आप भले ही कभी पब या डिस्को में ना गए हों , किन्तु अब इतिहास के पन्नों से निकल कर " सलीम " की " अनारकली " अब डिस्को तक पहुँच गई है ! भले ही आपका टांका कभी किसी से भिड़ा हो या ना भिड़ा हो , किन्तु हमारी लैला , अरे भूल गए .......... अरे वही " लैला -मजनूं " वाली लैला जिसके सच्चे प्रेम की कहानिया इस देश बच्चे बच्चे की जुबान पर हमने कई बार सुनी है ! जिनके सच्चे प्रेम की कसमें देश के लाखों युवाओं ने कई बार खाई हैं ! अब उस लैला का टांका भी मजनू के अलावा किसी और से भिड़ा है और ऐसा मैं नहीं " बौलीवुड " के आने वाले गाने कह रहे हैं ! सच है भई जब हमारे आसपास का वातावरण ही पूरी तरह से दूषित हो तो ऐसी स्थिति में हमें दूषित चीजें ही खाने - पीने और सुनने को मिलेंगी ! इससे पहले भी हम बहुत सी दूषित चीजों के दीवाने हुए हैं ! पहले भी हमने बिना बात " मुन्नी "को बदनाम किया है ! शीला को जवान किया है ! " चिकनी चमेली " को भी पव्वा पिलाकर छत पर चढ़ा दिया है तो कहीं ऊह लाला ... ऊह लाला करते घूम रहे हैं ! आगे और क्या - क्या होगा ?........... आज ऐसे फूहड़ गीतों की हमारे देश में तो बाढ़ सी आई हुई है ! बच्चे का जन्म-दिन हो , शादी - पार्टी हो यहाँ तक की धार्मिक आयोजनों में भी इस तरह के गीतों का चलन तेजी से बढ़ रहा है ! दिलों में जोश , देश पर मर मिटने का जज्बा पैदा करने वाले गीत तो कब के आना बंद हो गए बल्कि ऐसे गीतों को तो आज इतनी लोकप्रियता भी नहीं मिलती ! पिछले १० सालों का रिकार्ड उठाकर देखें तो उन गीतों को कितने अवार्ड मिले हैं जो देश-भक्ति, राष्ट्र के प्रति प्रेम पर आधारित या फिर पारिवारिक हों ! आजकल अवार्ड " डर्टी पिक्चर " मुन्नी बदनाम तो कहीं चिकनी चमेली को दिए जा रहे हैं ! आज देश की लगभग आधी आबादी ऐसी है जिसे ना तो राष्ट्रगीत पूरी तरह से आता है और ना ही राष्ट्रगान , इसके विपरीत फूहड़ गीत रट्टू तोते की तरह रटे हुए हैं ! क्योंकि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान , जन-गण-मन , या वन्दे-मातरम् , जैसे गीत वो गीत हैं जो शायद १५ अगस्त , या २६ जनवरी को ही विशेष रूप से गाये जाते है ! इस देश के मंत्री-संत्री , आला-अधिकारी , जिन्हें सिर्फ घूस लेना आता है , भ्रष्टाचार फैलाना जानते हैं , घोटाले करना और उनसे साफ-साफ बचना जानते हैं , उन्हें भी शायद हमारा राष्ट्रगीत नहीं आता होगा ! हिंदुस्तान में ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनमे एक-दो सदस्यों को छोड़ दें या किसी परिवार के सभी सदस्यों तक को यह गीत नहीं आता होगा ! आज हमारा वातावरण इतनी तेजी से बदला है कि , हम अपनी पहचान , अपनी धरोहर , अपना मान-सम्मान अपने हांथों से खो रहे हैं ! कारण तो हम ही हैं क्योंकि अब इस देश में एक ट्रेंड चल पड़ा है या चल रहा है ! " जो दिखता है सो बिकता है " या यूँ भी कह सकते हैं की हर " भेड़ चाल " में हम नंबर १ पर हैं ! जब हमारे दिलो-दिमाग पर , शीला-मुन्नी - चिकनी चमेली , ऊह लाला होगा तो हमारी जबान पर राम नाम कैसे होगा जब आज के बच्चे भद्दे गीतों को अपना पसंदीदा बना लेंगे तो " श्लोक " कैसे सीखेंगे ! यह सिर्फ एक गीत की बात नहीं है , वरन ऐसे कई गीत हैं जो अपनी छाप छोड़ गए ! आज फूहड़ता पैसा कमाने का अच्छा साधन है ! क्या आप फूहड़ता पसंद करते हैं ? इस देश का यह एक कडवा सच है जिसे कोई बदल नहीं सकता ! आज गली - नुक्कड़ भद्दे गीत लिखने वाले बैठे हैं ठीक उसी प्रकार उन्हें सुनने और पसंद करने वाले ! आज के फूहड़ गीत इस कदर हमारे दिलों -दिमाग में घर कर गए है , जिनके आगे बच्चों को राष्ट्रगीत , राष्ट्रगान मामूली से लगते हैं !
