कोंन कहता है कि हम हैं अकेले
ये वहती नदियाँ, ये ठहरे पर्वत, हैं किसके
ये जमीं ये आसमान , ये चलती पवन, हैं किसके
ये वहता झरना ये, ऊंचे दरख़्त, है किसके
सूरज कि तपिश, शीतलता चन्द्रमा कि
ये टिमटिमाते तारे, ये सारा ब्रह्माण्ड, हैं किसके
ये सोंधी मिट्टी कि खुशबु , ये बारिस कि बूँदें , हैं किसके
कोंन कहता है कि हम हैं अकेले ...............
ये माँ का आंचल ,पिता का प्यार
अपनों का साथ , भाई बहन का प्यार
ये सारा संसार, खुशियाँ और गम , हैं किसके
ये अपना मजहब, जातिऔर धर्म
नफरत की दीवार, ये सरहदें , हैं किसकी
ये ऊंचे शिवालय , गगनचुम्बी मस्जिदें , हैं किसके
ये संघर्ष, ऊंची उठती आवाज , हैं किसके
ये सात सुरों का संगीत, इन्द्रधनुष के रंग सात, हैं किसके
अब ना कहना की हम हैं अकेले, जरा नजरें उठाकर देखें
तो लगता सब कुछ अपना, नहीं कोई पराया
आज के वातावरण से हर किसी को लगता है की, नहीं है कोई हमारा
सिर्फ दिल की सुने, और दिल कभी झूठ नहीं बोलता ............
अब कौन कहेगा की हम हैं अकेले .......................
धन्यबाद
waaaaaaah bahut badhiya kavita...sach me man me ullas bhar diya. badhayi.
ReplyDeleteBahut Bhadiya Baat kahi sahab aapane ...itani sari chize hai hamari zindagi me ham se judi, ham akele kaise ho sakate hai...Sundar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteSab kuchh simet diya ek hi kavita me.. ek aur behatreen nazrana.. :)
ReplyDeleteAap Sabhi Ka Dhanyabad
ReplyDeleteBahut Bhadiya Baat kahi sahab aapane ...itani sari chize hai hamari zindagi me ham se judi, ham akele kaise ho sakate hai...Sundar!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना । आभार
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