Wednesday, September 29, 2010

अब फैसला होने को है ( ना मंदिर बने ना मस्जिद ) ..... >>> संजय कुमार

जैसा की आप लोग जानते हैं ! आज पूरा देश कोर्ट के फैंसले का इन्तजार कर रहा है ! वह फैंसला जो देश में बहुत कुछ उथल-पुथल कर सकता है ! मंदिर-मस्जिद को लेकर आज पूरा देश और देश के सारे मंदिर-मस्जिद, गली मोहल्ले सब कुछ पुलिस छावनी में बदल गया है ! डर है कहीं हिन्दू-मुस्लिम के बीच दंगा ना हो जाए ! ऐसा सोचना गलत भी नहीं हैं ! क्योंकि इस देश में आज ऐसे हजारों लोग भरे पड़े हैं , जो धर्म को मुद्दा बनाकर लोगों को आपस में लड्बाने का माद्दा रखते हैं ! और ऐसा हो भी सकता है ! क्योंकि इस देश में पैसों के लिए अपनों का खून बहाने बालों की कमी नहीं हैं ! धर्म का नाम लेकर अपने फायदे की रोटियां सेंकने बालों की कमी नहीं है ! हिन्दू कह रहा मंदिर बने, और मुस्लिम कह रहा मस्जिद ! अगर मंदिर बनता है तो शायद कुछ मुस्लिम नाराज हो जाएँ और मस्जिद बनी तो कुछ हिन्दू नाराज हो जाएँ ! और शायद कुछ को फर्क नहीं पड़ता कुछ भी बने ! एक आम आदमी जो सुबह से लेकर शाम तक रोज कुआँ खोदकर पानी पीता है , उसे नहीं मतलब कुछ भी बने या ना बने ! उसे तो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए दो वक़्त का खाना चाहिए ! किसी एक ना एक के पक्ष - विपक्ष में फैसला जरूर आएगा ! मंदिर- या मस्जिद बनने पर एक पक्ष जीवन भर अपने मन में एक विरोध की भावना रखेगा ! और अपने ही भाइयों को अपना दुश्मन समझेगा और यही भावना भविष्य में कभी भी एक बड़े बिस्फोट में बदल सकती है ! हम सभी को बहुत ही संयम से काम लेना होगा ! उन ताकतों से लड़ना होगा जो हमें उकसाकर अपने ही भाइयों का खून बहाने और आपस में लड़ाने के लिए मजबूर करती हैं !

पिछले कई वर्षों से हमारा देश हिन्दू -मुस्लिम को लेकर विवादों में रहा है ! देश में कुछ असमाजिक तत्वों ने हिन्दू और मुस्लिम को एक मुद्दा बना लिया हैं ! मंदिर या मस्जिद बनी तो कहीं ना कहीं इसका गलत फायदा उठाकर देश के दुश्मन देश में उपद्रव करवा सकते हैं ! बीच का कोई रास्ता नहीं निकल रहा ! में कहता हूँ ना मंदिर बने और ना मस्जिद, वहां पर सरकार को एक मधुशाला खोल देनी चाहिए ! अब यही एक रास्ता है ! क्योंकि दूर-दूर तक देखने पर यही एक जगह नजर आती है ! जहाँ ना तो कोई हिन्दू होता है और ना कोई मुसलमान, ना कोई छोटा और ना कोई बड़ा, ना कोई छोटी जात का और ना ही बड़ी जात का ! यहाँ पर जो भाईचारा है वह कहीं भी देखने को नहीं नहीं मिलता ! यहाँ तो दुश्मन भी गले मिल जाते हैं ! लोग यहाँ बैठकर आपस में कम से कम अपने सुख-दुःख तो बाँट लेते हैं ! ना मंदिर के लिए लड़ते हैं और ना मस्जिद के लिए ! यहाँ आने बाला हर इंसान सभी मजहबों से बढकर होता है ! यहाँ लोगों का ना तो मान होता है और ना ही स्वाभिमान ! मिलते हैं ऐसे गले जैसे वर्षों के बिछड़े हो ! जब यहाँ इतना भाईचारा है तो बाहर क्यों नहीं ?

फैंसला सरकार का जो भी हो देश में शांति हो , किसी अपने पराये की जान ना जाए ! हम सब फैसले का सम्मान करेंगे और देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता को बरक़रार रखेंगे !
जय राम- जय-रहीम .................. जय राम- जय-रहीम .....................जय राम- जय-रहीम

धन्यवाद

3 comments:

  1. हम्म.. हर व्यक्ति की यही तकलीफ है आज संजय जी.. अब कहें भी तो क्या? पर मधुशाला????

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति। भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
    मध्यकालीन भारत धार्मिक सहनशीलता का काल, मनोज कुमार,द्वारा राजभाषा पर पधारें

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