Thursday, April 26, 2012

" अनमोल " ........ >>>> संजय कुमार

वो रिश्ता ,
उस जिस्मानी रिश्ते से 
कहीं अधिक सगा होता है 
जो " अनुभूति " से बनता है ,
चाहे निगाहें भी ना मिलें ,
कोई एक  दूजे को छुए तक नहीं 
पर फिर भी 
मन की तरंगें 
एक दुसरे की आत्मा तक -
अपनी " अनुभूतियाँ " पहुंचा देती हैं !
ये रिश्ता 
माँगना नहीं 
सिर्फ देना जानता है 
तभी तो ये रिश्ता 
अपने आप में सम्पूर्ण होता है !
कहीं कोई खालीपन नहीं ,
कहीं कोई अधूरापन नहीं ,
एक दुसरे की 
सच्ची मुस्कुराहट ही 
एक दुसरे का " अनमोल " उपहार है !
तकलीफ हो अगर एक को तो 
दूजा चैन से जी नहीं पाता,
ये बेनाम  रिश्ते हम नहीं चुनते ,
ये तो आत्मा चुनती है !
और आत्मा जिस्म नहीं 
आत्मा चाहती है !

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

Saturday, April 21, 2012

सपने ......सस्ते और मंहगे ...........>>> संजय कुमार

सपने देखना किसी परी कथा के जैसा होता है ! रोमांच और ख़ुशी से भरपूर ! जहाँ पर आपकी अपनी खुशियों का अपना संसार होता है , चारों ओर आनंद ही आनंद  " स्वर्ग मिलने का अहसास है सपने  "  सपना तो हमारे पूर्वजों ने देखा था आजादी का और कुशल राष्ट्र निर्माण का , जब वो अंग्रेजों की गुलामी में अपना जीवन बसर कर रहे थे ! सपना तो हमारे क्रांतिवीरों और देश के सच्चे सपूतों ने देखा था ! आजाद भारत का ! सेंकड़ों वीरों और वीरांगनाओं ने अपना वलिदान दिया तब जाकर उनका ( आजादी )  सपना पूरा हुआ , किन्तु जो स्थिति और हालात आज  इस देश के हैं , शायद ऐसी  आजादी का सपना किसी ने नहीं देखा होगा ! सपने सच हुए किन्तु देश की हालत आज चिंताजनक है ! सपना तो आज पूरा हिन्दुस्तान देख रहा है , भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र का ! क्या ये सपना कभी पूरा होगा  ?  सपना तो आज का हर बेरोजगार युवा देख रहा है ,  रोजगार का ! सपना तो देश की आम और गरीब जनता देख रही है मंहगाई कम होने का ! आज देश की संसद भी देख रही है सपना , सच्चे राजनेताओं का , वे राजनेता जो उसके मान - सम्मान को बढ़ाएं ना कि उसे शर्मसार करें  ! ये तो वो सपने हैं जो इस जीवन में तो नहीं लगता कि,  कभी पूरे होंगे ! क्योंकि सपने तो सपने होते हैं ! सपने कभी सच होते हैं तो कभी टूट और बिखर जाते हैं ! ( अगर आज  मुंगेरीलाल जैसा सपना देखोगे तो अवश्य टूट जायेगा )  सपने  भी  कई  तरह  के  होते  हैं  सस्ते ( गरीब देखता है )  मंहगे ( अमीर देखता है ) अपने  लिये ( १०० % लोग ) अपनों  के  लिए ( १० % लोग )  दूसरों के लिए ( इस तरह के सपने अब कम लोग ही देखते हैं ) फ़ालतू के सपने , ( नकारा और कामचोर  ) लोग ही देखते हैं ! सपने झूंठे भी होते हैं जो सिर्फ दूसरों को दिखाए जाते हैं ! ( झूंठे सपने दिखाने में देश के नेता पारंगत है , और बेचारी जनता देखने में ) ! जैसे जैसे वक़्त तेजी से बदल  रहा है , आधुनिकता की आगोश में समा रहा है , सपने भी तेजी के साथ बदल रहे हैं ! आज सपने  जितने मंहगे हैं शायद उतने पहले कभी नहीं थे ! कहा जाता है सपने तो कोई भी देख सकता है ! हर इंसान को सपने देखने का अधिकार है !  गरीब , अमीर बनने के ,  अमीर और अमीर बनने के सपने देखता है ! 
मंहगे सपने सिर्फ अमीर देखता है ! मसलन . मंहगी कार होते हुए भी उससे महंगी कार खरीदने का सपना , पेट्रोल की कीमतें कहीं भी हों उसे फर्क नहीं पड़ता ! मंहगे से मंहगे फ़्लैट , कोई दुबई में बुक करने के सपने देखता है तो कोई चाँद पर रहने के , तो कोई " अंबानी " के " एंटीलिया "  बिल्डिंग के सपने देख रहा है ! हर मंहगी से मंहगी बस्तु खरीदने का सपना , मंहगे से मंहगे शौक पूरे करने का सपना सिर्फ और सिर्फ अमीर ही देखता है ! ऐसे सपने तो गरीब सपने में भी नहीं देखता !
सस्ते सपने तो सिर्फ गरीब देखता है ... मसलन.......... सस्ता घर , सस्ता खाना , सस्ते दैनिक उपयोग के सामान , मुफ्त का माल जितना ज्यादा से ज्यादा ( रस्ते का माल सस्ते में ) , सस्ती गाड़ी , सस्ता पेट्रोल , सस्ता मोबाइल , वो ,  वह सभी चीजें सस्ती खरीदना चाहता है जो बाजार मूल्य से कम कीमत पर उसे मिल जाए ! ऐसे सस्ते सपने होते हैं एक गरीब के !    
सस्ते और मंहगे सपने , दौनों तरह के सपने सिर्फ मध्यमवर्ग परिवार ही देखते हैं ! हमेशा दो पाटों की बीच पिसने वाला यहाँ भी पिसता रहता है ! समाज के साथ चलने , अच्छा लिविंग स्टेटस , नए फैशन को अपनाने का सपना देखते तो हैं , किन्तु इस मंहगाई के दौर में उनकी जेब इस तरह के सपने देखने को गवारा नहीं करती ! वो सपना देखते हैं ये सब पाने का किन्तु सस्ते में ही उनका  काम निकल जाए ऐसा वो सपना हर दिन देखते हैं ! इसलिए माध्यम वर्ग इन्ही सस्ते और मंहगे के चक्कर में अपना पूरा जीवन निकाल देता है ! यहाँ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ना तो सपना देखते हैं ,और  ना ही उन्हें फुर्सत होती है सपना देखने की !
कुछ लोग राष्ट्र हित का सपना देखते हैं ! कुछ समाज हित का सपना देखते हैं ! कुछ परिवार हित का सपना देखते हैं ! कुछ अपना हित देखते हैं ! और कुछ ............. आप कौन सा सपना देखते हैं ? 


