Monday, December 31, 2012

नवबर्ष हम सभी के लिए शुभ हो ......>>> संजय कुमार

सर्व-प्रथम मैं अपने सभी साथियों को  एवं परिवार के सभी सदस्यों को , इस देश की अवाम को नवबर्ष 2013 की हार्दिक बधाई , ढेरों अनेकों शुभ-कामनाएं देता हूँ ! बर्ष 2013 आप सभी के जीवन में नयी उमंग-तरंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप सभी परिवार सहित स्वस्थ्य रहें, मस्त रहें , एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे ! हमें बीते  साल के अच्छे और खुशनुमा पलों को याद कर और  बुरे पलों  को भुलाकर इस आने वाले नवबर्ष का स्वागत करना होगा ! हम  अपने बीते बर्ष के उन अच्छे पलों को याद करते हुए आगे बढ़ें जो हमें उत्साहित करते हैं और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं ! हमें अपनी पिछली गलतियों से सबक लेना होगा , अपनी भूलों को सुधारना होगा , अपने अनुभवों और ज्ञान को बांटना होगा , आने वाले बर्ष में सफलता अर्जित करने के लिए तत्पर रहना होगा , आदर्श स्थापित करना होंगे ......... कदम - कदम पर चुनौतियाँ हमारा रास्ता रोकेंगी और हमें उनका सामना और समाधान बड़ी ही सूझ-बूझ और कड़े परिश्रम से करना  होगा ! हमें अपने आपको पूर्ण बनाने के लिए , व्यक्तित्व में निखार लाने के लिए हमें अपने जीवन में अपने कुछ सिद्धांत बनाने होंगे और उन पर सिद्धांतों का पालन करने के लिए पूर्ण  ईमानदारी के साथ द्रण रहना होगा ! आज हमारे देश में जो हालात हैं , हम जिस वातावरण में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं वहां पर अब हमें ज्यादा सतर्क , सचेत और होशियार रहना होगा तभी हम सब सलामत और सुरक्षित हैं ! 


आप सभी परिवार सहित इस नव-बर्ष २०१3 का स्वागत कीजिये , 

एक बार फिर से आप सभी को नवबर्ष की ढेरों -अनेकों शुभ-कामनाएं 

धन्यवाद 
संजय कुमार चौरसिया 
गार्गी चौरसिया 
देव & कुणाल  


Wednesday, December 26, 2012

करो होंसले बुलंद , आवाज बुलंद ........>>> गार्गी की कलम से

फूल बनने से पूर्व ही 
बिखर जातीं हैं कलियाँ ,
मिल जाते हैं रावण 
हर घर , हर गलियां
ना जाने कितनी लड़कियों को 
पलकों से ढँक आँखें ,
रोते देख लो ,
झेंपती, उस मासूम को 
माँ की गोद में लिपटी 
सिसकती देख लो !
झूठी इज्जत की चादर से 
घर को क्यों ढंकती हो ?
अन्यायी , निर्दयी समाज से 
क्यों डरती हो ?
विश्वास और सुरक्षा ही 
छीन ली गयी हो तब 
क्या खोने से डरती हो ?
करो संचय अपने में 
नयी शक्ति का ,
करो होंसले बुलंद , आवाज बुलंद 
करो विरोध इसका 
राम नहीं आयेंगे ,
है इन्तजार बेकार 
करना होगा तुम्हें ही 
रावण का संहार !
तब ही बच पाएंगी 
बगीचे की कलियाँ ,
बन पाएंगी सुगंध बिखेरती 
फूल , तारो ताजा 
करो होंसले बुलंद .............. करो होंसले बुलंद 

