Wednesday, March 24, 2010

मंदिर या मस्जिद, बस इक इन्सान चाहिए ..............

पिछले कई वर्षों से हमारे देश मैं एक मुद्दा चल रहा है, मंदिर या मस्जिद , हिन्दू और मुस्लमान ! यह एक ऐसा मुद्दा है, जो तब तक ख़त्म नहीं होगा, जब तक इस धरती पर इन्सान है ! क्योंकि इस तरह के मुद्दे या मजहबी वातावरण या हिन्दू , मुस्लिमों को लेकर चलाया जा रहा ये धार्मिक युद्ध आज के इंसानों द्वारा निर्मित है ! यह सब तो आज के कुछ मतलब परस्त लोगों ने इस देश मैं ऐसा माहोल बना दिया है, वर्ना यह देश तो हमेशा से हिन्दू, मुस्लिम एकता और भाईचारे के लिए जाना जाता है ! ना की हिन्दू , मुस्लिम के लिए ! जब एक इन्सान के नजरिये से सोचा तो ये महसूस किया , की यह सब कुछ नहीं , कुछ धर्म परस्त, मतलब परस्त लोग दिखाबा कर रहे हैं ! अपने को कट्टर धर्माब्लाम्बी कहलाने का .................


जब मैंने एक साधारण हिन्दू और मुस्लिम से पूंछा की, आज देश मैं मंदिर, मस्जिद और हिन्दू , मुस्लिम को लेकर जो अफरा-तफरी का माहौल है, तो इस पर आप क्या कहना चाहेंगे, तो वह बोले, आज देश मैं इतनी महगाई, लूट खसोट, बेईमानी और भ्रस्टाचार है, की आज की मासूम जनता तो इन सब से पहले ही मर रही है ! उसे कहाँ इन सब बातों से मतलब होता है ! हमारा जीवन तो गुजर बसर और जीवन की आपाधापी मैं ही निकल जाता है ! तो क्या मंदिर क्या मस्जिद ! यह सब तो धर्म की आग पर रोटियां सेंकने बालों का काम है ! हम वह हिन्दू मुस्लिम हैं जो सभी धर्मों को एक समान द्रष्टि से देखते हैं! हम ईद पर अपने मुस्लिम भाइयों के गले लगते हैं उनके यहाँ , ईद की सिवैयां खाते हैं और उनका मान बढ़ाते हैं, उसी तरह मुस्लिम भाई हम हिन्दुओं के पर्व मैं शामिल होते हैं, चाहे वह होली हो या दिवाली हर पर्व मैं ये शामिल होकर हम लोगों का भी मान बढ़ाते हैं !

पर यह सब हिन्दू मुस्लिम नहीं एक इन्सान हैं ! हम लोग तो राम-रहीम दोनों को मानते हैं ! हम अजमेर शरीफ जाते हैं , तो शिर्डी के साईं भी एक साथ जाते हैं ! हमें तो मंदिर चाहिए और ही मस्जिद ! हमें तो सिर्फ इक इन्सान चाहिए , जिसमें इंसानियत हो , और जो इन्सान को इन्सान समझे

जय राम ----जय रहीम

हम सब भाईचारा चाहते हैं , आपस मैं मिलकर रहना चाहते हैं ! लड़ाओ

हमें अपने ही भाइयों से ! हमें इन्सान रहने दो ! मंदिर मस्जिद, बस इक इन्सान चाहिए

जब मैंने दोनों की बात सुनी तो यह महसूस किया, की वाकई मैं अगर आज ये मुद्दे उठाना बंद हो जाएँ तो हम और हमारा देश भाईचारे की वह मिशाल कायम कर सकते हैं, जो विश्व मैं कहीं देखने नहीं मिलेगी ! जब हम सब एक साथ उठते बैठते हैं, तो कहाँ रह जाता है फर्क , मंदिर और मस्जिद, हिन्दू मुस्लिम का


आप सभी अपने दिल पर हाँथ रखकर महसूस करें, तो आप एक अच्छा इन्सान चाहेंगे, हिन्दू और मुस्लिम,और कहेंगे की हम इन्सान हैं , और हमें समझने बाला बस इक इन्सान चाहिए .........................बस इक इन्सान चाहिए ................................


धन्यवाद

6 comments:

  1. पहले यह मुद्दा फिर वह मुद्दा ऐसा कुछ नही होता है। कोई अक्रांता आ कर हमारे मेंदीरो को तोड कर मस्जीद बना दे और हम उसे वापस मंदीर बनाने में इतने साल व्यर्थ गवाँ दें, यह उचित नही है। यह मुद्दा हमारे स्वाभिमान और अस्मिता से जुडा है। कोई आपकी पत्नी को जबरन उठा कर ले जाए, और फिर जब उसे वापस मांगे तो कोई आपको यह कह समझाए कि यार पहले बच्चो के खानेपीने, उनकी पढाई और कपडे की परवाह करो - अपनी पत्नी के बारे मे बाद मे सोचना तो आपको कैसा लगेगा। आपकी बात भी मुझे ऐसी ही लगी ........

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  2. हम सब भाईचारा चाहते हैं , आपस मैं मिलकर रहना चाहते हैं ! न लड़ाओ
    bilkul sahi keh rahe hai aap

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  3. महादेव का नाम लेके लिखने वाला तू जो भी है निहायत ही घटिया और कायर है.. इंसानियत कि बात तुझे समझ नहीं आती सूअर.. अगर तू सामने होता तो तेरे जुबां और अँगुलियों को तेरे शरीर में नहीं रहने देता मैं. तूने अपने जीवन में जितनी गालियाँ सुनीं हों वो सब मेरी तरफ से अपने लिए सुन ले क्योंकि मैं यहाँ वो लिख कर ब्लॉग ख़राब नहीं कर सकता..
    हिम्मत है तो फोन कर मुझे तो तुझे बताता हूँ और इलाज़ करता हूँ तेरे दिमाग का.. मेरे न. पर काल कर तो ज़रा..००४४-७५१५४७४९०९ तेरे को घर में आके मारूंगा तेरे.
    संजय जी लेख इंसानियत की तरफदारी करता हुआ है और सही है..

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  4. dipakji mahadev jaise hi kuchh log hain jo
    insaniyat ke naam pe dhabba hain, jo shayad sach bardast nahin kar pate

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  5. dipk mshal jee
    aapko kyaa hua
    sanjay jee
    ektaa ki baat achi hai lekin pahl dono taraf se honi chahiye ham pahl karte hai or ve dange

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  6. इंसानियत का मतलब व धर्मों के अनुसार सबका फर्ज है की गिरे हुए को उठाना ,दीन दुखियों की मदद करना ,बीमार का इलाज कराना ।
    http://dailymajlis.blogspot.in/

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