Saturday, June 12, 2010

अपने हिस्से की सारी लड़ाईयां... धीरे-धीरे लड़ते चलो ...>>> संजय कुमार

इन्सान का जीवन बहुत कठिनयियों भरा होता है ! जब तक इस हाड़-मांस बाले शरीर मैं साँस रहती है तब तक इन्सान लड़ता है अपने आप से ! कभी अपने लिए तो कभी अपनों के लिए तो कभी दूसरों के लिए , उम्र भर ! लड़ता है अपनी समस्याओं से, लड़ता है अपने आस-पास होने बाली हर बुराई से! लड़ता है झूंठ से , गम से , खुशियों के लिए , न्याय के लिए , सम्मान पाने के लिए , सम्मान बचाने के लिए, अधिकार के लिए , संस्कारों के लिए , अपने लक्ष्य के लिए , अपनी झूंठी परम्पराओ को बचाने के लिए ! अपने देश के लिए , लोगों के हक के लिए ! और एक दिन लड़ता है , अपने को इन्सान कहलाने को ! इन्सान के जीवन की यह लड़ाई , कभी खत्म नहीं होती ...... खत्म होता है तो यह हाड़-मांस का बना इन्सान .............. तो अपने जीवन की हर लड़ाई को बिना रुके लड़ते चलो ----आगे बड़ते चलो ............

अपने हिस्से की सारी लड़ाईयां
धीरे-धीरे लड़ते चलो ...
बड़ते चलो ..... बड़ते चलो

चलना शुरू किया तो आजायेगी मंजिल
धीरे-धीरे हिम्मत ये , दिल करलेगा हांसिल
उठना-गिरना ,गिरना-उठना , होगा बारम्बार
ऐसे ही तो कदम सीखते नयी नयी रफ़्तार
अब आने बाली हर मुश्किल का सामना
आने बाली हर मुश्किल का सामना
धीरे-धीरे करते चलो , बड़ते चलो,लड़ते चलो
बड़ते चलो .....बड़ते चलो.... लड़ते चलो ....

जिसके साथ चलता है , हर दम कोही प्यार
लहरें उसका हाँथ पकड़कर , बाँटें सागर पार
सब कुछ मुमकिन हैं, जब तक है दिल मैं कोई आस
लम्हा लम्हा कट जायेगा , हो कोई वनवास
जिंदगी की ये सारी पढाईयां, धीरे-धीरे पड़ते चलो
बड़ते चलो ... बड़ते चलो ...... लड़ते चलो ....

जब तक इस शरीर मैं जान है , तब तक जीवन मैं आगे बड़ते चलो
(यह पंक्तियाँ एक गीत से ली गयी हैं )

धन्यवाद

14 comments:

  1. संजय जी,बहुत सुन्दर रचना है बहुत सुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही उम्दा प्रस्तुती ,लेकिन आज अकेले लड़ने की बात रह नहीं गयी ,सारे बुरे लोग संगठित होकर और उच्च पदों पर विराजमान है ,जिससे लड़ना है तो हम सब को अपना पराया भूलकर जनकल्याण की लड़ाई के लिए एकजुट होना ही परेगा वरना लड़ाई का कोई फायदा नहीं होगा |

    ReplyDelete
  3. संजय जी,बहुत सुन्दर
    सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  4. बढ्ते जाओ ..बढ्ते जाओ ..बढ्ते जाओ... यही तो जीवन है ।बढिया...

    ReplyDelete
  5. प्रेरक बात कही संजय जी !

    ReplyDelete
  6. बहुत बढिया संजय जी

    सुन्दर आह्वान

    ReplyDelete
  7. बहुत खूब संजय भाई

    ReplyDelete
  8. इस कविता का सन्देश बहुत ही व्यापक है.. अगर हम सभी देश के लिए अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते चलें तो इससे बढ़कर कोई योगदान हो ही नहीं सकता.. बेहतरीन गीत लाने के लिए आभार संजय जी..

    ReplyDelete
  9. बहुत बढ़िया सन्देश देती सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  10. बढिया संदेश देती रचना !!

    ReplyDelete
  11. कविता आपने अच्छे सुरों में सजाई है ,
    तथा जीवन में आने वाली परिस्थितियों का भी बर्णन अच्छा है,
    पर एक बात समझ नहीं आती, ये सब लढाई क्यों है,
    जीवन सुन्दर है क्योंकि ये अप्रत्यासित है , इसके अंतर्गत हर बात महत्व की है,हर बात सकारात्मक है
    ये संघर्ष या लढाई जैसी कोई बात नहीं .
    समझदारी तो इसी में है की इसकी हर परस्थिति को पूर्ण रूप से ,सकारात्मक भाव से अंगीकार किया जाये न की इसे लढाई समझ कर जीतने या फिर जीवन काटने की बात सोची जाये .

    ReplyDelete
  12. सबसे पहले आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ

    दीपकजी, आपने सही कहा , यदि हम सब अपने हिस्से की लड़ाई अपने देश के लिए लड़ते चलें , तो देश अपनी जगह मजबूत हो जायेगा !

    रूपमजी, आपने कहा सब कुछ सकारात्मक है, संघर्ष या लड़ाई बाली कोई बात नहीं हैं, किन्तु आज किसी भी बात की सकारात्मक बनाने के लिए, अपने हक के लिए अपनी बात को रखने के लिए भी इन्सान को लड़ना पड़ता है !

    ReplyDelete
  13. umda prastuti...

    http://iisanuii.blogspot.com/2010/06/blog-post_12.html

    ReplyDelete