Monday, November 29, 2010
आज नशे में है , बचपन और भविष्य ....>>> संजय कुमार
आज हम उस नशे की बात कर रहे हैं जो हमारे देश के युवाओं की नशों में खून बनकर दौड़ रहा है ! शराब , सिगरेट, ड्रग्स, बीडी -सिगरेट , तम्बाखू और सभी तरह के मादक पदार्थ ! आज कल के युवाओं को अब एक नए नशे की लत लगती जा रही है और वो नया नशा है जिश्म का , जो हमारे युवाओं में आज का फैशन बनता जा रहा है ! लड़का हो या लड़कियां इस नशे के जाल में दिन व दिन फसते जा रहे हैं ! आज नशे के बाजार की पकड़ अब इतनी मजबूत बन गयी है , या नशे का जाल इतना फ़ैल गया है जिससे बाहर आना आज के युवा का, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ! ताजा रिपोर्ट के अनुसार आज हमारे देश के चार बड़े महानगरों में स्थिती बहुत ही चिंतनीय है ! १५ से २० साल के बच्चों में या अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखने बाले युवाओं में नशे की लत इतनी तेजी से अपने पैर फैला रही है , या उन्हें अपनी गिरफ्त में पूरी तरह से ले चुकी है ! किसी भी माँ-बाप के लिए बड़ा ही चिंतनीय एवं होश उड़ाने बाली बात है ! जब बच्चे घर से बाहर निकलते हैं उस वक़्त माँ-बाप बच्चों पर विश्वास कर उनको पूरी आजादी दे देते हैं ! और ये बच्चे उनके विश्वास के साथ विश्वासघात कर रहे हैं ! जन्म-दिन की पार्टी हो , कोई त्यौहार हो , या कोई गम भी हो तो भी इन्हें सिर्फ नशा चाहिए ! आधुनिकता की चकाचौंध में ये युवा इतने पागल से हो गए हैं की ये अपना अच्छा बुरा भी नहीं समझते ! नशे की दुनिया ही इनके लिए सब कुछ है ! इन युवाओं में एक होड़ सी लगी है अपने आप को आधुनिक बनाने की !" आज लड़कियां भी लड़कों से पीछे नहीं हैं " इस पद्धति को अपनाकर नशे के तालाब में तैर रहीं हैं ! कुछ अपने शौक को पूरा करने के लिए , कुछ एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए, नशे का इस्तेमाल करती हैं ! लेकिन नशा करने बाले ये युवा यह नहीं जानते की इनके नशा करने से ये किस दलदल में फंस रहे हैं ! जब इनका कोई फायदा उठाता है तो हमारे सामने ऐसे परिणाम आते हैं जो इन युवाओं के लिए और इनके परिवारों के लिए ऐसे जख्म या नासूर बन जाते हैं जिनकी पीड़ा जीवन भर नहीं मिटती ! यह स्थिती सिर्फ महानगरों की नहीं है , यह स्थिती और हालात अब पूरे देश में है , बड़े - बड़े शहरों से निकलकर यह नशा अब हमारे छोटे-छोटे शहरों , कस्बों और गांवों में तेजी से फ़ैल रहा है ! स्थिती ये है की शहरों में कूड़ा -करकट बीनने बाले १० से १५ साल के बच्चे तक, आज नशा कर रहे हैं ! बीडी -सिगरेट तो उनके लिए आम बात हैं , अब वह इससे भी बड़ा नशा करने लगे हैं , नशा करने के नए नए तरीके ढूँढने लगे हैं ! ऐसे बच्चों का तो मान सकते है की बह समझदार नहीं हैं या पढ़े-लिखे नहीं हैं , उनके सिर पर ना किसी का हाँथ है और ना छत ! किन्तु आज बड़ी-बड़ी डिग्रियां हांसिल करने बाले युवा सब कुछ जानते हुए भी नशे के इस दलदल में धस रहे हैं ! यह देख बड़ा आश्चर्य होता है , जिन माँ-बाप के बच्चे उनसे दूर महानगरों में पढ़-लिख रहे हैं ! उन माँ-बाप को अब इस ओर ध्यान देना होगा की कहीं उनके बच्चे उनके द्वारा दी गयी आजादी का गलत फायदा तो नहीं उठा रहे हैं !
