Thursday, March 11, 2010

अब हम नहीं किसी काम के .........संजय कुमार

रोज की तरह आज शाम मैं जब ऑफिस से अपने घर गया, और जाकर टीव्ही चालू किया तो टीव्ही चालू तो हो गया जब मैंने दूसरा चैनल देखना चाहा और अपनी प्रिये पत्नी से कहा 'अरे भईरिमोट कहाँ है , तो उसने मुझसे कहा आप आज मुझसे बात ना करें आज मैं बहुत थक गयी हूँ , मैंने पूंछा क्यों तो बो कुछ ना बोली, उसने मुझे रिमोट दे दिया और रिमोट लेकर उसे मैंने जब चलाना चाहा तो वो नहीं चला, प्रिये की थकन और परेशानी मुझे समझते देर ना लगी , अब परेशां होने की बारी मेरी थी, जब रात ९ से ११ बजे के बीच हम अपने पसंदीदा सीरियल जो की दो तीन चैनलों पर आते हैं, रोज
देखते हैं, जब उन दो घंटों मैं रिमोट ने काम नहीं किया तो मुझे इस बात का पूरा अहसास हुआ की हम इस आधुनिक दुनिया मैं आधुनिक साधनों के कितने आदि हो गए हैं बार बार चैनल वदलने मैं मुझे पसीना आ गया, आज हम एक छोटी सी चीज पर इतने निर्भर हैं, तो भविष्य मै क्या होगा

मेरे कहने का मतलब सिर्फ इतना है की जैसे- जैसे आधुनिकता बड़तीजा रही है हम उन पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हो गए हैं , यह तो सिर्फ एक रिमोट था अगर हम अपने आस-पास देखें तो ऐसे कई आधुनिक साधन हैं जिन के बिना आज के समय मै चल पाना शायद मुमकिन नहीं है, चाहे वो मोबाईल हो या कंप्यूटर इन्टरनेट या मनोरंजन के अन्य साधन , आज हम इन पर पूरी तरह से निर्भर हो चुके हैं , ये नहीं तो जीवन नीरस सा लगता है , अब लगता है हम अब किसी काम के नहीं .....................

जब ये साधन नहीं थे तब भी हमारा जीवन चलता था , शायद आज के जीवन से कहीं ज्यादा अच्छा , तब मनोरंजन परिवार के साथ होता था और आज बंद कमरों मैं , पहले व्यक्ति स्वयं पर निर्भर रहता था पर आज इन साधनों पर , आज जिसे देखो जरूरत से ज्यादा इन पर निर्भर हो गया है, क्या इतना आदि होना सही है.....

सोचिये ................. सोचिये................................. जरूर................ सोचिये

धन्यवाद









4 comments:

  1. Aajkal ekdam sixer par sixer laga rahe hain.. ekdam anchhuye vishay aur udaharn rakh rahe hain..
    bahut hi sachchi baat bahut hi asani se kah dete hain Sanjay ji..
    Abhar...

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  2. सोचना क्या है...आदत लगते समय कहाँ लगता है...इन्टरनेट उड़ जाये तो हम खुद भी पागलों की तरह घूमने लगते हैं.

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