धन्यवाद 

Wednesday, April 18, 2012

वीर शहीद तात्या टोपे को शत शत नमन ( पुनः प्रकाशित ) ..........>>>> संजय कुमार

मैं शिवपुरी शहर से हूँ ! और मैं अपने आपको धन्य समझता हूँ कि, वीर स्वतंत्रता सेनानी शहीद तात्या टोपे को मेरे शहर में फांसी दी गयी ! उनके वलिदान दिवस पर शिवपुरी में एक मेला लगता है जिसमे इस वीर योद्धा को याद किया जाता है ! तात्या के जन्म से मृत्यू तक का विवरण एकत्रित कर आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ !
तात्या टोपे भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के एक प्रमुख सेनानायक थे। सन १८५७ के महान विद्रोह में उनकी भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। तात्या का जन्म महाराष्ट्र में नासिक के निकट पटौदा जिले के येवला नामक गाँव में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पाण्डुरंग राव भट्ट़ (मावलेकर), पेशवा बाजीराव द्वितीय के घरू कर्मचारियों में से थे। बाजीराव के प्रति स्वामिभक्त होने के कारण वे बाजीराव के साथ सन् १८१८ में बिठूर चले गये थे। तात्या का वास्तविक नाम रामचंद्र पाण्डुरग राव था, परंतु लोग स्नेह से उन्हें तात्या के नाम से पुकारते थे। तात्या का जन्म सन् १८१४ माना जाता है। अपने आठ भाई-बहनों में तात्या सबसे बडे थे।सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत १० मई को मेरठ से हुई। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्श किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से झाँसी की रानी लक्ष्मीबाईनाना साहब पेशवाराव साहब,बहादुरशाह जफर आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।कुछ समय तक तात्या ने ईस्ट इंडिया कम्पनी में बंगाल आर्मी की तोपखाना रेजीमेंट में भी काम किया था, परन्तु स्वतंत्र चेता और स्वाभिमानी तात्या के लिए अंग्रेजों की नौकरी असह्य थी। इसलिए बहुत जल्दी उन्होंने उस नौकरी से छुटकारा पा लिया और बाजीराव की नौकरी में वापस आ गये। कहते हैं तोपखाने में नौकरी के कारण ही उनके नाम के साथ टोपे जुड गया, परंतु कुछ लोग इस संबंध में एक अलग किस्सा बतलाते हैं। कहा जाता है कि बाजीराव ने तात्या को एक बेशकीमती और नायाब टोपी दी थी। तात्या इस टोपे को बडे चाव से पहनते थे। अतः बडे ठाट-बाट से वह टोपी पहनने के कारण लोग उन्हें तात्या टोपी या तात्या टोपे के नाम से पुकारने लगे।सन्१८५७ के विद्रोह की लपटें जब कानपुर पहुँचीं और वहाँ के सैनिकों ने नाना साहब को पेशवा और अपना नेता घोषित किया तो तात्या टोपे ने कानपुर में स्वाधीनता स्थापित करने में अगुवाई की। तात्या टोपे को नाना साहब ने अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया। जब ब्रिगेडियर जनरल हैवलॉक की कमान में अंग्रेज सेना ने इलाहाबाद की ओर से कानपुर पर हमला किया तब तात्या ने कानपुर की सुरक्षा में अपना जी-जान लगा दिया, परंतु १६ जुलाई१८५७ को उसकी पराजय हो गयी और उसे कानपुर छोड देना पडा। शीघ्र ही तात्या टोपे ने अपनी सेनाओं का पुनर्गठन किया और कानपुर से बारह मील उत्तर मे बिठूर पहुँच गये। यहाँ से कानपुर पर हमले का मौका खोजने लगे। इस बीच हैवलॉक ने अचानक ही बिठूर पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि तात्या बिठूर की लडाई में पराजित हो गये परंतु उनकी कमान में भारतीय सैनिकों ने इतनी बहादुरी प्रदर्शित की कि अंग्रेज सेनापति को भी प्रशंसा करनी पडी।