Wednesday, June 30, 2010

काश हम कुत्ते होते ....>>>> संजय कुमार

माफ़ कीजिये यह बात मैंने देश के किसी भी जनमानस के लिए नहीं कही है ! अगर किसी के दिल को इस बात से ठेस पहुँचती है तो मैं आप सभी से माफ़ी मांगता हूँ ! यह बात मैं इसलिए बोल रहा हूँ, क्योंकि यह बात मैं बोलने पर मजबूर हो गया ! आप पड़ेंगे तो शायद आप भी यह कहने पर मजबूर हो जाएँ ! हाय........ हमारी किस्मत उन कुत्तों के जैसे होती ! जिनकी खबर आज मैंने अखबार मैं पड़ी ! उनकी किश्मत देख आज मुझे अपने इन्सान होने का दुःख होने लगा ! खबर अमेरिका के बाशिग्टन की है जहाँ एक ६७ वर्षीय महिला ने अपनी ५२ करोड़ की संपत्ति अपने ३ कुत्तों के नाम कर, यह दुनिया छोड़ दी ! और अपनी सारी विरासत इनके नाम कर दी ! इनकी विरासत को अब यह ३ कुत्ते ही संभाल रहे हैं ! अब तो इन कुत्तों के ठाट-बाट देखते ही बनते हैं ! गले मैं लाखों की चैन हांथों मैं लाखों का ब्रासलेट और नर्म-मुलायम गद्दों पर आराम ! यह सब देख कोई भी इन्सान यह कहने पर मजबूर हो जाएगा कि हमसे तो अच्छी किश्मत इन कुत्तों की हैं, काश हम इनकी जगह होते !

यह कोई व्यंग नहीं यह एक सच है ! आप इसे व्यंग समझ कर पड़ सकते हैं ! इस तरह की ख़बरें हमने कई बार विदेशों से सुनी हैं ! की वहां इन बेजुबान जानवरों से इन्सान को कितना प्यार है ! जो इनके लिए सब कुछ कर सकते है ! और जानवर भी पूरी वफादारी निभाते हैं ! और हमारे यहाँ आज तक इस तरह की कोई घटना ना हुई है और ना होगी ! क्योंकि हमारे यहाँ तो आम इन्सान की हालत जहाँ जानवरों से बदतर है तो फिर यहाँ के कुत्ते तो, उनका क्या कहूँ उनके बारे मैं आप तो भलीभांति परिचित हैं ! आप लोगों ने कई बार अपने यार दोस्तों के बीच बैठकर इस तरह की चर्चा जरूर की होगी , जब आपने किसी कुत्ते को A C गाडी मैं बैठे देखा होगा और आप यूँ ही कहीं धुप मैं पैदल चल रहे होंगे ! तो जरूर आपको उस कुत्ते से जलन हुई होगी ! और इसकी चर्चा की होगी ! शायद ये उस कुत्ते की किश्मत है ! जो वह ऊपर से लिखा कर लाया है ! बैसे भी जानवरों मैं कुत्ते को ही वफादार कहा गया है ! और वह वफादारी भी निभाता है ! इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ ! लेकिन आज का इन्सान इतना मतलबी और स्वार्थी हो गया है जो अपनों को ही धोखा दे रहा है , और पैसों की खातिर अपनों का ही गला काट रहा है ! अब नहीं रहा इन्सान को इन्सान पर भरोसा ! अब हम इन्सान को वफादार नहीं कह सकते ! किन्तु कुत्ते को तो आज भी हम वफादार कहते है ! यह मासूम जानवर सिर्फ भूंखे होते हैं इन्सान के प्यार के , और इन्सान, आज प्यार के अलावा हर चीज का भूँखा है ! कुत्ते तो अपनी भूंख शांत कर लेते हैं , लेकिन इन्सान की भूंख कभी खत्म नहीं होती ! आज इन कुत्तों के नाम इतना सब कुछ हुआ हैं इसका भी एक कारण रहा होगा अगर इन्सान के नाम इतनी सम्पति हो जाए तो इस बात की कोई ग्यारंटी नहीं है , की वह इन्सान इतनी दौलत मिलने के बाद अपनों को धोखा नहीं देगा ! किन्तु आज कुत्तों की ग्यारंटी हैं , उसके साथ अगर उसका मालिक कभी गलत व्यव्हार भी करता है, तब भी वह उसको धोखा नहीं देगा ! वफादारी जरूर निभाएगा ! आज इन्सान से ज्यादा कुत्ता वफादार है ....... इंसानों को इन जानवरों से बहुत कुछ सीख्नना चाहिए .........

यह अंतर हैं आज इन्सान और कुत्तों के बीच .............. इसलिए मजबूरीवश मुझे यह कहना पढ़ रहा है !
काश हम कुत्ते होते ...................................

धन्यवाद

Wednesday, June 23, 2010

मैंने देखा है सब कुछ ( पुनः सम्पादित ) .....>>> संजय कुमार

मैंने देखा है सब कुछ
मैंने देखा है, खिलखिलाता बचपन
डगमगाता यौवन, और कांपता बुढ़ापा
मैंने देखा है सब कुछ

मैंने देखे बनते इतिहास और बिगड़ता भविष्य
टूटतीं उम्मीदें और संवरता वर्तमान
मैंने देखा है सब कुछ


मैंने देखी है बहती नदियाँ ,और ऊंचे पहाड़
मैंने देखी है जमीं और आसमान
बारिस की बूँदें और तपता गगन
मैंने देखीं हैं खिलती कलियाँ और खिलते सुमन
मैंने देखा है सब कुछ


मैंने देखी है दिवाली , और होली के रंग
मैंने देखी है ईद , और भाईचारे का रंग
मैंने देखे मुस्कुराते चेहरे और उदासीन मन
मैंने देखा है सब कुछ


मैंने देखा लोगों का बहशीपन और कायरता
मैंने देखा है साहश और देखी है वीरता
मैंने देखा इन्सान को इन्सान से लड़ते हुए
भाई का खून बहते हुए , और बहनों का दामन फटते हुए
मैंने देखा है माँ का अपमान, और पिता का तिरस्कार
मैंने देखा प्रेमिका का रूठना , और प्रेमी का मनाना
मैंने देखा है सब कुछ


मैं कभी हुआ शर्म से गीला, तो कभी फक्र से
कभी जीवन की खुशियों से, तो कभी दुखों से
मैंने देखा लोगों द्वारा फैलाया जातिवाद और आतंकवाद
मैंने देखी इमानदारी और, चारों और फैला भ्रष्टाचार
मैंने देखा झूंठ और सच्चाई
इंसानों के बीच बढती हुई नफरत की खाई
मैंने देखा है सब कुछ

मैंने देखा है सब कुछ अपनी इन आँखों से
ये आँखें नहीं सच का आईना हैं और आईना कभी झूंठ नहीं बोलता
हाँ मैंने देखा है ये सब कुछ .............................

धन्यवाद

Sunday, June 20, 2010

मान रहे तेरा ........पिता (Father's -Day) .....>>>> संजय कुमार

इंसानी रिश्तों मैं पिता का दर्जा ईश्वरके समान माना गया है ! इसलिए पिता वन्दनीय एवं पूज्यनीय होता है ! वह पिता ही है जो हर वक़्त अपने बच्चों के लिए अपने परिवार के लिए जीता है ! वह नहीं रखता अपना कभी भी ध्यान और अपना सारा जीवन अपने परिवार को समर्पित कर देता है ! हमने आज तक माँ की ममता ही देखि है ! माँ की ममता के ही किस्से बहुत सुने हैं ! क्यों नहीं सुना पिता के प्यार के बारे मैं ! क्या पिता प्यार नहीं करता ! तेरे जैसा नहीं इस दुनिया मै दूजा कोई ! तू पिता नहीं , तू भगवान् है मेरा

तू पिता नहीं , तू भगवान् है मेरा

हे पिता तेरी ही ऊँगली पकड़ चलना है सीखा मैंने !

तेरे ही कंधों पर घूमी हैं सारी दुनिया !

तेरी ही गोद मैं मिला स्वर्ग का सुख !

तूने ही सिखाई दुनिया की उंच-नीच !

तेरी ही छाँव मैं गुजरा ये मेरा जीवन !

मेरी हर गलती को तूने माफ़ किया !

तेरे जैसा बड़ा दिल नहीं है , इस दुनिया मैं किसी का !

तू मेरा पिता नहीं, तू है मेरी आन बान और शान !

तू ही है मेरा भगवान् !

आज दुनिया की चकाचौंध देख भूल गया मैं तुझको !

