Thursday, December 30, 2010

आज मैं कृतज्ञ हूँ आप सभी का ........ ( नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं ) .... >>>> संजय कुमार

सर्व-प्रथम सभी ब्लोगर परिवार को नवबर्ष की हार्दिक शुभ-कामनाएं ! आने बाला बर्ष आप सभी के जीवन में नयी उमंग और ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये ! आप सब परिवार सहित स्वस्थ्य रहें एवं सफलता के सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचे !

आज मैं कृतज्ञ हूँ आप सबका , आज मैं शुक्र गुजार हूँ आपका , आप सभी ने जो प्रेम-स्नेह , मार्ग-दर्शन मुझे दिया वह मैं अपने जीवन में कभी नहीं भूलूंगा , जो स्नेह इस ब्लॉगजगत से मिला शायद ही कहीं और से मिला हो

आप सभी यह प्रेम-स्नेह एवं मार्ग-दर्शन मुझ पर बनाये रखें .................

नवबर्ष की शुभ-कामनाओं सहित

धन्यवाद
संजय कुमार चौरसिया
गार्गी चौरसिया ( पत्नि )
देव ( पुत्र )
कुनाल (पुत्र )

Sunday, December 26, 2010

प्रेम अव्यक्त है .... >>>> संजय कुमार

प्रेम अव्यक्त है
यूँ तो औरों के लिए
अनसुलझा तार है
पर जो इससे होकर गुजर गया
उसके लिए सरफून है
प्रेम का कोई रूप नहीं
इसे रिश्तों में नहीं बाँधा जा सकता
ना कसौटी पर , परखा जा सकता है
यह परमात्मा का प्रसाद है
यही सही मायनों में जीना सिखाता है
और यही बैराग जगाता है
इसकी कोई सीमा नहीं
इसका कोई नियम नहीं
प्रेम सुसुप्त अवस्था में ले जाता है
प्रेम अव्यक्त है ..........

( प्रिये पत्नि की कलम से )

धन्यवाद

Thursday, December 23, 2010

ये हैं कैसे करम, नहीं ख़ुशी - सिर्फ गम ..... >>> संजय कुमार

कहा जाता है , इंसान अगर अच्छे कर्म करता है तो हमेशा खुश रहता है और यदि बुरे कर्म करता है तो जीवन भर परेशान और दुखी रहता है ! यह बात कितनी सच है और कितनी गलत इस बात का अंदाजा आज कलियुग में इन्सान के हालातों को देखकर लगाया जा सकता है ! आज की मतलबी और स्वार्थी दुनिया में इन्सान कितने भी अच्छे और भलाई के काम करे फिर भी उसे उसके अच्छे कर्मों का उचित फल नहीं मिलता ! आज इन्सान के अच्छे कार्यों को भी हम लोग बुरी नजर से या शक भरी निगाह से देखते हैं , लगता है इस अच्छे काम के पीछे उसका कोई गलत मकसद जरूर होगा, आज कल यही हो रहा है ! कई बार देखा गया अच्छे फल की चाहत में इन्सान को बुरा फल ही मिलता है ! या यूँ कह सकते हैं " नेकी कर और जूते खा " या " नेकी कर दरिया में डाल " आज यही कहावत हर जगह चरितार्थ हो रही है ! आज इन्सान कितनी भी सच्चाई और ईमानदारी से काम करे उसे उसकी मेहनत का उचित फल नहीं मिलता ! क्योंकि ईमानदार अब बहुत कम संख्या में हैं , अगर हैं भी तो उनकी सुनने बाला कोई नहीं ! आज सबसे ज्यादा दुखी और परेशान ईमानदार ही है क्योंकि चारों तरफ भ्रष्टाचार , घूसखोरी , लूट-खसोट का वातावरण निर्मित हैं ! एक ईमानदार कब तक " तालाब में रहकर मगरमच्छ से बैर करेगा " इसलिए उसके ईमानदार होने पर भी वह खुश नहीं है ! क्योंकि ये जालिम ज़माना उसे ईमानदार बनकर ज्यादा दिन तक जीने नहीं देगा या तो वह बेईमान बनेगा नहीं तो कहीं का नहीं रहेगा ! ये हैं अच्छे करम, ना ख़ुशी सिर्फ गम !

