कुछ सालों में मैंने आपसे
सिर्फ माँगा ही माँगा है !
वो मेरी मजबूरी रही हो
या कमजोरी
चाहे वो जबाब मांगे हो
या आपकी दया
पर इन सालों में मैंने
नियति के हांथों
खोया भी बहुत कुछ है !
और जो सबसे बड़ी चीज खोई है
वो है , मजबूरी में आकर खुद को
और जब खुद को ही खो दिया
तो आपसे संपर्क कैसे बनाये रखूं
पर मैं खुद को बापस पाना चाहती हूँ
पहले से भी बेहतर
खुद को पाकर ही मैं.......
आपसे जुड पाऊंगी ........
आज फिर अकेली हूँ ......
" पिता " आपके हांथों का सहारा चाहिए
मेरे अन्दर जो आंसू कैद हैं
वो आपके कन्धों पर छूटने चाहिए
" हे पिता मेरे " मुझे
आज फिर " आपका "
वात्सल्य चाहिए
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
सिर्फ माँगा ही माँगा है !
वो मेरी मजबूरी रही हो
या कमजोरी
चाहे वो जबाब मांगे हो
या आपकी दया
पर इन सालों में मैंने
नियति के हांथों
खोया भी बहुत कुछ है !
और जो सबसे बड़ी चीज खोई है
वो है , मजबूरी में आकर खुद को
और जब खुद को ही खो दिया
तो आपसे संपर्क कैसे बनाये रखूं
पर मैं खुद को बापस पाना चाहती हूँ
पहले से भी बेहतर
खुद को पाकर ही मैं.......
आपसे जुड पाऊंगी ........
आज फिर अकेली हूँ ......
" पिता " आपके हांथों का सहारा चाहिए
मेरे अन्दर जो आंसू कैद हैं
वो आपके कन्धों पर छूटने चाहिए
" हे पिता मेरे " मुझे
आज फिर " आपका "
वात्सल्य चाहिए
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
Aankhen nam ho aayeen!
ReplyDeleteकविता पढ़ हृदय भर आया।
ReplyDeleteआपने बहुत ही प्यारे और अनमोल शब्दों में वात्सल्य (प्रेम) को संजोया हें |
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, संजय जी...
ReplyDeleteबेहतरीन भावुक प्रस्तुति,....
समर्थक बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,...
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
" पिता " आपके हांथों का सहारा चाहिए
ReplyDeleteमेरे अन्दर जो आंसू कैद हैं
वो आपके कन्धों पर छूटने चाहिए
" हे पिता मेरे " मुझे
आज फिर " आपका "
वात्सल्य चाहिए
Samjh Sakti hun.... Ek beti ke man ke bhav....