Monday, April 26, 2010

आखिर, मैं एक पिता हूँ .....>>>>>>> संजय कुमार


भारतीय परम्पराओं और संस्कारों मैं माता -पिता का स्थान ईश्वर से भी बढकर माना जाता है ! इसका कारण है कि एक बच्चा जन्म के बाद सबसे पहले अपने माता- पिता को ही जानता है , बाकि सब उसके बाद उसे बताया जाता है ! कहते हैं माँ सबसे ज्यादा समय अपने बच्चों के साथ गुजारती है , सबसे ज्यादा प्यार वही करती है ! क्योंकि पिता रहता है दिन भर बाहर वह भी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! इसलिए कभी कभी कुछ बच्चों को ये लगता है कि शायद पिता उतना प्यार नहीं करता जितना की उसकी माँ उसे करती है ! और कभी कभी यह बात बच्चों के मन मैं घर कर जाती है !पर एक पिता होने के नाते उसका फर्ज होता है ,कि वह अपने परिवार और बच्चों कि देखभाल करे ! जीवन कि हर जरूरतों को पूरा करे , और वह ऐसा ही करता है , और अपना पूरा जीवन समर्पित करता है अपने परिवार अपने बच्चों के लिए ! जीवन भर हर कष्ट सहते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है ! घर मैं बच्चों कि जिम्मेदारी माँ के हाँथ मैं रहती है , और बाहर पिता कि ! जब बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय अपनी माँ के साथ गुजारते हैं !तो कई बार यह देखा गया है कि बच्चे माँ के लाडले हो जाते हैं ! और उन्हें कई बार यह लगता है की उन्हें अब पिता के प्यार की जरूरत ही नहीं है ! और वह इस गलत फहमी का शिकार हो जाते हैं कि, हमें तो हमारे पिता प्यार ही नहीं करते ! और जब कभी बच्चों के सामने माँ के द्वारा पिता से यह बोला जाता है कि, तुम्हे तो बच्चों कि जरा भी फिक्र नहीं हैं , और न तुम्हें बच्चों से प्यार ! इस तरह कि बातें जब बच्चे रोज सुनते हैं, तो एक गलत असर उनके दिमाग पर पड़ता है ! और धीरे एक विरोध कि भावना पिता के लिए उत्पन्न हो जाती है ! घर मैं जब माँ हर बात मैं बच्चे का पक्ष लेने लगे , चाहे सही हो या गलत तो , तो भविष्य मैं होती हैं कई परेशानियाँ !आज आधुनिकता इतनी बढ़ गयी है ! कि व्यक्ति के पास तो बैसे ही समय नहीं हैं ! फिर कहाँ हम लोग संस्कारों कि बात कर पाते हैं ! आज कई घरों मैं यह देखने को मिल जाता है , कि जिस पिता ने अपना खून-पसीना बहाकर जिन बच्चों को बड़ा किया, उन्हें समाज मैं उठने बैठने लायक बनाया ! आज वही बच्चे उन्हें दे रहे हैं दिन प्रतिदिन अपमान और तिरस्कार ! आज कई जगह यह देखने को मिल जायेगा की, माँ के लाड-प्यार की कीमत पिता को भुगतनी पड़ती है ! जो किसी पिता के दिल को सिर्फ आघात पहुंचाती है ! जो पिता बचपन से लेकर जवानी, शादी और शादी के बाद की सभी छोटी मोटी गलतियों को बिना किसी झिझक के माफ़ कर देता है ! वहीँ जब कभी पिता द्वारा कोई गलती अगर हो जाये तो वही बच्चे जरा भी नहीं चूकते अपने ही पिता का अपमान करने से ! एक पिता बच्चे की बचपन से लेकर तह जिन्दगी सिर्फ भला सोचता है ! पर आज के इस कलियुग मैं राम अब देखने नहीं मिल सकते ! पर दशरथ आज भी बहुत हैं जो सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों से प्यार करते हैं , और उनकी जरा सी तकलीफ मैं अपना सब कुछ न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं ! पर आज की उनकी संतान नहीं ! आखिर एक पिता अपने बच्चों से क्या चाहता है , थोडा सा प्यार , पिता का मान-सम्मान और कुछ नहीं !
जिस तरह माँ की ममता महान होती है , उसी तरह पिता भी एक महान आत्मा होती है , ना करें पिता का अपमान , भला हो या बुरा , पिता तो पिता ही होता है , उसका दर्द भी समझें ..................................।

धन्यवाद

11 comments:

  1. सही है माँ की ममता का कोई मोल नहीं पर पिता को नज़रअन्दाज़ करना भी तो उचित नहीं है.

    ReplyDelete
  2. माता पिता ही भगवान हैं ... दूसरा कोई भगवान नहीं होता ... किसी भी बच्चे को दोनों का प्यार चाहिए होता है ...उसके संतुलित मानसिक विकास के लिए .... अगर दोनों में से कोई एक न हो .. तो कहीं न कहीं परवरिश में कमी रह जाती है ... आपने अपने लेख में जो सवाल उठाया है वो वाजिब भी है और ज़रूरी भी ...

    ReplyDelete
  3. ऐसे ही प्रस्तुती और सोच से ब्लॉग की सार्थकता बढ़ेगी / आशा है आप भविष्य में भी ब्लॉग की सार्थकता को बढाकर,उसे एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में,अपना बहुमूल्य व सक्रिय योगदान देते रहेंगे / आप देश हित में हमारे ब्लॉग के इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर पधारकर १०० शब्दों में अपना बहुमूल्य विचार भी जरूर व्यक्त करें / विचार और टिप्पणियां ही ब्लॉग की ताकत है / हमने उम्दा विचारों को सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / इस हफ्ते उम्दा विचार के लिए अजित गुप्ता जी सम्मानित की गयी हैं

    ReplyDelete
  4. samajhne dijiye zara samay lagega.. baat to sahi ki aapne

    ReplyDelete
  5. http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html sanjay ji is link ko zarur padhiyega ek prayas hai shayas aapko pasand aaye...

    ReplyDelete
  6. संजय जी, प्‍यार की कोई भा्षा नहीं होती, वह मूक होता है। बच्‍चे सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं। आप किसी के घर जाइए यदि आप बच्‍चों के प्रति प्रेमयुक्‍त हैं तो बच्‍चे आप से तुरन्‍त हिल-मिल जाएंगे नहीं तो वे दूर से ही नमस्‍ते करके चले जाएंगे। इसलिए अपने बच्‍चे भी प्‍यार की भाषा पढ़ ही लेते हैं। आप तो पिता के लिये लिख रहे हैं कि वो बाहर रहता है लेकिन आज तो माँ भी बाहर ही रहती है। जो भी प्‍यार करता है वो चाहे सात समुन्‍दर पार ही क्‍यों ना रहे, प्‍यार बना ही रहता है। किसी के बहकावे से तो प्‍यार का कोई वास्‍ता नहीं है। लेकिन आपने पुरुषों का दर्द लिखा यह अच्‍छी बात है। हमेशा महिलाएं ही अपना दर्द लिखती रहती हैं तो हम उन्‍हें ही पीड़ित समझते हैं लेकिन सच यह है कि प‍ीड़ित कोई भी हो सकता है।

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  8. bilkul sahi kaha........maine bhi isi vishay par ek rachna likhi thi........main pita hun to kya mujhe dil nahi..............sach kaha pita ke dil ka dard koi nahi samajhata .

    ReplyDelete
  9. bahut sahi baat sanjay ji.... aapke vicharon se sahmat hun.... pita ka yogdan bhiu kam nahin hota .. bachho ki zindagi me....

    ReplyDelete