Tuesday, July 24, 2012

ये झूंठ नहीं , ये सच है ........>>>> संजय कुमार

उस नव पल्लवित कोमल 
कोरे मन पर 
संस्कारों की कलम से 
पवित्र चरित्र की 
तस्वीर लिखी गयी 
और कहा गया 
यह मानव है !
उस नवजात को लगा 
हर कोई यहाँ मानव है !
पर जब वो आगे बढ़ा 
वह जिससे भी मिला 
जिससे भी जुड़ा 
उसमें खुद की तस्वीर को 
उतार कर ही मिला 
पर जब उसे कुछ खटका 
वह रुका , और गौर से देखा 
एक के बाद एक उसे 
कुरूप , भयानक 
अविश्वसनीय चेहरे दिखे 
पर उसे  यकीन नहीं हुआ 
उसे लगा ये मुखौटा है 
इसके नीचे मानव का चेहरा है !
जब पवित्र ह्रदय से उसने 
मुखौटा हटाना चाहा 
ये क्या ............???
उसे हर बार तमाचे ही मिले 
और तब तक मिले 
जब तक उसके 
उसके अन्दर भी 
हैवान पैदा नहीं हुआ 
और जैसे वो जागा हो 
और बोला 
उफ़ .........वो तो " संस्कार " मानव 
स्वपन था 
ये यथार्थ है !
" ये झूंठ नहीं ये  सच है  "