पर तेरा रहमो करम आज भी है मेरे ऊपर !

यही है तेरी खूबी , आज सब कुछ होने के बाबजूद ,

आज तू हैं तन्हा और अकेला !

पर मैं भी हूँ तेरा बेटा ! ना दिल तेरा कभी दुखऊँगा !

सदा रखूंगा तेरा मान !

मैं मरते दम तक अपना वचन निभऊगा

तेरा मान-सम्मान तुझे दिलाऊँगा

तू पिता नहीं , तू है मेरा भगवान् .......... तू है मेरा भगवान्

धन्यवाद

Friday, June 18, 2010

"अतिथि देवो भवः", लेकिन क्यों ?.....>>> संजय कुमार

हिंदुस्तान एक ऐसा देश है जिसमें एक नहीं अनेकों विशेषताएं हैं ! फिर चाहे वो अपनत्व की भावना हो , फिर चाहे वो रिश्तों का मान सम्मान हो , सब कुछ अपने आप में विशाल है ! इन सब के अलावा एक और परंपरा है हमारे देश में जो युगों युगों से चली आ रही है , और आज भी चल रही है ! और वो परम्परा है "अतिथि देवो भवः" की ! आज भी हमारे कई घरों में अतिथि को भगवान के रूप में देखा जाता हैं ! और ये बात सही भी है , क्योंकि हमारा अतिथि कई किलोमीटर की दूरी तय कर हमसे मिलने जो आता है ! कई अतिथियों से तो हमारा कई वर्षों में मिलना होता है ! तो हमारा भी फर्ज बनता है उनकी सेवा करना और उसका उचित ध्यान रखना ! अतिथि हमारा भगवान् होता है और हमें उनका आदर करना चाहिए ! हम तो वो हिन्दुस्तानी हैं जो दुश्मन को भी अपने गले लगा लेते हैं , फिर अतिथि तो हमारे अपने होते हैं ! और हम लोग तो हमेशा से ही हर किसी का आदर करते हैं ! यह हमारी परंपरा है और यही हमें सिखाया जाता है और हम इस परम्परा को कभी नहीं भूलेंगे ! मैं यहाँ बात कर रहा हूँ ऐसे विदेशी अतिथियों की जो अतिथि बनकर तो आते हैं किन्तु भूल जाते हैं अपने आने का सबब !

आज देश के सभी न्यूज़ पेपर, टेलीविजन और सरकार हम सभी को सिर्फ एक बात बार-बार रट्टू तोते की तरह याद करवा रही है कि, "अतिथि देवो भवः" देश में आने वाले सभी विदेशी महमानों का हमें ध्यान रखना चाहिए, उनसे हमारी रोजी रोटी चलती है , वह देश की अर्थव्यवस्था में बहुत सहयोग करते हैं ! और दुनिया भर की बातें जो हमें बताई जाती है ! हम सभी लोग इन सब बातों का विशेष ध्यान रखते हैं और ये बात है भी सही किन्तु देश में हमारे कुछ असमाजिक तत्व ऐसे भी हैं जो भूल जाते हैं इन सब बातों को और करते हैं देश को शर्मशार करने बाली हरकतें ! हम सभी को उनको एक अच्छा सबक सिखाना चाहिए जिससे वह इस तरह की हरकतें ना कर सकें , और देश का नाम ख़राब ना हो , तभी कहलायेगा सही "अतिथि देवो भवः "

किन्तु आज देश में आने वाले महमानों को भी अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए उनका उलंघन नहीं करना चाहिए ! हमारी अच्छाई को वो हमारी कमजोरी ना समझें ! इस देश में एक अच्छे मेहमान की तरह आयें और चले जाएँ ! किन्तु ऐसा नहीं हैं , कुछ दिनों पहले इन्ही अतिथियों ने जो उधम जो उत्पात मचाया वह भी देखने लायक था ! हमारे देश के एक ऐसे राष्ट्रिय पार्क , जहाँ पर इन्होने पावंदी होने बावजूद दो -तीन दिन तक जमकर शराब , नाच गाना और अश्लील हरकतें की जो हमारे लिए शर्मिंदगी वाली थी ! तो फिर क्या करना चाहिए ऐसे महमानों का , यह कोई एक अकेली घटना नहीं हैं जो इस देश में पहली बार हुई हो ! यह लोग इस देश में मेहमान बनकर आते हैं और अपने साथ लाते हैं नशे का बड़ा बाजार , जिसमें कई युवा इनके चक्कर में फंसकर नशे के आदि हो रहे हैं ! कुछ विदेशी अपने यहाँ की गन्दी संस्कृति को हमारे बीच में फैलाकर हमारे माहौल को गन्दा कर रहे हैं ! आज देश की युवा पीढ़ी ज्यादातर इन्ही लोगों का अनुशरण कर रही है ! देश बड़े बड़े होटलों में इन विदेशियों द्वारा जिस्मफरोशी के लिए लड़कियों की फरमाइश की जाती है ! ऐसे बहुत से गलत काम हैं जो इस देश आकर ये लोग करते हैं ! आते हैं मेहमान बनकर और फिर अपने पैसे की चमक धमक से भटके हुए लोगों को बरगलाकर , भ्रमित कर अपने यहाँ की गंदगी हमारे दिलो -दिमाग में भर कर हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर चले जाते हैं !

"अतिथि देवो भाव:" .............. लेकिन ऐसे महमानों के लिए नहीं ..................

धन्यवाद

Thursday, June 17, 2010

और बो, महान बन गया ......>>> संजय कुमार

सुबह ८ बजे जैसे ही शुक्लाजी घर से दफ्तर के लिए निकलने को हुए , तभी अचानक एक चमचमाती हुई कार उनके घर के बाहर आकर रुकी , जिसे देखकर शुक्लाजी रुक गए ! तभी उस कार मैं से एक व्यक्ति जो सफ़ेद कुरता-पायजामा पहने हाँथ मैं सोने का ब्रासलेट, और मंहगी घडी, गले मैं सोने की मोटी चैन, आँखों पर काला चश्मा और मुंह मैं बनारसी पान चबाते हुए बाहर निकला और शुक्लाजी की तरफ बड़ने लगा ! शुक्लाजी अपनी जगह पर ही ठिठक कर रह गए ! गाडी बाला शुक्लाजी के पास आकर रुक गया ! और शुक्लाजी के पैरों की तरफ झुककर कहने लगा ! '' हम आपको आशीर्वाद लैबे आये हैं , आप ने हमे पहचानो नहीं ! हम हैं आपके ही मोहल्ले के जग्गू , लगता है आप हमको भूल गए '' तभी शुक्लाजी को अचानक ध्यान आया ! " अरे जग्गू तुम, तुम तो तो पहचान मैं ही नहीं आरहे भई , कितने बदल गए हो , और ये ठाट-बाट,ये गाडी सब कुछ , ये सब कैसे, और कहाँ थे तुम २-३ सालों से !" शुक्लाजी ने ५-६ सबालएक साथ ठोक दिए, आओ-आओ अन्दर आओ " तभी जग्गू बोला, "बस आपका आशीर्वाद है , भय्याजी हम पिछले २-३ साल से बम्बई मैं थे ! आज आपकी और अपने मोहल्ले की याद आई सो चले आये आपसे मिलबे ! लगता है आप दफ्तर जा रहे हैं , मैं आज शाम को अपने दोस्तों को एक पार्टी दे रहा हूँ ! हमारी तरफ से आपको निमंत्रण है ! हम शाम को आपसे मिलते हैं, वहीँ आपको सब कुछ बताते हैं " इतना कहकर जग्गू वहां से चला गया !शुक्लाजी रास्ते भर सोचते आये ! चलिए अब मैं इस जग्गू से आपका परिचय करवा दूं , आज का जगमोहन कभी हमारे शुक्लाजी के मोहल्ले मैं रहा करता था ! तब हम सब इसको एक चोर-उचक्का , गुंडा-मवाली , निकम्मा और कामचोर के रूप मैं जानते थे ! जिसे मोहल्ले मैं कोई भी पसंद नहीं करता था ! कारण था, की इसके ऊपर ना तो माँ-बाप का साया था और न ही कोई काम ! बस अपने दादाजी के साथ टूटी-फूटी झोंपड़ी मैं रहा करता था ! शुक्लाजी उस मोहल्ले मैं थोडा पड़े -लिखे ज्यादा थे ! सो यह उनकी थोड़ी-बहुत इज्जत किया करता था ! क्योंकि शुक्लाजी कभी कभी अच्छी सलाह भी दे दिया करते थे ! सो आज इस बात का अहसास हुआ की शायद, आज यह उनसे कोई राय मांगने आया है !