जीवन भर एक गरीब विद्यार्थी पूरी लगन और मेहनत के साथ पढ़ाई करता है , किन्तु जब फल खाने की बात आती है तो उसकी मेहनत पर कोई और (पैसे बाला ) डांका डाल देता है या यूँ कहें , घूस देकर उस मेहनती विद्यार्थी का हक किसी और को मिल जाता है ! क्योंकि आज कोई भी नौकरी बिना रिश्वत दिए नहीं मिलती किसी को, जब तक रिश्वत नहीं तब तक नौकरी नहीं ! कई बार होनहार विद्यार्थी अपना हुनर किसी दुकान पर नौकरी या मजदूरी कर दिखाते हैं ! यहाँ मेहनत नहीं पैसे की जीत होती है !

गरीब किसान जीवन भर कड़ी मेहनत करता है और इन्सान के लिए अनाज का उत्पादन करता है , किन्तु उसे उसकी मेहनत का सम्पूर्ण फल कभी नहीं मिलता जो उसे मिलना चाहिए , अगर कुछ मिलता है तो एक कर्जदार की जिंदगी , खुदखुशी करने के लिए मजबूर , अपनी फसल के लिए उचित मूल्य पाने के लिए जीवन भर लड़ाई , ये है उसके अच्छे कर्मों का बुरा फल , अगर किसान हल चलाना छोड़ दे तो क्या होगा मानव सभ्यता का ? आज सबसे ज्यादा दयनीय हालात में अगर कोई है तो वो है आज का किसान !

हर माँ-बाप जीवन भर अपने बच्चों के बारे में ही सोचते हैं ,उनका अच्छा सोचते हैं , उनका ख्याल रखते हैं , उन्हें जीवन की सारी खुशियाँ, सुख- सुविधाएँ देते हैं ! उसके लिए वह अपनी खुशियाँ , सुख -सुविधाएँ तक सब कुछ न्योछावर कर देते हैं ! कहते हैं माँ -बाप के अच्छे कर्मों का फल उनकी संतान को मिलता है ! किन्तु आज माँ-बाप को उनके अच्छे कर्मों के फल के रूप में क्या मिल रहा है ? घर से बेदखल होना पड़ता है , दर दर की ठोकर खाने को मजबूर , परिवार में गैरों से भी वद्तर व्यवहार, क्या यही हैं इनके अच्छे कर्म ? आज ऐसे अनगिनत मामले हमने देखे-सुने और पढ़े हैं जहाँ माँ-बाप को उनकी संतान ने सिवाय दुःख के और कुछ नहीं दिया ! इस भागदौड़ भरी दुनिया में , इस मंहगाई की दुनिया में , इस कलयुगी दुनिया में साधारण इन्सान को सिर्फ दुःख और तकलीफ के अलावा और कुछ नहीं मिलता ! आज इन्सान की जरुरत सिर्फ पैसा है ! यदि पैसा है तो शायद इन्सान इतना दुखी ना हो जितना बिना पैसे के है ! ऐसे लाखों - करोड़ों लोग हैं जो हमेशा अपनों का भला चाहते हैं और भला करते भी हैं , किन्तु उन्हें अपनी भलाई के रूप में सिर्फ उपहास मिलता है !

इस दुनिया में अपने आप को सुखी और खुशहाल समझने बाले बहुत कम लोग हैं , ज्यादा संख्या में दुखी-मजबूर और लाचार मिलेंगे जो किसी ना किसी चीज से पीड़ित हैं !

ये हैं कैसे करम, नहीं ख़ुशी - सिर्फ गम

धन्यवाद

Monday, December 20, 2010

अब ना कहना , कि हम हैं अकेले .... >>> संजय कुमार

कौन कहता है, कि हम हैं अकेले

ये वहती नदियाँ, ये ठहरे पर्वत, हैं किसके ?

ये जमीं ये आसमान , ये चलती पवन, हैं किसके ?

