तुम्हारे रूप में
मैं एक बार फिर
खुद को पाना चाहती थी
बचपन एक बार फिर
तुम्हारे साथ दोहराना चाहती थी
मैंने जो पाई थी ममता
वो विरासत में तुम्हें देना चाहती थी
संक्षिप्त में कहूँ तो
तुम्हें पाकर
एक ही जीवन में
दो जीवन जीना चाहती थी
सोचा था
तुम्हें पाकर
मेरी कोख कृतज्ञ हो जाएगी
स्त्रीत्व पूरा हो जायेगा !
बहुत इन्तजार रहा तुम्हारा
पर " बेटी " तू ना आई
शायद तूने ,
जब देखा होगा इस धरा को
तो सोच लिया होगा
ये सुरक्षित नहीं तेरे लिए
ना ही कोख में
ना कोख से बाहर निकलने पर
पर तेरे नन्हे " भाई " जब
वेजान " गुडिया " को
बहन बनाकर खेलते हैं
तो अहसास होता है
" मेरी फैमिली अधूरी है "
और बिटिया तेरे बिना तो
ये सारी सृष्टि ही अधूरी है !
( प्रिये पत्नी गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
बेटी के बिना परिवार अधूरा है ... दिल से लिखी रचना ...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना .... बिटिया के बिना सच ही अधूरापन लगता है परिवार में
ReplyDeleteपर तेरे नन्हे " भाई " जब
ReplyDeleteवेजान " गुडिया " को
बहन बनाकर खेलते हैं
तो अहसास होता है
" मेरी फैमिली अधूरी है "
बेटी हो या बेटा दोनों के बिना फैमिली अधूरी लगती है
बहुत सुंदर संवेदन शील,
इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई,गार्गी जी को
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
MY RECENT POST .....फुहार....: प्रिया तुम चली आना.....
बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त हुई दिल की बात...संदेश भी दे रही है.
ReplyDeleteपर तेरे नन्हे " भाई " जब
ReplyDeleteवेजान " गुडिया " को
बहन बनाकर खेलते हैं
तो अहसास होता है
" मेरी फैमिली अधूरी है "
और बिटिया तेरे बिना तो
ये सारी सृष्टि ही अधूरी है !
बहुत ही संवेदनशील रचना दिल को छू गयी।
शुभकामनायें परिवार को ...
ReplyDeleteसंक्षिप्त में कहूँ तो
ReplyDeleteतुम्हें पाकर
एक ही जीवन में
दो जीवन जीना चाहती थी
....
और बिटिया तेरे बिना तो
ये सारी सृष्टि ही अधूरी है !... एक बेटी के बिना घर घर कहाँ
बड़े सच भाव, घर में बेटी आवश्यक है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteलिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
‘बिटिया’ मेरे जीवन की नन्हीं – सी आशा
ReplyDeleteवात्सल्य - गोरस में डूबा हुआ बताशा.
जिस घर भी ले जन्म स्वर्ग-सा उसे सजा दे
अपने हाथों ब्रम्हा जी ने इसे तराशा.
bahut sundar
ReplyDeleteएक बेटी बिना तो परिवार अधूरा सा ही लगता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,
ReplyDeleteबेटी नहीं तो कल नहीं
AAP SABHI KA DHNYVAD
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