शाम को मुलाक़ात हुई , और दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ ! '' अरे जग्गू कहाँ थे इतने दिनों तक , और यह ठाट-बाट इतनी जल्दी कैसे '' शुक्लाजी की बात सुन जग्गू बोल उठा , "बस भैयाजी अब आपसे मैं क्या छुपाऔं ," मोहल्ला छोड़ने के बाद मैं यहाँ वहां भटकते हुए बम्बई जा पहुंचा और वहां पर कुछ उलटे सीधे धंधे करने लगा और धीरे-धीरे पैसों का अम्बार लग गया , आज मेरे पास पैसा तो बहुत हो गया लेकिन कोई नाम नहीं हैं " अब मुझे यह दर लगने लगा है की यह पैसा अब मेरी मुसीबत बन गया है " कभी पुलिस का डर तो कभी भाई लोगों का खतरा (डी-कंपनी ) अब मैं क्या करूँ आप ही बताएं ! जिससे से मेरा नाम भी हो जाए और इन सब परेशानियों से बच जाऊं !और लोग मुझे पहचाने , और मेरा नाम हो जाये " इतना बोल जग्गू शांत हो गया ! अब शुक्लाजी भी मन ही मन कुछ सोचने लगे ! और थोडा सोचविचार कर बोले " देखो जग्गू आज के माहौल मैं आज के वातावरण मैं कोई भी भला आदमी इतनी जल्दी ना तो नाम कमा पाता है, और ना महान बन पाता है !फिर तुम ने तो कोई भलाई का काम भी नहीं किया , तुम्हारे पास अब एक ही जगह है जहाँ से तुम जल्दी महान बन जाओगे , " बो क्या शुक्लाजी " जग्गू बोला "यार जग्गू तुम राजनीति मैं क्यों नहीं चले जाते , आज के युग मैं यही एक जरिया है जहाँ तुम सुरक्षित हो " तुम किसी नेता की शरण मैं चले जाओ , और धीरे-धीरे राजनीती के सारे गुण सीख लो , यही तुम्हारे लिए अच्छा होगा ! तुम्हारे पैसे का भी सही उपयोग होगा , फिर ना तो तुम्हें पुलिस का डर होगा और ना भाइयों (डी-कम्पनी) का खतरा , आज इतने पैसे के साथ तुम सिर्फ यहीं सुरक्षित हो ! अगर तुम राजनीति मैं छा गए तो तुम बहुत जल्द महान भी बन जाओगे " इतनी बात सुन जग्गू तुरंत बोला , "धन्यवाद शुक्लाजी , मैं आपकी बात समझ गया " अंत मैं जग्गू और शुक्लाजी अपने गंतव्य को चले गए ! जग्गू मन ही मन महान बनने का सपना देखने लगा ! और जग्गू ने बही किया जो शुक्लाजी ने उन्हें बताया था ! जल्द ही जग्गू ने एक विख्यात नेता की शरण लेली और अपनी पैसे की पोटली उस नेता के सामने खोलदी , उस नेता ने पैसे के लिए उसे अपनी पार्टी का टिकट दे दिया ! और देखते ही देखते जग्गू ने अपनी तगड़ी पकड़ पार्टी मैं बना ली! और देश की सरकार मैं एक बड़ा मंत्री पद भी हासिल कर लिया ! क्योंकि हमारे जग्गू भैया तिकड़मी जो ठहरे सो सब कुछ बड़ी आसानी से हासिल कर लिया ! आज पूरा देश उन्हें एक महान नेता जगमोहन के रूप मैं जानता है !

यह कहानी है आज के कुछ महान नेताओं की जो पहले कभी, कुछ ना थे किन्तु पैसा , गुंडागर्दी , बेईमानी , भ्रष्टाचार और ना जाने कितने गलत तरीकों से आज देश मैं ऊंचे पदों पर एक महान व्यक्ति बन कर बैठे हैं ! आज बहुत से नेता राजनीती मैं आने से पहले क्या थे ! यह हम सब जानते हैं !

क्या वाकई मैं महानता इतनी सस्ती है , क्या आपको महान बनना है ........... तो अब देर ना कीजिये .....

धन्यवाद

Wednesday, June 16, 2010

इस गरीबी ने कर दिया, सब कुछ तबाह ...>>> संजय कुमार

आज अखबार पड़ते वक़्त एक ऐसी घटना को पड़ा जिसे पढकर दिल सिहर गया ! दिल को धक्का सा लगा, इस तरह की ख़बरें सुनकर !ये क्या हो गया आज के इन्सान को ! आज का कलियुगी इन्सान, जो अपनों के खून से अपनी प्यास बुझा रहा है ! खबर यह थी कि एक पिता ने अपनी पांच मासूम बेटियों कि कुल्हाड़ी से काटकर निर्मम हत्या कर दी ! घटना मध्य-प्रदेश के सीहोर की है ! घटना का मुख्य कारण उसकी गरीबी, और गरीबी मैं उसका पागल हो जाना , दिमाग काम न करना बताया गया है ! क्या ऐसा भी कहीं हो सकता है , एक पिता एक साथ अपनी पांच-पांच मासूम बेटियों कि हत्या कर सकता है ! जिन्हें उसने जन्म दिया ! वही पिता एक दिन उनका कातिल बन जाएगा ! क्या आज गरीबी इतनी अभिशापित हो गयी जो इस तरह के हादसे अब आये दिन होने लगे हैं ! यह कोई अकेली घटना नहीं हैं ! इस तरह के, और, इससे भी ज्यादा दिल को दहला देने बाली घटनाएं अब रोज-रोज सुनने को मिल रहीं हैं ! आज गरीबी उस अजगर के समान हो गयी हैं , जो अपने शिकार को एक ही बार मैं , पूरा का पूरा निगल लेता है , और जब तक उसके शिकार के प्राण नहीं निकल जाते तब तक नहीं छोड़ता ! अब यह गरीबी पूरा का पूरा परिवार निगल रही हैं ! जब तक गरीब इस गरीबी से तंग आकर सब कुछ खत्म नहीं कर देता तब तक वह चैन से नहीं बैठता ! आज गरीबी सब कुछ तबाह कर रही है ! और ले रही है कई मासूम और निर्दोष इंसानों की जानें !

आज इन रोज-रोज होने बाली मौतों का कौन जिम्मेदार है ! गरीबी, सरकार , सहकारी संस्थाएं , नेता , या बड़े-बड़े अधिकारी ! क्या इनमे से कोई भी इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेगा ! इन सब के पीछे यही सब लोग जिम्मेदार हैं ! और जिम्मेदार ठहराते हैं गरीबी को ! इस गरीबी का असली कारण तो यही लोग हैं ! सरकार ने गरीबों के लिए हज़ार तरह कि लाभ योजनायें चला दी ! जिससे यह गरीबी दूर हो जाए ! लेकिन गरीबी दूर होना तो दूर कि बात गरीब को तो पता ही नहीं चलता कि सरकार ने हम गरीबों के लिए कोई योजना भी बनायी है ! हर कोई गरीब का हक खाने को बैठा है ! नेता नहीं चाहता कि इस देश से गरीबी दूर हो क्योंकि , उनकी उनकी कुर्सी बनाने मैं इन गरीबों का बहुत बड़ा योगदान जो होता है ! सरकारी संस्थाओं कि जो जिम्मेदारी होती है ! वह ठीक ढंग से अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करते ! और गरीबों को उनके हक और अधिकारों के बारे मैं सही सही और पूर्ण जानकरी नहीं देते ! बड़े बड़े अधिकारियों के पास इन गरीबों कि समस्याएं सुनने को समय ही नहीं होता तो कहाँ से जान पायेगा गरीब अपने हक और अधिकार ! और इन सब से तंग आकर वह उठाता है इस तरह के दिल दहला देने बाले कदम !

आज इस गरीबी ने ना जाने कितने घरों को बर्बाद कर दिया है ! और ना जाने कितने घरों को आगे बर्बाद करेगी ! इस गरीबी से निबटने का कोई रास्ता अब समझ नहीं आता ! कब बंद होगा यूँ परिवारों का बिखरना !


