Thursday, April 26, 2012

" अनमोल " ........ >>>> संजय कुमार

वो रिश्ता ,
उस जिस्मानी रिश्ते से 
कहीं अधिक सगा होता है 
जो " अनुभूति " से बनता है ,
चाहे निगाहें भी ना मिलें ,
कोई एक  दूजे को छुए तक नहीं 
पर फिर भी 
मन की तरंगें 
एक दुसरे की आत्मा तक -
अपनी " अनुभूतियाँ " पहुंचा देती हैं !
ये रिश्ता 
माँगना नहीं 
सिर्फ देना जानता है 
तभी तो ये रिश्ता 
अपने आप में सम्पूर्ण होता है !
कहीं कोई खालीपन नहीं ,
कहीं कोई अधूरापन नहीं ,
एक दुसरे की 
सच्ची मुस्कुराहट ही 
एक दुसरे का " अनमोल " उपहार है !
तकलीफ हो अगर एक को तो 
दूजा चैन से जी नहीं पाता,
ये बेनाम  रिश्ते हम नहीं चुनते ,
ये तो आत्मा चुनती है !
और आत्मा जिस्म नहीं 
आत्मा चाहती है !

( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )

धन्यवाद 

6 comments:

  1. ये बेनाम रिश्ते हम नहीं चुनते ,
    ये तो आत्मा चुनती है !
    और आत्मा जिस्म नहीं
    आत्मा चाहती है !

    वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,.. सशक्त रचना,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  2. भावों का संबंध गाढ़ा होता है।

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  3. तन के रिश्तों कि एक म्याद हें
    पर आत्मा के रिश्ते अजर -अमर होते हें,
    आपने बहुत सुन्दर तरीके से आत्मा के अनमोल रिश्तों के मोतियों को अनमोल धागे में पिरोया हें |

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  4. WORTHFUL FEELINGS ABOUT THE RELATIONS.

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  5. वाह................

    बहुत सुंदर और सच्चे एहसासों से पगी रचना.............

    गार्गी जी को हमारी बधाई....

    आपका शुक्रिया.

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