Tuesday, May 18, 2010

पचपन और बचपन को जरूरत है, हमारे प्यार और सहारे की.....>>>> संजय कुमार

इन्सान के जीवन मैं दो ऐसे पड़ाव होते हैं ! जहाँ पर इन्सान को सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपनों के प्यार, हमदर्दी और सहारे की ! अगर यह सब इन्सान को, इन दोनों उम्र के पड़ाव मैं ना मिले तो इन्सान का जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जायेगा ! और इन्सान पूरी तरह टूट जाएगा या फिर चल देगा किसी गलत राह पर ! और ऐसे ही दो पड़ाव हैं! इन्सान का बचपन और इन्सान की वह उम्र जो पचपन की होती है ! जिसे हम बुढ़ापा कहते हैं ! जब इन्सान का जन्म होता है तो एक नवजात मासूम बच्चे के रूप मैं ! और उस समय उस नवजात को सबसे ज्यादा जरूरत होती है अपनी माँ की, जो उसकी जीवन रक्षक होती है ! और तब तक वह माँ उस बच्चे की रक्षा करती है जब तक वह बच्चा अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़ा नहीं हो जाता ! जब तक बच्चा बड़ा नहीं होता, तब तक उसे पल पल पर अपने माँ-बाप के सहारे की जरूरत होती है ! और वह बिना सहारे की इस दुनिया मैं कुछ भी नहीं कर सकता ! जब तक बच्चा बड़ा होता है ! तब तक वह जीवन मैं आगे बड़ने के सारे गुण अपने माँ-बाप से ही सीखता है ! सारे संस्कार अच्छे आचरण , अच्छे बुरे की तमीज, दुनियादारी की समझ इन सब की पूर्ती बच्चे को अपने माँ-बाप के द्वारा ही मिलती है ! और बच्चा अपने जीवन मैं आगे बढता है ! वह भी सिर्फ और सिर्फ अपनों के प्यार,हमदर्दी और सहारे के साथ !

अगर हम अपने बच्चो का सहारा नहीं बनेंगे, जब तक की वह अपने पैरों पर ठीक ढंग से खड़े नहीं हो जाते ! तब तक हमारी जिम्मेदारी बनती हैं उन्हें वह सब कुछ देने की जो उनके लिए आवश्यक है ! अगर हम सब यह नहीं करेंगे तो हमारे बच्चे किस और जायेंगे ! क्या होगा उनका भविष्य ! यह हम सब जानते हैं ! उन्हें भटकने मैं ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा ! और यह देश का भविष्य कभी भी गलत राह पर चला जाएगा ! इसलिए इन्सान के जीवन की उम्र का यह पड़ाव हैं ! जहाँ पल पल पर अपनों की हमदर्दी , प्यार और सहारे की जरूरत इन्सान को होती है !

इन्सान जब बच्चे से युवा और युवा से प्रौढ़ अवस्था तक जाता है ! तब तक इन्सान पूरी तरह से अपने जीवन के हर सुख-दुःख को महसूस कर सकने लायक होता है ! इस उम्र तक वह खुद अपने बच्चों का माता-पिता बन जाता है ! और धीरे धीरे अपने दायित्वों से मुक्त होने लगता है ! जब उसके बच्चे अपनी अपनी जगह स्थापित हो जाते हैं ! और एक मुकाम बना लेते हैं ! जहाँ उन्हें शायद माँ-बाप के सहारे की जरूरत नहीं होती ! और धीरे धीरे कट से जाते हैं अपने माँ-बाप के प्रति ! और इन्सान धीरे धीरे अपनी उस उम्र की और बढ़ने लगता है जिसे हम बुढापा कहते हैं ! और इस उम्र मैं इन्सान अपनी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है ! इन्सान की यही एक उम्र होती है , जिसमे इन्सान अपने आप को सबसे ज्यादा अकेला, लाचार और मजबूर समझता है ! अगर उनके बच्चे अच्छे हैं तो सब कुछ ठीक ! अगर अच्छे नहीं हैं, तो इन्सान इस उम्र मैं ज्यादा जीने की चाहत नहीं रखता ! जब उसे यह लगने लगता है की वह अपने बच्चों के माता-पिता नहीं बल्कि उनकी जिंदगी पर एक बोझ हैं ! तब इस उम्र मैं आकर इन्सान पूरी तरह टूट जाता है ! और इस उम्र मैं इन्सान को सबसे ज्यादा जरूरत होती हैं अपनों के प्यार , हमदर्दी और सहारे की ! क्योंकि वह इस उम्र मैं पूरी तरह से निर्भर होते हैं अपने बच्चों पर !
जिस तरह बच्चों को जरूरत होती हैं अपने माँ-बाप की ठीक उसी तरह बुजुर्ग माँ-बाप को जरूरत होती हैं अपने बच्चों की और उनके सहारे की ! क्योंकि इन्सान के जीवन मैं यही दो पड़ाव हैं जहाँ पर सबसे ज्यादा जरूरत प्यार और सहारे की होती हैं ! बैसे तो इन्सान को जन्म से लेकर मृत्यु तक, पल पल पर प्यार, हमदर्दी और सहारे की जरूरत होती है ! क्योंकि इन सब के बिना इन्सान का जीवन आगे कभी बढ़ ही नहीं सकता ! और इनका हक होता है हम सबके ऊपर ! जो हमें कभी नहीं भूलना चाहिए !