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद  

Wednesday, July 18, 2012

बता ये हुनर तुमने सीखा कहाँ से ...........>>>> संजय कुमार

कहा  जाता है कि कला और हुनर तो हर इंसान के अन्दर छुपा हुआ होता है बस जरुरत होती है उसे बाहर लाने की , कुछ लोग इस प्रयास में सफल भी हो जाते हैं और कुछ असफल ! कहा तो ये भी जाता है कि , कुछ लोग जो अपनी बुद्धि से पैदल ( बेबकूफ ) होते हैं उन्हें यदि आप ज्ञान घोलकर भी पिलायें तब भी वो जीवन भर कुछ भी नहीं सीख पाते हैं ! कुछ के बारे में ये भी सुना गया है कि कुछ लोग तो " GOD GIFT " ही पैदा होते हैं जिन्हें भगवान सम्पूर्ण  हुनरमंद और कलाकार बना कर ही भेजता है ! ( सम्पूर्ण तो शायद भगवान् भी नहीं थे , ऐसा मैंने सुना है )  उदाहरण के तौर पर हम कई नाम आपको गिना सकते हैं जिन्होंने अपने बलबूते अपनी कला , हुनर के दम पर विश्व स्तर पर सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं ! दूसरी ओर  कई लोगों का तो पूरा जीवन ही निकल जाता है सीखते सीखते और तब भी सफलता उनके हाँथ नहीं लगती !  कभी कभी एक हुनरमंद कलाकार भी सुविधाओं के अभाव में सफलता का स्वाद नहीं चख पाटा  ! मैं यहाँ ऐसे कुछ नामचीन लोगों की बात कर रहा हूँ जिन्होंने बहुत कम समय में बहुत कुछ और जरुरत से ज्यादा सीख लिया है , बड़े बड़े कलाकार इन हुनरमंदों  से बहुत पीछे हो गए हैं ............ बहुत कम समय में इन कलाकारों  ने इस देश को बता दिया है की इनसे बढकर  कोई और दूजा नहीं हैं ! क्या आप जानना चाहेंगे कौन हैं ये लोग ?  ....... अरे भई .......... सबसे बड़े कलाकार .......... इस देश के पालनहार ( मारणंहार ) प्रतिदिन अपनी कलाओं से सबको चौंकाने वाले .......... जन-जन के प्रिये ( आजकल सिर्फ चमचों के मुंह से ही सुना जाता है ये शब्द ) और आपके अपने " नेताजी "  ............... इन कलाकारों  में मैं उन सभी को शामिल करना चाहूँगा जिन्होंने इस देश को लूटने का बेजोड़ हुनर सीखा है ! इनमें आप देश के सभी भ्रष्टाचारियों और बेईमानों को शामिल कर सकते हैं ! चाहे वो ऊंचे पदों पर बैठे आला अधिकारी हों , रिश्वतखोर पुलिसकर्मी हों , धर्म और तंत्र-मंत्र  के नाम पर आम जनता को लूटने वाले ढोंगी साधू-संत हों ,  वोट के नाम पर जनता को गुमराह करने वाले मतलब परस्त नेता हों , सरकारी पैसे का दुरूपयोग करने वाले मंत्री हों , जनता की मेहनत की कमाई पर ( टैक्स ) विदेश भ्रमण के नाम पर अरबों खर्च करने वाले मंत्री हों , गरीबों के हक़ के पैसों से अपनी तिजोरियां ( स्विस बैंक ) भरने वाले देश के लुटेरे हों ! ........  ऐसे कलाकारों की सूचि तो इतनी लम्बी है कि , अगर लिखने बैठ जाएं तो पता नहीं इस जन्म में लिखना पूरा होगा या अगला जन्म लेगा पड़ेगा !  कुछ  को भ्रष्टाचार का पुराना अनुभव है तो किसी को भ्रष्टाचार और बेईमानी का हुनर विरासत में मिला है , कुछ इस जमात में नए हैं किन्तु दो-चार बर्षों में ही  वो इस विद्या में पारंगत और बड़े कलाकार बन गए ! हमारे देश में भ्रष्टाचारी का तालाब माफ़ कीजिये समंदर बहुत बड़ा है और जिसे हम " पारस पत्थर " का नाम भी दे सकते हैं ........... पारस पत्थर की कहानी तो लगभग सभी ने अवश्य सुनी होगी .......... जिस चीज को ये पत्थर छू जाए वो सोने का बन जाता  .......... ऐसा ही है ये समंदर  ........ जो अच्छे अच्छों को भ्रष्टाचार और बेईमानी के हुनर का बड़ा कलाकार बना देता है ! कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन भर ईमानदारी का आलाप भरते नजर आते हैं किन्तु उनकी ईमानदारी में भी हमें बेईमानी झलकती हैं ..........     " मगरमच्छी आंसू " 
भई हमारा तो आधा जीवन निकल गया फिर भी हम सीखने में लगे हुए हैं कि , शायद कुछ अच्छा करके ईमानदारी से सफलता हांसिल कर सकें .......... और आज के नौसिखिये ,नयी खेप के भ्रष्टाचारियों को देखकर बस एक ही सवाल मन में आता है ! कि ,
इशारों  - इशारों में ....... घोटाले करने वालों .......... बता ये हुनर तुमने सीखा कहाँ से ................

