Saturday, June 23, 2012

" हमसे है जमाना - जमाने से हम नहीं " ......>>>> संजय कुमार

 ऐसा नहीं है कि मेरे होने से ये देश चल रहा हो , ऐसा भी नहीं है कि मेरे ना होने से ये देश नहीं चलेगा ! हमारी गिनती तो उन लोगों में होती है जो गरीबी , मंहगाई , भ्रष्टाचार , घोटाले आदि को लेकर चिल्ल पों मचाते रहते हैं , हम तो उन लोगों में से हैं जिन्होंने सरकार की नाक में दम कर रखा है ! भले ही सरकार की नजर में हम कीड़े-मकौड़े हों फिर भी .................... मुझे एक फेमस फ़िल्मी डायलॉग  याद आता है ! " हमसे है ज़माना , जमाने से हम नहीं " .......... क्योंकि हम हैं भारत के " अनमोल रत्न ", हम नहीं होंगे तो कुछ भी नहीं होगा ! हम हैं मजबूर , लाचार , हर जगह से ठुकराए  हुए इस देश के  " गरीब "  मैं यहाँ बात कर रहा हूँ हमारे देश के सबसे बड़े गहने का यानि देश के वीर, गरीबों की , ये वो  गरीब हैं जो इस देश की शान हैं और  जिनके बिना इस देश में  कुछ भी संभव नहीं है ! अगर हम  हमारे देश का भगवान इन गरीबों को कहें तो गलत नहीं होगा ! ( भ्रष्टाचारियों के भगवान, नेताओं के भगवान )  !  हमारे देश में  जिंतनी संख्या गरीबों की हैं  उतनी जनसँख्या तो किसी छोटे मोटे राष्ट्र की भी नहीं होगी ! इस देश में  सब कुछ इन गरीबों की बजह से ही तो हो रहा है !  देश के बड़े बेईमान और भ्रष्टाचारी  नेता आज इन गरीबों का खून चूसकर ही तो देश में  राज कर रहे हैं ! देश में  जो भ्रष्टाचार चारों तरफ फैला हुआ है वो सब  इन गरीबों की वजह  से ही तो है ! अरे नहीं भई , इन गरीबों ने कोई भ्रष्टाचार नहीं फैलाया बल्कि इन गरीबों को मिलने वाली  आर्थिक सहायता को जब ऊंचे पदों पर बैठे  अधिकारी और मंत्री निगल गए तब से शुरू हो गया भ्रष्टाचार वर्ना भ्रष्टाचार , घूसखोरी आखिर किस चिड़िया का नाम था हम तो नहीं जानते थे ! सच तो ये है कि , हमारे देश के गरीब वाकई में  किसी " वीर योद्धा " से कम नहीं हैं  जो हर हाल में जी लेते हैं ,  चाहे कोई कितना भी जुल्म करे इन पर , फिर भी उफ़ तक नहीं करते और जीवन भर गरीब ही रहते हैं !  इन गरीबों का नाम लेकर आज देश में  ना जाने कितनी संस्थाएं काम कर रहीं हैं..... क्यों ? गरीबों का उत्थान करने के लिए  , फिर भले ही ये  संस्थाएं गरीबों के लिए कुछ ना करें पर अपना उत्थान ( उल्लू सीधा  ) जरूर कर रहीं हैं ! आज देश में  जितने भी नेता ऐशोआराम  की जिंदगी जी रहे है , और शान से देश की कमान संभाल रहे है वो भी  सिर्फ इन गरीबों की बदौलत ही संभव हुआ है ! ( देश का सबसे बड़ा वोट बैंक )  आज तक देश में  जितने भी घोटाले हुए हैं वो  सब इन गरीबों का हक मारकर ही तो हुए हैं ,  बेचारा गरीब तो अपनी गरीबी में  ही अपना पूरा जीवन गुजार देता है  और उस गरीब के नाम से इस देश में  अरबों-खरबों का लेनदेन बस यूँ ही हो जाता है ! अगर हमारे देश में  गरीब और गरीबी ना हो तो ना जाने कितने लोगों को तो भूखों मरने तक की नौबत आ जाए !  आज देश, नेताओं की बजह से नहीं बेचारे गरीबों की बजह से चल रहा है !( हमारा देश तो वश राम भरोसे चल रहा है  )  कितने ही घर परिवार आज इन गरीबों की बजह से चल रहे हैं ! देश में जो मंहगाई है वो हमारे लिए है क्योंकि मंहगाई से फर्क हम लोगों को पड़ता है किसी नेता और घूसखोर को नहीं ....... हमारे नाम पर तो हमारी सरकार " विश्व बैंक "  से करोड़ों रूपए ले आती है और दूसरी जगह हमारे मंत्रियों के करोड़ों के बिल बिना किसी पूंछ परख माफ़ हो जाते हैं ! अगर हम ना हों तो क्या होगा इस देश का ?  क्या ये वाकई में सच है कि " हमसे है जमाना - जमाने से हम नहीं "  तो फिर आज हम हैं कहाँ ......??????