अगर देश का हर युवा नशे में डूबा रहेगा तो क्या होगा उनके भविष्य का या इस देश के भविष्य का ?देश के युवाओं जरा सोचिये ............ जरूर सोचिये ................
धन्यवाद
Wednesday, November 24, 2010
देश की नयी महामारी ( हड़ताल और पुतले ) .... >>>> संजय कुमार
आजकल हमारे देश में एक चीज अब नियमित सी हो गयी है , और वो चीज है देश में हड़ताल और बात बात पर पुतलों का जलाना ! आज देश में जिसे देखो, जब देखो , मतलब और बिना मतलब के कभी भी कहीं भी हड़ताल कर देता है ! और ठप्प कर देता है , चलता फिरता सामान्य जनजीवन ! देश के किसी भी शहर के चौराहों पर रोज-रोज पुतलों का जलना अब आम बात हो गयी है ! भ्रष्टाचार के खिलाफ , मंहगाई के विरोध में , आतंकवाद का पुतला , कभी विरोधी पार्टी के नेताओं का , तो कभी धर्म को लेकर, आरक्षण का पुतला तो कभी RSS के " सुदर्शन " का ! अब देश में पुतलों का जलना और हड़ताल कोई नयी बात नहीं है ! देश में हड़ताल होना और पुतलों का जलाना अब एक नयी महामारी का रूप लेती जा रही है वह भी ऐसी की जिसको खत्म करने का कोई ओर- छोर दूर दूर तक नजर नहीं आता ! फिर चाहे इस रोज रोज की हड़ताल से देश की अर्थव्यवस्था रूकती हो तो रुक जाये, करोड़ों का नुकसान होता है तो हो जाये ! एक बीमार आदमी राश्ते में दम तोड़ता है तो तोड़ दे फर्क नहीं पड़ता, हड़तालियों का क्या जाता है ! छोटे छोटे मासूम बच्चे दूध की एक एक बूँद को तरस जाएँ तो क्या ! पर हड़ताल बालों पर ऐसा जूनून सवार होता है कि, उन्हें यह सब मंजूर है , उन्हें हर हाल में हड़ताल करना है , जैसे की ये हड़ताली, देश की काया ही पलट देंगे , सब कुछ ठीक कर देंगे एक ही दिन में , सब कुछ करेंगे किन्तु हड़ताल करना बंद नहीं करेंगे ! आज हड़ताल से लोगों का सिर्फ नुकसान हो रहा है और नुक्सान के अलावा कुछ नहीं ! क्या हम सब यह नहीं जानते कि , हड़ताल करने से आज तक कितनी समस्याए हल हुई हैं और कितनी समस्याएं पैदा हुई हैं ! क्या आज हर समस्या का हल सिर्फ हड़ताल है ? एक वक़्त था जब लोग अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए, अपनी बात सरकार के समक्ष रखने के लिए विरोध करते थे , पर उस समय विरोध होता था , किन्तु सही तरीके से और पूरी योजनाओं के साथ वह भी मान-मर्यादा और मानवता को ध्यान में रखते हुए , और तब होता था हड़ताल का सही असर जिससे सरकार की नींद उड़ जाया करती थी , पर अब नहीं , अब तो सरकार ही हड़ताल करवाती है , और पता नहीं क्या क्या ! आज देश में होने बाली हड़ताल है देश के नेताओं की एक सोची समझी चाल है जो अब आम जनता समझ चुकी है !
