घर, इन्सान का वह सबसे बड़ा साथी, जो उसके साथ जीवन भर रहता है , और जिसके बिना इन्सान का जीवन अस्तित्वहीन है ! इन्सान के हर सुख-दुःख का साक्षी होता है घर ! इन्सान की बहुत सी यादें एक घर से जुडी रहती है ! फिर चाहे वहां उसका जन्म हुआ हो या मृत्यु , उसका बचपन बीता हो, या हुआ हो जवान ! फिर चाहे शादी हो या हो माँ-बाप बनने का प्रथम सुख ! सब कुछ अपने घर से जुड़ा होता है ! आइये घर के कुछ मुख्य जगहों और घर के कुछ महत्वपूर्ण चीजों से रूबरू होते हैं ! वह जो किसी ना किसी तरह अपना काम करती है , और हमारी सफलता मैं अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं !
घर , जहाँ हमने सबसे पहले अपनी आँखें खोली , जहाँ हमारा जन्म हुआ ! किन्तु आज लगभग इन्सान का जन्म अपने घर की बजाह किसी सरकारी अस्पताल या किसी नर्सिंग होम मैं होता है ! और इन्सान इन जगहों पर बार बार जाना नहीं चाहता !
हमारे घर का आँगन जहाँ हम अपने पैरों पर पहली बार खड़े हुए , और जहाँ हम अपने भाई-बहनों के साथ यूँ ही दौड़ लगाया करते थे ! किन्तु आज इन्सान के बीच इतना मतभेद हो गया , और हमारे घरों से यह आँगन कब कोठरियों मैं बदल गए नहीं मालूम ! आज-कल बड़े शहरों मैं तो सिर्फ फ़्लैट होते हैं , वहां पलने बाले बच्चे नहीं जानते आँगन का मतलब ! और भविष्य मैं हमारे बच्चे हम से पूंछेंगे की ये आंगन क्या होता है !
घर के वह कमरे जहाँ हमने बैठकर , जागकर , सोकर , उधम मचाकर अपनी पढाई की , और अपने भविष्य के सपने बुने ! जहाँ इस बात को लेकर हम कई बार अपने भाई-बहनों से लढ़े, की यह जगह मेरी है और बो जगह तेरी हैं ! शायद आज भी कई घरों मैं यह स्थिति होती है ! बचपन के सबसे प्यारे क्षण ! जो हमेशा याद रहते हैं ! और जहाँ पर तैयार होता है भाई-बहनों के सच्चे प्यार का निर्माण , जो जीवन पर्यंत चलता है !
घर का वह कमरा जिसे हम शयनकक्ष कहते हैं जहाँ हम जीवन भर अपने जीवनसाथी के साथ रहते हैं ! जहाँ पर जुडी होती हैं कई यादें, और अपने भविष्य को बनाने की योजना, और बहुत कुछ ! सब कुछ इस कक्ष मैं ! लेकिन यह कमरा आपको तभी मिलेगा जब आप शादी कर लेंगे , और उस कक्ष मैं आपके जीवन साथी का स्वामित्व हो जाएगा ! तभी इस कक्ष का महत्त्व है ! इस कक्ष मैं इन्सान एक लम्बे समय तक रहता है ! यह कमरा हर किसी के पास होता है , फिर चाहे शहर का फ़्लैट हो या गाँव की झोपड़ी !
घर का बरामदा जहाँ पर हमने उधम मचाते हुए कई बार अपने माता-पिता, दादा-दादी के द्वारा डांट खायी ! और कई बार सजा के हक़दार बने ! किन्तु अब इन बरामदों मैं, अब आपको हमारे माता-पिता या दादा-दादी कम ही देखने को मिलेंगे ! क्योंकि आज का इन्सान अब अलग और अकेला रहना चाहता है ! अब धीरे-धीरे संयुक्त परिवार बाली परम्परा समाप्त हो रही है ! और आज के बहुत से बच्चे अपने दादा-दादी की डांट नहीं सुन पाते ! जो किसी के जीवन मैं बहुत उपयोगी होती हैं ! क्योंकि इनके पास होता है , जीवन का सच्चा अनुभव !
घर की छत जहाँ हमने आसमान मैं उड़ने बाले पक्षियों को देखकर आसमान मैं उड़ने और आसमानी बुलंदी को पाने की सच्ची कोशिश सीखी ! और नीला आकाश, चंद्रमा की शीतलता , सूर्य का तेज और टिमटिमाते तारे , उमड़ते-घुमड़ते बादल सब कुछ यही से देखा !
घर की रसोई जहाँ से हमने पहली बार किसी स्वाद को चखा ! और आज इन्सान के सारे काम यहीं से शुरू होते है ! सुबह सुबह चाय नाश्ता हमको यहीं से मिलता है ! तभी हम अपने घर से अपने कार्य क्षेत्र को जाते हैं ! जहाँ माँ कामधेनु निवास करती हैं !
घर मैं भगवान का कमरा ! जहाँ से हम अपने सुख समृद्धि की कामना करते हैं , और अपने धर्म की और ईश्वर के प्रति श्रधा का भाव सीखते हैं ! सीखते हैं , आदर , अपनापन और जानते हैं ईश्वरीय शक्ति के बारे मैं ! किन्तु अब इश्वर मैं ध्यान कितने लोग लगाते हैं , यह कहना बहुत मुश्किल हैं ! आज इन्सान के पास अपने परिवार को देने के लिए समय नहीं है तो फिर भगवान् को पूंछता कौन ! भगवान् को सिर्फ बुरे और विपत्ति समय मैं याद किया जाता है ! आज भगवान् भी तरसता हैं ऐसे इंसानों के लिए जो वाकई उसमे विश्वास रखता हो !
घर का बाथरूम जहाँ पर यूँ ही गुनगुनाते हुए हमने अपनी प्रतिभा को तराशा ! और बाथरूम सिंगर से एक अच्छा कलाकार बन ,आज एक अच्छा नाम कमा लिया !
घर का आईना जिसे देखकर हमने कई बार अपने आपको निहार कर जीवन में कभी मूक अभिनय कर सीखा बहुत कुछ , और एक कलाकार बन गए ! क्योंकि आईना कभी झूंठ नहीं बोलता !
इन्सान के जीवन मैं अगर अपने घर का सुख नहीं हैं तो उसके पास कुछ भी नहीं हैं ! किसी भी इन्सान का अस्तित्व एक घर से जुड़ा हुआ होता है ! अगर घर हैं तो इन्सान हैं ! इनके अलावा भी किसी घर मैं बहुत सी चीजें होती हैं , जिनसे इन्सान का लगाव बहुत होता है !
क्योंकि हर घर बहुत कुछ कहता है
धन्यवाद
माँ पहली टीचर और घर पहली पाठशाला होता है.. बढ़िया आलेख.. एक गीत याद आ रहा है 'लोग जहाँ पर रहते हैं.. उस जगह को वो घर कहते हैं.. हम लोग जहाँ पर रहते हैं.. उस जगह को मंदिर कहते हैं..'
ReplyDeleteवाह, घर रूपी मंदिर का ख़ूबसूरत चित्रण संजय जी !
ReplyDeleteक्यूंकि घर सब कुछ है ...
ReplyDeleteबहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!!! बहुत सार्थक पोस्ट
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