माँ-बाप ने अपना कर्तव्य हमेशा निभाया फिर चाहे उनको कितनी भी तकलीफ या कितने भी दुःख अपने जीवन मैं उठाने पड़े हो, उनहोंने अपने बच्चो के लिए वह सब कुछ किया जो उनका कर्तव्य और फर्ज था ! और जिन्होंने नहीं किया उनके बच्चे आज किस मुकाम पर हैं, यह बात उन माँ-बाप को जरूर मालूम होगी ! जो चूक गए अच्छे संस्कार अच्छे आचरण देने से, आज वह क्या हैं, और क्या हैं उनकी इस समाज मैं स्थिति, यह भी वह अच्छे से जानते होंगे ! फिर भी माँ-बाप तो माँ-बाप होते हैं जिन्होंने हमे जन्म दिया यही उनका सबसे बड़ा ऋण होता हैं हमारे ऊपर ! किन्तु आज कितने ही माँ-बाप उपेक्षित हैं अपने बच्चों के द्वारा ! और खा रहे हैं दर -दर की ठोकरें, और जी रहे हैं एक अभिशप्त जीवन
यह एक सवाल है हम सभी के लिए ! आज का माहौल देखते हुए , आज के दूषित वातावरण को देखते हुए, आज भूलती अपनत्व की भावना को देखते हुए, आज बनते बिगड़ते रिश्तों को देखते हुए , और भटके हुए आज के युवा वर्ग को देखते हुए ! क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं की आज के हमारे बच्चे हमारी उम्र के उस पड़ाव मैं हमारा सहारा बनेंगे जिसे हम बुढ़ापा कहते हैं !


आज जरूरत हैं पचपन और बचपन को हमारी ..........(जरा सोचिये ) .......(एक छोटी सी बात )

धन्यवाद

10 comments:

  1. आज जरूरत हैं पचपन और बचपन को हमारी ..........(जरा सोचिये ) .......(एक छोटी सी बात )
    संजय जी बात छोटी सी नहीं है यह बहुत बड़ी है
    सही मुद्दा

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  2. आपसे सहमत हूँ संजय जी और ऐसी सार्थक सोच के लिए बहुत-बहुत आभार.. कहते भी हैं की बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं.

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  3. ये भी पढ़िए अगर समय हो तो..
    http://naiqalam.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html

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  4. कहते हैं की बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं...सार्थक पोस्ट.

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  5. कहते हैं की बूढ़े और बच्चे बराबर होते हैं...सार्थक पोस्ट.

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  6. आधुनिकता के साथ साथ सांस्‍कृतिक परंपरा की झलक।

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  7. हमारे शहर के संत श्री हि‍रदाराम जी के वचन है- बूढ़े, बच्‍चे और बीमार ये सब तो हैं रब के यार। तो यदि‍ उससे यारी करनी है तो ये भी एक तरीका है कि‍ इन तीनों से चाव-लगाव बढ़ाया जाये।

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  8. १००% सत्य मार्मिक आज का सच मैं खुद भुगत रहा हूँ आठ साल से जब मेरी पत्नी का स्वर्गवास हुआ
    सब मुझे अकेला छोड़ कर चले गए ये ही जिंदगी का सच आज का ?

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