हड़तालियों ने जब चाहा हड़ताल कर दी , पर उसका असर किन किन लोगों पर पड़ेगा , और उसका परिणाम क्या होगा ? नहीं जानते या जानबूझकर अनजान बनते हैं , आज कल हर पार्टी अपना उल्लू सीधा करने के लिए जब चाहे देश में हड़ताल करबा देती है ! हड़ताल कराने बाले सिर्फ अपना फायदा सोचते हैं , और भूल जाते हैं उन लोगों की तकलीफ और दर्द जो इस आये दिन होने बाली हड़ताल से पीड़ित होते हैं ! इस रोज रोज की हड़ताल से सबसे ज्यादा तकलीफ उन गरीब , मजदूर , ठेला चलाने बाले , रिक्शा चलाने बाले और रोजनदारी पर लगे , लोगों को होती है जो प्रतिदिन कुआँ खोदकर पानी पीते हैं , अर्थात प्रतिदिन की आमदनी से अपना भरण-पोषण करते हैं ! यदि वह एक दिन काम ना करें तो उस दिन उनके घर में चूल्हा नहीं जलेगा और सोना पड़ेगा उनको, उनके परिवार को वह भी भूखा -प्यासा , इस हड़ताल का असर पड़ता हैं उन लोगों पर, जो दूर गाँव से शहरों में रोज आते हैं रोजी रोटी की तलाश में की उन्हें शहर में काम मिलेगा जिससे वह अपना गुजारा कैसे ना कैसे कर सकें , क्या गुजरती है उन पर यदि एक दिन हड़ताल हो जाये और उन्हें काम ना मिले ? क्या कभी सोचा है हड़तालियों ने ? कितना कोसते है इन हड़तालियों को, ऐसे पीड़ित लोग ! सिर्फ यह लोग नहीं हैं , और भी लम्बी फेहरिस्त है ऐसे लोगों की जो दुखी हैं , इस आये दिन होने बाली हड़ताल से , और उनके दिल से निकलती है सिर्फ एक ही बात !
सत्यानाश हो इन हड़ताल कराने बालों का ........................ आज रोज - रोज होने बाली हड़ताल ने रूप ले लिया है एक महामारी का , जो धीरे धीरे हमारे देश और समाज में फ़ैल रही है ! क्या इस महामारी का कोई इलाज है आपके पास ?
धन्यवाद
Friday, November 19, 2010
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है ....>>>> संजय कुमार
संसद भवन में बैठी भीड़ में , सच्चा राजनेता ढूँढना पड़ता है !
अपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है !
हजारों दोस्तों के होते हुए एक दोस्त ढूँढना पड़ता है !
रोज-रोज होते झगड़ों में प्यार ढूँढना पड़ता है !
पति-पत्नी को एक-दुसरे में विश्वाश ढूँढना पड़ता है !
आज लोग " राखी का इंसाफ " में इंसाफ ढूँढ रहे हैं,
यहाँ तो देश की सर्वोच्च अदालतों में इंसाफ ढूँढना पड़ता है !
अरबों की आवादी में इंसान ढूँढने पड़ते हैं !
कलियुग में माँ-बाप को "श्रवण कुमार " ढूँढने पड़ते हैं !
बढ़ गए पाप और बुराई कि, अच्छाई ढूँढनी पड़ती है !
बेईमानों के बीच ईमानदारी ढूँढनी पड़ती है !
खुदा की खुदाई ढूँढनी पड़ती है !
तो कहीं बच्चों को माँ की ममता ढूँढनी पड़ती है !
पश्चिमी सभ्यता में ढले लोगों में, अपनी सभ्यता ढूँढनी पड़ती है !
करोड़ों इंसानों में इंसानियत ढूँढनी पड़ती है !
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है !
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है !