ये वहता झरना, चिड़ियों की चहचहाहट ,

ये ऊंचे दरख़्त, गहरी खाइयाँ , है किसके ?

सूरज कि तपिश, शीतलता चन्द्रमा की,

ये टिमटिमाते तारे, ये सारा ब्रह्माण्ड, हैं किसके ?

ये मिट्टी की सौंधी खुशबु , ये बारिस की बूँदें , हैं किसके ?

ये माँ का आंचल ,पिता का प्यार,

भाई बहन का अपनापन , ये सारा संसार,

अपनों का साथ , दोस्ती और विश्वाश,

सुख-दुःख , खुशियाँ और गम , हैं किसके ?

ये अपना मजहब, जाति और धर्म

नफरत की दीवार, ये सरहदें , हैं किसके ?

ये ऊंचे शिवालय , गगनचुम्बी मस्जिदें , हैं किसके ?

ये पल-पल पर होता संघर्ष, ऊंची उठती आवाज , हैं किसके ?

ये सात सुरों की सरगम , इन्द्रधनुष के रंग सात, हैं किसके ?

अब ना कहना की हम हैं अकेले ............

जरा नजरें उठाकर अपने आस-पास देखें तो लगता सब कुछ है अपना, नहीं कोई यहाँ पराया ! आज के वातावरण में हर किसी को लगता है की , नहीं है कोई हमारा, हम इस चकाचौंध भरी दुनिया में हैं बिलकुल अकेले ! आप सिर्फ अपने दिल की सुने, और दिल कभी भी झूठ नहीं बोलता ............

धन्यबाद

Friday, December 17, 2010

" मर्द को भी दर्द होता है " (SMS) व्यंग्य .... >>> संजय कुमार

कल मुझे मेरे एक मित्र ने SMS भेजा , चूँकि वह एक व्यंग्य है जिसमें मर्दों को कई उपाधियाँ दी गयी हैं ! सोचा आपको भी उन उपाधियों से रूबरू करा दूं , वैसे तो मर्दों को कई उपाधियाँ मिली हैं जैसे पत्थरदिल , उठाईगीर नामर्द, गुंडा-मावली वगैरह -वगैरह , लीजिये प्रस्तुत हैं ( SMS ) व्यंग्य जो युवाओं और सभी मर्दों पर लागू होता है !

बेचारा लड़का अगर लड़की पर हाँथ उठाये
तो जालिम
बेचारा लड़का अगर लड़की से पिट जाए
तो नामर्द
बेचारा लड़का , लड़की को किसी और के साथ देखकर
तो जलन
बेचारा लड़का अगर चुप रहे
तो बेगैरत
बेचारा लड़का यदि घर से बाहर रहे
तो आवारा
बेचारा लड़का यदि घर में रहे
तो नाकारा
बेचारा बच्चों को मारे-पीटे तो बुजदिल
अगर ध्यान ना दे तो लापरवाह
अगर बीबी को नौकरी करने से रोके
तो शकी मिजाज
ना रोके तो , बीबी की कमाई खाने बाला

इसलिए कहते हैं भैय्या .............. " मर्द को भी दर्द होता है "

धन्यवाद

Tuesday, December 14, 2010

पत्ता ............... >>> संजय कुमार

डाल से छूटकर पत्ता
डगर डगर भटकता
छिना आधार उसका ,
खो वजूद अपना ,
हवा संग हो लिया ,
पवन के झोंकों को
खुद को समर्पित कर ,
परिणाम जिसका
राह-राह गिरता-पड़ता
फिर जिस डाल से छूटा था
याद करता उसको,
दूर हो उससे ,
किसी अजनबी डगर में ,
कचरे के ढेर में फंस
आंसू तो नहीं , पर
अन्दर ही अन्दर सिसकता ,
सोचता किसको दोष दूं
खुद को या नसीब को ?