धन्यवाद

Monday, June 14, 2010

हर घर बहुत कुछ कहता है .... इन्सान का सबसे सच्चा साथी ....>>> संजय कुमार

घर, इन्सान का वह सबसे बड़ा साथी, जो उसके साथ जीवन भर रहता है , और जिसके बिना इन्सान का जीवन अस्तित्वहीन है ! इन्सान के हर सुख-दुःख का साक्षी होता है घर ! इन्सान की बहुत सी यादें एक घर से जुडी रहती है ! फिर चाहे वहां उसका जन्म हुआ हो या मृत्यु , उसका बचपन बीता हो, या हुआ हो जवान ! फिर चाहे शादी हो या हो माँ-बाप बनने का प्रथम सुख ! सब कुछ अपने घर से जुड़ा होता है ! आइये घर के कुछ मुख्य जगहों और घर के कुछ महत्वपूर्ण चीजों से रूबरू होते हैं ! वह जो किसी ना किसी तरह अपना काम करती है , और हमारी सफलता मैं अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं !

घर , जहाँ हमने सबसे पहले अपनी आँखें खोली , जहाँ हमारा जन्म हुआ ! किन्तु आज लगभग इन्सान का जन्म अपने घर की बजाह किसी सरकारी अस्पताल या किसी नर्सिंग होम मैं होता है ! और इन्सान इन जगहों पर बार बार जाना नहीं चाहता !

हमारे घर का आँगन जहाँ हम अपने पैरों पर पहली बार खड़े हुए , और जहाँ हम अपने भाई-बहनों के साथ यूँ ही दौड़ लगाया करते थे ! किन्तु आज इन्सान के बीच इतना मतभेद हो गया , और हमारे घरों से यह आँगन कब कोठरियों मैं बदल गए नहीं मालूम ! आज-कल बड़े शहरों मैं तो सिर्फ फ़्लैट होते हैं , वहां पलने बाले बच्चे नहीं जानते आँगन का मतलब ! और भविष्य मैं हमारे बच्चे हम से पूंछेंगे की ये आंगन क्या होता है !

घर के वह कमरे जहाँ हमने बैठकर , जागकर , सोकर , उधम मचाकर अपनी पढाई की , और अपने भविष्य के सपने बुने ! जहाँ इस बात को लेकर हम कई बार अपने भाई-बहनों से लढ़े, की यह जगह मेरी है और बो जगह तेरी हैं ! शायद आज भी कई घरों मैं यह स्थिति होती है ! बचपन के सबसे प्यारे क्षण ! जो हमेशा याद रहते हैं ! और जहाँ पर तैयार होता है भाई-बहनों के सच्चे प्यार का निर्माण , जो जीवन पर्यंत चलता है !

घर का वह कमरा जिसे हम शयनकक्ष कहते हैं जहाँ हम जीवन भर अपने जीवनसाथी के साथ रहते हैं ! जहाँ पर जुडी होती हैं कई यादें, और अपने भविष्य को बनाने की योजना, और बहुत कुछ ! सब कुछ इस कक्ष मैं ! लेकिन यह कमरा आपको तभी मिलेगा जब आप शादी कर लेंगे , और उस कक्ष मैं आपके जीवन साथी का स्वामित्व हो जाएगा ! तभी इस कक्ष का महत्त्व है ! इस कक्ष मैं इन्सान एक लम्बे समय तक रहता है ! यह कमरा हर किसी के पास होता है , फिर चाहे शहर का फ़्लैट हो या गाँव की झोपड़ी !
घर का बरामदा जहाँ पर हमने उधम मचाते हुए कई बार अपने माता-पिता, दादा-दादी के द्वारा डांट खायी ! और कई बार सजा के हक़दार बने ! किन्तु अब इन बरामदों मैं, अब आपको हमारे माता-पिता या दादा-दादी कम ही देखने को मिलेंगे ! क्योंकि आज का इन्सान अब अलग और अकेला रहना चाहता है ! अब धीरे-धीरे संयुक्त परिवार बाली परम्परा समाप्त हो रही है ! और आज के बहुत से बच्चे अपने दादा-दादी की डांट नहीं सुन पाते ! जो किसी के जीवन मैं बहुत उपयोगी होती हैं ! क्योंकि इनके पास होता है , जीवन का सच्चा अनुभव !

घर की छत जहाँ हमने आसमान मैं उड़ने बाले पक्षियों को देखकर आसमान मैं उड़ने और आसमानी बुलंदी को पाने की सच्ची कोशिश सीखी ! और नीला आकाश, चंद्रमा की शीतलता , सूर्य का तेज और टिमटिमाते तारे , उमड़ते-घुमड़ते बादल सब कुछ यही से देखा !

घर की रसोई जहाँ से हमने पहली बार किसी स्वाद को चखा ! और आज इन्सान के सारे काम यहीं से शुरू होते है ! सुबह सुबह चाय नाश्ता हमको यहीं से मिलता है ! तभी हम अपने घर से अपने कार्य क्षेत्र को जाते हैं ! जहाँ माँ कामधेनु निवास करती हैं !

घर मैं भगवान का कमरा ! जहाँ से हम अपने सुख समृद्धि की कामना करते हैं , और अपने धर्म की और ईश्वर के प्रति श्रधा का भाव सीखते हैं ! सीखते हैं , आदर , अपनापन और जानते हैं ईश्वरीय शक्ति के बारे मैं ! किन्तु अब इश्वर मैं ध्यान कितने लोग लगाते हैं , यह कहना बहुत मुश्किल हैं ! आज इन्सान के पास अपने परिवार को देने के लिए समय नहीं है तो फिर भगवान् को पूंछता कौन ! भगवान् को सिर्फ बुरे और विपत्ति समय मैं याद किया जाता है ! आज भगवान् भी तरसता हैं ऐसे इंसानों के लिए जो वाकई उसमे विश्वास रखता हो !

घर का बाथरूम जहाँ पर यूँ ही गुनगुनाते हुए हमने अपनी प्रतिभा को तराशा ! और बाथरूम सिंगर से एक अच्छा कलाकार बन ,आज एक अच्छा नाम कमा लिया !
घर का आईना जिसे देखकर हमने कई बार अपने आपको निहार कर जीवन में कभी मूक अभिनय कर सीखा बहुत कुछ , और एक कलाकार बन गए ! क्योंकि आईना कभी झूंठ नहीं बोलता !


इन्सान के जीवन मैं अगर अपने घर का सुख नहीं हैं तो उसके पास कुछ भी नहीं हैं ! किसी भी इन्सान का अस्तित्व एक घर से जुड़ा हुआ होता है ! अगर घर हैं तो इन्सान हैं ! इनके अलावा भी किसी घर मैं बहुत सी चीजें होती हैं , जिनसे इन्सान का लगाव बहुत होता है !

क्योंकि हर घर बहुत कुछ कहता है

धन्यवाद

Saturday, June 12, 2010

अपने हिस्से की सारी लड़ाईयां... धीरे-धीरे लड़ते चलो ...>>> संजय कुमार

इन्सान का जीवन बहुत कठिनयियों भरा होता है ! जब तक इस हाड़-मांस बाले शरीर मैं साँस रहती है तब तक इन्सान लड़ता है अपने आप से ! कभी अपने लिए तो कभी अपनों के लिए तो कभी दूसरों के लिए , उम्र भर ! लड़ता है अपनी समस्याओं से, लड़ता है अपने आस-पास होने बाली हर बुराई से! लड़ता है झूंठ से , गम से , खुशियों के लिए , न्याय के लिए , सम्मान पाने के लिए , सम्मान बचाने के लिए, अधिकार के लिए , संस्कारों के लिए , अपने लक्ष्य के लिए , अपनी झूंठी परम्पराओ को बचाने के लिए ! अपने देश के लिए , लोगों के हक के लिए ! और एक दिन लड़ता है , अपने को इन्सान कहलाने को ! इन्सान के जीवन की यह लड़ाई , कभी खत्म नहीं होती ...... खत्म होता है तो यह हाड़-मांस का बना इन्सान .............. तो अपने जीवन की हर लड़ाई को बिना रुके लड़ते चलो ----आगे बड़ते चलो ............

अपने हिस्से की सारी लड़ाईयां
धीरे-धीरे लड़ते चलो ...
बड़ते चलो ..... बड़ते चलो

चलना शुरू किया तो आजायेगी मंजिल
धीरे-धीरे हिम्मत ये , दिल करलेगा हांसिल
उठना-गिरना ,गिरना-उठना , होगा बारम्बार
ऐसे ही तो कदम सीखते नयी नयी रफ़्तार
अब आने बाली हर मुश्किल का सामना
आने बाली हर मुश्किल का सामना
धीरे-धीरे करते चलो , बड़ते चलो,लड़ते चलो
बड़ते चलो .....बड़ते चलो.... लड़ते चलो ....

