Friday, April 16, 2010
सत्यानाश हो इन हड़ताल करानेबालों का.............>>> संजय कुमार
आजकल हमारे देश मैं एक चीज नियमित हो गयी है , और बो चीज है हड़ताल, देश मैं जिसे देखो ,जब देखो हड़ताल कर देता है ! और ठप्प कर देता है, चलता फिरता सामान्य जनजीवन ! इस रोज रोज की हड़ताल से देश की अर्थव्यवस्था रूकती हो तो रुक जाये, करोड़ों का नुकसान होता है तो हो जाये ! एक बीमार आदमी रास्ते मैं दम तोड़ दे फर्क नहीं पड़ता ! छोटे छोटे मासूम बच्चे दूध की एक एक बूँद को तरस जाएँ ! पर हड़ताल बालों पर ऐसा जूनून होता है कि उन्हें यह सब मंजूर है ! पर हड़ताल बंद नहीं करेंगे ! आज हड़ताल से सिर्फ लोगों का नुकसान हो रहा है ! और कुछ नहीं ! हम सब यह जानते हैं कि इन हड़ताल से आज तक कितनी समस्याए हल हुई हैं !और कितनी समस्याएं पैदा हुई हैं ! क्या आज हर समस्या का हल सिर्फ हड़ताल है !
एक वक़्त था जब लोग अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए विरोध करते थे ! पर उस समय विरोध होता था सही तरीके से और पूरी योजनाओं के साथ ! और तब होता था हड़ताल का असर सरकार पर ! पर अब नहीं ! आज हड़ताल होगई है नेताओं की एक सोची समझी चाल ! जब चाहा हड़ताल कर दी ! उसका असर किन किन लोगों पर पड़ेगा ,और उसका क्या परिणाम होगा नहीं जानते ! या जानबूझकर अनजान बनते हैं ! आज कल हर पार्टी अपना उल्लू सीधा करने के लिए जब चाहे हड़ताल करबा देती है ! सिर्फ अपना फायदा सोचते हैं , और भूल जाते हैं , उन लोगों की तकलीफ और दर्द जो इस आये दिन होने बाली हड़ताल से पीड़ित होते हैं !
इस रोज रोज की हड़ताल से सबसे ज्यादा तकलीफ उन गरीब और छोटे छोटे लोगों को होती है ! जो प्रतिदिन कुआँ खोदकर पानी पीते हैं ! अर्थात यदि वह एक दिन काम ना करें तो उस दिन उनके घर मैं चूल्हा नहीं जलेगा और सोना पड़ेगा उनको, उनके परिवार को भूंखा ! इस हड़ताल का फर्क पड़ता हैं उन लोगों को जो दूर दूर गाँव से शहरों मैं रोज आते हैं रोजी रोटी की तलाश मैं ! क्या गुजरती है उन पर यदि एक दिन हड़ताल हो जाये ! क्या कभी सोचा है हड़तालियों ने ! कितनी वद्दुआ देते हैं इन हड़तालियों को ऐसे पीड़ित लोग ! सिर्फ यह लोग नहीं हैं , और भी लम्बी फेहरिस्त है ऐसे लोगों की जो दुखी हैं , इस आये दिन की हड़ताल से , और उनके दिल से निकलती है सिर्फ एक ही बात ! की सत्यानाश हो इन हड़ताल कराने बालों का ........................
आज हर रोज होने बाली हड़ताल ने रूप ले लिया है महामारी का , जो धीरे धीरे फ़ैल रही है हमारे समाज मैं !
धन्यवाद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Hadtaaliyon par kiya gaya yah teekha prahar khoob raha
ReplyDeleteयही कारण है कि हड़ताल को अब जन समर्थन नहीं मिलता। सिर्फ राजनीतिक दल के कार्यकर्ता ही भागीदारी करते हैं। जब चाहे सरकार इन्हें बल प्रयोग कर कुचल देती है। इसका एक दुखद पहलू यह भी है कि कभी-कभी जरूरी मुद्दे पर भी जनसमर्थन नहीं मिल पाता और जरूरी आवाज भी दबा दी जाती है।
ReplyDelete