Wednesday, May 19, 2010

किसने पाया सुकून, दुनिया मैं.....>>>> संजय कुमार

सुकून इन्सान के जीवन का वह पल ! जिसके के लिए इन्सान अपनी पूरी जिंदगी निकाल देता है ! फिर भी इन्सान पूरी उम्र तरसता रहता हैं ! उस एक पल के सुकून के लिए ! सुकून जो होता है सिर्फ क्षणिक भर का और कुछ पलों का ! और यह पल इन्सान के जीवन मैं कब आते हैं ! और कब यह पल निकल जाते हैं ! इसका अंदाजा तो इन्सान कभी लगा ही नहीं पाता ! और फिर तैयार हो जाता है! वह सब कुछ करने के लिए जो उसे एक पल का ही सही पर सुकून दे सके ! इन्सान को सुकून कब मिलता है ! क्या कोई इन्सान है जिसने पाया हो सुकून इस दुनिया मैं ! मैं जब ढूँढने निकला तो मुझे एक भी नहीं मिला ! आज हम अपने जीवन मैं कितना भी कर लें , कुछ भी कर लें पर सुकून तो जैसे हमसे इतनी दूर है ! कि लगता है हमारा पूरा जीवन ही निकल जायेगा ! इस एक पल के सुकून को पाने मैं !

जीवन की आपाधापी मैं इन्सान आज इतना उलझा हुआ हैं ! दिन बा दिन बढ़ती समस्याएं और दिन बा दिन प्रदूषित होता हमारे आस-पास का वातावरण सब कुछ इतना बड गया कि इन्सान उलझ के रह गया आज के माहौल मैं ! या यूँ भी कह सकते हैं कि इन्सान ने अपने आप को इतना व्यस्त कर लिया है ! कि वह सुकून और ख़ुशी महसूस ही नहीं कर पाता ! और वह दूर होता जाता है , अपनों से, अपने समाज से, नहीं रहता किसी का भी ध्यान ,और लग जाता कभी ना खत्म होने बाले जीवन के कार्यों मैं ! आज इन्सान लगा हुआ है मशीनों कि तरह काम करने ! बस कभी ना रुकने बाले घोड़ों कि तरह ! और नहीं है दीन-दुनिया कि खबर ! आज इन्सान ने अपने जरूरतें इतनी पैदा कर ली हैं! जिन्हें पूरा करते करते इन्सान पर बुढ़ापा तक आ जाता है फिर भी ! जरूरतें कभी पूरी नहीं होती !अपितु जरूरतें समय के साथ साथ बढ़ती जाती हैं ! एक समय था जब इन्सान अपने जीवन मैं सुख और सुकून का अनुभव करता था ! तब इन्सान आज की तरह आधुनिक नहीं था ! और ना ही उसकी जरूरतें ज्यादा थी ! उस वक़्त उसे चाहिए था ! रोटी -कपडा -मकान ! इन्सान के पास होता था उसका सबसे बड़ा हथियार सब्र ! जो उसे हमेशा सुकून का अनुभव कराता था ! फिर वह पल भर का ही क्यों ना हो ! तभी तो आज के कई बुजुर्ग यह कहते हैं ! कि समय तो हमारा था ! जिसमें इन्सान के पास सब कुछ था ! और रहते थे सुकून से ! जितनी चादर उतना ही पैर फैलाता था ! और उठाता था जीवन मैं सुकून का आनंद ! लेकिन आज के माहौल मैं उसे यह सब कुछ देखने को नहीं मिलता !

अगर जीवन मैं पाना है सुकून और सुख की अनुभूति ! तो जुड़े रहिये अपने परिवार के साथ, जुड़े रहिये अपने समाज के साथ ! ना दौड़ें आधुनिकता की तरफ अंधों की तरह ! आज इन्सान के शौक इतने हो गए हैं ! की वह जीवन भर उन्हें पूरा नहीं कर सकता ! इक्षाएं तो अन्नंत हैं ..........जिनका कोई अंत नहीं ............ और सुकून होता है पल भर का ........तो उस पल को महसूस करें.............जीवन का आनंद उठायें ..............

धन्यवाद

3 comments:

  1. sahi kaha...har pal yahan ji bhar jiyo...ye sama kal ho na ho...

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  2. Sach likha hai ... apne pariwaar, apne samaaj se jude rahne mein sab ka bhala hai ...

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  3. आलेख तो अपने आप में सबसे जुड़ा है ही साथ ही जावेद अख्तर साहब की बेहतरीन ग़ज़ल जिसके यही बोल हैं.. 'घर से निकले थे हौसला करके.. लौट आये खुदा खुदा करके...' याद दिला दी.. वो ग़ज़ल भी सुनियेगा कभी अगर ना सुनी हो तो संजय सर..

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