आज इंसानों और जानवरों के बीच,
अंतर ढूँढना पड़ता है !
" संसद भवन " की भीड़ में से , सच्चा राजनेता ढूँढना पड़ता है !
अपनों के बीच रहते हुए ,
अपनापन ढूँढना पड़ता है !
हैं दोस्त हजार फिर भी ,
एक दोस्त ढूँढना पड़ता है !
रोज-रोज होते झगड़ों में हमें
प्यार ढूँढना पड़ता है !
पति-पत्नी को एक-दुसरे में,
विश्वास ढूँढना पड़ता है !
आज लोग " गीतिका " तो कहीं " भंवरी "के लिए
इंसाफ ढूँढ रहे हैं!
यहाँ तो देश की सर्वोच्च अदालतों में,
इंसाफ ढूँढना पड़ता है !
इस कलियुग में माँ-बाप को ,
"श्रवण कुमार " ढूँढने पड़ते हैं !
बढ़ गए पाप, अत्याचार और बुराई कि,
अब अच्छाई ढूँढनी पड़ती है !
बेईमानों के बीच रहते हुए ,
ईमानदारी ढूँढनी पड़ती है !
गली - गली बैठा है खुदा फिर भी ,
खुदा की खुदाई ढूँढनी पड़ती है !
अनाथ , दर- दर की ठोकर खाते ,
बच्चों को माँ की ममता ढूँढनी पड़ती है !
पश्चिमी सभ्यता में ढले लोगों में,
अब हमें अपनी सभ्यता ढूँढनी पड़ती है !
हैं इंसान करोड़ों में फिर भी ,
इंसानों में इंसानियत ढूँढनी पड़ती है !
देखों चहुँ ओर , भ्रष्टाचारी के गड्ढे हैं
अब गड्ढों में हमें सड़क ढूँढनी पड़ती है !
धन्यवाद
अपवादों के दिन आ गये हैं।
ReplyDeleteअपनों के बीच रहते हुए ,
ReplyDeleteअपनापन ढूँढना पड़ता है ! हैं दोस्त हजार फिर भी ,
एक दोस्त ढूँढना पड़ता है ! रोज-रोज होते झगड़ों में हमें
प्यार ढूँढना पड़ता है ! पति-पत्नी को एक-दुसरे में,
विश्वास ढूँढना पड़ता है !
bahut gehri bat kah di aapne.
अपने तो अब नाम के ही हैं!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
sach hai..
ReplyDeleteजहाँ कुछ नहीं होता
ReplyDeleteखोज वहीँ चलती है
वाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeletejaayaj chintaa hai , achchhee rachanaa
ReplyDeleteऔर ढूंढते रह जाओगे वाली बात चरितार्थ हो रही है ....
ReplyDeleteअपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है ...
ReplyDeleteख़ूबसूरत रचना ...
बढिया कटाक्ष ...
ReplyDeleteअपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है .. wakai mein mushkil hai.
ReplyDeletegaddhon me sadak dhundhna
ReplyDeletekya baat kah di aapne kamal
rachana