भारत एक ग्राम प्रधान देश है ! भारत के गांवों में भारत की संस्कृति वास करती है ! अनेकों सभ्यताओं के लिए यह देश जाना जाता है और सेकड़ों सभ्यताएं हमें इन गांवों से धरोहर के रूप में मिली हैं ! शहरी सभ्यता से कोसों दूर , शहरों की भागमभाग से एकदम विपरीत शांत और शालीन होते हैं हमारे गाँव , मीलों लम्बी ख़ामोशी, शोर-सरावे से दूर , ऐसे हैं हमारे गाँव , जैसे गाँव बैसे ही यहाँ रहने बाले लोग, सीधेसाधे एवं सरल, निष्कपट और शहरी बुराइयों से कोसों दूर , गाँव के भोले -भाले -लोग , उनके अन्दर अपनापन का भाव , मिलावट का कोई नाम नहीं , मान सम्मान करने में सबसे आगे , शहर की चकाचौंध भरे माहौल से बिलकुल अलग , हमारे गाँव शहर की भागदौड़ से बिलकुल अलग हैं , सुगन्धित वातावरण , चारों ओर हरियाली अपने पैर फैलाये हुए , खेतों में लहलहाती फसलें, जीवन का राग सुनाते पेड़ -पौधे , पशु-पक्षी , कल-कल बहता पानी , अनेकों खूबियों भरे होते हैं ये सुन्दर हरे-भरे गाँव ! " अचानक किसी ने मुझे नींद से जगाया और मेरा सपना टूट गया , मैं सोचने लगा कि क्या मैं सपना देख रहा था या यह हमारे देश के गांवों का सच है ! ना तो मैं सपना देख रहा था और ना आज ये हमारे गांवों का सच है ! अब हम अपने गांवों के बारे में इस तरह की सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं ! क्योंकि आज देश में आदर्श गाँव शायद ही हों अगर हैं तो सिर्फ अपवाद हैं ! कारण हैं हम , आज के हमारे शहरी वातावरण का पूरा पूरा असर आप इन गांवों में देख सकते हैं ! मैं यहाँ बात करना चाहता हूँ हमारे गांवों में फैलती अश्लीलता की , शहरों की गंदगी अब इन गावों में धीरे-धीरे अपने पैर फैला रही है या पूरी तरह फैला चुकी है ! गाँव के चौपालों पर बिकती नारी देह , गोरी चमड़ी की नुमाइश करती देशी -विदेशी बालाएं , हमारी संस्कृति को धीरे धीरे अपने आगोश में ले रही हैं ! सिर्फ इतना ही नहीं बह सभी बुरी आदतें जो अमूमन शहरी लोगों में देखी जाती है , अब गाँव के भोले-भाले लोग इन आदतों के आदि हो गए हैं ! शराब-शबाब -कबाब अब इन गाँव बालों के शौक हो गए हैं ! कुछ इसे आधुनिकता का नाम देते हैं , तो कुछ आज के दौर की जरूरत की चीजें , कुछ शहरी लोगों के जैसा बनने के लिए बुरी आदतों को अपनाते हैं , और धीरे-धीरे आदि हो जाते हैं ! अब शहरों की गंदगी इन गांवों में घर कर चुकी है ! अब गाँव सिर्फ नाम के रह गए हैं ! जिस तरह से गाँव शहर में बदल रहे हैं , उसी तरह वहां रहने बाले !
