Monday, September 17, 2012

काँटा लगा ....... हाय लगा .........>>> संजय कुमार

कांटा , अगर इंसान के शरीर में कहीं भी चुभ जाये तो खून तो निकलता ही है साथ में दर्द भी बहुत और कई दिनों तक देता है ! सच कहूँ तो कोई भी इंसान अपने जीवन में किसी भी तरह के काँटों को पसंद नहीं करता , और ये होना भी नहीं चाहिए वर्ना पूरा जीवन बर्बाद और नीरस हो जाता है ! किन्तु काँटों की परिभाषा हर किसी के लिए अलग मायने रखती है ! यहाँ तो हर फूल के साथ कांटे है  , सच तो ये है कि हर ताज में होते हैं कांटे या यूँ भी कह सकते हैं कि , काँटों से  बना होता है हर ताज ! अरे भई देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी देखने और सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है किन्तु कोई प्रधानमंत्रीजी से तो पूंछे , कांटे क्या होते हैं ? मालूम चल जायेगा ! देश की सरकार के लिए तो आतंकवाद , नक्सलवाद , घोटाले , मेंहगाई , लोकपाल , अन्ना , रामदेव , विपक्ष , कोयला , 2जी , बहनजी  और दीदी सबसे बड़ा काँटा हैं ! ये वो कांटे हैं जो हमारी सरकार को 24 घंटे चुभते रहते हैं सरकार बहुत कोशिश करती है कि  ये कांटे उसके शरीर से निकल जाएँ किन्तु ये इतने पैने और बिषैले हो गए हैं जो सरकार की जान लेने के बाद ही निकलेंगे , एक सच ये भी है कि हमें पैने और नुकीले कांटे को निकालने के लिए उससे भी पैना और नुकीला काँटा लाना होगा ( जब बोया बीज बबूल का तो फूल कैसे खिलें )  ........ अरे भई जहर को जहर मारता है .... लोहे को लोहा काटता है ! बेईमान , घूसखोर , भ्रष्टाचारियों के लिए सबसे बड़ा काँटा ईमानदारी और सज्जन पुरुष है जो कहीं न कहीं उनको अपना काम ( भ्रष्टाचार ) नहीं करने देते ! हमारे देश की तरक्की दुश्मन देशों को काँटों की तरह चुभती है ! साइंस में तरक्की , खेलों ( किर्केट ) में दबदबा , विदेशों में भारतियों की तरक्की , ( ऊंचे पदों पर आसीन ) कई देशों को काँटों की तरह चुभते हैं ! रुढीवादी , परंपरावादी समाज जहाँ पुरुष ही सब कुछ होते हैं ऐसे माहौल में किसी भी नारी का  वर्चस्व उसकी तरक्की इस समाज को काँटों की तरह चुभती है ! इस देश में कई ऐसे लोग भी है जो जान बूझकर काँटों से उलझते हैं ...... इस बात पर मुझे जगजीत सिंह जी एक ग़ज़ल याद आती है  " काँटों से दामन उलझाना मेरी आदत है , दिल में पराया दर्द बसाना मेरी आदत है "  ऐसे भी कई लोग है जो कभी भी अपने बारे में नहीं सोचते वो हमेशा दूसरों की तकलीफ दूर करने में ही अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं ! वो सच्चे समाज सेवक जो सिर्फ सेवा ही करना जानते हैं और उनके लिए सेवा ही कर्म और  धर्म कहलाता है ! देश के लिए लड़ने वाले सच्चे पुरुष , भ्रष्टाचार और घोटालों का विरोध करने वाले , इंसानियत  के लिए लड़ने वाले अपनी जान की परवाह किये बिना दूसरों की जान बचाने वाले लोग भी हैं जिनसे आज ईमानदारी , सच्चाई , देशभक्ति और  मानवता जिन्दा है ! 
काँटा शब्द के मायने और भी हैं ....... सच कहूँ आज के युवाओं को बहुत भाते हैं कांटे .... मैंने गलत तो नहीं कहा  ( क्या काँटा है ) हमने तो कई बार युवाओं के मुंह से सुना है , कब ?  जब किसी तीखी और खूबसूरत लड़की को हमारे बिगड़े सहजादे देख लेते हैं तो ये उनकी तारीफ़ में कुछ इन्हीं अल्फाजों का इस्तेमाल अपने यार दोस्तों के बीच करते हैं ! हमारे नन्हे-मुन्हे बच्चों को भी खूब भाते हैं कांटे ......... अगर नहीं भाते तो भई नुडल्स और मैगी कैसे खाते ...... एक बार गब्बर ने भी तो शोले में कहा था ...... " बहुत कँटीली नचनिया है रे "  कुछ भी हो कांटे किसी को भी पसंद नहीं होते ...... काँटों से इंसान का शरीर ही नहीं अपितु उसकी आत्मा भी आहत  होती है ! 
मैं उन लोगों से निवेदन करता हूँ कि जिनमें इंसानियत लगभग खत्म हो चुकी है !  हमारा संयुक्त परिवार कोई काँटा नहीं है ......... हमारे संस्कार कोई कांटे नहीं है ........ हमारे बेसहारा माँ-बाप कोई कांटे नहीं हैं ...... एक अजन्मी बेटी हमारे लिए कोई काँटा नहीं है ....जिन्हें हम अपने जीवन से बिना बात बस यूँ ही निकाल दें !

धन्यवाद  

6 comments:

  1. काँटा तो फिर भी निकालना होगा।

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  2. sarthak ...
    par sahi kaha praveen jee ne
    kanta to nikalna hoga..

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  3. भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .

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