धन्यवाद 

Saturday, July 14, 2012

ध्रतराष्ट्र सा अंधापन हमें विरासत में मिला है ........>>> संजय कुमार

" महाभारत " के ध्रतराष्ट्र को कौन नहीं जानता , उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता  ! हम सभी ने महाभारत को कई बार  पढ़ा है उसकी कहानी को कईयों बार सुना है , साथ में ध्रतराष्ट्र के बारे में भी ......... कुछ की नजर में मजबूर और लाचार , शकुनी और दुर्योधन की शाजिश का शिकार ......... फिर भी इतिहास ध्रतराष्ट्र को ही दोषी  मानता है ! खैर मुझे  भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है ! बात हम अंधेपन की कर रहे हैं ........ उस अंधेपन की जो आँख होते हुए भी आँखें बंद कर बैठे हैं ! अभी हाल ही में हमने और पूरे देश ने गुडगाँव और गुवाहाटी में हुए इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने वाले बहशीपन को देखा है , और देखा वहां उपस्थित अंधे -बहरे ,  हाड - मांस के बने पुतलों ने जिन्हें हम शायद इंसान कहते हैं , या कहते हुए भी शर्म आती है ! हाड-मांस के बने पुतलों में इंसान अब शायद ही बचे हों ........ इस तरह की घटनाओं ने एक बार  फिर ये साबित कर दिया कि हम ध्रतराष्ट्र की तरह अंधे हो चुके हैं जो सही और गलत में अंतर नहीं कर पाते  ,  सब कुछ हमारी आँखों के सामने हो जाता और हम कुछ भी नहीं कर पाते .... शायद करना चाहते हों पर हमारा जमीर तो मर चुका  है ....शायद हम लकवाग्रस्त शरीर और मन में हिम्मत ना जुटा पाए हों ...... कुछ भी हो पर सच तो ये है कि हम अंधे और बहरों की तरह इस देश में जी रहे हैं ! क्या सही है क्या गलत है सब जानते हैं फिर भी ......?   जब  हम अपने साथ हुए गलत का ही  विरोध नहीं कर पाते ... जब हम अपने घर और अपने आसपास होने वाली गलत बातों का ही विरोध नहीं कर पाते तो ये समाज और देश में होने वाले गलत काम और बुराई का विरोध कैसे कर पायेंगे ,  जब विरोध ही नहीं करेंगे तो खत्म कैसे करेंगे ........ शायद हमें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से ही मतलब है और हमें इसके अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है ..... जब कभी हम पर कुछ घटित होता है या हम ऐसी किसी घटना का शिकार होते हैं तब शायद हमारा अंधापन दूर होता है ! ये देश अब एक जंगल बन गया है जहाँ शेर कम इंसान की खाल पहने भेड़िये ज्यादा हो गए हैं ! सब कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है , हमारी आँखों के सामने देश के दुश्मन देश को लूट रहे हैं और हम ........ हमारे अपने ही हमारे संस्कारों को मिटटी में मिला रहे हैं और हम .............. हम भ्रष्ट राजनेताओं की गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपनों की ही छाती में खंजर घोंप रहे है और हम ......... हम औरतों और बच्चों पर होते निर्मम अत्याचार को होते देख रहे हैं फिर भी हम ........ गरीब जनता की मेहनत और  हक का पैसा भ्रष्ट अधिकारीयों और सफेदपोश नेताओं की तिजोरियों में जमा हो रहा है और हम ..........  हम जानबूझकर हर गलत और बुरे का साथ दे रहे हैं क्यों ?   .......... क्योकि अंधापन और बहरापन हमें विरासत में मिला है और विरासत में मिली हुई चीज बहुत लम्बे समय तक हमारे साथ चलती है !

ध्रतराष्ट्र से विरासत में मिले इस अंधेपन को मिटा दो और अपनी आँखें खोलो और देखो ,  ये दुनिया अब बदलाव चाहती है .............