धन्यवाद

Wednesday, June 20, 2012

हे " भारत माँ " ......>>> संजय कुमार

तेरे दिल में अभी और भी 
जख्मों की जगह है !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब मुंगलों ने तेरी छाती पर ,
पाँव जमाया था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब अंग्रेजों ने तुझको 
बेड़ियों में जकड़ा था !
तेरा दिल जख्मी हुआ था 
जब तेरे जवान बेटे 
वीरगति को प्राप्त हुए थे !
पर शायद तब तुझे 
इस बात की ख़ुशी तो 
हुई होगी कि ,
तेरी आने वाली औलादें 
अब सुखी , सुरक्षित रहेंगी 
पर तेरा दिल 
और भी जख्मी हुआ  
यह देखकर 
कि , तेरी सोच के विपरीत 
तेरी औलादें ही 
आपस में एक-दुसरे को 
रुला रही हैं !
बेईमानी , स्वार्थ , यौन शोषण 
और भ्रष्टाचार के 
अवगुणों में पड़कर !
क्या तेरे दिल में  ?
अब भी , और जख्मों के लिए 
जगह है !
" भारत माँ "

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद  

Wednesday, June 13, 2012

पिता के दर्द को भी समझें .....>>> संजय कुमार

भारतीय  संस्कारों में  माता -पिता का स्थान ईश्वर से भी बढकर माना गया  है ! किसी भी इंसान की उत्पत्ति  माता-पिता के द्वारा ही होती    है , उन्हीं के कारण वो इस दुनिया को देख पाता  है , एक  कारण यह भी है कि,  एक बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले अपने माता- पिता को ही जानता है इसलिए उसकी दुनिया इन्हीं से होती है , बाकि सब उसके बाद उसे बताया जाता है ! एक  माँ अपना सबसे ज्यादा समय अपने बच्चों के साथ गुजारती है , इसलिए सबसे ज्यादा प्यार वही करती है , और  पिता रहता है दिन भर बाहर वह भी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! इसलिए कभी- कभी कुछ बच्चों को ये लगता है कि शायद पिता उनको उतना प्यार नहीं करते  जितना की उनकी  माँ उन्हें  करती है ! और कभी कभी यह बात बच्चों के मन में  घर कर जाती है ! पर एक पिता का फर्ज होता है ,कि वह अपने परिवार और बच्चों की  देखभाल करे ! जीवन की  हर सुख सुविधाओं और  जरूरतों को पूरा करे , और वह ऐसा ही करता है ,  अपना पूरा जीवन समर्पित करता है अपने परिवार और अपने बच्चों के लिए ! जीवन भर हर कष्ट सहते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह पूरी ईमानदारी के साथ करता है ! घर पर  बच्चों कि जिम्मेदारी माँ के हाँथ में  रहती है , और बाहर पिता की ,  जब बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय अपनी माँ के साथ  गुजारते हैं  , तो कई बार यह देखा गया है की  बच्चे माँ के लाडले हो जाते हैं  और