Thursday, March 1, 2012

ऊंची दुकान पर बिकते फीके पकवान ..... ( ऊंचे लोगों की ये कैसी पसंद ) .... >>> संजय कुमार

" ऊंची दुकान-फीके पकवान " ये कहावत हमने कई बार सुनी है ! तात्पर्य जिसकी जरुरत से ज्यादा प्रशंसा   की गयी हो और वो प्रसंशा के लायक ही ना हो ! ऐसा हमारे देश में आये दिन होता है ! आपने टेलीविजन पर एक विज्ञापन जरूर देखा होगा " ऊंचे लोग - ऊंची पसंद " मैं ऐसे सभी ऊंचे लोगों को नमन करता हूँ जो ऊंची सोच रखते हैं , जो ऊचे ख्वाब देखते हैं और ऊंचा करते हैं ! किन्तु आजकल ऊंचे लोग कर क्या रहे हैं ? गुटखा - तम्बाखू  बेच रहे हैं ! शराब - बियर के ब्रांड के  नाम पर सोडा का प्रचार कर रहे हैं ! कहीं " मुंह में रजनीगंधा - क़दमों में दुनिया "  ! कहीं ऐसा ना  हो  गुटखा खाने वालों को , "  क़दमों में दुनिया " की जगह  एक दिन इस दुनिया से ही ना जाना पड़ जाये ! आज से कुछ बर्ष  पहले सरकार ने एक बड़ा  कदम उठाया था कि , हिंदी फिल्मों में और टेलीविजन पर ,  अब हाँथ में सिगरेट  लिए ना तो कोई हीरो दिखेगा और ना ही कोई विलेन , क्योंकि इस तरह की चीजों से आम जनता के बीच  इन चीजों को बढावा मिलता है ,  और इसका सीधा - सीधा प्रचार भी होता  है ! शायद सरकार अपनी ये बात  भूल गयी है ! अब शायद फिल्मों में  हीरो सिगरेट ना पीता हो, गुटखा ना खाता हो ,  लेकिन आज टेलीविजन पर प्रतिदिन  कई बार  वियर , सोडा , पान - तम्बाखू और गुटखा जैसे  विज्ञापन बार बार दिखाए  जा रहे हैं  ! आज नए और पुराने अभिनेता टेलीविजन पर इन चीजों का नए- नए रूप में प्रचार कर रहे हैं ! या तो इन लोगों के पास काम नहीं है या फिर पैसा ही इनके लिए सब कुछ है !  क्या इस तरह के  विज्ञापनों से सरकार आम जनता का भला कर रही है या फिर बुरा ?  यह तो हम नहीं जानते किन्तु हमारा युवा जरूर इन विज्ञापनों कि तरफ आकर्षित होता है या फिर हो  रहा है ! क्योंकि आज का युवा कहीं ना कहीं कुछ अभिनेताओं या बड़ी सेलिब्रिटी का अनुसरण  करता है ! आज का युवा यह  जानना चाहता है कि टी व्ही पर आने वाला  वियर का विज्ञापन आखिर क्या चाहता हैं ?  क्या वह इनका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे या फिर इनका बहिष्कार स्थिति  असमंजस में  है ! दूसरी ओर  गुटखों के विज्ञापन ये मसाला , वो  पान बहार , दुनिया भर के विज्ञापन आज हम सब अपने परिवार के साथ बैठकर देखते हैं ! जब परिवार का सबसे अबोध बच्चा इस विज्ञापन के बारे में  पूछता  है तो उस वक़्त माँ-बाप को भी  समझ नहीं आता कि उसके प्रश्न का वो  क्या जबाब दें !  क्योंकि टेलीविजन पर जो विज्ञापन आते हैं उनका मकसद तो हमेशा यही होता है कि आप दिखाए जाने वाले  विज्ञापन के उत्पाद का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करें !  तो फिर हम इसका उपयोग क्यों ना करें ?  जब टेलीविजन पर एक विज्ञापन देखा जिसमे गुटखा और तम्बाखू से होने वाली बीमारियों को दिखाया जा रहा था  जिसमे गुटखा के उपयोग के बाद मुंह में हुए केंसर को दिखाया गया और दिखाया गया एक भयानक और डरावना चेहरा , जिसे देखकर कोई भी कमजोर दिल का आदमी डर जाए ! जब  यह विज्ञापन समाप्त होता है तभी दूसरा विज्ञापन आता हैं जिसमे एक गुटखा 
कंपनी का प्रचार आता है  और प्रचार में  दिखाया जाता है कि,  आप अपने पूरे परिवार के साथ खाएं ये पान मसाला  ! सरकार भी यह सब देख रही है या यूँ कहें कि,  देखकर बस यूँ ही अनजान बन रही है !
सच ............
सरकार नहीं चाहती इन विज्ञापनों को बंद करना  क्योंकि यह विज्ञापन सरकार को मोटी रकम जो अदा करते हैं ! आज देश में  सरकार को सबसे ज्यादा आमदनी इन नशीले पदार्थों के विक्रय से ही होती है , तो फिर सरकार क्यों चाहेगी इन विज्ञापनों को  बंद करवाना !  इन विज्ञापनों को देखकर जितने ज्यादा युवा लड़के और लड़कियां इनकी तरफ आकर्षित होंगे ,  उतनी ही ज्यादा इनकी विक्री बढेगी  और जितनी ज्यादा बिक्री उतना ज्यादा फायदा सरकार को या यूँ कहेंगे सरकार के आला मंत्रियों को क्योंकि इनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इनको भी तो जाता है !  तो फिर आप ही बताएं शराब , सिगरेट , तम्बाखू और गुटखा हैं ना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक .... माफ़ करना हम आम जनता के स्वास्थ्य के लिए नहीं बल्कि सरकार के स्वास्थ्य लिए फायदेमंद ! अगर यही आलम रहा तो सरकार एक दिन ....हमारे सामने, हमारे लिए मौत बेचेगी और हम लोग बाज़ार से मौत खरीद कर लायेंगे. और वो दिन अब  ज्यादा दूर नहीं  ( एक बार अवश्य सोचें ) 