धन्यवाद
Tuesday, November 16, 2010
एक अवार्ड -- एक शाम, भ्रष्टाचारियों के नाम (व्यंग्य ) ......>>> संजय कुमार
अवार्ड, नाम सुनकर ही ऐसे लगता है , जैसे हमने कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हांसिल कर ली हो ! लगता है जैसे हमारी मेहनत सफल हो गयी हो , हमारे काम की हर तरफ सराहना , किसी भी इन्सान को अपने कर्म क्षेत्र में मिलने बाली सबसे बड़ी ख़ुशी , सफल व्यक्तित्व की पहचान , शायद इन्सान के जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशी ! इन्सान की उम्र निकल जाती है एक ख़िताब हांसिल करने में ! कहा जाता है, किसी भी इन्सान को अवार्ड तब दिया जाता है , जब उसने कोई उपलब्धि हांसिल की हो , वह भी कड़ी मेहनत करके, अपने लिए देश हित के लिए , देश के मान - सम्मान के लिए , आम जनता की ख़ुशी के लिए , गरीबों की भलाई के लिए , और भी ऐसे कई क्षेत्र हैं जो अवार्ड के लायक हैं ! हम हमेशा से अच्छे लोगों को अवार्ड देते रहे और आगे भी देते रहेंगे , क्योंकि अवार्ड विजेता कड़ी महनत कर आज यह कीर्तिमान रच पाए ! हम सलाम करते हैं देश के समस्त छोटे-बड़े अवार्ड विजेताओं को ! आशा करते हैं और भी बड़े बड़े खिताब हासिल करें !
आजकल हमारे देश में एक चीज बहुत सुनने में आ रही है और वो है अवार्ड , तेंदुलकर को भारत रत्न मिलना चाहिए , आमिर खान को ऑस्कर, धोनी को ICC अवार्ड , अमिताभ को सदी के महानायक का अवार्ड, सोनिया गाँधी को " BEST LEADER OF INDIA " और भी हैं इस देश में जो अवार्ड के हक़दार हैं, जिन्हें आज तक अवार्ड नहीं मिला ! आज भी इस देश में बहुत से गुणी-अवगुणी , नायक - खलनायक , खिलाड़ी -अनाड़ी , चोर -पुलिस , मंत्री - संत्री , साधू -सन्यासी और आलाअधिकारी बचे हुए हैं , जो ना जाने कितने तरह के अवार्डों से आज तक वंचित है , आज हम सभी को मिलकर इनके द्वारा की गयी इनके द्वारा अपने अपने क्षेत्रों में हासिल की गयी महान उपलब्धियों के लिए नये - नये खिताबो से नवाजा जाना चाहिए ! फिर चाहे इन्होने देश की गरिमा को ताक पर रखकर , देश का सिर शर्म से झुकाकर , बड़े-बड़े घोटाले कर , आम जनता के साथ धोखा कर , गरीबों का खून चूसकर , भूखों का निवाला छीनकर , बच्चों का बचपन , युवा पीढ़ी का भविष्य गर्त में धकेलकर कर , मान-मर्यादाएं , सभ्यता-संस्कार , इंसानियत बेचकर और सारे बुरे काम करके अपने क्षेत्रों में महान उपलब्धियां ही क्यो ना हासिल की हों ! आज हमारा देश हर अच्छे छोटे-बड़े काम में सफलता हासिल कर रहा है ! आज तक हमने सिर्फ अच्छे लोगों को ही पुरुष्कृत किया है ! किन्तु अब समय अच्छे लोगों का नहीं है , अब वक़्त आ गया है उन लोगों को भी अवार्ड देने का जो आज देश का नाम विश्व पटल पर रोशन कर रहे हैं , फिर चाहे हम भ्रष्टाचार में और पायदान आगे बढ़ते चले जा रहे हों , बेईमानी, घूसखोरी , बेरोजगारी , हर तरह के छोटे-बड़े घोटाले कर देश का नाम रोशन कर रहे हों ! अब समय आ गया है एक शाम आयोजित कर इन बड़े