Saturday, August 20, 2011

देखा अजीव एक द्रष्य ........>>> संजय कुमार

देखा अजीव एक द्रष्य
कुचले पड़े मानव के दिल ,
टुकड़े - टुकड़े पड़ी , कराहती आत्मा ,
स्वपन आश्चर्य तले दवे थे,
खीझ में सने थे ,
वह दिल नासूर बन चुका था ,
क्योंकि उसको अपनों ने कुचला था ,
वह उनकी प्रतिष्ठा का रास्ता था ,
जिसको पैरों से रौंधता ' वह अपना ' चला था
दुःख नहीं हुआ जब दुश्मनों ने दुश्मनों की ,
अवाक ताकते रह गए हम
जब अपनों ने स्वार्थ में रंगी
चाल चली ...........

( प्रिये पत्नि गार्गी की कलम से )

धन्यवाद

7 comments:

  1. स्वार्थी दुनिया स्वार्थी लोग
    भला अपने कैसे निस्वार्थ रहे सकते हैं...

    वाह भाभी जी भी कविता लिखने लगी हैं...

    बढिया है..
    हमारी तरफ से शुभकामनाएं...

    मेरी नज़र से........

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  2. स्वपन आश्चर्य तले दवे थे,
    खीझ में सने थे ,
    वह दिल नासूर बन चुका था ,
    क्योंकि उसको अपनों ने कुचला था ,

    संवेदना से भरी बेहतरीन रचना....

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  3. कष्ट अपने ही देते हैं ....
    हार्दिक शुभकामनायें !

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  4. कष्ट औरों से नहीं, अपनों से ही होता है।

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  5. यह अपनों द्वारा दिया गया कष्ट ...किससे कहें .....!

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  6. बहुत सुंदर रचना कष्ट अपने ही देते हैं

    मेरा शौक
    http://www.vpsrajput.in

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  7. ek katu satya,jinse sb nazren churana chahte hain,aapne bayaan kr diya

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