Monday, April 19, 2010

क्यों नहीं उठा एक भी हाँथ, आज तक मेरे लिए......>>>> संजय कुमार


आप सभी ने फिल्म "उपकार " का यह गीत जरूर सुना होगा ! " मेरे देश की धरती सोना उगले , उगले हीरे मोती , मेरे देश की धरती , इस गीत को सुनकर शायद आप धरती , मिटटी , या किसान के बारे मैं सोचेंगे ! जी नहीं मैं यहाँ इनमें से किसी के बारे मैं नहीं कह रहा हूँ ! यह सब मेरे बिना सूने हैं ! अब यह भी सुन लीजिये इसी गीत की दो लाइन ! " बैलों के गले मैं जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं , गम कोसों दूर हो जाता है , खुशियों के कमल मुस्कुराते हैं ! जी हाँ मैं हूँ श्रम का सबसे बड़ा प्रतीक ! जी हाँ सही पहचाना आपने मैं हूँ गौ-माता वंशज बैल ! आज मेरा अस्तित्व लगभग ख़त्म होता जा रहा है ! कारण वही आधुनिकीकरण ! आज मेरा अस्तित्व ट्रेक्टर के भारी पहियों मैं कहीं खोता जा रहा है ! इस देश मैं जहाँ गौ माता की संख्या बढरही है , वहीँ मेरी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है ! इसका कारण है आप लोग पूरी तरह भूल गए हैं मुझे और मेरा महत्व ! आज लोगों की आस्था और वोट की गन्दी राजनीति ! जहाँ गौ माता के संरक्षण मैं कई हिन्दू संगठन और ये राजनेता अपनी चुनावी रोटियां सेकने सामने आ जाते हैं ! वहीँ हम जो गौ माता के वंशज हैं, हमें वचाने कोई संगठन आगे नहीं आता और हमें भेज दिया जाता है बूचडखानो मैं सिर्फ मरने, कटने के लिए ! मेरा क्या कसूर है ! क्या आपने कभी यह महसूस किया है ! जब से आप लोगों ने मुझे कृषि और माल ढोनेके कार्य से हटाया है तब से मेरा सिर्फ और सिर्फ प्रतिदिन ह्रास हो रहा है ! सीधी रोटी से जुड़े श्रम, ईमानदारी और परिश्रम के प्रतीक हम बैल , दिन प्रतिदिन कम हो रहे हैं !
एक समय था जब बैलों के जन्म पर किसान खुशियाँ मनाता था ! उसे लगता था जैसे मेरे घर बालक ने जन्म लिया है , जो उसका आगे चलकर सहारा बनेगा ! पर आज किसान के यहाँ अगर मैंने जन्म ले लिया तो आज किसान सिर्फ मातम मनाता है ! की क्यों इसने जन्म लिया हम तो पहले ही इस मंहगाई से मर रहे हैं ! और ऐसी मंहगाई मैं इसका पालन कैसे होगा ! आज का किसान मजबूर है , जब किसान अपने बच्चों का ठीक ढंग से लालन-पालन नहीं कर पता तो कैसे करेगा इनका पालन पोषण ! और दो तीन सालों मैं , मैं हो जाता हूँ बूचडखानों के हवाले ! देश मैं जो गौ मांस का ग्राफ बड़ा है उसमे सबसे ज्यादा संख्या मेरी है ! क्यों नहीं उठा कोई हाँथ आज तक मुझे वचाने के लिए ! क्यों आप इतना आधुनिक हो गए हैं ! मैं पिछले तीन हजार वर्षों से आपके साथ हूँ ! और मेरे द्वारा यह देश अर्थजगत मैं अपना नाम कर पाया है ! मैं धुरी था आपके अर्थ तंत्र की ! जब मैं नहीं रहा तो किसे कहेंगे आप अर्थ तंत्र की पारंपरिक धुरी ! इन आधुनिक उपकरणों को , जिनसे आज इन्सान पंगु बन के रह गया है !
काश एक हाँथ उठे मेरे लिए .......................................................................
सोचिये जरूर सोचिये ......................एक बार अवश्य सोचिये ...........................

धन्यवाद

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