मान बढ़ाते हैं, उसी तरह मुस्लिम भाई हम हिन्दुओं के पर्व मैं शामिल होते हैं, चाहे वह होली हो या दिवाली हर पर्व मैं ये शामिल होकर हम लोगों का भी मान बढ़ाते हैं !

पर यह सब हिन्दू मुस्लिम नहीं एक इन्सान हैं ! हम लोग तो राम-रहीम दोनों को मानते हैं ! हम अजमेर शरीफ जाते हैं , तो शिर्डी के साईं भी एक साथ जाते हैं ! हमें तो मंदिर चाहिए और ही मस्जिद ! हमें तो सिर्फ इक इन्सान चाहिए , जिसमें इंसानियत हो , और जो इन्सान को इन्सान समझे

जय राम ----जय रहीम

हम सब भाईचारा चाहते हैं , आपस मैं मिलकर रहना चाहते हैं ! लड़ाओ

हमें अपने ही भाइयों से ! हमें इन्सान रहने दो ! मंदिर मस्जिद, बस इक इन्सान चाहिए

जब मैंने दोनों की बात सुनी तो यह महसूस किया, की वाकई मैं अगर आज ये मुद्दे उठाना बंद हो जाएँ तो हम और हमारा देश भाईचारे की वह मिशाल कायम कर सकते हैं, जो विश्व मैं कहीं देखने नहीं मिलेगी ! जब हम सब एक साथ उठते बैठते हैं, तो कहाँ रह जाता है फर्क , मंदिर और मस्जिद, हिन्दू मुस्लिम का


आप सभी अपने दिल पर हाँथ रखकर महसूस करें, तो आप एक अच्छा इन्सान चाहेंगे, हिन्दू और मुस्लिम,और कहेंगे की हम इन्सान हैं , और हमें समझने बाला बस इक इन्सान चाहिए .........................बस इक इन्सान चाहिए ................................


धन्यवाद

करो मेरा अनुशरण..............(आज है रामनवमी) .................

सबसे पहले रामनवमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें
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आज है भगवानराम का जन्म दिन ! आज देश को ऐसे ही मर्यादा पुरुषों की जरूरत है ! भगवान राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन मैं ऐसे अनेकों कार्य किये हैं , जिन्हें हमें अपने इस जीवन मैं उनका अनुशरण करना चाहिए ! भगवान राम को सत्य के रूप मैं जाना जाता है ! वह एक राजा होने के साथ साथ एक अपने आप को एक साधारण व्यक्ति मानते थे, वह एक राजा के साथ साथ एक अच्छे पुत्र, पति, भाई, मित्र एवं मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप मैं जाने जाते हैं ! क्या आप हैं मर्यादा पुरुष ?..................
जिस तरह भगवान राम ने अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए वन जाना स्वीकार किया ठीक उसी प्रकार हमें आज अपने पिता का मान रखना चाहिए ! अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आप वाकई मैमर्यादा पुरुष हैं , जिस तरह राम ने बड़ा होते हुए भी अपने भाई भरत को सब कुछ देने को सहर्ष स्वीकार कर लिया ठीक उसी तरह आज हमें इस तरह बड़ा होने का भाव रखना चाहिए, वह एक अच्छे मित्र थे जिन्होंने, जिन्होंने अपने मित्रता के वचन को पूरा किया , उन्होंने जिस तरह बुराई को ख़त्म करने के लिए रावण का सर्वनाश किया ठीक उसी तरह हमें अपने आस पास से ये रावण रुपी बुराई को दूर करना होगा !
मैं भी भगवान राम की तरह मर्यादा पुरुष बनाना चाहता हूँ ! आप भी अपने आप को दिल से टटोलकर देखें, आप मैं भी एक मर्यादा पुरुष है, जो अपने पिता का मान रखता है, अपने छोटोको प्यार करता है , एक अच्छा मित्र है , और जो अपने आस-पास की हर बुराई को दूर करना चाहता है! एवं सत्य के मार्ग पर चलना चाहता है! अब हम कसम खाते हैं की हम अपने जीवन मैं कहीं न कहीं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अनुशरण करेंगे