प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

Tuesday, December 18, 2012

खत्म होते घर - आँगन ..........>>> संजय कुमार

घर - आँगन , घर -परिवार , रिश्ते-नाते और हमारे संस्कार बदलते समय के साथ  धीरे - धीरे बदलते जा रहे हैं ! अब हमारे घर- परिवार में वो बात नहीं रही जो पहले कभी हुआ करती थी ! पहले हम घर-परिवार से जाने जाते थे और अब ....?  कहा जाता  हैं एकता में जो शक्ति है वो किसी अकेले इन्सान में नहीं होती और ये  बात बिलकुल सही है क्योंकि  हमने अपनी आँखों से एकता , एकजुटता की शक्ति को देखा है ! फिर चाहे वह युवा संगठन हो या फिर " अन्ना " का समर्थन करने वालों का संगठन, हम सब इसकी ताक़त को जानते हैं और हमारे देश की सरकार भी एकता की ताकत से भली-भांति परिचित है ! किन्तु मैं यहाँ बात कर रहा हूँ, अपने पारिवारिक संगठन की, या संयुक्त परिवार की जो अब नाम के बचे हैं ! एक समय था जब हम किसी के घर जाते थे , तो वहां पर हमारी मुलाकात एक ही परिवार के कई  सदस्यों से होती थी ! घर में मौजूद घर का सबसे मजबूत स्तम्भ जिस पर पूरा घर-परिवार टिका हुआ होता है  और वो हैं उस घर के बुजुर्ग दादाजी -दादीजी , अगर ये नहीं होते तो ऐसा लगता है जैसे हमें सही राह दिखाने वाला कोई  नहीं है ! दूसरा मजबूत स्तम्भ माता -पिता जो जीवनभर अपने बच्चों के साथ रहना चाहते हैं ,किन्तु अब ऐसा समय आ गया है कि , आज के बच्चे ही अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहते ! माता -पिता उन्हें किसी बंदिश से कम नहीं लगते ! आज घर-घर में , हर घर में चार बर्तन खनकने की आवाजें तेज होती जा रही हैं ! हर इंसान के साथ माता-पिता का साथ  लम्बे समय तक होना अत्यंत जरुरी होता है ! जिन लोगों के लिए माता -पिता बोझ होते हैं उन्हें ये मालूम होना चाहिए  जिनके सिर पर माता-पिता का साया नहीं रहता वो बच्चे या तो बहुत अच्छे बनते हैं या फिर  ? .. वहीँ अन्य रिश्तों में  चाचा-चाची,भैया-भाभी ऐसे  कई रिश्ते एक ही परिवार में देखने को मिलते थे जिनसे कोई भी घर एक परिवार बनता है ! ऐसे परिवार में जाने से ,उनसे मुलाकात करके मन को एक अनूठी ख़ुशी मिलती है  और ऐसे परिवार से मिलता है घर का प्यार , अपनापन, मान-सम्मान , और सच्चे रिश्तों की महक ! किन्तु  जैसे जैसे समय तेजी से गुजर रहा है और जब से  इन्सान अपने आप से मतलब रखने लगा है, सिर्फ अपने बारे में सोचने लगा है , परिवार के अन्य सदस्यों की  परवाह नहीं उनके लिए मान- सम्मान नहीं तो ऐसी स्थिति में  शुरू हो जाता है  विघटन और वदलाव उस परिवार की एकता में  ! आज की भागमभाग में अगर इंसान के पास कुछ नहीं है तो वो है सब्र और संयम , जो किसी भी इंसान की सबसे बड़ी ताक़त होती है ! किन्तु आज हम देख रहे हैं कि , इंसान आज कितनी जल्दी अपना सब्र खो देता  है , जिस कारण से आये दिन घर परिवार में लड़ाई झगडे की स्थिति बन रही है और यही स्थिति आयेदिन होने वाले  झगड़ों के कारण इंसान अपनों से अपने परिवार से दूर होता जा रहा है या मजबूरी बश अपने ही घर परिवार के बीच दीवारें खींच रहा है ! जब किसी परिवार के बीच दीवारें खींचती है तो क्या स्थिति होती है  उस घर परिवार की ?  एक बड़ा सा घर बदल जाता है  चिड़ियों के छोटे-छोटे घोंसलों के जैसा , जिसे हम घर नहीं  पत्थर से निर्मित एक मकान कहते हैं ! आज इस  विघटन और वदलाव से हमारा कितना अहित हो रहा है  शायद हम  यह सब जानते है फिर भी   जानकार अनजान हैं ! हमें परिवारों में हुए विघटन और वदलाव का असर अब देखने को मिल रहा है !  अपने बच्चों में क्षीण होते संस्कार के रूप में , माता -पिता के खोते हुए सम्मान के रूप में , वदलती रिश्तों की परिभाषा और उनकी महक के रूप में , खत्म होती अपनों के प्रति अपनत्व की भावना के रूप में , पथभ्रष्ट होती युवा पीढ़ी के रूप में , और ये सब कुछ हुआ हमारे घर - परिवार के बंटने से उनके बीच मनमुटाव की दीवार से ! जब से इंसान ने अकेले रहना शुरू किया  है , सिर्फ अपने बारे में सोचा है  तब से वदल गयी हर  घर - परिवार की  कहानी ! आज घर - परिवार की बात करना बड़ी बेमानी सी लगती है ...... और ऐसा लगता है जैसे हमें अपना जीवन सिर्फ अपने लिए जीना है ...... किन्तु जब हम अपने भरे - पूरे परिवार के साथ बिताये लम्हों को याद करते हैं तो मन बड़ा ही दुखी होता है और महसूस होता है कि , जो मजा अपनों के साथ है वो अकेले में नहीं ....... किन्तु आज ये संभव भी तो नहीं है क्योंकि माता-पिता अपना घर नहीं छोड़ना चाहते और बच्चों को अपना भविष्य बनाने के लिए घर से बाहर निकलना ही होता है ....... क्या उचित है क्या अनुचित , क्या सही है क्या गलत ?  इस बात का जबाब शायद ही किसी के पास हो , सभी के पास अपने - अपने तर्क हैं जिन पर बहस करना बेकार है ! फिर भी एक कटु सत्य हमारे सामने हैं , और वो ये है की ....... हमारे घर-आँगन खत्म हो गए या फिर आज बदल रहे हैं  छोटी छोटी कोठरियों में 