तात्या एक बेजोड सेनापति थे। पराजय से विचलित न होते हुए वे बिठूर से राव साहेब सिंधिया के इलाके में पहुँचे। वहाँ वे ग्वालियर कन्टिजेन्ट नाम की प्रसिद्ध सैनिक टुकडी को अपनी ओर मिलाने में सफल हो गये। वहाँ से वे एक बडी सेना के साथ काल्पी पहुँचे। नवंबर १८८७में उन्होंने कानपुर पर आक्रमण किया। मेजर जनरल विन्ढल के कमान में कानपुर की सुरक्षा के लिए स्थित अंग्रेज सेना तितर-बितर होकर भागी, परंतु यह जीत थोडे समय के लिए थी। ब्रिटिश सेना के प्रधान सेनापति सर कॉलिन कैम्पबेल ने तात्या को छह दिसंबर को पराजित कर दिया। इसलिए तात्या टोपे खारी चले गये और वहाँ नगर पर कब्जा कर लिया। खारी में उन्होंने अनेक तोपें और तीन लाख रुपये प्राप्त किए जो सेना के लिए जरूरी थे। इसी बीच २२ मार्च को सर ह्यूरोज ने झाँसी पर घेरा डाला। ऐसे नाजुक समय में तात्या टोपे करीब २०,००० सैनिकों के साथ रानी लक्ष्मी बाई की मदद के लिए पहुँचे। ब्रिटिश सेना तात्या टोपे और रानी की सेना से घिर गयी। अंततः रानी की विजय हुई। रानी और तात्या टोपे इसके बाद काल्पी पहुँचे। इस युद्ध में तात्या टोपे को एक बार फिर ह्यूरोज के खिलाफ हार का मुंह देखना पडा।कानपुर, चरखारी, झाँसी और कोंच की लडाइयों की कमान तात्या टोपे के हाथ में थी। चरखारी को छोडकर दुर्भाग्य से अन्य स्थानों पर उनकी पराजय हो गयी। तात्या टोपे अत्यंत योग्य सेनापति थे। कोंच की पराजय के बाद उन्हें यह समझते देर न लगी कि यदि कोई नया और जोरदार कदम नहीं उठाया गया तो स्वाधीनता सेनानियों की पराजय हो जायेगी। इसलिए तात्या ने काल्पी की सुरक्षा का भार झांसी की रानी और अपने अन्य सहयोगियों पर छोड दिया और वे स्वयं वेश बदलकर ग्वालियर चले गये। जब ह्यूरोज काल्पी की विजय का जश्न मना रहा था, तब तात्या ने एक ऐसी विलक्षण सफलता प्राप्त की जिससे ह्यूरोज अचंभे में पड गया। तात्या का जवाबी हमला अविश्वसनीय था। उसने महाराजा जयाजी राव सिंधिया की फौज को अपनी ओर मिला लिया था और ग्वालियर के प्रसिद्ध किले पर कब्जा कर लिया था। झाँसी की रानी, तात्या और राव साहब ने जीत के ढंके बजाते हुए ग्वालियर में प्रवेश किया और नाना साहब को पेशवा घोशित किया। इस रोमांचकारी सफलता ने स्वाधीनता सेनानियों के दिलों को खुशी से भर दिया, परंतु इसके पहले कि तात्या टोपे अपनी शक्ति को संगठित करते, ह्यूरोज ने आक्रमण कर दिया। फूलबाग के पास हुए युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई १८ जून१८५८ को शहीद हो गयीं।इसके बाद तात्या टोपे का दस माह का जीवन अद्वितीय शौर्य गाथा से भरा जीवन है। लगभग सब स्थानों पर विद्रोह कुचला जा चुका था, लेकिन तात्या ने एक साल की लम्बी अवधि तक मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेज सेना को झकझोरे रखा। इस दौरान उन्होंने दुश्मन के खिलाफ एक ऐसे जबर्दस्त छापेमार युद्ध का संचालन किया, जिसने उन्हें दुनिया के छापेमार योद्धाओं की पहली पंक्ति में लाकर खडा कर दिया। इस छापेमार युद्ध के दौरान तात्या टोपे ने दुर्गम पहाडयों और घाटियों में बरसात से उफनती नदियों और भयानक जंगलों के पार मध्यप्रदेश और राजस्थान में ऐसी लम्बी दौड-दौडी जिसने अंग्रेजी कैम्प में तहलका मचाये रखा। बार-बार उन्हें चारों ओर से घेरने का प्रयास किया गया और बार-बार तात्या को लडाइयाँ लडनी पडी, परंतु यह छापामार योद्धा एक विलक्षण सूझ-बूझ से अंग्रेजों के घेरों और जालों के परे निकल गया। तत्कालीन अंग्रेज लेखक सिलवेस्टर ने लिखा है कि ’’हजारों बार तात्या टोपे का पीछा किया गया और चालीस-चालीस मील तक एक दिन में घोडों को दौडाया गया, परंतु तात्या टोपे को पकडने में कभी सफलता नहीं मिली।‘‘ग्वालियर से निकलने के बाद तात्या ने चम्बल पार की और राजस्थान में टोंकबूँदी और भीलवाडा गये। उनका इरादा पहले जयपुर और उदयपुर पर कब्जा करने का था, लेकिन मेजर जनरल राबर्ट्स वहाँ पहले से ही पहुँच गया। परिणाम यह हुआ कि तात्या को, जब वे जयपुर से ६० मील दूर थे, वापस लौटना पडा। फिर उनका इरादा उदयपुर पर अधिकार करने का हुआ, परंतु राबट्र्स ने घेराबंदी की। उसने लेफ्टीनेंट कर्नल होम्स को तात्या का पीछा करने के लिए भेजा, जिसने तात्या का रास्ता रोकने की पूरी तैयारी कर रखी थी, परंतु ऐसा नहीं हो सका। भीलवाडा से आगे कंकरोली में तात्या की अंग्रेज सेना से जबर्दस्त मुठभेड हुई जिसमें वे परास्त हो गये।