जिसके साथ चलता है , हर दम कोही प्यार
लहरें उसका हाँथ पकड़कर , बाँटें सागर पार
सब कुछ मुमकिन हैं, जब तक है दिल मैं कोई आस
लम्हा लम्हा कट जायेगा , हो कोई वनवास
जिंदगी की ये सारी पढाईयां, धीरे-धीरे पड़ते चलो
बड़ते चलो ... बड़ते चलो ...... लड़ते चलो ....

जब तक इस शरीर मैं जान है , तब तक जीवन मैं आगे बड़ते चलो
(यह पंक्तियाँ एक गीत से ली गयी हैं )

धन्यवाद

Thursday, June 10, 2010

हम धन्यवाद करते हैं, टेलीविजन का ....>>> संजय कुमार

एक छोटा सा बिजली से चलने बाला चलित द्रश्यों का डिब्बा जिसे हम सब टेलीविजन या टी व्ही या दूरदर्शन और बुद्धूबक्से के नाम से जानते हैं ! वह बुद्धुबक्सा जिसमे पूरा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है ! एक खटका दबाते ही दुनिया भर की जानकारी और सब कुछ जिसे हम सब पल भर मैं देख लेते हैं ! आज सब कुछ आसान हो गया हम सब के लिए ! आज दुनियाभर का आँखों देखा हाल अपने घर पर आराम के साथ बैठकर देख सकते है ! एक समय था जब हमें देश -विदेश मैं होने बाली किसी भी हलचल या किसी भी घटना की जानकारी मिलने मैं काफी वक़्त लगता था ! और घटना का कारण, दुनिया भर के सवाल !जिनके जबाब से हम सब अनभिज्ञ होते थे ! कुछ भी मालूम नहीं होता था ! लेकिन आज देश मैं कोई भी घटना किसी भी जगह बस हो जाए ! हम सबको बिलकुल भी वक़्त नहीं लगता जानकारी मिलने मैं ! सब कुछ इस डिब्बे के कारण ! आधुनिक दुनिया मैं अमीर-गरीब सबके , मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन ! आज हर घर का सदस्य बन चूका है टेलीविजन ! आज इसके बिना रहना या कल्पना से भी इन्सान डरता है ! आज इन्सान के जीवन का अहम् हिस्सा बन चूका है ! बच्चे हों या बूढ़े , या हों जवान , सबका चहेता होता है यह ! आज घर की महिलाओं की तो जान अटकी होती है , इस छोटे से डिब्बे मैं ! इस डिब्बे के कारण अगर अपनों से लड़ाई-झगडा भी हो जाए तो कोई परवाह नहीं ! अरे भई होगा भी क्यों नहीं, हम सब को इतना कुछ जो दे रहा है ! आज इतनी प्रतिभाएं हम लोगों के सामने आ रही हैं , जितनी पहले कभी नहीं देखने को मिलती थी ! सब कुछ इसी की वजह से ! यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने बहुत कुछ सीखा है इस टेलीविजन से ! और आप सभी ने भी कुछ ना कुछ अच्छा इस टेलीविजन से जरूर सीखा होगा ! अरे भई, आज अपने सबके बच्चे जो टेलीविजन पर आने बाले प्रोग्राम मैं धमाल जो मचा रहे हैं ! जिन्हें देख कर आज के माता-पिता गर्व कर रहे हैं अपने बच्चों पर ! आज कितनी ही प्रतिभाएं उभर कर हम सबके सामने आई हैं ! जिनकी सफलता मैं कहीं ना कहीं इस टेलीविजन का बहुत बड़ा योगदान है !

आप ज्यादा दूर नहीं १५-से २० साल पहले चले जाएँ ! क्या हम जानते थे देश मैं होने बाली किसी भी घटना के बारे मैं इतनी जल्दी ! क्या जान पाते थे छोटे -छोटे बच्चों के अन्दर छुपी हुई प्रतिभाओं के बारे मैं ! अगर जानते थे तो क्या उनके पास साधन थे उनको निखारने के लिए ! नहीं थे साधन हम सब के पास ! बस साधन था तो अखबार या रेडियो जिनको पढ़ा और सुना जा सकता था ! आज सब कुछ आसान सा लगता है ! आज हर क्षेत्र मैं टेलीविजन ने अपनी पकड़ मजबूत करली है ! आज हर जगह इसका बोलबाला है ! आज टेलीविजन इन्सान के लिए एक सहायक के रूप मैं काम कर रहा है ! आज हम सबको आभारी होना चाहिए इस बुद्धुबक्से का ! और धन्यवाद करना चाहिए उन उपलब्धियों के लिए जिसमें कहीं ना कहीं इसका बहुत बड़ा योगदान है ! जैसा की प्रकृति का नियम है हर अच्छी चीज के साथ बुरा जुढ़ा होता है! तो इसके भी बहुत बुरे परिणाम हैं जो आज हमारे सामने आ रहे हैं ! लेकिन आज मैं यहाँ सिर्फ इसकी अच्छाई के बारे मैं बात कर रहा हूँ ! बुराई के बारे मैं फिर कभी बात करेंगे !

मेरी तरफ से इस टेलीविजन को बहुत-बहुत धन्यवाद

धन्यवाद

Tuesday, June 8, 2010

इसमें विश्वाश है, इसमें कुछ खास है.....>>>> संजय कुमार

आज सुबह एक विज्ञापन जब टेलीविजन पर देखा तो हम उस विज्ञापन को देखकर यह समझ नहीं पाए की विज्ञापन इस तरह क्यों दिखाया जा रहा है , आखिर इस विज्ञापन का क्या मतलब है ! और आखिर यह विज्ञापन का हम क्या अर्थ निकालें ! विज्ञापन था किसी सीमेंट कंपनी का ! '' लाल रंग की बिकनी पहने एक मॉडल समुद्र की लहरों के बीच से निकलती हुई आती है " और फिर विज्ञापन आता हैं ! "इसमें विश्वाश है.... इसमें कुछ खास है , जेपी सीमेंट ......... जब इस तरह का विज्ञापन देखा तो बहुत सोचा की इस विज्ञापन मैं इस मॉडल को इस तरह दिखाने का क्या मतलब ! क्या इस मॉडल को देखकर आप अपने घर के लिए सीमेंट खरीदेंगे ! या इस मॉडल को देखकर आप अपना दिल बहलाएँगे ! इस तरह का यह कोई अकेला विज्ञापन नहीं है ! आज टेलीविजन पर दिखाए जाने बाले अधिकांश्ता विज्ञापनों मैं इसी तरह नारी का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है ! क्या आज हर दूकान का सामान बेचने के लिए यूँ नारी का उपयोग सही है ! आज मर्दों का तेल हो या मर्दों का साबुन , या सेविंग क्रीम या मोटरसाइकिल या अन्य उत्पाद जो ज्यादातर पुरुष ही इस्तेमाल करते हैं ! इन सभी को बेचने की जिम्मेदारी आज इन महिलाओं के कन्धों पर डाल दी गयी है ! अगर नारी यह विज्ञापन बंद करदें तो पता नहीं सारी कंपनी बंद हो जायेंगी या हिंदुस्तान मैं उत्पाद बिकना बंद हो जायेंगे ! क्यों आज गली गली हर नुक्कड़ पर नारी की नुमाइश इस तरह की जा रही है ! यह सब देखकर आज नारी भी कहीं ना कहीं बहुत दुखी है ! जो उसका इस्तेमाल इस तरह किया जा रहा है ! क्यों कोई महिला संगठन आगे नहीं आता इस तरह नारी के विक्रय पर रोक लगाने के लिए !क्या आज का महिला संगठन भी कहीं आधुनिक दुनिया की चकाचौंध मैं खो गया है ! या फिर नारी को यह सब अच्छा लगता है , या आज की नारी जो इस तरह की चकाचौंध बाली दुनिया मैं कार्यरत है ,वह सिर्फ पैसा चाहती है ! आप उसे सिर्फ पैसा दो तो फिर बो चाहे जिस विज्ञापन मैं आये ! या जहाँ चाहे वहां अपने आप की नुमाइश करती फिरे ! अगर यही सच है तो हम सब को आज की नारी की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं हैं ! वह अपना अच्छा बुरा जानती हैं !

