परिणय की सच्चाई से
अंजान उस
बालिका को
दुल्हन बना दिया गया था
उसे ये सब खेल लग रहा था
हांथों में चूड़ियाँ
मांथे पर बिंदिया
लम्बा घूँघट डाल
उसे उल्लास हो रहा था !
क्योंकि उसे पता ना था
कि ,
मांथे की बिंदिया
उसकी हर इक्षा पर अंकुश
बन जाएगी
हांथों की चूड़ियाँ
बेड़ियाँ बन जाएगी
लम्बा घूँघट
आजादी और उसके
बीच की दीवार
बन जाएगी !
जब तक उसे समझ आई
काफी देर हो चुकी थी
वो एक और जिम्मेदारी में
बंध चुकी थी
वो " माँ " बन चुकी थी
जब वो ममता में बंध गयी
तो सारी तकलीफें
सहन करना उसकी
" मज़बूरी " हो गयी
जिन्हें वो अपनी
किश्मत का लिखा , मानने लगी !
बच्चे बड़े हुए
फिर एक " वक़्त " ऐसा आया
उसे लगा कि , अब वो
इन जिम्मेदारियों से निपट गई
सोचा अब जरा
खुली हवा में सांस लूंगी
और थकान मिटाऊंगी
पर जिसके साथ गाँठ जोड़ वह आई थी
वह पैरों की " बेड़ियाँ " बन गया , वो पलंग पकड़ गया
और वो फिर से
थकान लिए सेवा में लग गयी
बिलकुल तन्हा बिलकुल अकेली !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
ओह! माँ का सारा दर्द उकेर दिया...
ReplyDeletesach me bahut saara dard shabdo me dikh raha...
ReplyDeleteabhar..
Bilkul tanha ,bilkul akeli....aisee hee zindagee hotee hai!
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ReplyDeleteएक औरत के जीवन का सच
ReplyDeleteसुंदर भावनाओं की अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसमय साँस नहीं लेने देता है, बचपन को संरक्षित करना आवश्यक है।
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ReplyDeleteजीवन की बंदिशे ...कभी खत्म नहीं होगी ..
ReplyDeleteएक गहन सच्चाई लिए ... सशक्त अभिव्यक्ति ।
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