बड़े भ्रष्टाचारियों को अवार्ड देने का ! अवार्ड देने की शुरुआत करेंगे देश के सबसे बड़े घोटाले भ्रष्टाचार " राष्ट्रमंडल खेल " के सबसे बड़े खिलाडी से , जिसने देश की इज्जत तो पहले ही डुबो दी , हम शुक्रिया अदा करते हैं देश के सच्चे खिलाडियों का जिन्होंने हमारी इज्जत (असली अवार्ड जीतकर ) बचा ली ! भ्रष्टाचार का सबसे अवार्ड इनको दिया जाना चाहिए ! भ्रष्टाचार का दूसरा अवार्ड कारगिल सैनिकों के परिवारों के लिए बनाये गए " आदर्श हाऊसिंग सोसायटी " में घपला करने बालों को , जो देश की रक्षा करने बाले सैनिकों का मान-सम्मान भी ना कर सके , तीसरा अवार्ड उन भ्रष्टाचारियों के नाम जो देश की "पवित्र गाय " या "HOLI-COW" अदालतों में बैठे हुए भ्रष्ट जज और वकीलों को जो वहां बैठकर आम जनता का भरोसा तोड़ रहे हैं, और भ्रष्टाचार फैला रहे हैं ताजा रिपोर्ट (सोमित्र सेन ), देश के उन तमाम मंत्रियों- संतरियों , पुलिस - डॉक्टर , इंजिनियर , साधू -सन्यासी और बहुत से ऐसे लोग जो झूठ-फरेब, बेईमानी-घूसखोरी , घोटाले आदि कर आज देश के कई सर्वोच्च पदों पर आसीन हैं ! और जनता की आँखों में धूल झोंक रहे हैं ! हम सब देशवासियों को मिलकर इन भ्रष्टाचारियों को पुरष्कृत करना चाहिए , क्योंकि एक सफल व्यक्ति को जितनी कड़ी महनत अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए करनी पड़ती है , उससे कहीं ज्यादा महनत इन भ्रष्टाचारियों को घोटाले करने में लगती है ! इन भ्रष्टाचारियों को भी बहुत कुछ सहना सुनना पड़ता हैं बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है तब कहीं जाकर सफल और पूर्णरूप से पक्के भ्रष्टाचारी बन पाते हैं ! अब हम सबको इनकी महनत के लिए इनका मान-सम्मान करना आज जरूरी हैं !
आप सब से "गुजारिश " है , अब हम सब मिलकर एक शाम आयोजित करते हैं , इन भ्रष्टाचारियों को अवार्ड देकर पुरुष्कृत और सम्मानित करने के लिए ! तब जाकर भ्रष्टाचारी होने की पक्की मुहर लगेगी और असली भ्रष्टाचारी कहलायेंगे !
आप कौन का अवार्ड लेना चाहते हैं ? यह आप सभी को सोचना है ......... तो सोचिये .....अवश्य सोचिये
धन्यवाद
Sunday, November 14, 2010
" बाल दिवस " सिर्फ एक दिन नहीं , पूरे बर्ष मनाना चाहिए ....>>> संजय कुमार
इस देश में " बाल दिवस " सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे वर्ष मनाना चाहिए , अगर हम इसमें सफल हुए तो यकीन कीजिये इस देश का भाग्य और भविष्य दोनों बहुत ही बहुत उज्जवल और सुनहरे होंगे ! बच्चों सिर्फ याद कर या नए नए कानून बनाकर "बाल दिवस " मनाकर कुछ नहीं होगा , हम सबको मिलकर बच्चों पर होने बाले अत्याचार का पुरजोर विरोध करना होगा , तब जाकर हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर पायेंगे ............
धन्यवाद
Thursday, November 11, 2010
मैं करोड़पति हूँ , और मुझे पता भी नहीं , और आपको ....>>> संजय कुमार
मुझे मेरे मोबाइल ने करोडपति होने का अहसास कराया है , क्या आपको भी ?