हिंदुस्तान मैं जहाँ नारी को देवी का दर्जा दिया जाता है ! वहीँ आज हिन्दुस्तान मैं हर जगह नारी का उपयोग किया जा रहा है क्यों ! कौन हैं इसका जिम्मेदार नारी स्वयं या इनका इस्तेमाल करने बाले ! क्योंकि आज हर जगह एक बात सुनने को मिलती है !" जो दिखता है सो बिकता है " क्या वाकई मैं आज जो दिख रहा है , बही बिक रहा है ! तो फिर हर जगह नारी को ही क्यों दिखाया जा रहा है ! ये तो शायद हर किसी की चाहत नहीं है की हर जगह नारी की ही नुमाइश की जाए ! क्या ये पुरुष को अपनी और आकर्षित करने का तरीका है ! अगर पुरुष उत्पादों का विज्ञापन महिला नहीं करेगी तो क्या पुरुष , उस उत्पाद का उपयोग बंद कर देंगे ............ सोचिये जरूर सोचिये ..........इस बात पर ................

अगर इस बात मैं किसी नारी का अपमान है ...... तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ .......... मुझे माफ़ करें

धन्यवाद

Monday, June 7, 2010

धर्म और आस्था का दिखावा...( लघु- कथा ) ......>>>> संजय कुमार

यह लघु-कथा मैं पहली बार लिख रहा हूँ , इसमें बहुत सी गलतियाँ होंगी, आपसे निवेदन है, आप मेरी गलतियों के बारे मैं बताएं, जिससे मै आगे गलतियों मैं सुधार कर और भी अच्छा लिखने की कोशिश करूं ! कृपया अपनी राय अवश्य दें !
-------------------------------------------------------------------------------------------
स्वामी योगानंद महाराज की जय, स्वामी योगानंद महाराज की जय, धर्म की जय , सुबह सुबह अखबार पड़ते वक़्त, यह जयजयकार जब मेरे कानों मैं पड़ी, तो सहसा मेरी प्रिये पत्नी मुझसे बोल पड़ी , ' लगता है आज शर्माजी के यहाँ कोई बहुत बड़ी धार्मिक पूजा है ' शर्माजी हमारे मोहल्ले के सबसे धार्मिक पुरुष ,जो धर्म को ज्यादा और कर्म को कम मानते हैं ! जिनका पूरा का पूरा समय इश्वर को खुश कर स्वर्ग को जाने का राश्ता ढूँढने मैं व्यतीत होता है ! तभी मेरे घर की घंटी बजती है , और शर्माजी मेरे सामने! ''अरे शर्माजी सुबह सुबह कैसे आना हुआ, शर्माजी बोले , " आप तो जानते हैं मैं धर्म -कर्म मै कितना विश्वास रखता हूँ ! सो मेरे घर बहुत पहुंचे हुए महात्मा स्वामी योगनान्दजी महाराज पधारे हैं ! जो एक ऐसी पूजा कर रहे हैं , जिसे करने के बाद मेरे सारे पाप धुल जायेंगे और मैं सीधा स्वर्ग मैं जाऊंगा ! सो आप सभी इस विशेष पूजा मैं पधारें ! इतना कह शर्माजी वापस चले गए ! अब हम कल का इन्तजार करने लगे ! सुबह सुबह हम सब परिवार सहित शर्माजी के घर पहुँच गए ! घर की सजावट देख हमें इस बात का विश्वास जरूर हो गया की शर्माजी ने स्वर्ग जाने के लिए लगता हैं , काफी खर्चा किया है ! हर तरफ शुद्ध देसी घी की खुशबू ! जैसे तैसे पूजा प्रारंभ हुई , स्वामी जी और उनके १५-२० चेलों के बीच , बो चेले कम मवाली ज्यादा लग रहे थे , और आती जाती महिलाओं को इस तरह देख रहे थे जैसे कभी महिलाएं देखि ही नहीं ! खैर , हम लोग पूजा मैं ध्यान लगाने की कोशिश कर रहे थे , की स्वामीजी की आवाज हमारे कानों मैं आई , की शर्माजी अब आप इश्वर के चरणों मैं दक्षिणा रख के इस पूजा-पाठ का समापन करें !और कब पूजा समाप्त हो गयी पता ही नहीं चला ! स्वामीजी की जो आवभगत शर्माजी ने की देखते बनती थी ! पूजा-बूजा से फ्री होकर स्वामीजी ने शर्माजी को आवाज लगायी ! ''अरे शर्माजी अब आप स्वच्छ भोग का प्रवंध कीजिये , शर्माजी ने कहा, 'जी स्वामीजी' ! तभी शर्माजी ने अपने नौकर को बुलाया और कहा ''अरे मोहन हमने जो असली घी की मिठाई स्वामीजी के लिए बनवाई हैं उसका तुरंत इंतजाम करो'' ! सब कुछ आने के बाद शर्माजी ने स्वामीजी से कहा , ''स्वामीजी आप इश्वर को भोग लगायें '' मैं गाय को भोग लगाने जा रहाहूं ''

जैसे ही शर्माजी आगे बड़े, तभी उनको आवाज आई " बाबूजी दो रोटी हमका दे दो, दो दिना से कछु न खाओ मैंने और जा मेरी मोढी नै, कछू मिल जाए तो भगवान् तुम्हे स्वर्ग को सुख देगो '' दरवाजे पर एक महिला मैली-कुचैली साडी जो हर तरफ से फटी हुई थी , पेट अन्दर घुसा हुआ , ऐसा लग रहा था जैसे , वह कई दिनों से भूंखी हो, अचानक आ गयी और खाने के लिए पुकारने लगी ! जब यह बात स्वामीजी के कानों मैं पड़ी तो स्वामीजी बोल पड़े , ''अरे शर्माजी भगाओ इस भिखारिन को इसकी बात अगर भगवान् ने सुन ली तो वह नाराज हो जायेंगे, चली आई अबसगुन करने , भगाओ इसे यहाँ से , शर्माजी ने बात सुनी और उस भिखारिन को धक्के मार कर वहां से भगा दिया ! अब शर्माजी ने अपनी थाली मैं भोजन रखा और जैसे ही थाली गाय के सामने राखी , बैसे ही वह भिखारिन जिसे शर्माजी ने भगा दिया था , अचानक प्रकट हुई , और थाली मैं रखा भोजन उठाकर अपनी छोटी सी बेटी को खिलाने लगी ! जैसे ही शर्माजी ने ये देखा, उन्होंने आव देखा ना ताव बस, एक जोरदार झन्नाटेदार चांटा उस भिखारिन को जड़ दिया ! और बोले , '' तू फिर से आ गयी यहाँ, धरम-कर्म मैं विघ्न डालने , चली जा तू यहाँ से वर्ना यहाँ वैठे लोग इतने पत्थर मारेंगे की तू यहीं की यही स्वर्ग सिधार जायेगी '' और उसका हाँथ पकड़कर वाहर का राश्ता दिखा दिया , बेचारी वहां से कुनकुनाते चली गयी! '' जा के पास तो भूंखे को खाबाबे को तो कछु है नयी और बिने खबा रौओ जो पहले से ही खा खा के लाल हो रहे हैं , नरक मैं जय गौ, जे तो ' ' .................और भिखारिन यह सब बकते वहां से चली गयी .............

जब हम सब शाम को शर्माजी के यहाँ से लौटे तो, सोचते रहे की क्या वाकई मैं , स्वामीजी के पास ऐसी कोई पूजा है जो स्वर्ग का राश्ता दिखाती हैं ! और शर्माजी धर्म के नाम पर इतने अंधे हो गए हैं , की किसी इन्सान की भूंख से ज्यादा उस स्वामीजी की भूंख बड़ी है, या उस गाय की ,.........क्या शर्माजी ने सही किया ......जो उस भिखारिन की जगह उस गाय को रोटी खिलाना उचित समझा ..........क्या धर्म यही कहता है ..................क्या धर्म इन्सान से बड़ा होता हैं ..........फिर यह धर्म का दिखावा क्यों

धन्यवाद

Saturday, June 5, 2010

क्या हैं, हमारी सभ्यता और संस्कृति....>>> संजय कुमार

भारतवर्ष पूरे विश्व मैं जाना जाता है अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए ! वह सभ्यता और संस्कृति जो पिछले सेकड़ों वर्षों से एक परम्परा के रूप मैं हमारे देश मैं चली आ रही है ! यह बात बिलकुल सही है! जिस कारण हम सब अपने आपको भारतीय कहने पर गर्व महसूस करते है ! और आगे भी करते रहेंगे ! क्योंकि जो सभ्यता और संस्कृति हमारे पास है वह पूरे विश्व कहीं नहीं ! हम लोगों का व्यव्हार ! फिर चाहे वह अपनों का मान-सम्मान, हम लोगों की एकता ! हजारों तरह की बोलियाँ , छोटे बड़े का आदर , माता-पिता का सम्मान ! हमारे यहाँ के रीति-रिवाज , हमारे यहाँ के व्रत, तीज-त्यौहार , हम लोगों मैं अपनत्व और अपनेपन का भाव ! हमारे देश मैं ही नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है !और उसकी पूजा करना ! और बहुत कुछ है जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को वयान करती हैं ! आज देश मैं सभी को समान अधिकार , स्वतंत्रता , अपने अधिकार के लिए लड़ने कि आजादी ! सब कुछ है ! जो भारतवर्ष को एक अलग छवि प्रदान करता है ! हमारी सभ्यता और संस्कृति इतनी महान हैं ! जिसे सीखने और समझने के लिए पिछले कई वर्षों से विदेशी सैलानी , साहित्यकार , लेखक , और ना जाने कितने महान लोग यहाँ भारत मैं डेरा डाले रहते हैं ! तो अब बताएं आप , है ना हमारी सभ्यता और संस्कृति सबसे महान !