कंकरोली की पराजय के बाद तात्या पूर्व की ओर भागे, ताकि चम्बल पार कर सकें। अगस्त का महीना था। चम्बल तेजी से बढ रही थी, लेकिन तात्या को जोखिम उठाने में आनंद आता था। अंग्रेज उनका पीछा कर रहे थे, इसलिए उन्होंने बाढ में ही चम्बल पार कर ली और झालावाड की राजधानी झलार पाटन पहुँचे। झालावाड का शासक अंग्रेज-परस्थ था, इसलिए तात्या ने अंग्रेज सेना के देखते-देखते उससे लाखों रुपये वसूल किए और ३० तोपों पर कब्जा कर लिया। यहाँ से उनका इरादा इंदौर पहुँचकर वहाँ के स्वाधीनता सेनानियों को अपने पक्ष में करके फिर दक्षिण पहुँचना था। तात्या को भरोसा था कि यदि नर्मदा पार करके महाराश्ट्र पहुँचना संभव हो जाय तो स्वाधीनता संग्राम को न केवल जारी रखा जा सकेगा, बल्कि अंग्रेजों को भारत से खदेडा भी जा सकेगा।सितंबर१८५८ के शुरु में तात्या ने राजगढ की ओर रुख किया। वहाँ से उनकी योजना इंदौर पहुंचने की थी, परंतु इसके पहले कि तात्या इंदौर के लिए रवाना होते अंग्रेजी फौज ने मेजर जन. माइकिल की कमान में राजगढ के निकट तात्या की सेना को घेर लिया। माइकिल की फौजें थकी हुई थीं इसलिए उसने सुबह हमला करने का विचार किया, परंतु दूसरे दिन सुबह उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तात्या की सेना उसके जाल से निकल भागी है। तात्या नेब्यावरा पहुँचकर मोर्चाबंदी कर रखी थी। यहाँ अंग्रेजों ने पैदल, घुडसवार और तोपखाना दस्तों को लेकर एक साथ आक्रमण किया। यह युद्ध भी तात्या हार गये। उनकी २७ तोपें अंग्रेजों के हाथ लगीं। तात्या पूर्व में बेतवा की घाटी की ओर चले गये। सिरोंज में तात्या ने चार तोपों पर कब्जा कर लिया और एक सप्ताह विश्राम किया। सिरोंज से वे उत्तर में ईशागढ पहुँचे और कस्बे को लूटकर पाँच और तोपों पर कब्जा किया। ईशागढ से तात्या की सेना दो भागों में बँट गयी। एक टुकडी राव साहब की कमान में ललितपुर चली गयी और दूसरी तात्या की कमान में चंदेरी। तात्या का विश्वास था कि चंदेरी में सिंधिया की सेना उसके साथ हो जाएगी, परंतु ऐसा नहीं हुआ। इसलिए वे २० मील दक्षिण में, मगावली चले गये। वहाँ माइकिल ने उनका पीछा किया और १० अक्टूबर को उनको पराजित किया। अब तात्या ने बेतवा पार की और ललितपुर चले गये जहाँ राव साहब भी मौजूद थे। उन दोनों का इरादा बेतवा के पार जाने का था परंतु नदी के दूसरे तट पर अंग्रेज सेना रास्ता रोके खडी थी। चारों ओर घिरा देखकर तात्या ने नर्मदा पार करने का विचार किया। इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदापार की। तात्या ने अक्टूबर१८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी।नरमदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर कोइटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस येाजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया।मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं।मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी मेंसतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे।तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा,जीरापुरप्रतापगढनाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा।परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ८ अप्रैल१८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल१८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम पाँच बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था।