( प्रिय पत्नी की कलम से )

धन्यवाद

Saturday, December 11, 2010

विक्षिप्त कौन ? ( हम या वो ) .... >>> संजय कुमार

जब एक विक्षिप्त , पागल और मंद-बुद्धि इंसान की बात चलती है तो हमारे मष्तिष्क में एक ऐसे इंसान की छवि आती है जिसके अन्दर एक सामान्य इंसान के कम बुद्धि एवं दिमाग होता है ! ऐसे इंसान को अपने अच्छे-बुरे , सही - गलत की कोई जानकारी नहीं होती ! ऐसा इंसान हमेशा अपने आप में गुम-सुम सा रहता है , दीन -दुनिया से बेखबर , ना दिन का पता और ना रात का , सर्दी-गर्मी और ना बरसात का ! घर -परिवार , समाज में घ्रणा का पात्र ! यह वास्तविकता है एक विक्षिप्त की ! और इससे भी ज्यादा कष्टमय जीवन होता है एक विक्षिप्त इंसान का ! ऐसे लोगों का ना तो घर होता है और ना परिवार , अगर होता भी है तो बहुत कम संख्या होती है ऐसे लोगों की जिन्हें अपनों का प्यार और साथ मिल पाता है ! बाकि लोग अपनी किश्मत के सहारे कष्टमय जीवन बिताते हैं !

ताजा घटना मेरे शहर शिवपुरी की है जो में आपको बताना चाहता हूँ , एक विक्षिप्त महिला जो कई दिनों से शहर में मारी-मारी फिर रही थी , उम्र होगी २५-३० साल , तन पर फटे-पुराने कपडे , अपने आप में खोई हुई , गुम-सुम , उसे देख लग रहा था जैसे उसने कई महीनों से नहाया तक नहीं , बेचारी बदनसीब दिमागदार इंसानों के बीच फंसी हुई , आज सुबह जब अखबार पढ़ा तो इंसानियत को शर्मसार करने बाला एक और अध्याय हम सब के सामने ! उस महिला का कुछ लोगों ने मिलकर बलात्कार कर डाला , सिर्फ यही नहीं लगातार कई दिनों तक उसका यौन शोषण करते रहे , और उसका यौन शोषण तब तक करते रहे जब तक की वो गर्भवती नहीं हो गयी ! ये थी सभ्य समाज के पुरुषों की काली करतूत , उस महिला को तो ये भी नहीं पता की उसके साथ क्या और क्यों हो रहा है ! इन्सान का एक और घिनौना रूप आज हम लोगों ने देख लिया ! ये बही समाज है जो अपने आपको सभ्य और पढ़ा-लिखा कहता है ! विक्षिप्त महिला ना तो विरोध कर पाती है और ना अपनी रक्षा ! उस विक्षिप्त महिला की बदनसीबी कहे , या उन दिमागदार लोगों की असलियत जो उन्होंने उस महिला के साथ इतना घिनौना और मानवता को शर्मसार करने बाला कार्य किया ! ऐसे कुंठित और दिमागदार इंसान को हम क्या कहते हैं ? सभ्य पुरुष या कुछ और , जिसके पास दिमाग नहीं उसे हम विक्षिप्त और पागल किन्तु जो दिमाग रखते हैं उन्हें हम क्या कहते हैं ?

यह घटना सिर्फ मेरे या आपके शहर की नहीं है, इस तरह इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने बाली घटनाएं आज पूरे देश में हो रही हैं ! कभी पागलों के साथ जानवरों से भी वद्तर व्यवहार , मार-पीट और वह सब कुछ जिससे इन्सान के अन्दर की मानवता का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं होता ! हमारा पढ़ा -लिखा और शिक्षित व्यक्ति ही आज ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं ! अपनी कामवासना को मिटाने के लिए इंसान जब ऐसे लोगों तक को नहीं छोड़ता तो कितने महफूज हैं आप और हम, और हमारा परिवार , इस तरह की घटनाओं को बही लोग अंजाम देते हैं जिनके अन्दर मानवता नाम की कोई चीज नहीं होती , इंसानियत का दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता , ऐसे लोग होते हैं दिमाग से पूरी तरह विक्षिप्त प्राणी , असली विक्षिप्त और पागल ऐसे लोगों को कहना चाहिए ना की उनको जिनमें ना तो किसी बात की समझ हैं और ना दिमाग !

