Saturday, May 12, 2012

हम देश चलाते हैं , इसलिए खाते हैं ........>>> संजय कुमार

जब देखो तब हमारे पीछे हाँथ धोकर पीछे पड़ जाती  हैं , देश की मीडिया , अखबार , समाचारपत्र - पत्रिकाएं , हर बार हमको ही निशाना बनाया जाता है !  आखिर क्यों ? आखिर हमारा कसूर क्या है ? हमारा कसूर सिर्फ इतना है , कि हम देश चलाते हैं ? देश के बड़े - बड़े संस्थान चलाते हैं ! देश की सरकार चलाते हैं ! क्या इन्हें चलाना आसान है ? कितने कष्टों का सामना करना पड़ता है हमें ! जी नहीं , इन्हें चलाना आसान तो बिलकुल भी नहीं हैं ! इन्हें चलाने के लिए हमें कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं,  ये तो हम ही जानते हैं ! जब हम अपने काम में अपना तन - मन ( जनता का धन ) लगाकर कर पूर्णतया ईमानदारी  ( बेईमानी में ईमानदारी )  से अपना  काम करते हैं तो फिर क्यों हमें ही बार - बार परेशान किया जाता है ! अभी मध्य-प्रदेश में हम लोगों पर " लोकायुक्त " ने कई जगह छापे  मारकर हमारे कई साथियों को जनता के सामने नंगा किया , माफ़ कीजिए  शर्मिंदा किया जो अच्छी बात नहीं है ! क्या जरुरत थी ये सब करने की ? आखिर हम देश चलाते हैं ..... इसलिए खाते हैं ! हम पक्ष में रहकर , विपक्ष में रहकर , बेईमानी से , भ्रष्टाचार से , बड़े- बड़े घोटाले करके , देश का पैसा लूटकर , गरीब की योजनाओं का पैसा अपनी तिजोरियों में भरकर , ऊंचे पदों पर बैठकर करोड़ों में लाइसेंस बेचकर इस देश का बंटाधार करके , हम ये देश और समाज को चला रहे हैं ! और ये सब करना आसान नहीं है ! हम देश चलाते हैं  ----- इसलिए  ( कालाधन बैंक ) " स्विस बैंक " में हमारे खाते हैं ! वर्ना किसी औंगे पौंगे की मजाल जो " स्विस बैंक " में खाता  खोल सके , अरे खाता खोलना तो बहुत दूर की बात है , आप खाता खोलने का फॉर्म ही लाकर बता दो तो हम आपको मान जायेंगे ! आप लोग  कालाधन वापस लाने की बड़ी बड़ी बातें तो करते हैं पर कुछ कर नहीं पाएंगे ! हम तो कहते हैं एक आम आदमी अपने देश के किसी भी बैंक में आसानी से खाता खोलकर बता दे तो बड़ी बात है ! इतना आसान नहीं है ! आखिर हमने थोडा सा पैसा खा भी लिया तो कौन सा आसमान टूट पड़ा , आखिर हमारा हक बनता है ! कई बर्षों नौकरी करने के बाद हमारे हाँथ क्या लगता है ? अगर थोड़ी सी रिश्वत ले ली तो क्या हो गया ? हमारा भी परिवार है , हमारे भी बच्चे हैं , उनको अच्छी से अच्छी शिक्षा देना हमारा कर्तव्य है , वो ऐशोआराम से अपनी जिंदगी गुजारें यही तो हम चाहते हैं ! हमसे कहा जाता है आप जिस जगह काम करते हैं उसे अपना मानना चाहिए , और अपनी जगह से थोडा कुछ ले लिया तो क्या हुआ ? आपने तो ट्रेन में सफ़र करते पढ़ा होगा " रेलवे आपकी अपनी संपत्ति है " इसी तरह ये देश , ये सरकार , ये शासन हमारी संपत्ति है ! हम जैसे चाहे इसका इस्तेमाल कर सकते हैं ! हमारे खाने के तो सेकड़ों किस्से मशहूर हैं ! हमने चारा खाया , यूरिया खाया , बोफोर्स तोप और कोयले की दलाली में हाँथ काले किये ! हमने शहीद सैनिकों की विधवाओं का हक खाया ( आदर्श सोसायटी घोटाला ) राष्ट्रमंडल खेल खा लिए , २जी लाइसेंस खा लिए , और कितने किस्से आप लोगों को बताऊँ , बताते बताते दिन कम पड़ जायेंगे, लिखते लिखते डायरियां भर जाएँगी और सुनते सुनते कान पाक जायेंगे , इसलिए कहता हूँ ! हम जो कर रहे हैं वो हमें करने दो क्योंकि देश की सेवा करने से हमें कुछ हांसिल नहीं होगा ! हमें सिर्फ और सिर्फ अपना पेट भरना आता है ! 


सौ बात की एक बात ......... बात कहूँ मैं सच्ची .......... हम देश चलाते हैं .............. इसलिए खाते हैं ........ अगर है दम तो हमें रोककर बताओ ....... जय भ्रष्टाचार ...... जय रिश्वत .

धन्यवाद  
   

9 comments:

  1. बहुत सार्थक सटीक व्यंग ,पढकर मजा आ गया,....
    आज देश में यही सब तो हो रहा है ,.....

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. जिम्मेदारी है देश चलाने की, खा कर स्वस्थ तो रहना ही होगा।

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  4. इनका बस चले तो धरती खा जाएँ,आसमान खा जाएँ,फिर भी पेट न भरे तो ये संसार को खा जाएँ और यदि मन नहीं भरा तो अपनेआप को भी खा जाएँ | देश को खाना बहुत मामूली बात हें |
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  5. देश चलाने के नाम पर खाना...
    जेल जाना ...
    और फिर संसद में पहुंच जाना...
    यही तो हो रहा है...
    निःसंदेह बहुत अच्छा कटाक्ष किया है आपने.

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  6. हम देश चलाते हैं , इसलिए खाते हैं

    ....सटीक व्यंग

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  7. बहुत ही सटीक व्यंग भारत की सच्ची तस्वीर नेताओं की भूमिका और सामान्य व्यक्तियों की संदर्भ में उत्कृष्ट लेखन

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