यह समस्त जानकारी google. com से एकत्रित की गयी है .................

धन्यवाद 

Friday, April 13, 2012

चीरहरण नहीं , हमने तो बलात्कार किया है ! 250 बीं पोस्ट .......>>>> संजय कुमार

चीरहरण की जब भी बात चलती है तो हमारे सामने " महापुराण महाभारत " का वो प्रसंग याद आता है जब युधिष्ठिर द्वारा जुये में हारी " द्रोपदी " का चीरहरण " दुर्योधन " के कहने पर " दुशासन " द्वारा किया जाता है ! किन्तु  उस वक़्त भगवान " श्रीकृष्ण " ने द्रोपदी का चीरहरण होने से रोक लिया था यानि अपनी शक्ति का प्रयोग कर उनकी रक्षा की थी ! ये घटना द्वापरयुग की है ! आज हम कलियुग में जी रहे हैं या घोर कलियुग भी कह सकते हैं ! ये वो कलियुग है  जहाँ पाप - अत्याचार , लूट - खसोट - बेईमानी, भ्रष्टाचार और हर बुराई आज अपने चरम पर है ! जहाँ भाई- भाई का नहीं , रिश्ते नातों का मूल्य लगभग समाप्ति की ओर तेजी से बढ रहा है ! देश का कानून " अँधा कानून " बनकर रह गया है ! सारी व्यवस्थाएं चौपट हो चुकी हैं ! चारों ओर " अंधेर नगरी - चौपट राजा " जैसे राज चल रहा है ! कोई भी नियम , कायदे-कानून आज हमारे लिए मखौल बन गए हैं !  हमारा सबसे बड़ा और सबसे सच्चा साथी हमारा " संयम " अब बात बात पर हमसे टूटने लगा है , और जिसके टूटने से , हमसे हमारा बहुत कुछ छूट रहा है ! वो कौन है ? जो ये सब कर रहा है ! वो कौन है ? जिसकी बजह से ये सब हो रहा है ! क्या आप जानते  हैं उसे ? जी हाँ , हम जानते हैं उसे ! वो कोई और नहीं है वो हम ही हैं , हम कलियुगी इंसान ! हम ही  हैं हर  चीज के जिम्मेदार , क्योंकि आज हर बुराई हम ही से है ! आज  कितनी तेजी से हमारे अन्दर का इंसान , हमारी इंसानियत अपना दम तोड़ रही है ! कारण हम ही हैं ! क्योंकि हमने कभी भी जीवन के लिए लाभप्रद , समाज के हित में बनाये गये  नियमों  का पालन सही तरीके से कभी नहीं किया ! कभी अपने फायदे के लिए , कभी किसी दुसरे के नुक्सान के लिए हमारे द्वारा सभी नियमों को तांक पर रखा गया !  देश की हर व्यवस्था  का चीरहरण हमने किया है ! चीरहरण कहना गलत होगा सच कहूँ तो हमने  " बलात्कार " किया है एक बार नहीं हजारों बार किया है ! हर कानून को  हमने तोड़ा है ! मनमाने  ढंग से हमने अपनी हर सही - गलत  बात मनवाई  है ! अपना रौब , प्रभुत्व जमाने के लिए हम कई बार हर  हद से गुजर गए ! हमारे द्वारा बनाये गए आदर्श  और सिद्धांतों  को हमने ही अपने हांथों पूरी तरह तहस - नहस और चकनाचूर किया है ! जिसका खामियाजा भी हमने ही उठाया है , जिसके गंभीर परिणाम आज हम भुगत रहे हैं ! कभी प्रकृति हमसे अपना बदला ले रही है ! हमारे ५००० बर्ष पुराने संस्कारों का चीरहरण तो आज प्रतिदिन हो रहा है ! जिसका उदाहरण  हमारे गैर संस्कारी बच्चों द्वारा  हमारे सामने ऐसे प्रश्न खड़े कर दिए गये हैं  जिनका जबाब ना तो हमारे पास होता है और ना ही उनके पास ! ( जिस्मफरोशी , नशा , सिगरेट , शराब मौजमस्ती के नाम पर अय्याशी जैसे  कई उदहारण हैं , और ये सब अच्छे संस्कारों की कमी के कारण   )  जब तक हम क्रमवद्ध , नियमानुसार , सिद्धांतों का सही अनुशरण नहीं करेंगे तब तक हमारे द्वारा किये गये सभी गलत कामों को हम " चीरहरण नहीं बलात्कार " का नाम देंगे ! 