आप ही बताएं की विक्षिप्त कौन ?

धन्यवाद

Sunday, December 5, 2010

करो होंसले बुलंद ....>>> संजय कुमार

फूल बनने से पूर्व ही
बिखर जातीं हैं कलियाँ ,
मिल जाते हैं रावण
हर घर , हर गलियां
ना जाने कितनी लड़कियों को
पलकों से ढँक आँखें ,
रोते देख लो ,
झेंपती, उस मासूम को
माँ की गोद में लिपटी
सिसकती देख लो !
झूठी इज्जत की चादर से
घर को क्यों ढंकती हो ?
अन्यायी , निर्दयी समाज से
क्यों डरती हो ?
विश्वास और सुरक्षा ही
छीन ली गयी हो तब
क्या खोने से डरती हो ?
करो संचय अपने में
नयी शक्ति का ,
करो होंसले बुलंद , आवाज बुलंद
करो विरोध इसका !
राम नहीं आयेंगे ,
है इन्तजार बेकार
करना होगा तुम्हें ही
रावण का संहार !
तब ही बच पाएंगी
बगीचे की कलियाँ ,
बन पाएंगी सुगंध बिखेरती
फूल तारो ताजा

करो होंसले बुलंद .............. करो होंसले बुलंद

( प्रिये पत्नी की कलम से )

धन्यवाद

Wednesday, December 1, 2010

अब गद्दारों के हाँथ में है देश ........ इस देश में एक गद्दार ढूँढने निकलो , कई मिल जायेंगे ..... >>> संजय कुमार

गद्दार एक ऐसा व्यक्ति, एक ऐसा नाम जो किसी भी विकसित राष्ट्र को एक ही क्षण में तवाह करवा सकता है ! किसी भी राष्ट्र की नींव को अन्दर तक खोखला करने की क्षमता रखता है एक गद्दार , इतनी ताक़त होती है एक गद्दार और राष्ट्रद्रोही में ! यह हमारे साथ रहकर हमारी जड़ें खोखली करता रहता है और हमे तब पता चलता है जब इसके बुरे परिणाम हमारे सामने आते हैं ! यह कब हमें मौत के मुँह में पहुंचा दे , इस बात का हमें अहसास भी नहीं होने देता , यह हमारे लिए कब्र तैयार करता रहता है , और हम विश्वास में अपनी जान इसके हवाले तक कर देते हैं , और फिर यही आपका अपना आपकी पीठ में ऐसा खंजर घोंपता है , जहाँ इन्सान को मिलती है सिर्फ मौत ! आप सभी ने एक पौराणिक कहावत तो जरूर सुनी होगी ! " घर का भेदी लंका ढाये " जहाँ विभीषण ने अपने घर के सारे राज खोलकर अपनी पूरी राक्षस जाति का सर्वनाश करवा दिया था ! पर विभीषण ने धर्म के लिए ऐसा किया था इसलिए हम विभीषण को गलत नहीं मानते ! लेकिन जैसे जैसे समय बदला इन गद्दारों ने सत्ता के मोह में , पैसों के लालच में आकर, स्वयं को दुश्मनों को बेच दिया और खोल दिए, हमारे अपने सारे राज दुश्मनों पर ! और वहा दी अपनों के खून की नदियाँ !

