मुददतों से उनकी सूरत नहीं देखी
एक बार देखी थी बस
वहीआँखों से ओझल नहीं होती
हाँ घुलते रहे शब्द , तुम्हारे महीनों
कानों में मेरे
पर अब वो कानों से बहजाने का
नाम नहीं लेते
हाल जो अपने दिल का तुमने
उतारा था दिल में मेरे
निशां अब वो मिटने का
नाम नहीं लेता
दर्द के कफ़न में कबसे
लिपटा है वो गुजरा जमाना
वक़्त उसको दाग देने का
नाम नहीं लेता !
( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )
धन्यवाद
bahut khoob
ReplyDeleteशब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना...संजय जी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से आपने शब्दों को उतारा है .....आपका आभार
ReplyDeleteगार्गीजी को इतनी सुन्दर रचना के लिए ढेर सारी बधाई ...
ReplyDeleteउफ़ दिल के हाल को बहुत ही करीने से उतारा है लफ़्ज़ो मे।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
ReplyDeletekamaal ka likha hai...
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
खूबसूरत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
एक बार देखी थी बस
ReplyDeleteवहीआँखों से ओझल नहीं होती
:))
बहुत ही प्यारी रचना ,,, शब्द बहुत कुछ कहते हुए से है ...
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
bahut khoob
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