पाते तो " पुष्प " हैं
रंग , खुशबु , पराग ,
ईश्वर के चरण ,
सुन्दरता को बड़ाने की शोभा !
" पात " का क्या
वो तो देता है
पेड़ को ऑक्सीजन,
खोता है वक़्त के साथ रंग ,
और अंत में आधार भी -
पेड़ से होकर निराधार ,
भटकता है ,
धुल में मिल जाता है
किसी को " वह " नहीं भाता
उसका " कर्म " किसी को
नजर नहीं आता ,
नियति के स्टेज पर
यही उसका " किरदार " है
फिर भी " फूल " ही सबको भाता है !
यही प्रभु का रचा संसार है !
कोई फूल , तो कोई पात है !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
रंग , खुशबु , पराग ,
ईश्वर के चरण ,
सुन्दरता को बड़ाने की शोभा !
" पात " का क्या
वो तो देता है
पेड़ को ऑक्सीजन,
खोता है वक़्त के साथ रंग ,
और अंत में आधार भी -
पेड़ से होकर निराधार ,
भटकता है ,
धुल में मिल जाता है
किसी को " वह " नहीं भाता
उसका " कर्म " किसी को
नजर नहीं आता ,
नियति के स्टेज पर
यही उसका " किरदार " है
फिर भी " फूल " ही सबको भाता है !
यही प्रभु का रचा संसार है !
कोई फूल , तो कोई पात है !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर तरीके से पात के महत्व को समझाया है !
ReplyDeleteधुल में मिल जाता है
ReplyDeleteकिसी को " वह " नहीं भाता
उसका " कर्म " किसी को
नजर नहीं आता |
काफी मन में डूब कर पात (पत्ते) के अस्तित्व को बहुत सुंदर रचना एवं बेहतरीन भावुक प्रस्तुति में दरशाया हें |
सही अर्थो में देखा जाए तो जो जीवन आधार हैं, जो वास्तविकता हैं हम सभी उसे नजरअंदाज कर देते हैं और ये बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ हमें ये बताने का बहुत ही सुन्दर प्रयास कर रही हैं कि हम सच्चाई को पहचाने और उसे आत्मसात करें!................................................
ReplyDeleteयही उसका " किरदार " है
ReplyDeleteफिर भी " फूल " ही सबको भाता है !
यही प्रभु का रचा संसार है !
कोई फूल , तो कोई पात है !
...........अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बढ़िया रचना, सुंदर प्रस्तुति,....
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
MY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
पुष्प बनें या पात, बस साहित्य की शोभा में लगे रहें।
ReplyDeleteबेहतरीन भाव ...
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