Monday, July 9, 2012

मनाने रूठने के खेल में हम ...........>>> संजय कुमार

 इंसान का जीवन बहुत सारी कठिनाईयों से भरा पड़ा है ! सुख- दुःख , गम और खुशी , अच्छा - बुरा , प्यार- मुहब्बत,  ये वो चीजें हैं जो समय , परिस्थिति और  हालात के अनुसार इंसान के जीवन में अपना असर छोडती  हैं ! कुछ हद तक ये इंसान के वश में भी होती हैं ,फिर भी ज्यादातर इंसान इन्हीं चीजों से ज्यादा परेशान होता हैं ! आज मैं जिस बिषय पर आपसे बात कर रहा हूँ , वो है  तो  मामूली और इंसान की रोज की दिनचर्या का अहम् हिस्सा , किन्तु आजकल उसके परिणाम हमारे सामने सकारात्मक नहीं आ रहे हैं ! मैं बात कर रहा हूँ रूठने और मनाने की बात का , जो हम सभी के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है ! वैसे रूठने मनाने की कोई उम्र तो नहीं होती फिर भी  बचपन और  जवानी से लेकर बुढ़ापे तक ये खेल चलता रहता है ! बच्चों का माता-पिता से रूठना - माता-पिता द्वारा बच्चों को मनाना आम बात है ! जवानी में यार दोस्तों से रूठना मनाना , प्रेमी-प्रेमिकाओं का रूठना मनाना , पति- पत्नि का रूठना मनाना , बूढ़े माता-पिता से आज बच्चों का सिर्फ रूठना ही होता है !  आज बहुत से बच्चे अपने माता-पिता से रूठे हुए हैं तभी तो देश के कई वृधाश्रम ऐसे बुजुर्गों से भरे पड़े हैं !  सिर्फ इस इन्तजार में कि , कब ये हमसे रूठे हुए बच्चे  हमें यहाँ से अपने घर ले जाएँ ......? इंसान के जीवन में जिस तरह सुख - दुःख  का होना आवश्यक है ठीक उसी प्रकार रूठने और मनाने का भी , अगर ये सब नहीं है तो जीवन बेजान और नीरस हो जायेगा ! जैसे - जैसे देश तरक्की कर रहा है , सफलता के नए आयाम पर हम पहुँच रहे हैं ! आधुनिक साधनों का तेजी से बढ़ता प्रयोग हमारी सफलता की गवाही देता है ! हमने कई क्षेत्रों में बहुत तरक्की की है किन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं जहाँ हम बदलते समय के साथ - साथ नहीं चल पाए  और वो है हमारी " सोच " का दायरा , जी हाँ ये सही है .... हम इसी जगह अभी भी बहुत पिछड़े हुए लोगों की श्रेणी में आते हैं ! मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि , इसी  छोटी सी सोच की वजह से आज कई परिवार बिखर गए हैं या फिर बिखरने की स्थिती में हैं ! बात- बात पर पत्नि का रूठना , बात - बात पर पति का रूठना हमारे समाज में आजकल एक फैशन सा बन गया है ! छोटी- मोटी तकरार होती है तो अच्छा है , किन्तु ये प्रतिदिन का रूठना मनाना किसी भी व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कड़वाहट और मनमुटाव की  एक गहरी और लम्बी खाई को खोदने का काम कर रहा है , यदि जल्द इस खाई को नहीं भरा गया तो स्थिती बहुत खराब होगी ! हमने अक्सर देखा है रूठने मनाने के इस खेल को बड़े मतभेद और लड़ाइयों में तब्दील होते ! शुरुआत में तो ये सब अच्छा लगता है किन्तु जब ये रोज की दिनचर्या का हिस्सा बन जाती है तो ऐसे हालात में स्थिती बहुत गंभीर हो जाती है ! उस पर एक दुसरे से कई दिनों तक बात ना करना  आग में घी का काम करता है ! हालांकि ऐसा हर किसी के जीवन में नहीं होता जहाँ छोटी- मोटी तकरार कोई बड़ा रूप लेती हो , जहाँ ऐसा नहीं होता वहां पर पति-पत्नि की आपस की समझदारी बहुत काम आती है ! हर समस्या का समाधान बैठकर आपस में सलाह - मशविरा कर के कर लिया जाता है , और ऐसा ही होना चाहिए क्योंकि पति - पत्नि एक दुसरे पूरक होते  हैं , एक गाड़ी के दो पहिये जो जीवन रुपी गाड़ी को आगे और अंत तक साथ ले जाते हैं ! जो व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन में सयम और समझदारी का उपयोग नहीं करते , बात बात पर एक दुसरे को नीचा दिखाने की कोई कसर नहीं छोड़ते उनका जीवन  साइकिल  में लगे हुए उस टायर - ट्यूब के जैसा होता है जिसमें सेकड़ों पंक्चर होती हैं ........... अंत ये होता है कि हमें टायर - ट्यूब बदलना पड़ता है ! ऐसा देखा गया है की छोटे-छोटे झगडे कभी - कभी अलगाव और तलाक की नौबत तक ला देते हैं ! और यदि ऐसा होता है तो दोनों का ही जीवन बड़ा कष्टमय गुजरता है ! ऐसा भी देखा गया है कि एक दुसरे से अलग हुए पति -पत्नि बाद  में पश्चातव में आंसू बहाते हैं  .....किन्तु  तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होती है ........  " अब पछतावे होत क्या .. जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत " 
मैं अपने सभी युवा साथियों से ये गुजारिश करूंगा की यदि आप अपने वैवाहिक जीवन में रूठने मनाने  के इस खेल को यदि रोज खेलते हैं तो कृपया इसे बंद कर दीजिये ............ कहीं ऐसा ना हो .... इस रूठने मनाने के खेल में आप एक - दूजे से हमेशा के लिए बिछड़ जाएँ ! सब्र ... संयम और समझदारी का परिचय दीजिये ......


धन्यवाद 

7 comments:

  1. आपने सही कहा,,,,बेहतरीन आलेख,,,,

    RECENT POST...: दोहे,,,,

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  2. आपने सही कहा ये जरा जरा सी बातें शुरुआत में तो आछी लगती हैं पर बाद में यही वैवाहिक जीवन की सबसे बड़ी समस्या बन जाती हैं ....
    अच्छा सुझाव दिया आपने नव विवाहितों को .....

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  3. बहुत बढिया बात कही आपने । अच्छी पोस्ट :)

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  4. यदि आपसी समझ विकसित कर लें तो इस खेल से बचा जा सकता है..

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  5. सच कहा सर जी आपने ......
    इन्सान को छोटी से छोटी नोक झोंक को शुरुआत होने के साथ ही समाप्त कर देना चाहिये वरना इसका अंत हमारे अनुसार नहीं समय के अनुसार होता हें और समय बुरा हुआ तो परिणाम बहुत बुरा होता हें |

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  6. परिवारों को विघटन ही इस समस्‍या के मूल में है।

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  7. जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख....

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