जय श्रीराम ...... जय श्रीराम ........... जय श्रीराम

धन्यवाद

Wednesday, March 17, 2010

गरीबों के मुंह पर एक और तमाचा

सरकार हमेशा से ही ये कहती आ रही है कि हम इस देश से गरीबी हटा देंगे ! सरकार के ये वादे कितने सही हैं और कितने झूंठे ये किसी से छुपा नहीं है ! आज जहाँ देखो हर जगह गरीबी और गरीबों का मजाक ही उड़ायाजाता है ! इसका ताजा उदाहरण उत्तर-प्रदेश सरकार का नोट कांड , जिस तरह नेताओं पर ये नोटों कि मालाएं चदायी जा रहीं हैं, वो देखकर तो भगवान भी अचम्भे मैं है, कि इस तरह तो ये इन्सान मेरा भी मान नहीं करता पर आज तो ये नेता वाकई मै इस कलियुग के भगवान बन गए हैं ! पर ये बेचारी जनता तो पहले ही गरीबी और भूंख कि आग मैं पहले ही मर रही थी, बची कुची इस तरह के आयोजन से और अपने आपको असहायसमझने लगी है !
जहाँ आज कि आम जनता अपनी वदहाली पर पहले ही आक्रोशित है , ये सब देखकर उसका गुस्सा और बढता ही जा रहा है, कि क्या वाकई मै ये इन्सान ही हैं जो कहते हैं कि इंसानियत अभी जिन्दा है, ऐसी भीड़ मैं ऐसे कई गरीब लोग थे जो गरीबी और भुखमरी से लड़ रहे हैं , जहाँ उत्तर प्रदेश मैं ही कई किसान कर्ज के बोझ से आये दिन खुदखुशी कर रहा है, पर उनकी चिंता ना हमारी सरकार को है और ना ही, उन लोगों को, जिन्होंने ये मालाएं चढाई थी, "काश" उस माला का एक-एक नोट भी अगर, वहां मौजूद जनता को मिल जाता तो शायद इस तरह के आयोजन को ये गरीब जनता द्वारा सराहा जाता ! पर ये तो आज कि गन्दी राजनीती है जो सिर्फ और सिर्फ आम जनता का ह्रास और उपहास कर रही है, और उनके गुस्से को ज्वालामुखी का रूप दे रही है, पता नहीं ये गरीब जनता का ज्वालामुखी कब फूटेगा और क्या क्या होगा, अगर ऐसा होता रहा तो सरकार का ये नारा जल्द ही पूरा होगा कि
इस देश से हम गरीबी हटा देंगे, माफ़ कीजिये गरीबों को हटा देंगे, न रहेगा गरीब और न रहेगी गरीबी तो कम से कम सारा देश एक समान हो जायेगा, फिर किसी बात कि चिंता नहीं हम खुद इस तरह के आयोजन करेंगे, फिर नहीं पड़ेगा गरीबी और गरीबों के मुंह पर तमाचा ..........................

