वो रिश्ता ,
उस जिस्मानी रिश्ते से
कहीं अधिक सगा होता है
जो " अनुभूति " से बनता है ,
चाहे निगाहें भी ना मिलें ,
कोई एक दूजे को छुए तक नहीं
पर फिर भी
मन की तरंगें
एक दुसरे की आत्मा तक -
अपनी " अनुभूतियाँ " पहुंचा देती हैं !
ये रिश्ता
माँगना नहीं
सिर्फ देना जानता है
तभी तो ये रिश्ता
अपने आप में सम्पूर्ण होता है !
कहीं कोई खालीपन नहीं ,
कहीं कोई अधूरापन नहीं ,
एक दुसरे की
सच्ची मुस्कुराहट ही
एक दुसरे का " अनमोल " उपहार है !
तकलीफ हो अगर एक को तो
दूजा चैन से जी नहीं पाता,
ये बेनाम रिश्ते हम नहीं चुनते ,
ये तो आत्मा चुनती है !
और आत्मा जिस्म नहीं
आत्मा चाहती है !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
वाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ये बेनाम रिश्ते हम नहीं चुनते ,
ReplyDeleteये तो आत्मा चुनती है !
और आत्मा जिस्म नहीं
आत्मा चाहती है !
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,.. सशक्त रचना,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
भावों का संबंध गाढ़ा होता है।
ReplyDeleteतन के रिश्तों कि एक म्याद हें
ReplyDeleteपर आत्मा के रिश्ते अजर -अमर होते हें,
आपने बहुत सुन्दर तरीके से आत्मा के अनमोल रिश्तों के मोतियों को अनमोल धागे में पिरोया हें |
WORTHFUL FEELINGS ABOUT THE RELATIONS.
ReplyDeleteवाह................
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सच्चे एहसासों से पगी रचना.............
गार्गी जी को हमारी बधाई....
आपका शुक्रिया.