आज़ादी के पूर्व हम सब अंग्रेजों के गुलाम थे ! इस गुलामी से आज़ादी पाने के लिए कितने इतिहास लिखे गए ये हम सब जानते हैं ! कितने ही वीरों ने अपने प्राणों की कुर्बानियां दी , कई आन्दोलन चलाये गए तब जाकर हम गुलामी की जंजीर से आजाद हुए ! हमें धन्यवाद देना चाहिए उन सभी इतिहास पुरुषों को जिनके कारण आज हम सब खुली हवा में साँस ले रहे हैं , और आज़ादी के साथ सब कुछ कर रहे हैं ! अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाये थे कई चालें चली , चाहे हमें आपस में लड़ाने की रणनीति हो , धन दौलत का लालच या, अपने यहाँ ही गोरी चमड़ी बाली नर्तकियां हमारे सामने पेश की हों , ये सभी हथकंडे अपनाकर हमें लम्बे समय तक अपना गुलाम बनाये रखा ! आजादी के बाद भी गुलामी की मानसिकता हमारे अन्दर से नहीं गयी और हम लम्बे समय तक इन सब के मोह जाल में फंसे रहे , और आज भी कहीं ना कहीं इनके गुलाम हैं ! हमारी इस मानसिकता का पूरा फायदा इन अंग्रेजों ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं , उदाहरण हैं इस देश के छोटे-छोटे गाँवों कस्बों से लेकर शहर, महानगर फिर से इस गोरी चमड़ी के मोहजाल में फंस रहे हैं ! और इनके गुलाम होते जा रहें हैं ! आज हम देख रहे हैं , आज की बड़ी बड़ी महफ़िलों में गोरी चमड़ी बाली बालाओं का बढता चलन , आज हर तरफ उनकी अच्छो खासी डिमांड है ! जहाँ देखो बस यही नजर आ रही हैं ! आज किसी नेता का जन्मदिन हो या कोई रंगारंग कार्यक्रम , सिर्फ गोरी चमड़ी, यही चाहिए हम सभी को ! अब हमारे गाँव के चौपालों पर आप इन्हें कभी भी देख सकते हैं ! गाँव के बह चौपाल जहाँ कभी रामायण-महाभारत के पाठ पढ़ाए जाते थे आज गोरी चमड़ी के कब्जे में हैं ! आज जिसे देखो वो इनके पीछे भाग रहा है ! आज हम क्रिकेट में इनका बढ़ता हुआ चलन देख रहे हैं ! जिन्हें हम सब Cheerleader के नाम से जानते हैं, जो मैदान में बैठे दर्शकों का मनोरंजन करती हैं, और रात होने पर हमारे खिलाडियों का ! आज हमारे यहाँ इनके चलन को कुछ लोग अच्छे रुतबे की निशानी कहते है , तो कोई अपने आपको पश्चिमी सभ्यता में ढालने के लिए इनका उपयोग करते हैं ! तो कोई इसे अपनी परम्परा कह रहा है ! परंपरा के नाम पर कहते हैं कि, हमारे पूर्वज मनोरंजन के लिए विदेशों से नर्तकियां बुलाते थे , इसलिए इस परम्परा को हम सिर्फ आगे बड़ा रहे हैं बर्षों से यह परम्परा चली आ रही है ! इस देश का यह दुर्भाग्य ही है , जहाँ हम लोग इस देश की बार बालाओं को अच्छी द्रष्टि से नहीं देखते , उन नाचने गाने बालों को बुरी नजर से देखते हैं जिनकी रोजी-रोटी नाच गाकर ही चलती है वह भी सभ्यता के साथ , वहीँ पर हम लोग इन गोरी चमड़ी बाली नर्तकियों पर करोड़ों रूपए लुटा रहे हैं ! क्या ये गुलामी की मानसिकता नहीं है ? क्या आज हमारे देश में अच्छी नर्तकियों की कमी है ? क्या उनके नृत्य अश्लील हैं ? नहीं ऐसा नहीं है आज हमारे देश में इनसे ज्यादा अच्छे नर्तक -नर्तकियां है , किन्तु ये सब आज गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं या आज दर दर की ठोकर खा रहे हैं क्योंकि आज उन्हें पूंछने बाला कोई नहीं है ! इस बात से आज हमें यह अहसास होता है कि, हम फिर से इन अंग्रेजों के गुलाम होते जा रहे हैं ! या पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में अपनी सभ्यता को खोते जा रहे हैं !
( छोटी सी बात )
धन्यवाद
अंग्रेजों ने हमें गुलाम बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाये थे कई चालें चली , चाहे हमें आपस में लड़ाने की रणनीति हो , धन दौलत का लालच या, अपने यहाँ ही गोरी चमड़ी बाली नर्तकियां हमारे सामने पेश की हों , ये सभी हथकंडे अपनाकर हमें लम्बे समय तक अपना गुलाम बनाये रखा ! आजादी के बाद भी गुलामी की मानसिकता हमारे अन्दर से नहीं गयी और हम लम्बे समय तक इन सब के मोह जाल में फंसे रहे , और आज भी कहीं ना कहीं इनके गुलाम हैं !
ReplyDeleteसच्चाई तो यही है हम आज भी इनके आगे भीगी बिल्ली बन जाते हैं ....
शायद गुलामी हमारे खून में बस गई है .....!!