जय हो आज के कलियुगी भगवान कि

धन्यवाद

Tuesday, March 16, 2010

जागो जागो देश के युवाओ जागो

सबसे पहले हिन्दू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्र की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें
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आज मुझे कई लोगों ने नववर्ष की बधाई दी ! जब मैंने ये महसूस किया कि ज्यादातर बधाई देने बालों कि उम्र ४० वर्ष के उपर थी ! मुझे ये जानकर आश्चर्य हुआ कि इन बधाई देने बालों मैं हमारे युवा वर्ग का कहीं कोई नाम नहीं था ! तब मुझे ये अहसास हुआ कि आज का युवा तो पूरी तरह से सोया हुआ है ! वोह तो सिर्फ तभी जगता है जब उसे बताया जाता या जब कोई भेड़चाल चलती है तो अपनी उपस्थिति दर्ज करता है ! आज के युवा वर्ग को तो ये तक नहीं मालूम कि आज हमारे आस-पास हो क्या रहा है ! ये समाज ये देश कहाँ जा रहा है ! क्यों हम हर जगह पिछड़ रहे हैं ! क्यों आज बुरी ताक़तें हम पर राज कर रहीं हैं ! आज का युवा तो सिर्फ अपनी मस्ती मैं मस्त है ! आज देश मैं एक बहुत बड़ा युवा वर्ग जाग्रत नहीं है ! आज अगर NEW-YEAR या VALENTINE या अन्य कोई HIGH-PROFILE गतिविधि हो तो वहां आप युवाओं का जोश देखिये , लड़ने झगड़ने से लेकर मरने मारने तक सब कुछ करने को तैयार रहते हैं ! काश ये जज्वा देश कि समस्याओं को दूर करने मैं लगाते या थोड़ी सी जागरूकता दिखाते तो आज जो विकराल समस्याएँआज हमारे सामने हैं वोह ना होतीं अगर किसी से ये पूंछा जाये कि आज मंहगाई दर क्या है, आज देश मैं फ़ैली अराजकता क्यों हैं ! तो इसका जबाव हमारे युवाओं के पास नहीं है ! अगर फिल्मों मैं किसी बात पर विवाद हुआ तो इस मैं सबसे बड़ा कारण हमारा युवा वर्ग ही रहता है ! क्योंकि कई लोग इन युवाओं का सहारा लेकर देश मैं जो अराजकता का माहोल उत्पन्न करते हैं , वोह सब युवाओं कि जागरूकता नहीं है
जागो युवाओं जागो ....................

आज अगर हमारा युवा वर्ग जागरूक होता तो , नहीं बनती ये हिन्दू - मुस्लिम के दीवारें , देश मैं फैला आतंकवाद , जातिवाद , बिगड़ते हालात , उंच- नीच का भेद -भाव , आज का भ्रष्टाचार , और ना जाने कितनी समस्याएँ हैं जो आज देश मैं घर कर गयी हैं, ये सब इसलिए लिखा है, क्योंकि आज का पड़ा लिखा युवा वर्ग चाहे तो अपनी थोड़ी सी जागरूकता से कम से कम अपने आस पास के माहोल को तो सही रख सकता है ! कहते हैं कि युवा संगठन मैं बहुत ताक़त होती है बो चाहे तो कुछ भी कर सकता क्योंकि इनका संगठन एक बहुत बड़ी संख्या मैं हो ता है , जागरूक हो जाये तो देश के ढोंगी धर्म के ठेकेदारों को इस देश मैं अपना ये ढोंग ना होने दे ..........

जागो जागो देश के युवाओं जागो .............आप देश का भविष्य हैं ............... अपना भविष्य सवारें और देश भी

धन्यबाद

Monday, March 15, 2010

मुझे यूँ बर्बाद न करें..... मुझे बचालो .............

मुझे बचालो ना यूँ बर्बाद करो मैं आपका जीवन हूँ ! और अपने जीवन को यों बर्बाद ना करो ! मैं जल हूँ और मैं सबका जीवन हूँ ! पर आज मेरा उपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है ! मैं सड़कों पर यूँ ही बहता रहता हूँ ! कोई नहीं मुझे बचाने बाला ! आप सोचिये अगर मैं न रहा तो क्या होगा ! क्या आप मेरे बिना रहने की कल्पना भी कर सकते हैं ! मेरी अहमियत को समझो ! मेरा महत्व आप आज नहीं समझ रहे हैं ! पूँछिये उन सूखे खेत- खलिहानों से जो मेरी एक - एक बूँद के प्यासे हैं ! पूँछिये उन घने वन जंगलों से जो सिर्फ मेरे ही कारण जीवित हैं ! इतना है मेरा महत्व की लोग मेरी पूजा करते हैं ! आप भी समझें मेरी अहमियत ...........

आज जिस तरह इन्सान का स्तरगिर रहा है उसी तरह मेरा भी स्तर कई वर्षों से लगातार गिर रहा है ! और इसके पीछे आप सब जिम्मेदार हैं अगर मैं ना रहा तो मिट जायेगा वो पवन नाम जिसे आप गंगा, जमुना, सरस्वती, आदि के नाम से जानते हैं ! मैं नहीं रहा तो कैसे इन्सान अपने तन और मन की गंदगी दूर करेगा, मेरे जरा से रूठ जाने पर इन्सान, इन्सान के खून का प्यासा हो जाता है ! सड़कों पर अपनों का खून तक बहा देता है , मेरा महत्त्व इतना है की मैं प्रतिदिन इश्वर के चरणों से लेकर मृत देह तक मैं मेरा उपयोग होता है ....
आप मुझे बर्बाद होते देख रहे हैं फिर भी कुछ नहीं कर रहे हैं ! मुझे बचाने का वादा तो सब करते हैं , पर वादा करके भूल जाते हैं ! मेरी एक -एक बूँद अमृत के सामान हैं ........ अपने अमृत को यूँ बर्बाद न करो

