Friday, December 23, 2011

क्या कहा ?..... " किसान दिवस "........? .....>>> संजय कुमार

मैंने तो आज तक किसानों के बारे में सिर्फ बचपन में किताबों में पढ़ा था कि , भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के गावों में देश की शान किसान निवास करते हैं ! हमेशा यही सुनते आये कि , किसान नहीं तो भारत नहीं ! किसान अगर नहीं होगा तो इस देश में कुछ नहीं होगा ! और एक नारा " जय जवान- जय किसान " सुना है ! या फिर आजकल किसानों के बारे में सिर्फ एक ही बात सुनने - पढ़ने को मिलती है ! कर्ज के बोझ तले किसी किसान ने आत्महत्या कर ली, या फिर , बीज और खाद के लिए किसान दर-दर भटक रहे हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं हैं ! मुझे दो-तीन दिन पहले ही मालूम चला है कि , २३ दिसंबर को " किसान दिवस " है ! क्योंकि इससे पहले कभी भी मैंने इस दिवस के बारे में नहीं सुना था ! यदि ये गत बर्षों से मनाया जा रहा था, तो मुझे बहुत हैरत और अपने आप पर शर्म महसूस होती है कि , मुझे इस बारे में अब मालूम चला ! यदि ये शुरुआत है और आने वाले बर्षों में भी इसी दिन मनाया जायेगा तो थोड़ी ख़ुशी भी हुई , कम से कम एक दिन तो हम किसानों के बारे में बात कर पायेंगे , वर्ना उनकी सुनने वाला कौन है ? हम सभी बर्ष की शुरुआत होते ही " नव-बर्ष " बेलिनटाइन " महिला-दिवस " माँ-दिवस " पिता -दिवस " मजदूर-दिवस " बाल दिवस " जैसे सेंकडों दिवस हम बर्ष भर मनाते रहते हैं ! किन्तु " किसान दिवस " के बारे में कभी नहीं सुना ! आज इस देश में जो स्थिति किसानों की है वह किसी से भी छुपी नहीं है ! गरीब , लाचार , दुखी -पीड़ित और हर तरफ से मजबूर ! विश्व भर के समाचार पत्र , टेलीविजन , अखबार भरे पड़े रहते हैं ऐसी ख़बरों से जिनमें गरीब का दर्द कहीं छुप जाता है ! कहीं इसका जन्मदिन, कहीं उसकी पुण्यतिथि , कहीं ये घोटाला , कहीं वो भ्रष्टाचार , करोड़ों की शादी , अरबों का टैक्स , आरक्षण , मंहगाई , संसद , क्रिकेट , सेंसेक्स , सास-बहु के सीरियल और ना जाने क्या क्या ! हर दिन बस ऐसी ही ख़बरों में दिन निकल जाता जाता है ! पर इस देश में पीड़ितों की सुनने वाला कोई नहीं हैं ! फिर चाहे गरीब , मजबूर और लाचार ही क्यों ना हों , हाँ पीड़ितों और गरीबों का हक खाने वालों की कोई कमी नहीं है हमारे देश में ! हम लोग हर स्थिति से वाकिफ हैं ! शायद हम बहुत कुछ देखना नहीं चाहते या हम सब कहीं ना कहीं सब कुछ जानकर भी अंजान हैं ! देश के लिए, देश के लोगों के लिए कड़ी मेहनत कर अन्न उत्पन्न करने वाला किसान आज अन्न के एक एक दाने - दाने तक को मोहताज है ! कुछ राज्यों के किसानों को छोड़ दिया जाए जिनकी स्थिति बहुत अच्छी है ! किन्तु देश में ऐसे किसानों की संख्या बहुत अधिक है जिनकी स्थति बहुत खराब एवं दयनीय है ! आज किसान हर तरफ से दुखी है ! आज का किसान कर्ज में पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है ! आज कहीं सूखा पड़ने से किसान मर रहा है तो कहीं ज्यादा बारिस किसान को बर्बाद कर रही रही है ! कभी बाढ़ , कभी ओलावृष्टि किसानों को खुदखुशी करने पर मजबूर करती है ! कहीं अत्यधिक कर्ज किसानों की जान ले रहा है ! हम जो जीवन जीते हैं , हम जिस चकाचौंध भरे माहौल में रहते हैं , उस तरह का जीवन जीने की , किसान सिर्फ कल्पना ही कर सकता है ! हमारी सरकार किसानों के लिए कितना कर रही है ! सरकार