यह लघु-कथा मैं पहली बार लिख रहा हूँ , इसमें बहुत सी गलतियाँ होंगी, आपसे निवेदन है, आप मेरी गलतियों के बारे मैं बताएं, जिससे मै आगे गलतियों मैं सुधार कर और भी अच्छा लिखने की कोशिश करूं ! कृपया अपनी राय अवश्य दें !
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स्वामी योगानंद महाराज की जय, स्वामी योगानंद महाराज की जय, धर्म की जय , सुबह सुबह अखबार पड़ते वक़्त, यह जयजयकार जब मेरे कानों मैं पड़ी, तो सहसा मेरी प्रिये पत्नी मुझसे बोल पड़ी , ' लगता है आज शर्माजी के यहाँ कोई बहुत बड़ी धार्मिक पूजा है ' शर्माजी हमारे मोहल्ले के सबसे धार्मिक पुरुष ,जो धर्म को ज्यादा और कर्म को कम मानते हैं ! जिनका पूरा का पूरा समय इश्वर को खुश कर स्वर्ग को जाने का राश्ता ढूँढने मैं व्यतीत होता है ! तभी मेरे घर की घंटी बजती है , और शर्माजी मेरे सामने! ''अरे शर्माजी सुबह सुबह कैसे आना हुआ, शर्माजी बोले , " आप तो जानते हैं मैं धर्म -कर्म मै कितना विश्वास रखता हूँ ! सो मेरे घर बहुत पहुंचे हुए महात्मा स्वामी योगनान्दजी महाराज पधारे हैं ! जो एक ऐसी पूजा कर रहे हैं , जिसे करने के बाद मेरे सारे पाप धुल जायेंगे और मैं सीधा स्वर्ग मैं जाऊंगा ! सो आप सभी इस विशेष पूजा मैं पधारें ! इतना कह शर्माजी वापस चले गए ! अब हम कल का इन्तजार करने लगे ! सुबह सुबह हम सब परिवार सहित शर्माजी के घर पहुँच गए ! घर की सजावट देख हमें इस बात का विश्वास जरूर हो गया की शर्माजी ने स्वर्ग जाने के लिए लगता हैं , काफी खर्चा किया है ! हर तरफ शुद्ध देसी घी की खुशबू ! जैसे तैसे पूजा प्रारंभ हुई , स्वामी जी और उनके १५-२० चेलों के बीच , बो चेले कम मवाली ज्यादा लग रहे थे , और आती जाती महिलाओं को इस तरह देख रहे थे जैसे कभी महिलाएं देखि ही नहीं ! खैर , हम लोग पूजा मैं ध्यान लगाने की कोशिश कर रहे थे , की स्वामीजी की आवाज हमारे कानों मैं आई , की शर्माजी अब आप इश्वर के चरणों मैं दक्षिणा रख के इस पूजा-पाठ का समापन करें !और कब पूजा समाप्त हो गयी पता ही नहीं चला ! स्वामीजी की जो आवभगत शर्माजी ने की देखते बनती थी ! पूजा-बूजा से फ्री होकर स्वामीजी ने शर्माजी को आवाज लगायी ! ''अरे शर्माजी अब आप स्वच्छ भोग का प्रवंध कीजिये , शर्माजी ने कहा, 'जी स्वामीजी' ! तभी शर्माजी ने अपने नौकर को बुलाया और कहा ''अरे मोहन हमने जो असली घी की मिठाई स्वामीजी के लिए बनवाई हैं उसका तुरंत इंतजाम करो'' ! सब कुछ आने के बाद शर्माजी ने स्वामीजी से कहा , ''स्वामीजी आप इश्वर को भोग लगायें '' मैं गाय को भोग लगाने जा रहाहूं ''
जैसे ही शर्माजी आगे बड़े, तभी उनको आवाज आई " बाबूजी दो रोटी हमका दे दो, दो दिना से कछु न खाओ मैंने और जा मेरी मोढी नै, कछू मिल जाए तो भगवान् तुम्हे स्वर्ग को सुख देगो '' दरवाजे पर एक महिला मैली-कुचैली साडी जो हर तरफ से फटी हुई थी , पेट अन्दर घुसा हुआ , ऐसा लग रहा था जैसे , वह कई दिनों से भूंखी हो, अचानक आ गयी और खाने के लिए पुकारने लगी ! जब यह बात स्वामीजी के कानों मैं पड़ी तो स्वामीजी बोल पड़े , ''अरे शर्माजी भगाओ इस भिखारिन को इसकी बात अगर भगवान् ने सुन ली तो वह नाराज हो जायेंगे, चली आई अबसगुन करने , भगाओ इसे यहाँ से , शर्माजी ने बात सुनी और उस भिखारिन को धक्के