अंग्रेजो ने जो हम पर इतने सालों तक राज किया उसमे देश के गद्दारों का बहुत बड़ा योगदान था ! इनकी गद्दारी ने इस देश को कितने गहरे जख्म दिए है जिनके निशान आज भी कहीं ना कहीं हमारे दिलों में हैं जिन्हें हम आज भी याद करते हैं ! फिर चाहे गद्दारी के कारण टीपू-सुल्तान, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई , भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद, या तात्या टोपे इन सभी सूरमाओं को अपनों की गद्दारी की कीमत में अपनी जान से हाँथ धोना पड़ा ! वर्ना इन्हें कोई यूँ ही नहीं मार सकता था ! यह वो वीर थे जो इतिहास बदलने की क्षमता रखते थे ! काश , गद्दार ना होते तो ...........
देश में भ्रष्टाचार इतना बढ गया हैं कि, सत्ता की लालच में , पैसों के लिए बिकता इन्सान, आज देश से गद्दारी करने से भी नहीं चूकता , लोगों ने अपनी जरूरतें इतनी बड़ा ली हैं जिन्हें वह एक मामूली वेतन से पूरा नहीं कर पाता , इन्हीं में से कुछ लोग अपने ईमान का सौदा कर लेते हैं और देश से गद्दारी करने तक को तैयार हो जाते हैं ! आज देश में सर्वोच्य पदों पर बैठे कुछ लोग हमारे देश से ही गद्दारी कर रहे हैं ! और इन गद्दारों की करनी का फल आज हम लोगों को भुगतना पड़ रहा हैं ! हम हिन्दुस्तानी हमेशा से विश्वास करने बाले होते हैं और किसी पर सहसा विश्वास कर लेते हैं ! और हमारी इसी भावना को दुश्मन अपना हथियार बना लेते हैं ! और इसका उदहारण माधुरी गुप्ता, (पकिस्तान में भारत की आयुक्त ) , रवि इन्दर सिंह (IAS) जैसे लोग हैं , जो इस देश के सर्वोच्य पदों पर बैठ कर अपने ही देश से गद्दारी कर रहे हैं ! गद्दारों की गद्दारी का परिणाम इस देश की अवाम को भुगतना पड़ रह हैं ! फिर चाहे मुंबई धमाके हो या संसद पर हमला , फिर चाहे नक्सलियों को हथियार मुहैया कराने बाले कुछ जवान जिनके कारण कितने जवानों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी ! आज किसी छोटे मोटे चोर को पकड़ कर पुलिस का सजा देने का अंदाज तो हम सभी ने कई बार देखा है ! जब उनको बेरहमी से सजा दी जाती है या उनको इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वो अपना दम तक तोड़ देते हैं ! ऐसे लोगों की तो मजबूरी हो सकती है , गरीबी , भूख, बेरोजगारी जिस कारण से ये लोग इस तरह के काम करते हैं ! इनको हम जीवन भर घ्रणा की द्रष्टि से देखते हैं ! पर देश के सर्वोच्य पदों पर बैठे इन लोगों की क्या मजबूरी है ? जो अपने ईमान के साथ साथ इस देश को भी बेच रहे हैं ! पर ऐसे लोगों के साथ हम या हमारी सरकार क्या कर रही है ? और क्या करेगी ? आज तक सरकार ने कितने गद्दारों को उनकी करनी की सजा दी है ! सरकार सिर्फ इन लोगों से अपने देश की जेलें भर सकती है और कुछ नहीं ! क्यों नहीं है देश में ऐसा कानून जहाँ गद्दारी की सजा सिर्फ मौत हो , जो पहले कभी हुआ करती थी ! यदि एक गद्दार को सजा मिलेगी तो दूसरा, देश के साथ गद्दारी करने से पहले कई बार सोचेगा ! पर ऐसा नहीं होगा ! क्योंकि आज एक बड़ा वर्ग इस देश में हैं जो राजनीती में हैं ! एक बड़ा वर्ग इस देश के आला अधिकारीयों का है , जो पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है ! तो फिर कैसे पता चलेगा की कौन देश के साथ उसके हित की सोच रहा है और कौन गद्दारी कर रहा है !

एक दिन आएगा जब यह देश दुश्मनों के हाँथ में होगा और हम सब उनके इशारों पर नाचने बाले ! कारण देश के गद्दार होंगे , जो पता नहीं कब इस देश को बेच दे ! आज इस देश में हम अगर एक गद्दार ढूँढने निकलेंगे तो हमें कई मिल जायेंगे ! अगर इस देश में गद्दार नहीं हैं तो क्यों बढ़ रहीं है इस देश में यह दिन प्रतिदिन होती घटनाएं ! ...................... ( अब गद्दारों के हाँथ में है देश )

धन्यवाद