Tuesday, July 24, 2012

ये झूंठ नहीं , ये सच है ........>>>> संजय कुमार

उस नव पल्लवित कोमल 
कोरे मन पर 
संस्कारों की कलम से 
पवित्र चरित्र की 
तस्वीर लिखी गयी 
और कहा गया 
यह मानव है !
उस नवजात को लगा 
हर कोई यहाँ मानव है !
पर जब वो आगे बढ़ा 
वह जिससे भी मिला 
जिससे भी जुड़ा 
उसमें खुद की तस्वीर को 
उतार कर ही मिला 
पर जब उसे कुछ खटका 
वह रुका , और गौर से देखा 
एक के बाद एक उसे 
कुरूप , भयानक 
अविश्वसनीय चेहरे दिखे 
पर उसे  यकीन नहीं हुआ 
उसे लगा ये मुखौटा है 
इसके नीचे मानव का चेहरा है !
जब पवित्र ह्रदय से उसने 
मुखौटा हटाना चाहा 
ये क्या ............???
उसे हर बार तमाचे ही मिले 
और तब तक मिले 
जब तक उसके 
उसके अन्दर भी 
हैवान पैदा नहीं हुआ 
और जैसे वो जागा हो 
और बोला 
उफ़ .........वो तो " संस्कार " मानव 
स्वपन था 
ये यथार्थ है !
" ये झूंठ नहीं ये  सच है  "

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद  

11 comments:

  1. उफ़ .........वो तो " संस्कार " मानव
    स्वपन था
    ये यथार्थ है !
    " ये झूंठ नहीं ये सच है "
    सटीक और सार्थक ये झूंठ नहीं ये सच है.. गार्गी जी को बधाई।

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. ek sashakt aur behatreen kavita ke liye Rani ko badhaai.. badhiya kavita padhvaane ke liye Sanjay ji ka abhaar aur Dev ka janmdin hum sabko mubaraq ho.. where is the party???? :)

    ReplyDelete
  4. बहुत ही प्रभावी कविता, अतिशय शुभकामनायें।

    ReplyDelete
  5. सशक्त भाव..... गार्गीजी को शुभकामनायें

    ReplyDelete
  6. जब पवित्र ह्रदय से उसने
    मुखौटा हटाना चाहा
    ये क्या ............???
    उसे हर बार तमाचे ही मिले
    और तब तक मिले
    जब तक उसके
    उसके अन्दर भी
    हैवान पैदा नहीं हुआ
    और जैसे वो जागा हो
    और बोला
    उफ़ .........वो तो " संस्कार " मानव
    स्वपन था
    ये यथार्थ है !............ गार्गी जी की सोच का गाम्भीर्य मुझे सत्य देता है और सुकून कि - मुखौटों से परे कोई है जो अन्दर ज़गे हैवान के बारे में भी सच कह रहा है

    ReplyDelete
  7. बहुत प्रभावी रचना ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  8. पर उसे यकीन नहीं हुआ
    उसे लगा ये मुखौटा है
    इसके नीचे मानव का चेहरा है !

    हम सारी ज़िन्दगी इसी तरह धोखे खाते रहते हैं ...
    खुद मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ ...
    हर बार सोचती इस बार शायद विश्वास करने लायक कोई मिल गया और हर बार वही मुखौटा होता .....

    सुंदर भाव ....!!

    ReplyDelete