Monday, June 14, 2010

हर घर बहुत कुछ कहता है .... इन्सान का सबसे सच्चा साथी ....>>> संजय कुमार

घर, इन्सान का वह सबसे बड़ा साथी, जो उसके साथ जीवन भर रहता है , और जिसके बिना इन्सान का जीवन अस्तित्वहीन है ! इन्सान के हर सुख-दुःख का साक्षी होता है घर ! इन्सान की बहुत सी यादें एक घर से जुडी रहती है ! फिर चाहे वहां उसका जन्म हुआ हो या मृत्यु , उसका बचपन बीता हो, या हुआ हो जवान ! फिर चाहे शादी हो या हो माँ-बाप बनने का प्रथम सुख ! सब कुछ अपने घर से जुड़ा होता है ! आइये घर के कुछ मुख्य जगहों और घर के कुछ महत्वपूर्ण चीजों से रूबरू होते हैं ! वह जो किसी ना किसी तरह अपना काम करती है , और हमारी सफलता मैं अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं !

घर , जहाँ हमने सबसे पहले अपनी आँखें खोली , जहाँ हमारा जन्म हुआ ! किन्तु आज लगभग इन्सान का जन्म अपने घर की बजाह किसी सरकारी अस्पताल या किसी नर्सिंग होम मैं होता है ! और इन्सान इन जगहों पर बार बार जाना नहीं चाहता !

हमारे घर का आँगन जहाँ हम अपने पैरों पर पहली बार खड़े हुए , और जहाँ हम अपने भाई-बहनों के साथ यूँ ही दौड़ लगाया करते थे ! किन्तु आज इन्सान के बीच इतना मतभेद हो गया , और हमारे घरों से यह आँगन कब कोठरियों मैं बदल गए नहीं मालूम ! आज-कल बड़े शहरों मैं तो सिर्फ फ़्लैट होते हैं , वहां पलने बाले बच्चे नहीं जानते आँगन का मतलब ! और भविष्य मैं हमारे बच्चे हम से पूंछेंगे की ये आंगन क्या होता है !

घर के वह कमरे जहाँ हमने बैठकर , जागकर , सोकर , उधम मचाकर अपनी पढाई की , और अपने भविष्य के सपने बुने ! जहाँ इस बात को लेकर हम कई बार अपने भाई-बहनों से लढ़े, की यह जगह मेरी है और बो जगह तेरी हैं ! शायद आज भी कई घरों मैं यह स्थिति होती है ! बचपन के सबसे प्यारे क्षण ! जो हमेशा याद रहते हैं ! और जहाँ पर तैयार होता है भाई-बहनों के सच्चे प्यार का निर्माण , जो जीवन पर्यंत चलता है !

घर का वह कमरा जिसे हम शयनकक्ष कहते हैं जहाँ हम जीवन भर अपने जीवनसाथी के साथ रहते हैं ! जहाँ पर जुडी होती हैं कई यादें, और अपने भविष्य को बनाने की योजना, और बहुत कुछ ! सब कुछ इस कक्ष मैं ! लेकिन यह कमरा आपको तभी मिलेगा जब आप शादी कर लेंगे , और उस कक्ष मैं आपके जीवन साथी का स्वामित्व हो जाएगा ! तभी इस कक्ष का महत्त्व है ! इस कक्ष मैं इन्सान एक लम्बे समय तक रहता है ! यह कमरा हर किसी के पास होता है , फिर चाहे शहर का फ़्लैट हो या गाँव की झोपड़ी !
घर का बरामदा जहाँ पर हमने उधम मचाते हुए कई बार अपने माता-पिता, दादा-दादी के द्वारा डांट खायी ! और कई बार सजा के हक़दार बने ! किन्तु अब इन बरामदों मैं, अब आपको हमारे माता-पिता या दादा-दादी कम ही देखने को मिलेंगे ! क्योंकि आज का इन्सान अब अलग और अकेला रहना चाहता है ! अब धीरे-धीरे संयुक्त परिवार बाली परम्परा समाप्त हो रही है ! और आज के बहुत से बच्चे अपने दादा-दादी की डांट नहीं सुन पाते ! जो किसी के जीवन मैं बहुत उपयोगी होती हैं ! क्योंकि इनके पास होता है , जीवन का सच्चा अनुभव !

घर की छत जहाँ हमने आसमान मैं उड़ने बाले पक्षियों को देखकर आसमान मैं उड़ने और आसमानी बुलंदी को पाने की सच्ची कोशिश सीखी ! और नीला आकाश, चंद्रमा की शीतलता , सूर्य का तेज और टिमटिमाते तारे , उमड़ते-घुमड़ते बादल सब कुछ यही से देखा !

घर की रसोई जहाँ से हमने पहली बार किसी स्वाद को चखा ! और आज इन्सान के सारे काम यहीं से शुरू होते है ! सुबह सुबह चाय नाश्ता हमको यहीं से मिलता है ! तभी हम अपने घर से अपने कार्य क्षेत्र को जाते हैं ! जहाँ माँ कामधेनु निवास करती हैं !

घर मैं भगवान का कमरा ! जहाँ से हम अपने सुख समृद्धि की कामना करते हैं , और अपने धर्म की और ईश्वर के प्रति श्रधा का भाव सीखते हैं ! सीखते हैं , आदर , अपनापन और जानते हैं ईश्वरीय शक्ति के बारे मैं ! किन्तु अब इश्वर मैं ध्यान कितने लोग लगाते हैं , यह कहना बहुत मुश्किल हैं ! आज इन्सान के पास अपने परिवार को देने के लिए समय नहीं है तो फिर भगवान् को पूंछता कौन ! भगवान् को सिर्फ बुरे और विपत्ति समय मैं याद किया जाता है ! आज भगवान् भी तरसता हैं ऐसे इंसानों के लिए जो वाकई उसमे विश्वास रखता हो !

घर का बाथरूम जहाँ पर यूँ ही गुनगुनाते हुए हमने अपनी प्रतिभा को तराशा ! और बाथरूम सिंगर से एक अच्छा कलाकार बन ,आज एक अच्छा नाम कमा लिया !
घर का आईना जिसे देखकर हमने कई बार अपने आपको निहार कर जीवन में कभी मूक अभिनय कर सीखा बहुत कुछ , और एक कलाकार बन गए ! क्योंकि आईना कभी झूंठ नहीं बोलता !


इन्सान के जीवन मैं अगर अपने घर का सुख नहीं हैं तो उसके पास कुछ भी नहीं हैं ! किसी भी इन्सान का अस्तित्व एक घर से जुड़ा हुआ होता है ! अगर घर हैं तो इन्सान हैं ! इनके अलावा भी किसी घर मैं बहुत सी चीजें होती हैं , जिनसे इन्सान का लगाव बहुत होता है !

क्योंकि हर घर बहुत कुछ कहता है

धन्यवाद

4 comments:

  1. माँ पहली टीचर और घर पहली पाठशाला होता है.. बढ़िया आलेख.. एक गीत याद आ रहा है 'लोग जहाँ पर रहते हैं.. उस जगह को वो घर कहते हैं.. हम लोग जहाँ पर रहते हैं.. उस जगह को मंदिर कहते हैं..'

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  2. वाह, घर रूपी मंदिर का ख़ूबसूरत चित्रण संजय जी !

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  3. क्यूंकि घर सब कुछ है ...

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  4. बहुत खूब!!!!!!!!!!!!!!!! बहुत सार्थक पोस्ट

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