हम सभी अपनी सभ्यता और संस्कृति कि हर जगह बढ़ाई करते फिरते हैं ! लेकिन हमारे देश मैं ऐसा बहुत कुछ हो रहा है ! जिससे हमारी सभ्यता और संस्कृति को धब्बा लग रहा है ! और देश की अच्छी छवि धूमिल हो रही है ! आज देश मैं सभ्यता और संस्कृति को शर्मशार करने बाले ऐसे काम हो रहे हैं! जो हमें कई वर्षों पीछे धकेल रहे हैं ! हम सब रोज ऐसे कारनामे सुनते हैं ! जहाँ इन्सान के अन्दर की इंसानियत पूरी तरह से मर चुकी है ! जहाँ देश मैं हम नारी-सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं , महिला आरक्षण की बात कर रहे हैं ! वहीँ दूसरी और महिलाओं के साथ ऐसा दुर्व्यवहार हो रहा है ! जहाँ यह सब धरा का धरा रह जाता है ! आज भी देश के कई गाँवों मैं महिलाओं को जिन्दा मारा जा रहा है ! कभी उसको डायन बनाकर पूरे गाँव के सामने पत्थर मार-मार कर मारडाला जाता है ! तो कभी उसे अपने ही पति के साथ जिन्दा जला दिया जाता है ! सती का नाम देकर ! क्या यही है हम लोगों की सभ्यता और संस्कृति ! कभी धर्म के नाम पर तो कभी झूंठी परम्पराओं के लिए आज इन्सान, इन्सान की जान का दुश्मन बन गया है ! आज हम सब ऐसे रूडी-वादी समाज मैं जी रहे हैं , जहाँ पर इन्सान का कोई मूल्य नहीं है ! अगर हैं तो झूंठ और दिखावी परम्पराओं का ! आज इन्सान के लिए पैसा ही सब कुछ हो गया है ! जिसकी खातिर इन्सान सारी सभ्यता और संस्कृति को ताक पर रख कर काम कर रहा है ! देश मैं महिलाओं का क्रय-विक्रय हो रहा है ! कुछ लोग तंत्र मंत्र का सहारा लेकर छोटे छोटे मासूम बच्चों की बलि चढ़ा रहे हैं ! आज हम लोगों की सभ्यता और संस्कृति सिर्फ कागजी किताबों मैं और झूंठ और आधुनिक दुनिया के दिखावे मैं कहीं खो गयी है ! और आज हम लोग ही वदनाम कर रहे हैं इस देश की सुन्दर सभ्यता और संस्कृति को ! आज हम लोग ही अपनी सभ्यताओं को छोड़कर दूसरी सभ्यताओं के पीछे भाग रहे हैं ! क्योंकि हम लोगों ने कभी अपनी सभ्यता और संस्कृति के बारे मैं ठीक ढंग से जाना ही नहीं ! तो फिर कैसे जान पाएंगे की क्या हैं हमारी सभ्यता और संस्कृति !

धन्यवाद

Thursday, June 3, 2010

बच्चों का जिद्दी होना, अब बन गया खतरा....>>> संजय कुमार

बच्चे भगवान् का रूप होते हैं ! बच्चे कुम्हार की उस मिटटी के समान होते हैं , जिन्हें कुम्हार कोई भी रूप दे सकता है ! बच्चों मैं ज्ञान नहीं होता वह तो अज्ञानी होते हैं ! और दुनिया भर की बातें होती हैं बच्चों को लेकर जो हम सब को करते देखा गया है ! हम सब भी यही सब मानते हैं ! और आगे भी यह मानते रहेंगे ! क्योंकि बच्चों को सही गलत का ध्यान नहीं होता ! वह जो करते हैं वही सही होता है ! फिर वह किसी चीज के लिए मचल जाएँ या जिद्द करने लगें , उन्हें नहीं होता मालूम ! लेकिन आज के बच्चों का एक रूप अब बहुत ही खतरनाक रूप लेता जा रहा है ! और वह रूप है ! उनका गलत जिद्द करना ! जी हाँ बच्चों का जिद्दी होना अब माँ-बाप केलिए खतरनाक हो गया है ! कुछ समय पहले ऐसा नहीं था ! जब से हम लोग असलियत से परे दिखावे को ज्यादा पसंद करने लगे तब से बहुत कुछ बदल गया इन्सान के जीवन मैं ! आज से १५-२० साल पहले के बच्चे शायद इतने जिद्दी नहीं होते थे ! जितने आज के दौर के बच्चे होते हैं ! कारण पहले जीवन मैं इन्सान के सारे काम एक नियमित रूप से होते थे ! और अपना ज्यादा से ज्यादा वक़्त अपने परिवार के साथ रहते थे ! और अपने बच्चों को पूरा समय देते थे ! जिनसे बच्चों के अन्दर एक अपनेपन की भावना का भाव सदा बना रहता था ! और बच्चों को जिद्द करने का मौका नहीं मिलता था ! पहले इन्सान सिर्फ अपने ऊपर निर्भर रहता था ! किन्तु आज सब कुछ निर्भर है आधुनिक साधनों पर ! जब इन्सान इन साधनों पर निर्भर होता है तो इन्सान वह सब नहीं कर पाता जो असलियत मैं उसे करना चाहिए ! सब कुछ नियंत्रण से बाहर !


जब से हमने अपने आप को जरूरत से ज्यादा व्यस्त कर लिया तब से हम लोगों का ध्यान अपने बच्चों से हट गया ! आज अधिकांश परिवारों मैं यह स्थिति है , की घर के बच्चे पहले की तुलना मैं आज कहीं ज्यादा जिद्दी हो गए हैं ! कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त , कुछ भी नियमित नहीं ! ऐसे माहौल मैं बच्चों का जिद्दी होना स्वाभाविक है ! फिर वह जिद्द किसी वस्तुको खरीदने के लिए हो ! या फिर कुछ खाने पीने के लिए हो ! या फिर कहीं खेलने की जिद्द हो ! कई बार माता-पिता को लगता है ! की बच्चे को यह सब करने दो, जो मांगे देदो , तो वह हमारा पीछा छोड़ देगा ! और हम इत्मिनान से अपना काम कर लेंगे ! लेकिन अगर बच्चों की गलत बात को भी हम स्वीकार करेंगे तो आगे जाकर वह उस आदत के आदि हो जायेंगे जिसे हम साधारणतया बोलचाल की भाषा मैं जिद्द या किसी बच्चे का जिद्दी होना कहते हैं ! यह जिद्द तब तक ठीक हो सकती है जब तक आपका बच्चा अपने घर मैं रहता है ! जब बच्चे बच्चे नहीं रहते और युवा हो जाते हैं ! तब किसी भी माँ-बाप के लिए यह जिद्द खतरनाक साबित हो सकती है ! ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ , क्योंकि आज के बच्चों की जिद्द क्या होती है ! पहली आज के सभी बच्चों को सबसे पहले अपने हाँथ मैं मोबाइल चाहिए ! क्योंकि किसी बच्चे के हाथ मैं जो देख लिया ! अब तो आपको उसे दिलाना ही पड़ेगा नहीं तो आपका बच्चा आपसे रूठ जायेगा ! और शायद आपको यह बात स्वीकार नहीं होगी ! दूसरी जिद्द , जब बच्चा १०बी या बारह्बी मैं पड़ता है , तब उसकी मांग होती हैं , उसके लिए वाहन की , वह भी पेट्रोल चलित ना की साईकिल क्यों की साईकिल तो अब गुजरे जमाने की बात हो गयी , अब तो स्कूटी , हीरो-पुक और ना जाने कितनी ही नयी गाड़ियाँ आ गयी बच्चों को लुभाने को !


