भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरुजी के जन्मदिवस को हमारा देश " बाल दिवस " के रूप में मनाता है ! नेहरूजी (चाचाजी) को बच्चों से खासा लगाव था इसलिए उन्होंने अपने जन्मदिन को बच्चों के नाम कर दिया और तब से लेकर आज तक पूरा देश १४ नबंवर को नेहरूजी के साथ -साथ इस देश के भविष्य , देश के नौनिहाल बच्चों को याद कर लेता हैं ! शायद यही एक दिन होता है जब हम बच्चों के बारे में सोचते हैं , उनके वर्तमान और भविष्य की अच्छी कल्पना करते हैं ! आज इस देश में " बाल दिवस " का महत्त्व कितने लोग जानते हैं ! स्कूल में पड़ने बाले बच्चे , शिक्षा देने बाले अध्यापक , देश का पढ़ा-लिखा युवा वर्ग या मंत्री-संत्री , आला-अधिकारी और भी लम्बी सूची है जो शायद जानते हों या इनमें से भी ऐसे कई हैं जिन्हें आज के दिन की जानकारी नहीं है ! शायद ये सच बात है ! हम बच्चों के बारे में कितना सोचते हैं ? उनका भविष्य क्या है ? कितना उनके लिए करते हैं , यह हमारे सामने है ! क्योंकि आज देश में सबसे वद्तर हालत में अगर कोई हैं तो बो हैं इस देश के मासूम बच्चे , जो इस देश का भविष्य हैं ! आज उन्हें अपना वर्तमान तक नहीं मालूम की हम क्या हैं ? और आगे क्या होंगे ? आज कोई भी इन बच्चों के बारे में नहीं सोचता, इसका बड़ा कारण ये है कि , बच्चों से नेताओं का वोट बैंक नहीं बनता इसलिए नेता लोगों को बच्चों से कोई मतलब नहीं है ! आज कौन है बच्चों की दयनीय हालात का जिम्मेदार , कारण है देश की सरकार , जिम्मेदार हैं वह अधिकारी जो अपने फर्ज को ईमानदारी से नहीं निभाते , बच्चों के लिए बनाये गए कानून का सही इस्तेमाल नहीं करते , बल्कि छोड़ देते हैं बच्चों को उनके हाल पर सिर्फ मरने के लिए , आज देश में बच्चों की स्थिती क्या है ? यह बात किसी से छुपी नहीं है ! बच्चे किसी भी देश , समाज , परिवार की अहम् कड़ी होते हैं , एक धरोहर जो राष्ट्रनिर्माण के सबसे बड़े आधार स्तम्भ होते हैं ! किन्तु ये सब किताबी भाषाएँ हैं जिन्हें सिर्फ किताबों में ही पढ़ना अच्छा लगता है ! क्योंकि सच इतना कडवा है जितना की जहर नहीं , इस देश की विडम्बना कहें या दुर्भाग्य आज बहुत से अजन्मे मसूम तो माँ के गर्भ में आते ही जीवन-मृत्यु से लड़ते हैं , और जन्म लेने के बाद इस देश का एक बहुत बड़ा वर्ग बच्चों का चौराहों , रेलबे -स्टेशन , गली -मोहल्ले भीख मांगता मिल जाएगा , कुछ बच्चों का बचपन होटलों पर काम करते हुए , झूंठे बर्तन धोते हुए , काल कोठरियों में जीवन बिताते हुए कट जाता है ! यूँ भी कह सकते हैं जीवन आज अँधेरे में कट रहा है ! बाल मजदूरी तो इस देश के हर कौने में होती है ! इस देश में बच्चों के साथ जो हो रहा है उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी , उनके खरीदने-बेचने का धंधा , उनसे भीख मंगाने का धंधा , उनके शरीर को अपंग बनाने का काम , खतरनाक आतिशबाजी निर्माण में बच्चों का उपयोग , दिन -प्रतिदिन उनके साथ होता अमानवीय व्यवहार , तंत्र -मंत्र के चक्कर में बलि चढ़ते मासूम बच्चे , दिन-प्रतिदिन होता उनका यौन शोषण (निठारी काण्ड ) यह सब देश के भविष्य के साथ हो रहा है , और " बाल दिवस " पर भी होगा बह भी सरकार की नाक के नीचे और सरकार अंधे बहरों की तरह कुछ नहीं कर पायेगी , क्योंकि जब सरकार को ही किसी वर्ग की फ़िक्र नहीं तो इन मासूमों की पीड़ा को कों सुनेगा ? दयनीय बच्चों की संख्या इस देश में लाखों -करोड़ों में है , इस देश में आपको लाखों बच्चे कुपोषण का शिकार मिलेंगे , लाखों बेघर , दर-दर की ठोकर खाते हुए , आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर , निरक्षर और शोषित ,जिन्हें तो यह भी नहीं मालूम की बचपन होता क्या है ? बचपन कहते किसे हैं ? बाल दिवस का क्या मतलब है ?
इस देश में " बाल दिवस " सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि पूरे वर्ष मनाना चाहिए , अगर हम इसमें सफल हुए तो यकीन कीजिये इस देश का भाग्य और भविष्य दोनों बहुत ही बहुत उज्जवल और सुनहरे होंगे ! बच्चों सिर्फ याद कर या नए नए कानून बनाकर "बाल दिवस " मनाकर कुछ नहीं होगा , हम सबको मिलकर बच्चों पर होने बाले अत्याचार का पुरजोर विरोध करना होगा , तब जाकर हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर पायेंगे ............
धन्यवाद
बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeletemera maana hai aaj ke zamane me baal divas ka matlab badalta ja raha hai
ReplyDelete.........uska sthan baal majdoori ne le liya hai.
har jagah bachho ka shoshan ho raha .
in sabhi buraiye ke bich ...kaise manaye bal divas
हां इन दिवसों को मनाने की यही सबसे बडी विडंबना है । सार्थक लेख
ReplyDeletesatya hai ,sthiti mein sudhar hona chahiye.sahriday lekhak ap spasht kar sake hain sarokar ko.
ReplyDelete"मेरे मन की "बात कही है आज आपने ....मै कोशिश करती हूँ अपने बच्चों के साथ रोज मनाने की....
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने, बाल दिवस प्रतिदिन मनाया जाना चाहिए।
ReplyDeleteहर माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को प्रतिदिन खुश रखें।
सुंदर आलेख के लिए बधाई।
विचारणीय आलेख ...
ReplyDelete... behad prabhaavashaalee abhivyakti !
ReplyDeleteविचारणीय आलेख ..
ReplyDeleteबाल दिवस की सार्थकता तभी होगी ज्ब हम बच्चों के हित के लिये एक दिन नही जीवन लगायें । प्रभावपूर्ण लेख
ReplyDeleteबच्चे :ना भविष्य बनना हैं ना भगवान
http://aprnatripathi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
aa sabhi ka dhnyvad karta hoon
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