क्या शीला - मुन्नी के साथ साथ आपको राष्ट्रगीत , राष्ट्रगान आता है ? यह बात आप अपने दिल पर हाँथ रख कर बोलें , यदि नहीं आता है तो पहले इसे कंठस्थ कीजिये ! कहीं किसी दिन आपके बच्चे ने आपसे पूंछ लिया की ये राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान क्या होता है ? और इसे कैसे गाते हैं ? उस वक़्त कहीं आपको शर्मिंदा ना होना पड़े !
धन्यवाद
क्या शीला - मुन्नी के साथ साथ आपको राष्ट्रगीत , राष्ट्रगान आता है ? यह बात आप अपने दिल पर हाँथ रख कर बोलें , यदि नहीं आता है तो पहले इसे कंठस्थ कीजिये ! कहीं किसी दिन आपके बच्चे ने आपसे पूंछ लिया की ये राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान क्या होता है ? और इसे कैसे गाते हैं ? उस वक़्त कहीं आपको शर्मिंदा ना होना पड़े !
धन्यवाद
बहुत गहरा प्रश्न किया है आपने।
ReplyDeleteअमां तुम किस वतन के हो कहाँ की बात करते हो ?
ReplyDeleteअनारकली चली तो क्या अब तो घर से माएं चलीं ....
सर आपने तो एक प्रस्न चिन्ह (?) खड़ा कर दिया हें और मेरा मानना हें की शायद ही इसका कोई जबाब दे सके | लेकिन शायद अभी भी स्कूलों में हमारे राष्ट्रगीत को गाया जाता हें पर यह बात ओर हें कि हमें मुन्नी,शीला,अनारकली ,जलेबी बाई,चिकनी चमेली,जेसे गीत याद रहते हें और ये दुर्भाग्य की बात हें कि राष्ट्रगीत भूल जाते हें |
ReplyDeleteसर आपने जो लिखा उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया,लेकिन आजकल का चलन ही कुछ इस प्रकार का हो गया है की जन-गण-मन और वन्दे-मातरम् की जगा मुन्नी और शीला ने ले ली है.समय के साथ चलने मे कोई बुराई नहीं लेकिन हमें अपनी सभ्यता नहीं भूलनी चाहीये.
ReplyDeleteवाह - आज आपके लेखन का एक नया कलेवर सामने आया.
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट ..!
ReplyDeleteनवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएँ|
क्या शीला - मुन्नी के साथ साथ आपको राष्ट्रगीत , राष्ट्रगान आता है
ReplyDelete.....गहरा प्रश्न किया है आपने....संजय भाई
यही तो दुर्भाग्य है की हम इन फूहड़ फ़िल्मी गीतों को सुनते सुनते अपने राष्ट्रगीत भूल जाते है
सार्थक आलेख
नव संवत्सर की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत सटीक सोच लिए है प्रस्तुत आलेख ... विचारणीय प्रश्न
ReplyDeleteBilkul Sahi hai...
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