मार कर वहां से भगा दिया ! अब शर्माजी ने अपनी थाली मैं भोजन रखा और जैसे ही थाली गाय के सामने राखी , बैसे ही वह भिखारिन जिसे शर्माजी ने भगा दिया था , अचानक प्रकट हुई , और थाली मैं रखा भोजन उठाकर अपनी छोटी सी बेटी को खिलाने लगी ! जैसे ही शर्माजी ने ये देखा, उन्होंने आव देखा ना ताव बस, एक जोरदार झन्नाटेदार चांटा उस भिखारिन को जड़ दिया ! और बोले , '' तू फिर से आ गयी यहाँ, धरम-कर्म मैं विघ्न डालने , चली जा तू यहाँ से वर्ना यहाँ वैठे लोग इतने पत्थर मारेंगे की तू यहीं की यही स्वर्ग सिधार जायेगी '' और उसका हाँथ पकड़कर वाहर का राश्ता दिखा दिया , बेचारी वहां से कुनकुनाते चली गयी! '' जा के पास तो भूंखे को खाबाबे को तो कछु है नयी और बिने खबा रौओ जो पहले से ही खा खा के लाल हो रहे हैं , नरक मैं जय गौ, जे तो ' ' .................और भिखारिन यह सब बकते वहां से चली गयी .............
जब हम सब शाम को शर्माजी के यहाँ से लौटे तो, सोचते रहे की क्या वाकई मैं , स्वामीजी के पास ऐसी कोई पूजा है जो स्वर्ग का राश्ता दिखाती हैं ! और शर्माजी धर्म के नाम पर इतने अंधे हो गए हैं , की किसी इन्सान की भूंख से ज्यादा उस स्वामीजी की भूंख बड़ी है, या उस गाय की ,.........क्या शर्माजी ने सही किया ......जो उस भिखारिन की जगह उस गाय को रोटी खिलाना उचित समझा ..........क्या धर्म यही कहता है ..................क्या धर्म इन्सान से बड़ा होता हैं ..........फिर यह धर्म का दिखावा क्यों
धन्यवाद
logon ki soch ki balihaari hai...
ReplyDeletemoko kahan dhoondhe re bande main to tere paas..
bahut sundar katha..
aabhaar...
नमस्कार,
ReplyDeleteलघुकथा अच्छी है....आपके लिखे शब्दों के कारण गलतियाँ खोजते रहे पर.............
लम्बाई थोड़ी इस कारण अधिक लगी कि नेट पर लोग काम की चीज भी ज्यादा देर तक नहीं पढना चाहते हैं तो.....
हाँ आप एक बात और ध्यान रखियेगा कि धाराप्रवाह किसी भी कथा की जान होता है.....आपकी इस रचना में आगे पढ़ते रहने की कशिश दिखाती है जो इसे सफल बनाती है... बधाई.........
आगे भी लघुकथाओं का इंतज़ार रहेगा..........
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
आज दिखावे का ही युग है .. धर्म इससे कहां बच पा रहा ??
ReplyDeleteshri, kumarendraji
ReplyDeleteapka dhnyvad, apka sujhav , sar aankhon par
Aaj dharm ke naam par jis tarah aadambar chhya hai use dekh man ko behat thes pahunchti hai... Aapne bahut achhi tarah se dharmik adambhar ka aaina dikhaya hai... aise manav virodhi mansikta swarg nahi narak ke dhwar kholti hai...
ReplyDeleteMaarmik yatharth laghukatha ke liye bahut dhanyavaad.
प्रथम उत्तम प्रयास.. आगे भी ऐसी ही लघुकथाओं का इन्तेज़ार रहेगा मुझे भी.. :) सुझाव क्या दूँ, जब खुद ही सीख रहा हूँ..
ReplyDeleteआप सभी ने मेरे प्रथम प्रयास को सराहा
ReplyDeleteआप सभी का तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ
धर्म के नाम पर अपनी दूकान चलाते इन पुजारियों ने हमारा बहुत नुकसान किया है ! इन रंगे सियारों पर भरोसा कर हजारो धार्मिक रोज लुटते हैं और बोलने वाला कोई नहीं
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