Saturday, March 13, 2010

आज के जल्लाद .....या मजबूरी

जब मैंने आज का अख़बार उठा कर देखा तो पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया और फिर शर्म, अख़बार मैं एक चित्र था जिसमें एक शिक्षक अपने मुर्गा बने छात्र को लात से मार रहा था , उस छात्र का कसूर सिर्फ इतना था की वोह रोज स्कूल नहीं आता था , यह घटना कन्नोज के एक कोंवेन्ट स्कूल की है, इस तरह की और भी ख़बरें आपने पड़ी होंगी, कहीं शिक्षक कमरे मैं बंद कर देते हैं , तो कभी किसी और तरह से मासूम छोटे बच्चों को प्रताड़ित करते हैं , क्या है ये सब क्या हो गया इन गुरूओंको जो बच्चों का भविष्य बनाते हैं , आज इस तरह से अपने महत्व को पूरी तरह ख़त्म कर रहे हैं ,
जब हम लोग स्कूल मैं पड़ते थे, तो उस समय हम सब लोग शिक्षक को भगवानका दर्जा देते थे, और शिक्षक भी अपने छात्र को हमेशा अच्छी सीख और अच्छी ज्ञान की बातें बताते थे, कहते थे की अगर आपको सच्चा गुरु कहीं मिल जाये तो आप अपने जीवन मैं हमेशा उन्नति करेंगे हर जगह आपका सम्मान होगा , और छात्र भी अपने गुरु के सम्मान मैं वह सब कुछ करने को हमेशा तैयार रहते थे जो कभी माता - पिता के लिए भी नहीं कर पाते थे , वह समय अब कभी लौट कर नहीं आएगा ..................

जैसे जैसे समय निकलता गया, और शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया सारी परिभाषाएं बदल गयी हैं! जहाँ शिक्षक पहले मुफ्त मैं ज्ञान बांटते थे वहीँ आज हर चीज की कीमत वसूल कर रहे हैं! ये तो कुछ भी नहीं हैं कुछ शिक्षकों ने तो इतने शर्मसार कर देने बाले काम किये हैं जिन्हें आज हम लोग बयां करने से भी कतराते हैं ! चाहे वह पटना के प्रोफ़ेसर बटुकनाथ हों जिन्होंने अपनी बेटी की उम्र की छात्रा से प्रेम सम्बन्ध बनाये हों ! या कुछ शिक्षक टूशन के नाम पर छोटेछोटे बच्चों के साथ कुछ आपराधिक कृत्य करते हैं ........ शर्मसार हैं हम सभी इस तरह की घटनाओं से ..... कलंकित हो गयी अपनी परम्पराएँ , अपने गुरुओं का मान सम्मान .................

इन सब के पीछे कौन जिम्मेदार है, क्या हम हैं इसके जिम्मेदार ? जी हाँ कहीं ना कहीं हम लोग ही हैं इसके जिम्मेदार , हम लोगों की अपेक्षाएं आज जरूरत से ज्यादा बढ़ गयी हैं , हम इस अंधी दौड़ मैं अपने बच्चों को वो सब कुछ दिलवाना चाहते हैं जो उनकी उम्र को देखते हुए ठीक नहीं है, आपके चार साल के बच्चे को वोह सब आना चाहिए, इंग्लिश मैं बात करना, कंप्यूटर की पूरी जानकारी , संगीत मैं भी होशियार , उसे डांस भी आना चाहिए, अरे भाई वो बच्चा है, जब वोह इतना प्रेसर नहीं झेल सकता तो उसे पदाने बाला शिक्षक इतना प्रेसर कैसे झेल सकता हैं, और शिक्षक कर बैठता हैं इस तरह की हरकत, हमें रोकना होगा अपने आप को इस अंधी दौड़ मैं दौड़ाने से ! तभी इस तरह की घटनाएँ बंद होंगी ..................

कई शिक्षक हैं जो आज की शिक्षा प्रणाली से खुश नहीं हैं , वह भी चाहतें हैं अपना मान-सम्मान बचाना
धन्यबाद

4 comments:

  1. Baat to sahi hai.. Batuknath ne to nihsandeh kalankit kiya is rishte ko aur na jane kitne batuknath hain jo surkhiyon me nahin aa paye..
    lekin akhbar wale chitra ka kya pata koi aur bhi pahloo ho kaha nahin ja sakta..
    vaise kuchh to akhbaar wale bhi til ka taad banate hain..:)
    Jai Hind... Jai Bundelkhand...

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  2. aआपकी हर बात से सहमत हूँ। मगर बिल्ली के गले मे घँटी कौन बान्धे? हालात तो दिन ब दिन बदतर होते जा रहे हैं।
    संजय जी आपको जन्मदिन की ढेरों बधाईयाँ व आशीर्वाद।

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  3. dear dipak ji main aapki baat se sahmat hoon, ki aaj akhbar bhi sab kuchh sach nahi dikhata,
    mera sirf itna matlab hai ki jis tarah ki aaj ki shiksha pranli hai, usase is tarh ki samsyaye utpann ho rahi hain,

    aap sabhi ka dhanyabad

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