गुजारिश
आप सभी आमजन से मैं ये वादा चाहता हूँ ! आप सब मिलकर आगे आयें और मुझे बर्बाद होने से बचाएं

जल ही जीवन हैं
एक छोटी सी बात

धन्यबाद

Saturday, March 13, 2010

आज के जल्लाद .....या मजबूरी

जब मैंने आज का अख़बार उठा कर देखा तो पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया और फिर शर्म, अख़बार मैं एक चित्र था जिसमें एक शिक्षक अपने मुर्गा बने छात्र को लात से मार रहा था , उस छात्र का कसूर सिर्फ इतना था की वोह रोज स्कूल नहीं आता था , यह घटना कन्नोज के एक कोंवेन्ट स्कूल की है, इस तरह की और भी ख़बरें आपने पड़ी होंगी, कहीं शिक्षक कमरे मैं बंद कर देते हैं , तो कभी किसी और तरह से मासूम छोटे बच्चों को प्रताड़ित करते हैं , क्या है ये सब क्या हो गया इन गुरूओंको जो बच्चों का भविष्य बनाते हैं , आज इस तरह से अपने महत्व को पूरी तरह ख़त्म कर रहे हैं ,
जब हम लोग स्कूल मैं पड़ते थे, तो उस समय हम सब लोग शिक्षक को भगवानका दर्जा देते थे, और शिक्षक भी अपने छात्र को हमेशा अच्छी सीख और अच्छी ज्ञान की बातें बताते थे, कहते थे की अगर आपको सच्चा गुरु कहीं मिल जाये तो आप अपने जीवन मैं हमेशा उन्नति करेंगे हर जगह आपका सम्मान होगा , और छात्र भी अपने गुरु के सम्मान मैं वह सब कुछ करने को हमेशा तैयार रहते थे जो कभी माता - पिता के लिए भी नहीं कर पाते थे , वह समय अब कभी लौट कर नहीं आएगा ..................

जैसे जैसे समय निकलता गया, और शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया सारी परिभाषाएं बदल गयी हैं! जहाँ शिक्षक पहले मुफ्त मैं ज्ञान बांटते थे वहीँ आज हर चीज की कीमत वसूल कर रहे हैं! ये तो कुछ भी नहीं हैं कुछ शिक्षकों ने तो इतने शर्मसार कर देने बाले काम किये हैं जिन्हें आज हम लोग बयां करने से भी कतराते हैं ! चाहे वह पटना के प्रोफ़ेसर बटुकनाथ हों जिन्होंने अपनी बेटी की उम्र की छात्रा से प्रेम सम्बन्ध बनाये हों ! या कुछ शिक्षक टूशन के नाम पर छोटेछोटे बच्चों के साथ कुछ आपराधिक कृत्य करते हैं ........ शर्मसार हैं हम सभी इस तरह की घटनाओं से ..... कलंकित हो गयी अपनी परम्पराएँ , अपने गुरुओं का मान सम्मान .................

इन सब के पीछे कौन जिम्मेदार है, क्या हम हैं इसके जिम्मेदार ? जी हाँ कहीं ना कहीं हम लोग ही हैं इसके जिम्मेदार , हम लोगों की अपेक्षाएं आज जरूरत से ज्यादा बढ़ गयी हैं , हम इस अंधी दौड़ मैं अपने बच्चों को वो सब कुछ दिलवाना चाहते हैं जो उनकी उम्र को देखते हुए ठीक नहीं है, आपके चार साल के बच्चे को वोह सब आना चाहिए, इंग्लिश मैं बात करना, कंप्यूटर की पूरी जानकारी , संगीत मैं भी होशियार , उसे डांस भी आना चाहिए, अरे भाई वो बच्चा है, जब वोह इतना प्रेसर नहीं झेल सकता तो उसे पदाने बाला शिक्षक इतना प्रेसर कैसे झेल सकता हैं, और शिक्षक कर बैठता हैं इस तरह की हरकत, हमें रोकना होगा अपने आप को इस अंधी दौड़ मैं दौड़ाने से ! तभी इस तरह की घटनाएँ बंद होंगी ..................