मुझे लगता है की कमी हम लोगो मे है। यह गोरी-काली चमडी का बटवारा मेरी समझ में कभी नही आया। अगर हिन्दुस्तानियों को गोरी चमडी की महिलायें पसंद हैं तो अंग्रेजो को भारतीय महिलाये ज्यादा लुभावनी लगती हैं । यह हर एक की निजता से जुडा हुआ है। अच्छा है हम अपनी बातें और विचार थोपने की बजाय , मानवता के लिये ,सबको संग लेकर , पुरी दुनिया को एक घर , अपना घर समझ कर काम करें।
ReplyDeleteCHHOTI SI BAAT ME BADI BAAT...!SAADHUWAD!
ReplyDeleteAUR HAA HAMARE BLOG PR PADHARNE KE LIYE DHANYAWAD !
aapki baat main dum hai, mene to ise bahut hi najdik se dekha hai.
ReplyDeletevkkaushik1.blogspot.com
vk
हम फिर से इन अंग्रेजों के गुलाम होते जा रहे हैं ... पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में अपनी सभ्यता को खोते जा रहे हैं ....
ReplyDeletehaan shayad aisa hi ho raha hai ..tabhi to ham apne jadon se door hote jaa rahe hai..
ham sab adhunikta ki andhi daud me apni sabhyta evam sanskriti ko tilanjali de rahe hain
ReplyDeleteachchha lekh
SHAYAD HUM LOGO ME HI KAMI HAI.
ReplyDeleteMUJHE TO LAGTA HAI AZADI KE LIYE DI GAI KURBANI BHI BEKAR HO GAI ...
KYOKI HUMNE NAHI SUDHARNE KI KASAM KAHA RAKHI HAI
पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में अपनी सभ्यता को खोते जा रहे हैं !
ReplyDeleteYE TO BILKUL SATYA HAI ..........
अपने भारत मे गुलामी का सैकड़ों साल पुराना जींस फुल फॉम मे है हम और आप लोग ही उसे जिंन्दा रखे हुऐ है जैसे हर नेता हर पार्टी हर संगठन के पीछे भारी भीड़ है। नेता. पार्टी; संगठन; चाहे जो करवा दे गुलाम मरने मारने पर उतारु हो जाते हैं। जितना मंा बाप की इज्जत नही करते अपने बुजुर्गो का कहना नही मानते उससे ज्यादा नेताओं, पार्टी,संगठनो का कहना मानते है इनके कहने पर कुछ भी करने को तैयार है। हमारे पूर्वजो ने मुगलो फिर अंग्रेजों की गुलामी की आज हम नेता पार्टी संगठनो की गुलामी कर रहे है।
ReplyDeleteजिस दिन ये गुलामी का जींस मर जायेगा उस दिन ये नेता और अपना भारत सुधर जायेगा।
अब देखिये यदि मै किसी पार्टी से जुड़ा हूं तो विरोधी पार्टी के उूपर खीज उतारुंगा क्योकि वो सत्ता मे है जिस दिन मेरी पार्टी सत्ता मे आजायेगी मुझे अपनी पार्टी जिससे मै आस्था से जुड़ा हूं उसकी गलती पर मजबूरी है मै आंखें बंद कर लूंगा।
क्योकि मे गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हूं कही न कहीं मेरा स्वार्थ भी जुड़ा है।
भाई खीज कर अपने खून को मत जलाओ कमजोर हो जाओगे। चिल्लाते चिल्लाते कई उूपर चले गये नेताओं को कोई फर्क नही पड़ता मोटी खाल के होते है नेताओ की जात अलग होती है। इनके इंसान का दिल नही रहता और न ये इंसान रह जाते हैं
एक लेख पढ़ा था
अगर दुनिया को बदलना है तो खुद को बदल डालो दुनिया अपने आप बदल जायेगी।
इस जींस को मारने की शुरुआत हमे और आपको करनी पड़ेगी।
फालतू मे अपनी एनर्जी नंगा करने मे वेस्ट कर रहे हैं।
आसमान मे थूंकोगे थूक वापस मंुह पे गिरेगा
पहले हम इस गुलामी से बाहर निकले और फिर दूसरो को निकालने मे ताकत लगाये। हम अपनी ताकत नेताओ या पार्टी या संगठन मे बर्बाद कर देते है
अच्छे प्रयास सार्थक होते है