उन्हें कई बार यह लगता है की उन्हें अब पिता के प्यार की जरूरत ही नहीं है  और वह इस गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं कि, हमें तो हमारे पिता प्यार ही नहीं करते ,  और जब कभी बच्चों के सामने माँ के द्वारा पिता से यह बोला जाता है कि, तुम्हे तो बच्चों की  जरा भी फिक्र नहीं हैं , और न तुम्हें बच्चों से प्यार है !  इस तरह की  बातें जब बच्चे रोज - रोज सुनते हैं, तो एक गलत असर उनके दिमाग पर पड़ता है ! और धीरे एक विरोध की  भावना पिता के लिए उत्पन्न हो जाती है ! घर में  जब माँ हर बात में  बच्चे का पक्ष लेने लगे तो क्या होगा ? चाहे सही हो या गलत , अगर ऐसा है तो भविष्य में हमारे सामने कई समस्याएं उन्पन्न हो सकती हैं ! आज आधुनिकता इतनी बढ़ गयी है  कि व्यक्ति के पास तो वैसे  ही समय नहीं हैं अपने परिवार को समय देने का , उस पर हमारे बीच से  संस्कारों का धीरे-धीरे पतन होना !  आज कई परिवारों  में  यह देखने को मिल जाता है  कि , जिस पिता ने अपना खून-पसीना बहाकर जिन बच्चों को बड़ा किया, उन्हें समाज में  उठने बैठने लायक बनाया , जीवन की हर अच्छी और बुरी बात का ज्ञान कराया , उनको उनके पैरों पर खड़ा किया ,  आज वही बच्चे उन्हें  प्रतिदिन अपमान और तिरस्कार दे रहे हैं ! आज कई जगह यह भी देखने को मिल जाता है की , माँ  के अंधे लाड-प्यार की कीमत पिता को भुगतनी पड़ती है जो किसी भी पिता के दिल को सिर्फ आघात पहुंचाती है और एक ऐसी पीड़ा जो वो बयां नहीं कर पाता  !  एक  पिता जो बच्चों की बचपन से लेकर जवानी, शादी और शादी के बाद की सभी छोटी मोटी गलतियों को बिना किसी झिझक के माफ़ कर देता है , आज  वहीँ  जब कभी पिता द्वारा अगर कोई गलती हो जाये तो वही बच्चे जरा भी नहीं सोचते  अपने ही पिता का अपमान करने से ! एक पिता अपने बच्चों का जिन्दगी भर सिर्फ भला सोचता है  पर आज के इस कलियुग में " राम "  अब कहीं दिखाई नहीं देते पर "  दशरथ " आज भी बहुत हैं जो सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों से प्यार करते हैं , और उनकी जरा सी तकलीफ में  अपना सब कुछ न्योछावर  करने को तत्पर तैयार  रहते हैं किन्तु  आज  उनकी संतान नहीं !  आखिर एक पिता अपने बच्चों से क्या चाहता है  ?  थोडा सा प्यार , पिता का मान-सम्मान और कुछ नहीं !जिस तरह माँ की ममता महान होती है , उसी तरह पिता का प्यार भी महान होता है ! 
एक गुजारिश :  ना करें अपने पिता का अपमान , भला हो या बुरा , पिता तो पिता ही होता है , उसका दर्द भी समझें ..................................।