धन्यवाद 

Monday, July 9, 2012

मनाने रूठने के खेल में हम ...........>>> संजय कुमार

 इंसान का जीवन बहुत सारी कठिनाईयों से भरा पड़ा है ! सुख- दुःख , गम और खुशी , अच्छा - बुरा , प्यार- मुहब्बत,  ये वो चीजें हैं जो समय , परिस्थिति और  हालात के अनुसार इंसान के जीवन में अपना असर छोडती  हैं ! कुछ हद तक ये इंसान के वश में भी होती हैं ,फिर भी ज्यादातर इंसान इन्हीं चीजों से ज्यादा परेशान होता हैं ! आज मैं जिस बिषय पर आपसे बात कर रहा हूँ , वो है  तो  मामूली और इंसान की रोज की दिनचर्या का अहम् हिस्सा , किन्तु आजकल उसके परिणाम हमारे सामने सकारात्मक नहीं आ रहे हैं ! मैं बात कर रहा हूँ रूठने और मनाने की बात का , जो हम सभी के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है ! वैसे रूठने मनाने की कोई उम्र तो नहीं होती फिर भी  बचपन और  जवानी से लेकर बुढ़ापे तक ये खेल चलता रहता है ! बच्चों का माता-पिता से रूठना - माता-पिता द्वारा बच्चों को मनाना आम बात है ! जवानी में यार दोस्तों से रूठना मनाना , प्रेमी-प्रेमिकाओं का रूठना मनाना , पति- पत्नि का रूठना मनाना , बूढ़े माता-पिता से आज बच्चों का सिर्फ रूठना ही होता है !  आज बहुत से बच्चे अपने माता-पिता से रूठे हुए हैं तभी तो देश के कई वृधाश्रम ऐसे बुजुर्गों से भरे पड़े हैं !  सिर्फ इस इन्तजार में कि , कब ये हमसे रूठे हुए बच्चे  हमें यहाँ से अपने घर ले जाएँ ......? इंसान के जीवन में जिस तरह सुख - दुःख  का होना आवश्यक है ठीक उसी प्रकार रूठने और मनाने का भी , अगर ये सब नहीं है तो जीवन बेजान और नीरस हो जायेगा ! जैसे - जैसे देश तरक्की कर रहा है , सफलता के नए आयाम पर हम पहुँच रहे हैं ! आधुनिक साधनों का तेजी से बढ़ता प्रयोग हमारी सफलता की गवाही देता है ! हमने कई क्षेत्रों में बहुत तरक्की की है किन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं जहाँ हम बदलते समय के साथ - साथ नहीं चल पाए  और वो है हमारी " सोच " का दायरा , जी हाँ ये सही है .... हम इसी जगह अभी भी बहुत पिछड़े हुए लोगों की श्रेणी में आते हैं ! मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि , इसी  छोटी सी सोच की वजह से आज कई परिवार बिखर गए हैं या फिर बिखरने की स्थिती में हैं ! बात- बात पर पत्नि का रूठना , बात - बात पर पति का रूठना हमारे समाज में आजकल एक फैशन सा बन गया है ! छोटी- मोटी तकरार होती है तो अच्छा है , किन्तु ये प्रतिदिन का रूठना मनाना किसी भी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कड़वाहट और मनमुटाव की  एक गहरी और लम्बी खाई को खोदने का काम कर रहा है , यदि जल्द इस खाई को नहीं भरा गया तो स्थिती बहुत खराब होगी ! हमने अक्सर देखा है रूठने मनाने के इस खेल को बड़े मतभेद और लड़ाइयों में तब्दील होते ! शुरुआत में तो ये सब अच्छा लगता है किन्तु जब ये रोज की दिनचर्या का हिस्सा बन जाती है तो ऐसे हालात में स्थिती बहुत गंभीर हो जाती है ! उस पर एक दुसरे से कई दिनों तक बात ना करना  आग में घी का काम करता है ! हालांकि ऐसा हर किसी के जीवन में नहीं होता जहाँ छोटी- मोटी तकरार कोई बड़ा रूप लेती हो , जहाँ ऐसा नहीं होता वहां पर पति-पत्नि की आपस की समझदारी बहुत काम आती है ! हर समस्या का समाधान बैठकर आपस में सलाह - मशविरा कर के कर लिया जाता है , और ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि पति - पत्नि एक दुसरे पूरक होते  हैं , एक गाड़ी के दो पहिये जो जीवन रुपी गाड़ी को आगे और अंत तक साथ ले जाते हैं ! जो व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन में सयम और समझदारी का उपयोग नहीं करते , बात बात पर एक दुसरे को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ते उनका जीवन  साइकिल  में लगे हुए उस टायर - ट्यूब के जैसा होता है जिसमें सेकड़ों पंक्चर होती हैं ........... अंत ये होता है कि हमें टायर - ट्यूब बदलना पड़ता है ! ऐसा देखा गया है की छोटे-छोटे झगडे कभी - कभी अलगाव और तलाक की नौबत तक ला देते हैं ! और यदि ऐसा होता है तो दोनों का ही जीवन बड़ा कष्टमय गुजरता है ! ऐसा भी देखा गया है कि एक दुसरे से अलग हुए पति -पत्नि बाद  में पश्चातव में आंसू बहाते हैं  .....किन्तु  तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होती है ........  " अब पछतावे होत क्या .. जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत " 
मैं अपने सभी युवा साथियों से ये गुजारिश करूंगा की यदि आप अपने वैवाहिक जीवन में रूठने मनाने  के इस खेल को यदि रोज खेलते हैं तो कृपया इसे बंद कर दीजिये ............ कहीं ऐसा ना हो .... इस रूठने मनाने के खेल में आप एक - दूजे से हमेशा के लिए बिछड़ जाएँ ! सब्र ... संयम और समझदारी का परिचय दीजिये ......