कई शिक्षक हैं जो आज की शिक्षा प्रणाली से खुश नहीं हैं , वह भी चाहतें हैं अपना मान-सम्मान बचाना
धन्यबाद

Friday, March 12, 2010

कोंन कहता है कि, हम हैं अकेले

कोंन कहता है कि हम हैं अकेले
ये वहती नदियाँ, ये ठहरे पर्वत, हैं किसके
ये जमीं ये आसमान , ये चलती पवन, हैं किसके
ये वहता झरना ये, ऊंचे दरख़्त, है किसके
सूरज कि तपिश, शीतलता चन्द्रमा कि
ये टिमटिमाते तारे, ये सारा ब्रह्माण्ड, हैं किसके
ये सोंधी मिट्टी कि खुशबु , ये बारिस कि बूँदें , हैं किसके
कोंन कहता है कि हम हैं अकेले ...............


ये माँ का आंचल ,पिता का प्यार
अपनों का साथ , भाई बहन का प्यार
ये सारा संसार, खुशियाँ और गम , हैं किसके
ये अपना मजहब, जातिऔर धर्म
नफरत की दीवार, ये सरहदें , हैं किसकी
ये ऊंचे शिवालय , गगनचुम्बी मस्जिदें , हैं किसके
ये संघर्ष, ऊंची उठती आवाज , हैं किसके
ये सात सुरों का संगीत, इन्द्रधनुष के रंग सात, हैं किसके

अब ना कहना की हम हैं अकेले, जरा नजरें उठाकर देखें
तो लगता सब कुछ अपना, नहीं कोई पराया

आज के वातावरण से हर किसी को लगता है की, नहीं है कोई हमारा
सिर्फ दिल की सुने, और दिल कभी झूठ नहीं बोलता ............
अब कौन कहेगा की हम हैं अकेले .......................

धन्यबाद


















Thursday, March 11, 2010

अब हम नहीं किसी काम के .........संजय कुमार

रोज की तरह आज शाम मैं जब ऑफिस से अपने घर गया, और जाकर टीव्ही चालू किया तो टीव्ही चालू तो हो गया जब मैंने दूसरा चैनल देखना चाहा और अपनी प्रिये पत्नी से कहा 'अरे भईरिमोट कहाँ है , तो उसने मुझसे कहा आप आज मुझसे बात ना करें आज मैं बहुत थक गयी हूँ , मैंने पूंछा क्यों तो बो कुछ ना बोली, उसने मुझे रिमोट दे दिया और रिमोट लेकर उसे मैंने जब चलाना चाहा तो वो नहीं चला, प्रिये की थकन और परेशानी मुझे समझते देर ना लगी , अब परेशां होने की बारी मेरी थी, जब रात ९ से ११ बजे के बीच हम अपने पसंदीदा सीरियल जो की दो तीन चैनलों पर आते हैं, रोज
देखते हैं, जब उन दो घंटों मैं रिमोट ने काम नहीं किया तो मुझे इस बात का पूरा अहसास हुआ की हम इस आधुनिक दुनिया मैं आधुनिक साधनों के कितने आदि हो गए हैं बार बार चैनल वदलने मैं मुझे पसीना आ गया, आज हम एक छोटी सी चीज पर इतने निर्भर हैं, तो भविष्य मै क्या होगा

मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है की जैसे- जैसे आधुनिकता बड़तीजा रही है हम उन पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हो गए हैं , यह तो सिर्फ एक रिमोट था अगर हम अपने आस-पास देखें तो ऐसे कई आधुनिक साधन हैं जिन के बिना आज के समय मै चल पाना शायद मुमकिन नहीं है, चाहे वो मोबाईल हो या कंप्यूटर इन्टरनेट या मनोरंजन के अन्य साधन , आज हम इन पर पूरी तरह से निर्भर हो चुके हैं , ये नहीं तो जीवन नीरस सा लगता है , अब लगता है हम अब किसी काम के नहीं .....................