सच है चीरहरण दुशासन ने नहीं हमने किया है !
 
यह मेरी  250 बीं पोस्ट है  ! मैं आप सभी का आभार प्रकट करता हूं ! आप सभी को धन्यवाद देता हूँ ! आगे आप सभी से  मार्ग-दर्शन की आशा रखता हूँ !
धन्यवाद 

 

Saturday, April 7, 2012

गरीब का कटोरा .......>>>> संजय कुमार

दो दिन पहले की खबर है ! हमारे पड़ोसी मुल्क " चीन " में एक कटोरे की नीलामी हुई है , बोली लगाने वाले ने उस कटोरे को १३९ ( एक सौ उनतालीस करोड़  रूपए )  में खरीदा है ! सुना है कटोरा ९०० साल पुराना है ! आखिर इतना मंहगा कटोरा खरीदने की क्या जरुरत है ! हमारे देश में तो कटोरा दिखाकर करोड़ों झोली में आ जाते हैं ! जब भी कटोरा शब्द हमारे जेहन में आता है , तो उस वक़्त हमारी आँखों के सामने फटे- पुराने , मैले - कुचैले कपड़े पहने हुए , चेहरे और शरीर पर गंदगी लिए हांथों में पुराना बर्तन लिए एक भिखारी की छवि सामने आती है ! उसके हाँथ में जो कटोरा होता है बही उसकी रोजी- रोटी का साधन होता है ! वो कटोरा उसका हथियार होता है , और उस हथियार से वो भूख जैसे राक्षस का दमन करता है ! एक - एक घर , एक - एक दुकान पर हाँथ फैलाकर,  भीख  मांगकर वो अपने कटोरे को भरता है और ये कार्य वो एक दिन नहीं , तब  तक करता है  जब तक उसकी साँसें चलती है ! इस सांसारिक दुनिया में हम जिसके हाँथ में कटोरा देखते हैं उसे हम बहुत ही लाचार , दीन-दुखी और कभी - कभी घ्रणा  के   पात्र के रूप में  देखते हैं ! क्योंकि किसी के आगे हाँथ फैलाना , किसी से कुछ  माँगना , सब कुछ भीख माँगना या कटोरा भरने की श्रेणी में आता है ! ऐसा हम गरीबों और भिखारियों के बारे में सोचते हैं ! किन्तु कटोरा तो आज सभी के हांथों में , मैं देख रहा हूँ !  देश के भ्रष्ट राजनेताओं  के पास भी एक - एक कटोरा है जो भ्रष्टाचार , घोटाले , बेईमानी कर अपने कटोरों को भर रहे हैं ! ( गरीब के कटोरे को खाली कर )  हमारी सरकार अपने हाँथ में कटोरा लेकर " विश्व बैंक " के आगे हाँथ फैलाकर अपना कटोरा ( तिजोरियां ) भर रही हैं ! आज देश के डाक्टर , इंजीनियर , पुलिस अफसर , धार्मिक साधू-संत , मंत्री - संत्री इन सभी के कटोरे जनता से लूटे पैसों से लबालब भरे हुए हैं ! अगर किसी का कटोरा खाली है तो वो है इस देश का गरीब , मध्यमवर्ग , किसान , मजदूर वर्ग , ये वो लोग हैं जो २४ घंटे , दिन-रात मेहनत कर एक- एक पैसा इकठ्ठा कर अपनी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं और ये कोशिश वो अंतिम सांस तक करते हैं , फिर भी जीवन भर उनका कटोरा खाली का खाली ही रहता है ! बेटी की शादी , बच्चों की पढ़ाई , खेती के लिए बीज , दैनिक उपयोग की चीजें , गाड़ी, घर इन्हीं में पूरा जीवन निकल जाता है ! गरीब को मिलने वाली मदद , योजनाओं का लाभ , सहायता राशि भी जरुरतमंद की मदद नहीं कर पाती ! इस देश में सभी के कटोरे भरे हुए हैं , सिर्फ गरीब का कटोरा खाली है , और ऐसा खाली जो कभी भर नहीं सकता ! यदि  गरीब का कटोरा किसी चीज से  भरा  हुआ होता है तो वो है विश्वास , आस , और उम्मीद से कि, वो दिन कभी तो आएगा जब............... 

