मैंने कहा ऑफिस के बाबू से ,
कि , मेरा काम ये कर दो ,
बाबू बोला बड़े प्यार से
फाइल पर वजन तुम धर दो
वजन धरते ही समझ लो , हो गया तुम्हारा काम
रिश्वत मत समझना इसे , ये तो है बस मेरा ईनाम ,
मुझे समझते देर ना लगी , कि , बाबू है पक्का रिश्वतखोर
इसलिए मैं चला गया अधिकारी के कमरे की ओर
जैसे ही पहुंचा गेट पर , चपरासी बोला
मुझे खुश किये बिना साहब से मिलना ना होगा ईजी ( आसान )
लाओ पान , बीडी - सिगरेट वर्ना साहब हैं बिजी
मैं समझ चुका था कि ,
इस ऑफिस का सारा स्टाफ ही भ्रष्ट है
तभी तो इस ऑफिस से सारे शहर को कष्ट है
मैंने भी सोच लिया था कि ,
इस बाबु को रंगे हाँथ पकड्वाऊंगा
सीबीआई में जाऊं या संसद - विधानसभा में, प्रश्न उठ्वाऊंगा
फिर मैंने की शिकवा -शिकायत बहुत
जब एक महीना बीत गया
एक दिन अखबार में पढ़ा मैंने कि ,
रिश्वत लेने वाला , रिश्वत देकर छूट गया
( मित्र मुकेश बंसल की कलम से )
धन्यवाद
कबिरा इस संसार में...
ReplyDeleteमैंने कहा ऑफिस के बाबू से ,
ReplyDeleteकि , मेरा काम ये कर दो ,
बाबू बोला बड़े प्यार से
फाइल पर वजन तुम धर दो
मुकेश बंसल जी को बेहतरीन व्यंगरचना के लिए बधाई.
भ्रष्टतंत्र की कलई खोलती उम्दा रचना।
ReplyDeleteइसी का नाम भारत वर्ष है..
ReplyDeleteहर इंसान यहाँ भ्रष्ट है..
सटीक व्यंग
ReplyDeleteसब बच जाते है इस रिश्वत से।
ReplyDeleteबहुत खूब...बहुत खूब....बहुत खूब....
ReplyDeleteबहुत खूब...बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत ही सठिक और १००% वोट
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