जब ये साधन नहीं थे तब भी हमारा जीवन चलता था , शायद आज के जीवन से कहीं ज्यादा अच्छा , तब मनोरंजन परिवार के साथ होता था और आज बंद कमरों मैं , पहले व्यक्ति स्वयं पर निर्भर रहता था पर आज इन साधनों पर , आज जिसे देखो जरूरत से ज्यादा इन पर निर्भर हो गया है, क्या इतना आदि होना सही है.....

सोचिये ................. सोचिये................................. जरूर................ सोचिये

धन्यवाद









Tuesday, March 9, 2010

हँसता जग,.... रोता हुआ किसान...............

वर्षों से हम यही कहते आ रहे हैं, भारत एक कृषि प्रधान देश है, ये किसान भारत की शान हैं, जान हैं, और ना जाने कितनी तरह की बातें करते हैं! पर आज इस देश मैं जो किसानो की स्थति है वह किसी से छुपी नहीं है, आज जहाँ हम लोग कौन कौन से दिवस मानाते हैं हमें खुद को पता नहीं होता और सारा विश्व सारे अख़बार भरे पड़े रहते हैं इन ख़बरों से, कहीं इसका जन्मदिन कहीं उसकी पुण्यतिथि, हर दिन बस ऐसी ख़बरों मैं फसे रहते हैं, शायद हम बहुत कुछ देखना नहीं चाहते, हम सब कहीं ना कहीं सब कुछ जानकर भी अंजानहैं,


आज किसान हर तरफ से दुखी है , आज का किसान कर्ज मैं पैदा होता है और कर्ज मैं ही मर जाता है , हम जो जीवन जीते हैं, वह तो किसान सिर्फ कल्पना ही कर सकता है, आज कहीं सूखे से किसान मर रहा है, कहीं ज्यादा बारिस किसान को बर्बाद कर रही रही है,हमारी सरकार किसानों के लिए कितना कर रही है, इसका कितना फायदा उनको मिलता है ये हम सब से छुपा नहीं, जहाँ किसान एक -एक पैसे को दर दर भटक रहा है, वहीँ इस देश मैं कुछ नेता अपनी प्रतिमा लगवाने मैं पैसे का दुरूपयोग कर रहे हैं, जहाँ किसान अपनी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं पाते वहीँ राजनेता मंहगाई बड़ा बड़ा के अपनी तिजोरियां भर रहे हैं , और कहते हैं की आज का किसान खुश है, जहाँ हम लोग किसी के अछे कार्य पर पुरुष्कृत करते है तो जो किसान हर दिन रात , सर्दी गर्मी , धुप छांव मैं मेहनत करके हम सभी की जरूरत को पूरा करते हैं तो हम उनको पुरुष्कृत क्यों नहीं करते हम उनके लिए क्या करते हैं , उन्हें भी एक अच्छी जिंदगी जीने का हक है ,
हमें शास्त्रीजी का वह नारा अब वदल देना चाहिए जो उन्होंने दिया था

जय जवान --जय किसान , आज हमें नए नारे का निर्माण करना चाहिए और वो है

जय नेता ---जय अभिनेता, अब सारे देश मैं यही चल रहा है

Monday, March 8, 2010

मुझसे वेहतर कोई नहीं..............संजय कुमार

इस दुनिया मैं , इस कायनात मैं मुझसे वेहतर कोई नहीं है, और ना होगा, क्योंकि मैं सारे बन्धनों से आजाद हूँ मुझे कोई भी किसी जाती- धर्म , रंग - रूप अदि मैं बाँध नहीं सकता, नहीं मानता मैं कोई मजहब, ना मैं हिन्दू और ना ही मुसल्मा, मैं हूँ सबका प्यारा, नहीं मुझसा कोई सानी इस जहाँ मैं .....................