 करोड़ों में कटोरे बिक गए 
" बापू " की लाठी,  
ऐनक के दाम भी लग गए 
करोड़ों में खिलाड़ी बिक गए 
अरबों में लाइसेंस बिक गए 
हर भ्रष्टाचारी के हाँथ, 
गरीब के कटोरे लग गए 
इन्हीं कटोरों के नाम पर 
आज तक गरीब ही ठगे गए ! 

( छोटा सा प्रयास कुछ लिखने  का )

धन्यवाद 


Thursday, April 5, 2012

किरदार .........>>>> संजय कुमार

पाते तो पुष्प " हैं 
रंग , खुशबु , पराग ,
ईश्वर  के चरण ,
सुन्दरता को बड़ाने की शोभा !
" पात " का क्या 
वो तो देता है 
पेड़ को ऑक्सीजन, 
खोता है वक़्त के साथ रंग ,
और अंत में आधार भी -
पेड़ से होकर निराधार ,
भटकता है ,
धुल में मिल जाता है 
किसी को " वह " नहीं भाता 
उसका " कर्म " किसी को 
नजर नहीं आता ,
नियति के स्टेज पर 
यही उसका " किरदार " है 
फिर भी " फूल " ही सबको भाता है !
यही प्रभु का रचा संसार है !
कोई फूल , तो कोई पात है !

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

Sunday, April 1, 2012

ब्लौग जगत को मेरा अंतिम सलाम , आप सभी स्वीकार करें ( धन्यवाद ) .....>>> संजय कुमार