धन्यवाद  

Tuesday, June 5, 2012

पर्यावरण दिवस पर , आप सभी से विनम्र निवेदन ......... >>>> संजय कुमार

आज पूरा विश्व जिस महाप्रलय से डर रहा है , उसका जिम्मेदार  कोई और नहीं हम मानव ही हैं ! आज हम लोगों ने ही इस महाप्रलय को स्वयं निमंत्रण दिया है ! पिछले बर्ष  जो जापान के साथ हुआ था  , वो महाप्रलय हम सभी ने अपनी आँखों से देखा है ! क्या हमने  उससे कुछ सबक लिया  ?  प्रक्रति के इस महाप्रलय से , क्या हमने कुछ सीखा ?  शायद नहीं ! क्या आप जानते हैं ? इस महाप्रलय का कारण क्या है ? शायद आप जानते हैं ,  इसका कारण,  क्योंकि कारण हम स्वयं ही हैं ! जब कारण हम ही हैं तो प्रक्रति को दोष देने से क्या होगा  ! आज हमने अपने आपको इतना व्यस्त कर लिया है कि, हम अपने बारे में सोचने के अलावा शायद  कुछ और नहीं कर पाते , ( मंहगाई , भ्रष्टाचार , घोटाले , संसद , सरकार  , लोकपाल , अन्ना-रामदेव इसके अलावा कुछ भी नहीं )  यदि हम कभी भी प्रकृति के बारे में सोचते या उसको बचाने के लिए कुछ करते तो शायद इस तरह के महाप्रलय से बच जाते  !  प्राक्रतिक महाप्रलय की जिम्मेदार प्रक्रति नहीं हम इंसान हैं ! आज हम लोग जिस तरह प्रक्रति से छेड़छाड़ कर रहे हैं ! या यूँ कहें उसके साथ बलात्कार कर रहे हैं , हम उसको जिस  तरह से तहस-नहस और नेस्तनाबूत कर रहे हैं ! प्रकृति का जब इस तरह दोहन होता रहेगा तो प्रकृति का बदला लेना जायज है !  प्रक्रति समय समय पर  हम सबको चेतावनी जरुर देती और आगाह करती है कि , वक़्त रहते संभल जाइये वर्ना ...........  उसकी चेतावनी अगर जापान में आये प्रलय जैसी है तो अंदाजा लगाइए  उसका प्रकोप कितना भयंकर होगा !  उसके ख्याल से ही इंसानी रूह काँप जाती है !  देश को आधुनिक बनाने के चक्कर में जिस तरह हमने बड़े - बड़े जंगलों का सफाया किया है , उसी का नतीजा है ये सब , वृक्षारोपण के नाम पर होता भ्रष्टाचार भी इसकी एक बड़ी बजह है ! सड़क निर्माण और हजारों किलोमीटर लम्बे हाइवे बनाने में जिस  तरह लाखों-करोड़ों पेड़ों को काट दिया जाता है, या उनको काट दिया गया है , उनकी भरपाई हम आज तक नहीं कर पाए और शायद कभी कर भी नहीं पायेंगे ! हम सब अच्छी सड़क मार्गों का आनंद लेते हैं वो भी प्रक्रति का दोहन करते हुए ! बड़े - बड़े खेत -खलिहानों और बड़े - बड़े पेड़ों को साफ़ कर भू-माफिया अपनी जेबें भर रहे हैं ! बड़े -बड़े प्राक्रतिक मैदानों को समतल कर शोपिंग माल बनाये जा रहे हैं ! हमारे देश में वृक्षारोपण की कई मुहीम चलायी जाती हैं ! लेकिन हम कितने सफल होते हैं वृक्षारोपण जैसी मुहीम में !  आज जहाँ हर दिन हर पल भ्रष्टाचार हो रहा है !  वहां प्रक्रति के साथ भी हम धोखा कर रहे हैं !  हम लोगों ने हजारों - लाखों पेड़ लगाए तो हैं लेकिन कहाँ ? आप तो जानते ही होंगे सिर्फ कागजों में , हम भले ही पेड़ कागजों में लगायें , लेकिन प्रक्रति अपना हिसाब सबके समक्ष ही लेगी ! यदि हमारे पास प्राकृतिक संपदा नहीं  हैं तो  क्या होगा इस ब्रह्माण्ड का ?  कुछ नहीं वचेगा इस प्रथ्वी पर हर जगह सिर्फ तवाही और तवाही !  इसलिए हमें रोकना होगा इस तरह के महाप्रलय को ! पर्यावरण और प्रकृति इस ब्रह्माण्ड की सबसे कीमती धरोहर !  हम आधुनिक तौर पर तो सुन्दर हो गए किन्तु प्राकर्तिक सुन्दरता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है ! प्रकृति ने  इस कायनात को अपना सर्वश्व दिया है ! और हम कुछ भी नहीं दे पाए ! इस प्रकृति ने  इंसानों को इनको इतने उपहार दिए हैं , जिसका ऋण ये मानव कभी नहीं उतार सकता ! 
आप सभी से मेरा विनम्र निवेदन है ........ अभी भी वक़्त है ...... रूठी हुई प्रकृति को मनाने का ....... तो मना लीजिये .. अब देर ना कीजिये 
ये प्रकृति और पर्यावरण आपके हैं ..... अपनों का ख्याल रखिये ...................