मैं संगीत हूँ, संगीत, इन्द्रधनुष के सात रंग हैं जैसे, बैसे ही बना हूँ मैं सात सुरों से, मेरी सरगम पर दुनिया थिरके मैं वह हूँ जो वारिस करा सकता हूँ , पानी मैं आग लगा सकता हूँ , मेरे नाम के तो बनते आये ऊँचे -ऊँचे घराने मेरे तो हैं कई नाम, हर क्षेत्र मैं मुझे अलग -अलग नामों से जाना जाता है, पूरे विश्व मैं सबसे ज्यादा दीवाने मेरे ही हैं , चाहे वो किसी भी रूप मैं हों....... क्या है कोई मुझसे वेहतर

मैं कभी माँ की लोरी मैं तो कभी पिता की थपकी मैं, मैं ईश्वरके भजन मैं तो अल्लाह की अजान मैं, मैं रोतों को हंसाता हसतों को रुलाता मैं सबकी खुशियों मैं तो गम मैं भी रहता हूँ साथ, हर जगह है मेरी पहुँच , अपनों ने भी चाहा मुझे और दुश्मनोने भी, लैला का मजनू तो कही सोहनी का महिवाल....... मैं निर्जीव मैं डाल सकता हूँ जान
तो हुआ न मैं सबसे वेहतर ........ क्या है कोई मुझसे वेहतर

पर जैसे - जैसे वक़्त बीत रहा है, मेरी परिभाषा बदल रही हैं, मेरा अस्तित्व कहीं न कहीं आज की आधुनिकता मैं खोता जा रहा है, अब मुझमें बो दम नहीं रहा जो पहले हुआ करता था, पहले कभी मैं नौ रत्नों मैं गिना जाता था, अब बो बात नहीं हैं , अब मेरा निर्माण ठीक ढंग से नहीं हो रहा है, और अब मेरे चाहने वाले भी कम होते जा रहे हैं, अब उलटे सीधे तरीके से मेरा निर्माण कर सिर्फ पैसा बनाया जा रहा है, अब मेरी पुरानी ताक़त पुराना नाम लगभग मिटता सा जा रहा है, किर्पया मुझे बचाओ, मैं आपकी धरोहर हूँ , मुझे पहचानो, इसलिए मैं कहता हूँ की
मुझसे वेहतर कोई नहीं है ................मैं सदा अमर रहूँगा

सा रे गा माँ पा धा नी सा ...................

Friday, March 5, 2010

Women's Day महिला दिवस

आ गया महिला दिवस , महिलाओं के सम्मान मैं दो अच्छे शव्द बोलने का हम कहेंगे की आज की नारी पुरुषो से कम नहीं, आज पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही है, जिस क्षेत्र मैं देखो महिलाओं ने अपनी उपलव्धि दर्ज कराइ है , चाहे वो राजनीती हो, खेल क्षेत्र हो , विज्ञानं , देश - विदेश मैं हर जगह अपना दबदबा दिखाया है, जिससे हमें अपने आप और अपनी नारी शक्ति एवं राष्ट्र पर गर्व महसूस होता है,

हम कहते हैं की आज की नारी आजाद है अपने विचारों को प्रगट करने के लिए बराबर साथ चलने के लिए आजाद है, शायद ऐसा कहने मैं अच्छा लगता है, हम सब शायद दिखाबा पसंद लोग हैं, शायद हम पहुंची हुई हस्तियों को ही महिला दिवस पर याद करते हैं, हम उन्ही हस्तियों का गुणगान करते हैं ,जिनके बारे मैं हम देखते हैं या हमें बताया जाता है,

शायद हम उन महिलाओं को भूल जाते हैं, जो वाकई मैं महिला दिवस की हकदार हैं हम अपने बच्चों को सिर्फ बही बताते हैं, की इन्होने इस क्षेत्र मैं तो उसने उस क्षेत्र मैं कड़ी महनत करके, ये सिर्फ ये मुकाम हासिल किया है, जिसने महनत की पर मुकाम हासिल ना किया तो क्या हम उसको भूल जायेंगे, क्या सिर्फ नाम कमाना ही असली महिला दिवस है,