अगर आप अपने बच्चों की इन जिद्दों को पूरा कर रहे हैं , तो आप सभी की नैतिक जिम्मेदारी बनती है , उनपर ध्यान देने की , क्योंकि आज बहुत से हादसे इन दोनों की बजह से हो रहे हैं ! कहीं, जिद्द की कारण आपके बच्चे आपसे दूर तो नहीं हो रहे है ! कहीं जिद्द मैं कोई गलत काम तो नहीं कर रहे हैं ....... इन सब पर ध्यान देना जरूरी है .............. कहीं ऐसा ना हो बच्चों की जिद्द......... माता-पिता के लिए खतरा न बन जाए ...............
(एक छोटी से बात )


धन्यवाद

Wednesday, June 2, 2010

यह देश है धीर और वीर.....गरीबों का... इन गरीबों का क्या कहना.....>>> संजय कुमार

आप सभी ने फिल्म नया दौर का यह गीत जरूर सुना होगा ! ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का, इस देश का यारों क्या कहना, ये देश है दुनिया का गहना ! सच बात इस गीत मैं कही गयी ! वाकई मैं यह देश वीर जवानों का ही है ! वह जवान जो देश की रक्षा मैं अपना सब कुछ न्योछावर का देते हैं ! अपने देश के वीर जवानों की ताक़त दुश्मन देश कई बार देख चूका हैं ! वीर जवान इस देश की शान हैं और हमेशा रहेंगे ! लेकिन मैं यहाँ बात कर रहा हूँ हमारे देश के सबसे बड़े गहने का यानि देश के धीर और वीर, गरीबों का ! वह गरीब जो इस देश की शान हैं ! जिनके बिना इस देश मैं कुछ भी संभव नहीं है !आज हमारे देश का भगवान् हम इनको कहें तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी ! भगवान् है सिर्फ कागजों मैं ! जिन गरीबों के दम पर आज हिंदुस्तान टिका हुआ हैं ! हमारे देश मैं जिंतनी संख्या गरीबों की हैं ! उतनी जनसँख्या तो किसी छोटे मोटे राष्ट्र की हैं ! इस देश मैं सब कुछ इन गरीबों की बजह से ही तो हो रहा है ! देश के बड़े बड़े नेता आज इन गरीबों का खून चूसकर ही तो देश मैं राज कर रहे हैं ! देश मैं जो भ्रष्टाचार चारों तरफ फैला हुआ है ! वह सब इन गरीबों की बजह से ही तो है ! अरे नहीं भई , इन गरीबों ने कोई भ्रष्टाचार नहीं फैलाया बल्कि इन गरीबों को मिलने बाली आर्थिक सहायता को जब बड़े बड़े अधिकारी और मंत्री निगल गए तब से शुरू हो गया भ्रष्टाचार ! हमारे देश के गरीब वाकई मैं किसी वीर से कम नहीं ! जो हर हाल मैं जीते हैं ! चाहे कोई कितना भी जुल्म इन पर करे , फिर भी उफ़ तक नहीं करते और जीवन भर गरीब रहते हैं ! इन गरीबों का नाम लेकर आज देश मैं ना जाने कितनी संस्थाएं काम कर रहीं हैं ! वह सब इन गरीबों के लिए ही तो हैं ! फिर यह संस्थाएं भले ही गरीबों के लिए कुछ ना करें पर अपना उल्लू जरूर सीधा कर रहीं हैं ! आज देश मैं जितने भी नेता आज ऐश की जिंदगी जी रहे है , और शान से देश की कमान संभाल रहे है ! इन गरीबों की बदौलत ! आज तक देश मैं जितने भी घोटाले हुए हैं ! बो सब इन गरीबों का हक मारकर ही तो हुए हैं ! बेचारा गरीब तो अपनी गरीबी मैं ही पूरा जीवन गुजार देता है ! और उस गरीब के नाम से इस देश मैं अरबों-खरबों का लेनदेन बस यूँ ही हो जाता है !

अगर देश मैं गरीब और गरीबी ना हो तो ना जाने कितने लोगों को तो भूखों मरने तक की नौबत आ जाए ! आज देश, नेताओं की बजह से नहीं बेचारे गरीबों की बजह से चल रहा है! कितने ही घर परिवार आज इन गरीबों की बजह से चल रहे हैं ! वाकई यह देश है धीर और वीर .....गरीबों का .......................

धन्यवाद

Tuesday, June 1, 2010

संघर्ष, जो कभी खत्म नहीं होता, क्या आपने कभी संघर्ष किया .........>>> संजय कुमार

संघर्ष एक छोटा सा शब्द ! किन्तु इस छोटे से शब्द मैं इन्सान का पूरा जीवन निकल जाता है ! फिर भी यह शब्द या संघर्ष निरंतर चलता रहता है !और कभी ना खत्म होने बाला संघर्ष ! एक बहने बाली नदी के समान जिसे सिर्फ बहना आता है ! संघर्ष भी इन्सान के जीवन मैं कभी नहीं रुकता ! आज छोटा हो या बड़ा , अमीर हो या गरीब ! हिन्दू हो या मुस्लिम ! जीवन मैं संघर्ष किये बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं होता ! होता है तो सिर्फ नाम का इन्सान ! क्योंकि कुछ पाना है तो संघर्ष करना ही पड़ेगा ! ठीक उसी प्रकार इन्सान जन्म से लेकर मृत्यु तक पल पल पर संघर्ष करता रहता है ! इन्सान का संघर्ष जन्म से शुरू होता है ! माफ़ कीजिये जन्म से पहले भी संघर्ष होता है ! आप सोच रहे होंगे की जन्म से पहले इन्सान कैसे संघर्ष करता है ! अरे भई मैं बात कर रहा हूँ उस बेटी की जो आज के इस युग मैं जहाँ कन्या भ्रूण हत्याएं अपने चरम पर हैं ! अब ऐसे मैं अजन्मी बालिका का संघर्ष होता है ! इस दुनिया मैं आने के लिए ! अगर इन्सान गरीब हो तो उस इन्सान का पूरा जीवन इस संघर्ष मैं गुजर जाता है की वह भी एक दिन बड़ा आदमी बनेगा ! और संघर्ष करते करते उसकी कई पीड़ियाँ बदल जाती हैं ! आज का इन्सान सब कुछ पाने को कर रहा संघर्ष ! आज का बेरोजगार युवा कर रहा संघर्ष बस एक छोटी सी नौकरी पाने को ! आज उपेक्षित माँ-बाप कर रहे संघर्ष सिर्फ अपना दर्जा पाने को ! भूँखा भी कर रहा संघर्ष अपनी भूंख मिटाने को ! इस देश मैं जब किसी बेगुनाह को इंसाफ नहीं मिलता तो उस बेगुनाह का सारा जीवन यूँ ही निकल जाता है ! संघर्ष करते हुए, इंसाफ पाने मैं ! जब तक इन्सान का जीवन है , तब तक इन्सान करता है सिर्फ संघर्ष ! वह भी कभी ना रुकने बाला ! और इस संघर्ष मैं इन्सान बन के रह जाता एक मशीनी मानव जो कभी रूकती नहीं !

आज संघर्ष कर रहा है हमारा देश ! ऐसे लोगों से अपने आप को बचाने का, देश के उन दुश्मनों से जो , पल पल पर इस देश को बेचने का काम कर रहे हैं ! देश संघर्ष कर रहा एकता , अखंडता , और भाईचारे को बचाने का ! जो पल पल पर हाँथ से यूँ फिसल रही जैसे फिसलती हाँथ से रेत ! आज देश कर रहा संघर्ष अपने ही भाइयों को अपनों का खून बहाने से रोकने का ! कर रहा संघर्ष दिन-प्रतिदिन, हिन्दू -मुस्लिम के बीच बढ़ती खाई को खत्म करने का !यह देश बस यूँ ही संघर्ष करता रहेगा अपने आप को बचाने का !

आज कर रही संघर्ष प्रकृति , अपना असली रूप बचाने को ! कर रही संघर्ष देश की गंगा-जमुना अपना मान बचाने को ! कर रह धर्म, संघर्ष अपनी धार्मिकता बचाने को ! अब कर रहा इन्सान संघर्ष, अपनी बची-कुची इंसानियत को बचाने का ! देखना है की देश का संघर्ष क्या कभी पूरा होगा ! या होगा इन्सान का संघर्ष मरते दम तक पूरा !

संघर्ष के बाद मिलने बाली सफलता का जो मजा आता है ! हर बो इन्सान जानता हैं , जिसने अपने जीवन मैं संघर्ष किया और आज अपना एक मुकाम बनाया !..........हम करते हैं, सलाम उस संघर्ष को .....................

धन्यवाद