" महाभारत " के ध्रतराष्ट्र को कौन नहीं जानता , उसके अंधेपन को कौन नहीं जानता ! हम सभी ने महाभारत को कई बार पढ़ा है उसकी कहानी को कईयों बार सुना है , साथ में ध्रतराष्ट्र के बारे में भी ......... कुछ की नजर में मजबूर और लाचार , शकुनी और दुर्योधन की शाजिश का शिकार ......... फिर भी इतिहास ध्रतराष्ट्र को ही दोषी मानता है ! खैर मुझे भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है ! बात हम अंधेपन की कर रहे हैं ........ उस अंधेपन की जो आँख होते हुए भी आँखें बंद कर बैठे हैं ! अभी हाल ही में हमने और पूरे देश ने गुडगाँव और गुवाहाटी में हुए इंसानियत और मानवता को शर्मसार करने वाले बहशीपन को देखा है , और देखा वहां उपस्थित अंधे -बहरे , हाड - मांस के बने पुतलों ने जिन्हें हम शायद इंसान कहते हैं , या कहते हुए भी शर्म आती है ! हाड-मांस के बने पुतलों में इंसान अब शायद ही बचे हों ........ इस तरह की घटनाओं ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि हम ध्रतराष्ट्र की तरह अंधे हो चुके हैं जो सही और गलत में अंतर नहीं कर पाते , सब कुछ हमारी आँखों के सामने हो जाता और हम कुछ भी नहीं कर पाते .... शायद करना चाहते हों पर हमारा जमीर तो मर चुका है ....शायद हम लकवाग्रस्त शरीर और मन में हिम्मत ना जुटा पाए हों ...... कुछ भी हो पर सच तो ये है कि हम अंधे और बहरों की तरह इस देश में जी रहे हैं ! क्या सही है क्या गलत है सब जानते हैं फिर भी ......?
जब हम अपने साथ हुए गलत का ही विरोध नहीं कर पाते ... जब हम अपने घर और अपने आसपास होने वाली गलत बातों का ही विरोध नहीं कर पाते तो ये समाज और देश में होने वाले गलत काम और बुराई का विरोध कैसे कर पायेंगे , जब विरोध ही नहीं करेंगे तो खत्म कैसे करेंगे ........ शायद हमें सिर्फ और सिर्फ अपने आप से ही मतलब है और हमें इसके अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है ..... जब कभी हम पर कुछ घटित होता है या हम ऐसी किसी घटना का शिकार होते हैं तब शायद हमारा अंधापन दूर होता है ! ये देश अब एक जंगल बन गया है जहाँ शेर कम इंसान की खाल पहने भेड़िये ज्यादा हो गए हैं ! सब कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है , हमारी आँखों के सामने देश के दुश्मन देश को लूट रहे हैं और हम ........ हमारे अपने ही हमारे संस्कारों को मिटटी में मिला रहे हैं और हम .............. हम भ्रष्ट राजनेताओं की गन्दी राजनीति का शिकार होकर अपनों की ही छाती में खंजर घोंप रहे है और हम ......... हम औरतों और बच्चों पर होते निर्मम अत्याचार को होते देख रहे हैं फिर भी हम ........ गरीब जनता की मेहनत और हक का पैसा भ्रष्ट अधिकारीयों और सफेदपोश नेताओं की तिजोरियों में जमा हो रहा है और हम .......... हम जानबूझकर हर गलत और बुरे का साथ दे रहे हैं क्यों ? .......... क्योकि अंधापन और बहरापन हमें विरासत में मिला है और विरासत में मिली हुई चीज बहुत लम्बे समय तक हमारे साथ चलती है !
ध्रतराष्ट्र से विरासत में मिले इस अंधेपन को मिटा दो और अपनी आँखें खोलो और देखो , ये दुनिया अब बदलाव चाहती है .............
धन्यवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
BAHUT BAHUT AABHAAR , AADARNIYA
Deletesahi baat.. .. ham sayad dhritrashtra hi to ho gaye hain...:(
ReplyDeletebetareeen!
सार्थक आलेख..
ReplyDeleteसार्थक लेख
ReplyDeletewell said -aklank
ReplyDeleteसही कहा है आपने .....हमें यह सब विरासत में मिला है ....!
ReplyDeleteअंधे को अब नहीं
ReplyDeleteचाहिये दो आँखें
वो करना चाहता है
सब की आँखें भी बंद
और सब कहना
मान ले रहे हैं
बहुत आसानी से ।
संजय जी शुरुआत स्वयं से ही करनी पडेगी। लेकिन मनुष्य वाकयी बहुत लाचार हो गया है।
ReplyDeletesanjay dhritrashtra to janm se andha tha , lekin hum to gandhari hai jo ankhe hote hue bhi ankho par patti bandhe hai .
ReplyDeleteसार्थक ,स्पष्ट विचार.... बदलाव ज़रूरी है हमारे इस व्यवहार में .....
ReplyDeleteधृतराष्ट्र तो फिर भी अंधे थे , हमें क्या हो गया है ...आँखें होते हुए भी अंधों सा बर्ताव !! बहुत सार्थक और समयोचित लेख.
ReplyDeleteबहुत सार्थक और समयोचित लेख.
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2012/07/blog-post_7659.html
ReplyDeleteअन्धापन हमें चाहे विरासत में मिला हो पर आज भी हम आँखों बाले अंधे और आंख खोल कर सो रहे लोगों मेसे हें जिन्हें उठाना बहुत मुस्किल हे पर नामुमकिन नहीं । ...........बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteAApka kahana sahi hai. Par is kadwe sach ko nigalna kathin hai.
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