गुजारिश  :-- कोशिश करें ना खत्म करें अपने घर - आँगन , ना निर्मित होने दें अपने घर - आँगन कोठरियों में  

धन्यवाद 

Saturday, December 8, 2012

हाँ .. हाँ ... हाँ .... मैं भ्रष्टाचारी हूँ ( व्यंग्य ) ........>>> संजय कुमार

जब देखो , जहाँ देखो , जिसे देखो आज  मेरे पीछे हाँथ धोकर नहीं बल्कि नहा -धोकर पीछे पड़ा है ! कहीं मेरे खिलाफ जुलुस निकाले जाते हैं तो कहीं नारे लगाये जाते हैं ! कोई मेरे खिलाफ " लोकपाल " की मांग कर रहा है तो कोई अन्य तरीकों से मुझे घेरने की नाकाम कोशिश में लगा हुआ है ! आखिर कब तक हम जैसे लोगों को परेशान किया जाता रहेगा  ? आखिर हमारा कसूर क्या है ? आखिर हम भी इंसान है ( ऐसा हम सोचते हैं ) हमें भी खुली हवा में सांस लेने का अधिकार है ! आज पूरा देश हमें नफरत भरी निगाहों से देख रहा है ( सिर्फ दुखी,पीड़ित और मजबूर लोग ) क्यों ? इसलिए की हम सच को स्वीकार नहीं कर रहे हैं ! मैं आज इस देश की अवाम से एक बात खुलकर कहना चाहता हूँ कि , आप लोग मुझे घ्रणा की द्रष्टि से ना देखें ....... मैं अब रोज की बातों को सुन-सुनकर तंग आ चुका हूँ , इसलिए  मैं आज सब कुछ स्वीकार करने को तैयार हूँ ! हाँ .. हाँ ... हाँ .... मैं भ्रष्टाचारी हूँ और ये बात स्वीकार करते हुए मेरे मन में किसी भी प्रकार की कोई आत्मग्लानि नहीं है , और यही 100% सत्य है ! .....  ये सारी बातें कल ही मुझे एक भ्रष्टाचारी ने अपने मुखमंडल द्वारा सुनाई , और ये सारी बातें सुनाते वक़्त वह बहुत ही उदास था ! उसकी उदासी और पीड़ा को देखते हुए मुझे ऐसा लगा कि , मुझे इस दुखी भ्रष्टाचारी की बात आप तक अवश्य पहुंचानी चाहिए ..... ये बात वो भी आप लोगों तक पंहुचा सकता था किन्तु उसने मुझसे कहा " शायद मेरी इस बात को आप लोग राजनीति का कोई नया पैंतरा ना समझें " इसलिए उसने ये बात मेरे समक्ष रखी ! ......आजकल हमारे देश में चारों तरफ जहाँ देखो वहां सिर्फ भ्रष्टाचार और घोटाले ही छाये हुए हैं ! सुबह सुबह जब अखबार खोलकर देखो तो एक नया घोटाला , टेलीविजन पर न्यूज़ में हर वक्त घोटाला और भ्रष्टाचार इसके अलावा इस देश में अब कुछ नहीं चलता ! आजकल जितना कुछ भ्रष्टाचारियों को सहना और सुनना पड़ रहा है शायद ही किसी और को इतना सहना और सुनना पड़ रहा हो ! आज हर जगह उनको बुरी नज़र से देखा जा रहा है ! कोई भी कभी भी उनसे कुछ भी पूंछने लगता है , सवालों की बौछार कर दी जाती है ! जब देखो तब उनको बिना बात के परेशान किया जाता है ! भ्रष्टाचारी थक गए हैं जबाब देते देते ! आज भ्रष्टाचारियों की हालत देखकर मेरा मन भी दुखी हो जाता है ! जब मैं