मेरा सोचना है, हमें उन महिलाओं को भी याद करना चाहिए जो अपने आस-पास हैं हमारी "माँ" जो हर परिस्थति मैं महान है, हर तकलीफ सहते हुए, अपना जीवन सिर्फ अच्छा करने के लिए जानी जाती है, इस "माँ" की वजाह से ही आज कितनी महिलाएं महान बनी हैं, हमें इन्हें भी सम्मानित करना चाहिए महिला दिवस पर,
वो मजदूर औरत जो एक एक ईंट के साथ महनत करके, सुंदर भवनों को बनाने में अपना योगदान देती है, शायद हम उसका सम्मान कभी ना कर सकें, पर हमें करना होगा, आज करना होगा सम्मान हर उस नारी का जो लडती है किसी ना किसी बात पर अपने सम्मान के लिए अपने अधिकार के लिए, हर उस महिला को जो ग्रामीण परिवेश में शायद हम सब से कहीं अधिक महनत करती है, करना होगा सम्मान इनका भी

मेरी तरफ से विश्व की सभी महिलाओं को इस महिला दिवस पर नमन, जो मेरी याद में हैं और जो गुमनाम हैं ....................



Women's Day ...............महिला दिवस



Thursday, March 4, 2010

तलाश

तलाश है तलाश है, अब मुझको भी तलाश है, जैसे

टूटती हुई सांसों को जीवन की तलाश है

सूखे खेत -खलिहानों और बंजर जमीं को, बारिश की बूंदों की तलाश है

प्यासे को पानी तो भूंखे को रोटी की तलाश है

बेरोजगार को रोजगार की तो बीमार को उपचार की तलाश है

झूंठ को सच की तो वेगुनाह को न्याय की तलाश है

अंधे को ज्योति की तो निर्धन को धन की तलाश है

आज के परिवेश मैं हम सबको तलाश है

तलाश है स्वस्थ्य समाज की, मजबूत राष्ट्र की

सच्चे इन्सान और इंसानियत की,

नफरत के माहोल मैं भाईचारे और प्यार की

इंसानों मैं खोई हुई मानवता की

आतंकवाद से लड़ने वाले योध्हा की

हम सब को अपनों के सच्चे प्यार की

कलियुग मैं राम रहीम और सच्चे भगवान् की

तलाश है कभी ख़त्म ना होने वाली आस की

तलाश है तलाश है अब मुझको भी तलाश है

संजय कुमार

Tuesday, March 2, 2010

विश्वास नहीं होता, पर ये सच है

जब मैंने आज का अख़बार उठाकर देखा तो उसमें जो लिखा वो पढ़कर विश्वास नहीं हुआ, लिखा था एक भगवा चोलाधारी बाबा जो अपने आप को पहुंचा हुआ संत और त्यागी कहता था वो निकला एक सेक्स रैकेट चलाने वाला पकड़ी गयी उन लड़कियों मैं कुछ मजबूरी बस तो कुछ सिर्फ एसोआराम के लिए , उन लड़कियों मैं कुछ MBA छात्राये कुछ Air hostess और कुछ उच्च परिवारों से, पर ये सच है, आपने और हमने इस जैसी कई शर्मसार ख़बरें पड़ी होंगी ,

क्या होता जा रहा है अपने समाज को और उसमें रहने वाले शिक्षित युवा वर्ग को , कुछ चंद लोग हमारे समाज और देश पर हावी हैं, ये कुछ साधू -संत हमारे विश्वास और धार्मिक भावनाओं से कब तक यूँ खिलवाड़ करते रहेंगे , आज के ये शैतान कब तक हमें आपस मैं लड़ाते रहेंगे, कब तक राम -रहीम का नाम यूँ ही अपमानित करते रहेंगे

क्या आज भी हमारा विश्वास कायम है या हम अन्धविश्वासी हो गए !ऐसे चंद भगवा धारियों ने हमारा विश्वास तोडा है, वर्ना हमारे इतिहास मैं ऐसे महान ऋषि मुनि हुए जो इतने पावन थे की , आज भी हम उनके सामने नतमस्तक होते हैं ,


आप स्वयं परख कीजिये कौन अच्छा कौन बुरा
हमें पहचानना होगा ऐसे साधू- और शैतानों को ,
और बचाना होगा अपनी धार्मिक छवि को