धन्यवाद
Saturday, November 6, 2010
शहरों की गंदगी अब गांवों में ..... गोरी चमड़ी के, गुलाम हम .... >>> संजय कुमार
भारत एक ग्राम प्रधान देश है ! भारत के गांवों में भारत की संस्कृति वास करती है ! अनेकों सभ्यताओं के लिए यह देश जाना जाता है और सेकड़ों सभ्यताएं हमें इन गांवों से धरोहर के रूप में मिली हैं ! शहरी सभ्यता से कोसों दूर , शहरों की भागमभाग से एकदम विपरीत शांत और शालीन होते हैं हमारे गाँव , मीलों लम्बी ख़ामोशी, शोर-सरावे से दूर , ऐसे हैं हमारे गाँव , जैसे गाँव बैसे ही यहाँ रहने बाले लोग, सीधेसाधे एवं सरल, निष्कपट और शहरी बुराइयों से कोसों दूर , गाँव के भोले -भाले -लोग , उनके अन्दर अपनापन का भाव , मिलावट का कोई नाम नहीं , मान सम्मान करने में सबसे आगे , शहर की चकाचौंध भरे माहौल से बिलकुल अलग , हमारे गाँव शहर की भागदौड़ से बिलकुल अलग हैं , सुगन्धित वातावरण , चारों ओर हरियाली अपने पैर फैलाये हुए , खेतों में लहलहाती फसलें, जीवन का राग सुनाते पेड़ -पौधे , पशु-पक्षी , कल-कल बहता पानी , अनेकों खूबियों भरे होते हैं ये सुन्दर हरे-भरे गाँव ! " अचानक किसी ने मुझे नींद से जगाया और मेरा सपना टूट गया , मैं सोचने लगा कि क्या मैं सपना देख रहा था या यह हमारे देश के गांवों का सच है ! ना तो मैं सपना देख रहा था और ना आज ये हमारे गांवों का सच है ! अब हम अपने गांवों के बारे में इस तरह की सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं ! क्योंकि आज देश में आदर्श गाँव शायद ही हों अगर हैं तो सिर्फ अपवाद हैं ! कारण हैं हम , आज के हमारे शहरी वातावरण का पूरा पूरा असर आप इन गांवों में देख सकते हैं ! मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ हमारे गांवों में फैलती अश्लीलता की , शहरों की गंदगी अब इन गावों में धीरे-धीरे अपने पैर फैला रही है या पूरी तरह फैला चुकी है ! गाँव के चौपालों पर बिकती नारी देह , गोरी चमड़ी की नुमाइश करती देशी -विदेशी बालाएं , हमारी संस्कृति को धीरे धीरे अपने आगोश में ले रही हैं ! सिर्फ इतना ही नहीं बह सभी बुरी आदतें जो अमूमन शहरी लोगों में देखी जाती है , अब गाँव के भोले-भाले लोग इन आदतों के आदि हो गए हैं ! शराब-शबाब -कबाब अब इन गाँव बालों के शौक हो गए हैं ! कुछ इसे आधुनिकता का नाम देते हैं , तो कुछ आज के दौर की जरूरत की चीजें , कुछ शहरी लोगों के जैसा बनने के लिए बुरी आदतों को अपनाते हैं , और धीरे-धीरे आदि हो जाते हैं ! अब शहरों की गंदगी इन गांवों में घर कर चुकी है ! अब गाँव सिर्फ नाम के रह गए हैं ! जिस तरह से गाँव शहर में बदल रहे हैं , उसी तरह वहां रहने बाले !
