Friday, November 19, 2010

अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है ....>>>> संजय कुमार

आज इंसानों और जानवरों के बीच अंतर ढूँढना पड़ता है !
संसद भवन में बैठी भीड़ में , सच्चा राजनेता ढूँढना पड़ता है !
अपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है !
हजारों दोस्तों के होते हुए एक दोस्त ढूँढना पड़ता है !
रोज-रोज होते झगड़ों में प्यार ढूँढना पड़ता है !
पति-पत्नी को एक-दुसरे में विश्वाश ढूँढना पड़ता है !


आज लोग " राखी का इंसाफ " में इंसाफ ढूँढ रहे हैं,
यहाँ तो देश की सर्वोच्च अदालतों में इंसाफ ढूँढना पड़ता है !


अरबों की आवादी में इंसान ढूँढने पड़ते हैं !
कलियुग में माँ-बाप को "श्रवण कुमार " ढूँढने पड़ते हैं !
बढ़ गए पाप और बुराई कि, अच्छाई ढूँढनी पड़ती है !
बेईमानों के बीच ईमानदारी ढूँढनी पड़ती है !
खुदा की खुदाई ढूँढनी पड़ती है !
तो कहीं बच्चों को माँ की ममता ढूँढनी पड़ती है !
पश्चिमी सभ्यता में ढले लोगों में, अपनी सभ्यता ढूँढनी पड़ती है !
करोड़ों इंसानों में इंसानियत ढूँढनी पड़ती है !


अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है !
अब गड्ढों में सड़क ढूँढनी पड़ती है !


धन्यवाद

4 comments:

  1. संजय चौरसिया जी
    नमस्कार !
    अपनों के बीच रहते हुए , अपनापन ढूँढना पड़ता है !
    हजारों दोस्तों के होते हुए एक दोस्त ढूँढना पड़ता है !
    ...........बहुत सही बात कही
    भाई आपने कहने के लिए कुछ छोडा ही नही। सब कुछ तो लिख दिया

    आप स्वस्थ,सुखी हों,हार्दिक शुभकामनाएं हैं …
    आपका मित्र,भाई
    संजय भास्कर

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  2. bahut sahi kaha aapne
    aaj kal sab kuch dhudhna hi padta hai
    yesa koi nhi hai jisme sachhayi ho

    khubsurat rachna

    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  3. nice

    Shri Guru Nanak Dev ji de guru purab di lakh lakh vadhaian hoven ji

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