धन्यवाद 

Thursday, July 5, 2012

सारे जग की आँखों के तारे ..... अब नहीं लगते प्यारे ......>>>> संजय कुमार

आज से ३०-४० साल पहले बच्चों को लेकर एक फ़िल्मी गीत आया था ! " बच्चे मन के सच्चे , सारे जग की आँखों के तारे , ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे " इस तरह के गानों को  हम अब कभी कभार ही सुन पाते हैं ! जब " बाल दिवस " आता है ! जब  किसी बच्चे का जन्म दिन होता है ! वर्ना आज सभी के दिलो दिमाग पर तो " शीला - मुन्नी और चमेली " और ना जाने ऐसे कितने गीत छाये हुए हैं ! हम जब भी बच्चों पर लिखे हुए गीत सुनते हैं तो हमारी आँखों के सामने बच्चों के खिलखिलाते , कोमल और मासूम चेहरे नजर आते हैं ! बच्चे किसी के भी हों बहुत मासूम होते हैं और हर कोई उन्हें बहुत प्यार करता है ! यहाँ तक की हम पशु -पक्षियों के बच्चों को भी उतना प्यार करते हैं जितना कि अपने बच्चों को ! किन्तु आज जो कुछ बच्चों के साथ हो रहा है ,  आज जो उनकी स्थिति है उसे देखकर कभी-कभी इंसान होने की आत्मग्लानी हमारे मन में अवश्य होती हैं ! हमारे सामने आज ऐसे हजारों उदहारण हैं जो इंसानियत और मानवता के लिए एक बदनुमा दाग हैं ! क्या हम इंसान ही हैं ? जो अपने बच्चों की खुशियों के लिए जीवनभर तकलीफें उठाते हैं , उन्हें एक अच्छी जिंदगी देने के लिए अब अपना सब कुछ दांव पर लगाने से भी नहीं चूकते , तो दूसरी ओर कुछ लोग अपने ही बच्चों के साथ दिल को दहलाने वाली अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं ! ऐसे कार्य जो जघन्य अपराध की श्रेणी में आते हैं , कर रहे हैं ! हमारे देश में कुछ अजन्मे बच्चों को " माँ " की कोख में ही मार डाला जाता है और इस तरह का कार्य पिता और परिवार के लोगों द्वारा ही किया जाता है ! कहीं दो साल की बच्ची के साथ बलात्कार जैसी इंसानियत और मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाएँ हो रही हैं ! कहीं पिता , परिवार और सगे रिश्तेदारों के द्वारा मासूम बच्चे -बच्चियां यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं ! तो कहीं माता-पिता अपना पेट भरने के लिए अपने ही मासूम बच्चे का सौदा कर उन्हें बेच रहे हैं ! कहीं बच्चों को माता-पिता के गुस्से का शिकार होना पड़ता है , कहीं माँ तो कहीं पिता बच्चों को मारकर खुदख़ुशी कर लेता है ! तो कहीं स्कूल में टीचर का दुर्व्यवहार बच्चों को सहना पड़ता है ! गरीबी से तंग आकर माता -पिता बच्चों के साथ अन्याय कर रहे हैं ! कहीं ट्रेन में कोई ६ महीने का बच्चा ( बेटी ) छोड़ जाता है , तो कोई नवजात को कचरे के ढेर पर फेंक जाता है ! आज बच्चे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं ! चारों तरफ बच्चों का भक्षण करने वाले भेड़िये सिर उठाकर खुलेआम घूम रहे हैं ! " निठारी कांड " अरुशी मर्डर " जैसी  कई घटनाएँ बच्चों पर हुए निर्मम अत्याचार की गवाह हैं ! बच्चों पर होने वाली इन घटनाओं , उन पर होने वाले अत्याचारों को देखकर लगता है जैसे मासूम बच्चे हम इंसानों की आँख की किरकिरी बन गए हैं ! वर्ना इतना तो शायद ही बच्चों ने कभी सहा हो जितना कि पिछले १०-१५ सालों में ! ऐसा नहीं है इस तरह की घटनाएँ भारत में ही हो रही हैं बल्कि बच्चों के साथ यौन शोषण जैसी घटनाएँ विदेशों में भी कई हुई हैं कई बड़ी हस्तियों का नाम " बाल यौन शोषण " से जुड़ा रहा ! आज जो अत्याचार बच्चों के साथ हो रहे है उसे देखकर तो भगवान भी डरता होगा कि कहीं हमें इस दौर में बच्चे के रूप में जन्म ना लेना पड़ जाये ....... वर्ना पता नहीं इस रूप में हमें और क्या क्या देखना और सहना पड़ता ........ " सारे जग की आँखों के तारे ........ ( इस जग को ) अब नहीं लगते प्यारे "  और आपको .....................