उनकी दुःख तकलीफ को देखता हूँ तो मुझे बहुत बुरा लगता है मुझसे रहा नहीं जाता ! क्यों उनके साथ ऐसा बुरा व्यव्हार हो रहा है ? जब मैंने एक भ्रष्टाचारी से पूंछा तो उसने मुझे बताया ...... " अगर मैंने भ्रष्टाचार किया तो कौन सा गुनाह या अपराध कर दिया , और यदि गुनाह कर भी दिया तो वो मेरी " मजबूरी " थी ......... और पूरी दुनिया में लोग मजबूरी में कुछ ना कुछ गलत करते ही है,  और यदि मैंने भी कोई गलती कर भी दी  है तो उसे जाने भी  दो , ऐसा किसने कह दिया कि आप हमें इंसान ही ना समझें ! आप तो जानते हैं मैं बीबी , बच्चों वाला हूँ , मेरा परिवार काफी बड़ा है ... सभी की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है ...... मेंहगाई के इस दौर में  मेरी तनख्वाह इतनी नहीं है कि , जिससे मैं अपने परिवार के लिए कुछ कर सकूँ ...... देश में मंहगाई आज अपनी चरम सीमा को तोड़ रही है , ऐसे में हमारे घरों में चूल्हा तो जलता है पर उस पर पकाने को कुछ नहीं है ....... आप तो जानते हैं , हमारी सरकार के पास वादे तो है किन्तु रोटी नहीं है , जमीन है पर घर बनाने के लिए ईंट , पत्थर और सीमेंट नहीं ,और सच तो यही है कि , इंसान को जीने के लिए रोटी और रहने के लिए घर तो चाहिए ही ...... ईमानदारी से या फिर बेईमानी से ...... अब ऐसी स्थिति में , मैं क्या कर सकता हूँ ? बच्चों की अच्छी शिक्षा , बेटी का विवाह , बूढ़े माता-पिता को " चारधाम " की यात्रा , अपने लिए कार , पत्नी के लिए सोने का हार मैं कैसे दे सकता हूँ ?  इसलिए मैं बेईमानी करता हूँ , घूस लेता हूँ और भ्रष्टाचार फैलाता हूँ ! जब मैं ईमानदारी से काम करता हूँ तो हर जगह से ठुकराया जाता हूँ , बेईमानों के बीच में , मैं अकेला आखिर क्या कर सकता हूँ ? ईमानदार होने पर भी मुझे भ्रष्टाचारी ही समझा जाता है ! इसलिए मैंने अब ठान लिया है कि , जब मैं रिश्वत लेता हूँ, बेईमानी करता हूँ , और घोटाले भी करता ही हूँ तो ये स्वीकार कर लेने में आखिर बुराई ही क्या है की मैं  भ्रष्टाचारी हूँ  ? ........  बेईमानी एक रूपए की हो या एक लाख की , बेईमान तो कहलाऊंगा ही  फिर इस सच को स्वीकार करने में हर्ज ही क्या है ! वैसे भी बेईमान , भ्रष्टाचारी और घोटालेबाजों का आजतक इस देश में क्या हुआ है ? जैसे एक आम आदमी रहता है ठीक वैसे ही एक बेईमान .... किन्तु डरा हुआ कि कहीं कोई भ्रष्टाचारी न कह दे !

मैं देश के सभी भ्रष्टाचारियों से आग्रह करूंगा कि , आपको अब किसी से कुछ छुपाने की या डरने की कोई जरुरत नहीं है ! फक्र से कहों  .......... हाँ .. हाँ ... हाँ .... मैं भ्रष्टाचारी हूँ ...