की ढेर सारी योजनाओं का कितना फायदा किसानों को मिलता है ! ये बात हम सब से छुपी नहीं है ! जहाँ किसान एक -एक पैसे के लिए दर दर भटक रहा है, वहीँ इस देश में कुछ नेता अपनी प्रतिमा लगवाने में पैसे का दुरूपयोग कर रहे हैं ! गरीब किसानों के समक्ष करोड़ों की मालाएं मुख्यमंत्री को भेंट स्वरुप दी जाती हैं और दूसरी तरफ गरीबी से तंग आकर किसान आत्महत्या कर रहा है ! कहीं कोई नेता सिर्फ नाम के लिए अरबों रूपए शादी के नाम पर खर्च कर रहा है ! कहीं कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है तो कोई कालाधन बापस लाने के लिए सरकार पर दबाव डाल रहा है ! सिर्फ एक दुसरे की टांग खिचाई में ही लगे हुए हैं ! तो कहीं मंहगाई से आम आदमी का जीना दुशवार हो गया है ! एक तरफ देश के कई मंत्री मंहगाई भत्ता , और अपने फायदे केलिए कितने तरह के विधेयक संसद में पास करवा लेते हैं ! इसके बिपरीत किसान अपनी फसलों का उचित मूल्य भी नहीं प्राप्त कर पाते पाते, उन्हें अपनी फसलों के उचित मूल्य के लिए भी सरकार के सामने अपनी एडियाँ तक रगढ़नी पड़ती हैं ! वहीँ राजनेता मंहगाई बढ़ा - चढ़ा कर अपनी तिजोरियां भर रहे हैं और इसका जिम्मेदार किसान को ठहराते हैं ! इतनी दयनीय स्थिति होने के बावजूद हमारी सरकार कहती हैं कि, आज का किसान खुश है ! जब हम लोग अच्छा कार्य करने पर और लोगों को पुरुष्कृत करते हैं , तो फिर जो किसान हर दिन - रात , सर्दी - गर्मी , कड़ी धुप में मेहनत करके हम सभी की जरूरत को पूरा करते हैं तो हम उनको पुरुष्कृत क्यों नहीं करते ? हम उनके लिए क्या करते हैं ? सच तो ये है जब सरकार और सरकार के अन्य संगठन किसानों के लिए कुछ नहीं कर पा रहे है तो हम भी क्या कर सकते हैं ? हमें " शास्त्री जी " का यह नारा अब बदल देना चाहिए " जय जवान - जय किसान " आज हम जवानों की जय तो करते हैं किन्तु किसानों की जय नहीं , क्योंकि आज किसानों की जय नहीं पराजय हो रही है ! इस देश में आज सब कुछ चल रहा है किन्तु किसान नहीं ................................ खुद भूखा रहकर हम लोगों की भूख मिटाने वाला किसान , किसान नहीं हमारा भगवान है ! किसानों को भी एक अच्छी जिंदगी जीने का हक है ! " किसान -दिवस " पर देश के समस्त किसानों को मेरा शत - शत नमन !

धन्यवाद

8 comments:

  1. क्या किसान दिवस मनाने की स्थिति में है हमारी अर्थ व्यवस्था?

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  2. किसान दिवस ... !
    जय जय किसान!!

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  3. Mai swayam ek kisaan pariwaar se hun. Maine bhee Kisaan diwas ke bareme kabhee nahee suna tha! Bechare kisanon ko ye diwas manane se kya farq padta hai?

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  4. सार्थक व सटीक लेखन ।

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  5. हमारे देश के किसान तो सचमुच नमन के योग्य हैं .....

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  6. जी ज़िन्दगी के बसर में जिन मूल चीजों की जरुरत होती है उसका अधिकाधिक भाग हमें किसान ही उपलब्ध कराते हैं , हाँ ये और बात है की उसका उचित मूल्य व हक़ वो नहीं पाते हैं ! उम्दा है आपकी सोंच और गहरी है संवेदनशीलता , इस लेख के लिए आपको शुभकामनाएं !

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