आज़ादी के पूर्व हम सब अंग्रेजों के गुलाम थे ! इस गुलामी से आज़ादी पाने के लिए कितने इतिहास लिखे गए ये हम सब जानते हैं ! कितने ही वीरों ने अपने प्राणों की कुर्बानियां दी , कई आन्दोलन चलाये गए तब जाकर हम गुलामी की जंजीर से आजाद हुए ! हमें धन्यवाद देना चाहिए उन सभी इतिहास पुरुषों को जिनके कारण आज हम सब खुली हवा में साँस ले रहे हैं , और आज़ादी के साथ सब कुछ कर रहे हैं ! अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाये थे कई चालें चली , चाहे हमें आपस में लड़ाने की रणनीति हो , धन दौलत का लालच या, अपने यहाँ ही गोरी चमड़ी बाली नर्तकियां हमारे सामने पेश की हों , ये सभी हथकंडे अपनाकर हमें लम्बे समय तक अपना गुलाम बनाये रखा ! आजादी के बाद भी गुलामी की मानसिकता हमारे अन्दर से नहीं गयी और हम लम्बे समय तक इन सब के मोह जाल में फंसे रहे , और आज भी कहीं ना कहीं इनके गुलाम हैं ! हमारी इस मानसिकता का पूरा फायदा इन अंग्रेजों ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं , उदाहरण हैं इस देश के छोटे-छोटे गाँवों कस्बों से लेकर शहर, महानगर फिर से इस गोरी चमड़ी के मोहजाल में फंस रहे हैं ! और इनके गुलाम होते जा रहें हैं ! आज हम देख रहे हैं , आज की बड़ी बड़ी महफ़िलों में गोरी चमड़ी बाली बालाओं का बढता चलन , आज हर तरफ उनकी अच्छो खासी डिमांड है ! जहाँ देखो बस यही नजर आ रही हैं ! आज किसी नेता का जन्मदिन हो या कोई रंगारंग कार्यक्रम , सिर्फ गोरी चमड़ी, यही चाहिए हम सभी को ! अब हमारे गाँव के चौपालों पर आप इन्हें कभी भी देख सकते हैं ! गाँव के बह चौपाल जहाँ कभी रामायण-महाभारत के पाठ पढ़ाए जाते थे आज गोरी चमड़ी के कब्जे में हैं ! आज जिसे देखो वो इनके पीछे भाग रहा है ! आज हम क्रिकेट में इनका बढ़ता हुआ चलन देख रहे हैं ! जिन्हें हम सब Cheerleader के नाम से जानते हैं, जो मैदान में बैठे दर्शकों का मनोरंजन करती हैं, और रात होने पर हमारे खिलाडियों का ! आज हमारे यहाँ इनके चलन को कुछ लोग अच्छे रुतबे की निशानी कहते है , तो कोई अपने आपको पश्चिमी सभ्यता में ढालने के लिए इनका उपयोग करते हैं ! तो कोई इसे अपनी परम्परा कह रहा है ! परंपरा के नाम पर कहते हैं कि, हमारे पूर्वज मनोरंजन के लिए विदेशों से नर्तकियां बुलाते थे , इसलिए इस परम्परा को हम सिर्फ आगे बड़ा रहे हैं बर्षों से यह परम्परा चली आ रही है ! इस देश का यह दुर्भाग्य ही है , जहाँ हम लोग इस देश की बार बालाओं को अच्छी द्रष्टि से नहीं देखते , उन नाचने गाने बालों को बुरी नजर से देखते हैं जिनकी रोजी-रोटी नाच गाकर ही चलती है वह भी सभ्यता के साथ , वहीँ पर हम लोग इन गोरी चमड़ी बाली नर्तकियों पर करोड़ों रूपए लुटा रहे हैं ! क्या ये गुलामी की मानसिकता नहीं है ? क्या आज हमारे देश में अच्छी नर्तकियों की कमी है ? क्या उनके नृत्य अश्लील हैं ? नहीं ऐसा नहीं है आज हमारे देश में इनसे ज्यादा अच्छे नर्तक -नर्तकियां है , किन्तु ये सब आज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं या आज दर दर की ठोकर खा रहे हैं क्योंकि आज उन्हें पूंछने बाला कोई नहीं है ! इस बात से आज हमें यह अहसास होता है कि, हम फिर से इन अंग्रेजों के गुलाम होते जा रहे हैं ! या पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में अपनी सभ्यता को खोते जा रहे हैं !
( छोटी सी बात )
धन्यवाद
Thursday, November 4, 2010
दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं
आप सभी ब्लोगर बंधुओं एवं परिवार के समस्त सदस्यों को पावन पर्व दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं , यह पर्व आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाये , आप सभी हर्ष-उल्लास के साथ यह पर्व मनाएं , यह पर्व आपके अंधकारमय जीवन में प्रकाश लाये , धन की देवी माँ लक्ष्मी आप पर सदा महरबान रहें ! देवी माँ सरस्वती की असीम कृपा आप पर बनी रहे !
दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं दीपावली की बहुत बहुत शुभ-कामनाएं