धन्यवाद

Friday, June 1, 2012

पहले मजा फिर सजा ..... या फिर ........>>> संजय कुमार

आजकल  दाद , खाज , खुजली मिटाने वाली कंपनी का एक विज्ञापन मेरी आँखों के सामने बार-बार आ रहा है , विज्ञापन की  एक बात बार-बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है , और वो है उसका प्रस्तुतीकरण " पहले मजा फिर सजा "  ये मुख्य लाईन है इस विज्ञापन की !  समझने वाला कुछ भी समझ सकता है , ( समझना क्या है ,खुजली हो तो मल्हम लगाओ )   जैसा की विज्ञापन है  , पहले खुजली को खुजलाकर बड़ा ही आनंद लिया जाता है , किन्तु बाद में जो होता है वो हम सब जानते हैं , जख्म , जलन और दाग ........ शायद यही होता है !  हर बार इस विज्ञापन को देखकर मैं कुछ और ही सोचता हूँ !  इस विज्ञापन में , मैं कभी भटकते हुए आज के युवाओं को देखता हूँ , तो कभी " कानून " के सिकंजे में फंसे उन गुनाहगारों को,  जो आज अपने किये गलत काम पर पछता रहे हैं और अब उनका पश्चाताप करना चाहते हैं ! क्योंकि इन लोगों ने  बही किया ! जानबूझकर अपने भविष्य से खिलवाड़ , ( वर्तमान में किये गलत काम ) यह बात उन लोगों पर सटीक बैठती है जिन्होंने पल भर का सुकून पाने के लिए गलत काम किया !  हमारे बड़े बुजुर्ग कह गए हैं  कि , हमें अपने जीवन में बही काम करना चाहिए जिनके परिणाम भविष्य में अच्छे हों , हमें उन कामों से या उन बुराइयों से दूर रहना चाहिए जिनके परिणाम बुरे या दुखद हों, किन्तु आज हम जाने-अनजाने ऐसे काम कर रहे हैं जो शुरुआत में अच्छे तो लगते हैं  किन्तु भविष्य में हमारे सामने उसके भयावह और बुरे परिणाम आते हैं !  आज हमारे आसपास का जैसा माहौल है , हम जिस वातावरण में जीवन - यापन कर रहे हैं , जहाँ आदर्श , संस्कार , सिद्धांत  दूर - दूर तक नजर नहीं आते , आज लोगों का सोचना ये है कि , " खाओ पियो ऐश करो , जो होगा देखा जायेगा " ( यह बात सभी पर लागू नहीं होती , ये उन लोगों का सोचना हो सकता है जिनमें संस्कारों की कमी है और पैसा ही उनके लिए सब कुछ है )   आज देश में भटके हुए युवा क्या कर रहे हैं ? उन्होंने अपने जीवन का उपयोगी समय मनोरंजन और आधुनिक चमक-धमक में खोकर  निकाल दिया और अब जब वक़्त उनके हाँथ से निकल गया तो अब पछता रहे हैं और अब उस वक़्त के साथ चलने की बेकार कोशिश कर रहे हैं !  हम सभी ने भी अपने  जीवन में कभी ना कभी ऐसा अवश्य किया होगा जिस पर हमें पछतावा हुआ होगा !  हमारे बुजुर्ग जो पहले कुछ सिद्धांत बना गए वो आज भी उतनी  ही मजबूती के साथ खड़े हुए हैं !  " पहले सजा - फिर मजा " इसका मतलब ये नहीं कि, पहले मार फिर प्यार , इसका मतलब है हमें अपने बिगड़े बच्चों को सुधारना होगा , प्यार से , संस्कारों से अच्छे बुरे का ज्ञान देकर , बताना होगा कि , वक़्त के साथ चल कर , अपने लक्ष्य निर्धारित कर उन्हें आगे बढ़ना होगा , यदि वो आज सही राह पर चले   गए और भटकने से बच गए तो उनका भविष्य उज्जवल और प्रगतिशील होगा !  इसलिए बच्चों को डांटना भी आवश्यक है ! जिसने मन लगाकर अपना काम पूर्ण ईमानदारी के साथ सही समय पर कर लिया , समझो वो सफल हुआ ......... जो सिर्फ मनोरंजन करते रहेंगे, समय बर्बाद करते रहेंगे समय के महत्व को नहीं समझेंगे वो जीवन में सफलता हांसिल करेंगे या नहीं ये तो सिर्फ वक़्त ही बताएगा !  इसलिए गलत कामों का मजा लेने से पहले अपने भविष्य के बारे में जरा अच्छे से सोचिये ..............
आप किस सिद्धांत को सही मानते हैं ......" पहले मजा फिर सजा "....... या फिर " पहले सजा - फिर मजा "

धन्यवाद