धन्यवाद 

Saturday, December 1, 2012

मैं खुशियाँ खरीद लाया ......>>> संजय कुमार

जिस तरह " पैसे " पेड़ों पर नहीं उगते , ठीक उसी प्रकार खुशियाँ भी किसी पेड़ पर नहीं उगती और ना ही बाजार में मिलती हैं कि , जिन्हें बाजार से खरीदा जा सके ...... फिर सवाल उठता है कि , खुशियाँ कहाँ से मिलती हैं ? ऐसा क्या किया जाय जिससे खुशियाँ हांसिल की जा सकें ! हर इंसान के जीवन में  खुशियों का अपना अलग महत्व होता है ... कोई नौकरी पाकर खुश है तो कोई छोकरी , कोई नेता बनकर  खुश है तो कोई अभिनेता ,  कोई KBC में जाकर खुश है , तो कोई वहां से आकर , कोई व्यापार से खुश है तो कोई सरकार ( उत्तर प्रदेश ) बनाकर खुश है ! बच्चे कार्टून देखकर खुश हैं तो सरकार " कार्टूनिस्ट " को हवालात में बंद कर ! " कसाब " जैसे आतंकवादी को फांसी होने पर पूरा देश खुश है ( देश के गद्दार शायद दुखी हों ) !  खैर खुशियाँ तो अनेकों प्रकार की होती है ... सुख और दुःख हर इंसान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है , किन्तु इस हिस्से में दुःख का पलड़ा हमेशा ज्यादा भारी होता है और थोड़ी सी ख़ुशी पाने के लिए इंसान अपना पूरा जीवन " जीवन की आपाधापी " में निकाल देता है ! ( सिर्फ देश के गरीब , बेरोजगार और आम नागरिकों के लिए जिनके लिए खुशियों के मायने सिर्फ पैसा है और वो पैसों को ही खुशियों का साधन मानते हैं ) हालांकि पैसा आज हर किसी की जरुरत है और  सभी को जरुरत से ज्यादा चाहिए भी ...... ( इंसान के पास कितना भी पैसा हो उसे उससे कहीं अधिक की ही चाहत होती है ) .. क्योंकि पैसा है तो सब कुछ है !  फिर भी इस बात को कुछ लोग पूरी तरह से  नकार देते हैं कि , पैसा ही सब कुछ नहीं होता ..... खुशियाँ पाने के लिए पैसे की जरुरत नहीं पड़ती ... उसके लिए हमें ये करना चाहिए , वो करना चाहिए,  तो फिर खुशियाँ अपने आप आपके पास खिंची चली आएँगी ! इसके लिए हमें तर्क दिए जाते हैं कि , ...... हमें संयुक्त परिवार में रहना चाहिए , हमें ज्यादा से ज्यादा वक़्त अपने परिवार के साथ विताना चाहिए , हमें अधिक की चाह ना रखते हुए थोड़े में संतोष करना चाहिए ! एक दुसरे के प्रति आदर , विश्वास होना चाहिए , हमें अपनी आवश्यकताएं कम करनी  चाहिए ...  हमें मशीनों की तरह काम नहीं करना चाहिए , पैसे की जगह इंसान को महत्व देना चाहिए ,.... इत्यादि ,! इन दिए हुए तर्कों को यदि हम अपने जीवन में अपनाते हैं तो शायद आप खुशियाँ हांसिल कर सकते हैं  ! किन्तु इन बातों को सोचने और करने के लिए " वक़्त " चाहिए जो आज किसी के पास नहीं है , क्योंकि हम सब पैसा कमाने में लगे हुए हैं , क्योंकि हम ये बात जानते हैं यदि पैसा नहीं कमाएंगे तो कुछ भी हांसिल नहीं कर सकते ! बिना पैसे हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे सकते उनको इंजिनियर , डॉक्टर , एक्टर , कलेक्टर नहीं बना सकते ! हम अपने बच्चों की शादी बड़ी ही धूम-धाम से नहीं कर सकते ! अच्छा जीवन-यापन करने के लिए एक अच्छा घर होना बहुत जरुरी है , एक कार , मोबाइल , कंप्यूटर आदि भी हो तो बहुत अच्छा है ! और इसके लिए सबसे ज्यादा पैसे की जरुरत होती है , यदि हम ये सब अपने परिवार को देते हैं तो शायद वो खुश होंगे ? जिस तरह  एक अंधे व्यक्ति के लिए आँखें मिलना उसके लिए सबसे बड़ी ख़ुशी होती है ठीक उसी प्रकार एक रोजमर्रा काम कर अपना जीवन- यापन करने वाले व्यक्ति के लिए पैसा ही उसकी सबसे बड़ी ख़ुशी होती है ! हम कितने भी तर्क दें किन्तु सत्य तो यही  है कि , इंसान का पूरा जीवन सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने पर ही केन्द्रित होता है क्योंकि हम जानते हैं आज बिना पैसे जीवन संभव नहीं है ! एक आम आदमी ( गरीब , प्रतिदिन मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण - पोषण करने वाला ) जब अपने परिवार की छोटी - छोटी ख्वाहिशों को पूरी करता है और उस वक़्त जो ख़ुशी और सुकून उसे मिलता है तो वो उस पल को हर बार जीना चाहता है ! और ये ख़ुशी उसे तभी मिलती है जब उसके पास पैसा होता है ! 
परिवार को खुश देखकर वो अपने मन में सोचता है ........ मैं खुशियाँ खरीद लाया !

धन्यवाद