प्रिये साथियों मैं अब ब्लौग लेखन बंद कर रहा हूँ ! प्रिये साथियों मैं आज ब्लॉग जगत को अलविदा कहते हुए , अपनी अंतिम पोस्ट लिखते हुए बहुत ग़मगीन और दुखी हो रहा हूँ ! मैं ब्लॉग जगत को छोड़ना नहीं चाहता हूँ , पर मैं कर भी क्या सकता हूँ ! आज मेरी मजबूरी मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर कर रही है ! प्रिय  साथियों  २ बर्ष से ज्यादा हो गए हैं मुझे लिखते हुए ! किन्तु आज भी मैं सिर्फ सीखने की कोशिश ही कर रहा हूँ ! जब से लिखना शुरू किया तब से आज तक सिर्फ १३५ ही फौलोवर्स बन पाए हैं ! २२००० के लगभग पेज वीवर्स हैं ! कुल मिलाकर २१०० टिप्पणियां प्राप्त हुई हैं आप सभी की ओर से , बस यही बहुत कम हैं ! आजकल लगता है जैसे मेरे ब्लॉग पर तो टिप्पणियों का अकाल सा पड़ गया है ! सच है भई....... आजकल " FACEBOOK " जो हर जगह छाया हुआ है ! अब  ब्लॉग से ज्यादा  " FACEBOOK " खोला  जाता  है ! पिछले दो सालों में मैंने क्या लिखा और क्या नहीं लिखा ये तो आप सभी अच्छे से जानते हैं ! और मुझे बता भी सकते हैं ! किन्तु अब मैं क्या लिखूं ? कुछ समझ नहीं आता ! मुझे लगता है  मेरे पास अब लिखने को कुछ भी नहीं बचा है ! मैंने आज तक बही सब लिखा जो मैंने देखा और सुना  या जो मैंने आप लोगों से सीखा और मार्गदर्शन में लिखा  ! मैंने आज तक  २४६ पोस्ट लिखीं हैं ! मेरी पोस्टें  कुछ लोगों को बहुत अच्छी लगी और कुछ लोगों को कुछ खास नहीं , फिर भी मैं बराबर लिखता चला गया वो भी बिना रुके बिना थके ! कभी अपने व्यंग्य से आप लोगों को हँसाने की कोशिश की तो कभी अपने विचारों से आप लोगों को अवगत कराया ! कई बार अपने सन्देश आप लोगों तक पहुंचाए , वो सन्देश जो इंसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं ! कभी भ्रष्टाचार पर लिखा तो कभी राजनीति पर , कभी नेता मेरे निशाने पर रहे तो कभी अभिनेता , कभी बच्चों और युवाओं को जागरूक करने के लिए  लिखा तो कभी माता-पिता पर ,  कभी " किसानों " की स्थिति को दर्शया , और कभी  गरीबी को , कभी संस्कारों की बात की जिन पर आज विदेशी संस्कार भारी पड़ते दिख रहे हैं ! कभी आधुनिकता को लेकर आप लोगों को आगाह किया ! कभी प्रिय पत्नि " गार्गी " की कवितायेँ आप लोगों तक पहुंचाई तो कभी अपनी २-३ कवितायेँ ! यह सब आप लोगों ने पसंद किया और आप लोगों ने मेरे लेखन पर अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से मेरा मार्गदर्शन भी किया जिसे में कभी भूल नहीं सकता ! आप लोगों के कारण मेरी कई पोस्ट चर्चामंच पर लगायी गयीं जो मेरे जैसे  छोटे-मोटे ब्लौगर  के लिए फक्र की बात होती है ! ये सब आप लोगों का  प्रेम और स्नेह ही था जो मैं अपने दो साल भी पूरे कर पाया ! आज कल मेरा मन ब्लौग लेखन में नहीं लगता , अब मुझे भी " FACEBOOK "  पर अपने मित्रों की संख्या में  इजाफा करना है ! सच कहूँ तो अब मेरे पास कोई मुद्दा  बचा ही नहीं जिस पर मैं कुछ लिख सकूँ ! अब मैं मुद्दे और बिषय  ढून्ढ-ढून्ढ कर थक गया हूँ किन्तु विषय हाँथ नहीं लग रहे  हैं " FACEBOOK " होता तो कुछ भी अटरम -शटरम लिख देता  , सभी लोग पसंद करेंगे , ब्लौग पर तो कुछ भी ऐसा वैसा नहीं लिख सकते ! सोचता हूँ मुझे इस लेखन से आखिर आज तक क्या मिला ? लेखन में  मैंने कौन से झंडे गाढ़ दिए और कौन सा  " ऑस्कर " या  " नोवेल "  मिल गया ! आखिर क्या मिला मुझे ? मन की संतुष्टि , आत्मा को चैन , अपने दिल में छुपे गुस्से को बाहर किया या फिर वगैरह - वगैरह , ये सब कुछ किताबों और फिल्मों में अच्छा लगता है किन्तु वास्तविक जीवन में नहीं ! लेकिन मैं  अब पूरी तरह से अपना " मूड " बना चुका हूँ  कि,  मैं अब कभी नहीं लिखूंगा ! अंत में दो सालों में आपसे मिले अपार प्रेम और मार्ग - दर्शन को में शत शत नमन करता हूँ !

अंत में चंद लाइनें आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ ! जो मेरी इस पोस्ट का सारांश है ! गौर .... फरमाइए
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एक पुराना गीत जो मुझे याद आया !


 अप्रैल फूल बनाया , क्यों आपको गुस्सा आया ,  इसमें मेरा क्या कसूर .......... जमाने का कसूर , जिसने ये दस्तूर बनाया ! 
और  आज मैंने भी आपको  .......अप्रैल फूल बनाया  ( 1st April ) ( मुर्ख - दिवस )  पर  मेरी ओर से आप सभी को  मूर्खतापूर्ण बधाई !


 धन्यवाद