धन्यवाद

9 comments:

  1. मुँह के कैंसर के पहले कदमों में दुनिया लाना स्वाभाविक है...

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  2. सरकार नहीं चाहती इन विज्ञापनों को बंद करना क्योंकि यह विज्ञापन सरकार को मोटी रकम जो अदा करते हैं ! आज देश में सरकार को सबसे ज्यादा आमदनी इन नशीले पदार्थों के विक्रय से ही होती है , तो फिर सरकार क्यों चाहेगी इन विज्ञापनों को बंद करवाना !
    Bilkul sahee kaha!

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  3. सटीक मुद्दा...

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  4. बहुत सही लिखा है आपने ...सरकार के खाने के और दिखाने के दांत अलग -अलग हैं .

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  5. कथनी और करनी के अंतर को बखूबी रेखांकित किया है आपने.
    हार्दिक बधाई..

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  6. हम जानते हें विज्ञापन में जो दिखाया जाता हें बह हमेशा सच नहीं होता हें क्यों की हरचीज जो चमकती हें बह सोना नहीं होती | हमारा यह मानना हें की हम कुद व्यक्ति इन नशीले पधार्थो का सेवन न करे तो नशीले पधार्थो की दुकान कुद व कुद बंद हो जायेगीं क्यों की दुकान घर चल कर नहीं आती | और फिर बो दुकान गवर्मेंट चलाये या आम आदमी क्या फर्क पड़ता हें |

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  7. बिलकुल सही और सटीक आलेख, क्योकि आज सरकार की कथनी और करनी में जो अंतर हम देख रहे हैं। वह वाकई एक बहुत ज्यादा चिंतनीय और विचारणीय मुद्दा बन चुका हैं।

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  8. आदमी यदि व्‍यसन मुक्‍त हो जाए तो दुनिया न जाने कहाँ पहुँच जाए। लेकिन आदमी नामक जीव बिना व्‍यसन के नहीं रहता है। व्‍यसन करना अपनी शान समझता है।

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