धन्यवाद  

Sunday, July 1, 2012

ये भूख कब मिटेगी ? .......>>> संजय कुमार

भूख किसी भी चीज के लिए हो सकती है ! यह जरूरी नहीं की इन्सान को भूख सिर्फ पेट  भरने के लिए लगती हो ! रोटी की खूख तो इन्सान कैसे न कैसे मिटा ही लेता है ! ( वैसे भी रोटी की भूख सिर्फ गरीब को है )  लेकिन एक भूख  ऐसी भी है  जिससे इन्सान का पेट कभी नहीं भरता , और वो है  सफलता पाने की भूख ! सफलता पाने की भूख  एक ऐसी भूख  है जो कभी खत्म नहीं होती बल्कि समय के साथ साथ और भी बढ़ती जाती है ! मैं तो ये कहता हूँ कि , ये  भूख  कभी खत्म होनी भी नहीं चाहिए ,  तब तक जब तक आप सफलता  हासिल ना कर लें ! भूख अच्छी है, अगर उसका उद्देश्य किसी अच्छे लक्ष्य को पाने के लिए है , अगर भूख  ऐसी हो जिसका लक्ष्य सफलता पाना हो, वो भी गलत तरीके से  तो वह बहुत बुरी है ! क्योंकि इस तरह की  भूख  का कोई अंत नहीं है और ना कभी होगा ! जैसे जैसे समय तेजी से आगे बढता जा रहा है ! जैसे जैसे आधुनिकता का चोला हम सब को अपनी गिरफ्त में  ले रहा है , ठीक उसी प्रकार सफलता पाने का लक्ष्य भी बदलता जा रहा है ! आज हम सब  सफलता पाने के लिए बहुत कुछ करते हैं , कुछ सही और कुछ गलत , अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं ! फिर भी सफलता मिलेगी या नहीं ,कुछ नहीं कह सकते ! खैर आम आदमी की भूख सीमित है और वक़्त के साथ मिट भी जाती है ! किन्तु हमारे यहाँ ऐसे कई लोग हैं जो जन्म-जन्मान्तर के भूखे हैं ! भूखों की श्रेणी में , मैं देश के नेताओं को पहले पायदान पर रखना चाहता हूँ ! आप सभी इस बात से पूरी तरह सहमत होंगे ! सच कहूँ , मैं तो अभी भी भूखा हूँ और जब तक सफलता हांसिल नहीं कर लेता ये भूख नहीं मिटेगी !

भूख  अगर अच्छे के लिए है तो अच्छा ............अगर गलत के लिए हो तो, बहुत बुरी ............................


धन्यवाद