Friday, November 25, 2011

पराये भी यहाँ अपने से लगते हैं .....>>> संजय कुमार

अरे तू तो हिन्दू है , अरे तू तो मुसलमान है , अरे वो तो छोटी जात का है , अरे वो तो बड़े पैसे वाला है ! इस तरह के शब्द हम अपने जीवन में कई बार सुन चुके हैं और शायद आज भी प्रतिदिन सुनते हैं ! दिल को बड़ी तकलीफ सी होती है इस तरह के शब्द सुनकर कि, क्यों एक इंसान को हम इंसानों ने इतने नाम दे दिए हैं ! हमने इंसान को पता नहीं कितने भागों में बाँट दिया है ! इस बात को लेकर हम सब कभी ना कभी जरूर दुखी हुए हैं ! आखिर हम क्या कर सकते हैं ये सब तो हम लोगों का ही ईजाद किया हुआ है ! यह तो तब तक चलेगा जब तक इंसान इस श्रृष्टि पर है ! यह सब देखकर मेरे मन में बस इक ख्याल आता है कि, क्या इस दुनिया में ऐसी भी कहीं कोई जगह है ? जहाँ पर इस तरह का माहौल देखने को ना मिले ! भाई-भतीजावाद ना हो , धर्म के नाम पर झगडा ना हो ! अचानक मेरे जेहन में एक ऐसी जगह का ख्याल आया , जहाँ पर ना तो कोई ये पूंछता है कि तुम कौन हो ? हिन्दू हो या मुसलमान , अमीर हो या गरीब , छोटा या बड़ा , इस जगह इन बातों का कोई महत्त्व नहीं है यहं सब एक ही भाषा बोलते हैं ! इस जगह आने वाले सभी लोगों के बीच का भाईचारा देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है ! यहाँ सब एक दुसरे के भाई हैं कोई पराये नहीं ! ये जगह कोई और नहीं है " मधुशाला " मयखाना " BAR " है ! वैसे ये जगह मेरे ऑफिस के ठीक सामने है ! ( कभी कभी मैं भी वहां का माहौल देखने के लिए चला जाता हूँ ) हर शाम यहाँ बहुत बड़ा मेला सा लगता है ! यहाँ आने वाले कई लोग अपनी परेशानियों से बचने के लिए या अपने दुःख दर्द दूर करने के लिए या फिर क्षण भर की ख़ुशी पाने के लिए ! ( हर पीने वाले को यही लगता है ) सभी का मकसद एक सभी की मंजिल एक ( एक बोतल और चार यार ) कहते हैं कि इन्सान अगर एक बार इस जगह पहुँच जाये तो फिर वो यहाँ बार बार आना चाहता है ! कुछ लोग तो यहाँ आकर यहीं के होकर रह जाते हैं ! ( क्योंकि ये लत या तो जान लेती है या फिर हँसता - खेलता घर -परिवार तबाह और बर्बाद कर देती है ) यहाँ आने वाले लोग भले ही साल में एक बार भी मंदिर की दहलीज पर ना जाएँ किन्तु इस जगह तो वह नियमित, साप्ताहिक या मासिक अवश्य आएगा ही ! उसके पास यहाँ आने के कई बहाने भी होते हैं कोई घर में नया मेहमान आया हो ( बच्चे का जन्म हुआ हो ) या जन्मदिन हो ( आज का हर युवा अपने जन्मदिन पर यहाँ के दर्शन जरूर करता है जो नहीं जाते उनको मेरी शुभकामनाएं यहाँ कभी ना जाएँ ) , शादी की पार्टी हो या उसकी बर्बादी का मातम हो एक बार अवश्य आएगा ! यहाँ पर आने वाला हर व्यक्ति किसी ना किसी समस्या पर आपस में बात करते हुए जरूर मिल जायेगा ! यहाँ पर जो भाईचारा देखने को मिलता है उस भाईचारे का क्या कहना ! क्या छोटा क्या बड़ा सब एक साथ बैठकर पीते हैं मतलब जीते हैं ( हर पीने वाला यही सोचता है ) और भूल जाते हैं सब कुछ ! हिन्दुस्तान सहित पूरे विश्व में यही तो एक जगह है जहाँ हर दिन एक जैसे लोगों का मेला लगता है या यूँ कह सकते हैं सर्व धर्म , सम भाव , सर्व जातीय , एक अनूठा , इंसानों का मेला .................. मयखाना भी यहाँ आने वाले लोगों से कहता है कि , सारी दुनिया भर में पीकर बहको , पर यहाँ जरा संभलकर आना !

निवेदन ------- प्रिये साथियों ये तो मैंने बस यूँ ही लिख दिया ! किन्तु सच तो ये है की हमें इस जगह कभी भी नहीं जाना चाहिए , क्षण भर की मानसिक ख़ुशी के लिए अपने जीवन भर की खुशियाँ दांव पर लग जाती हैं ! ( मदिरापान स्वस्थ्य के लिए हमारे परिवार की खुशियों के लिए हानिकारक है )

धन्यवाद


12 comments:

  1. Ant me bilkul theek kaha....maykhane hame nahee jana chahiye!Pal bharkee khushee poore jeevan ka sarvnaash kar saktee hai.

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  2. निवेदन ----निर्थक है...पीने वाला तो उसी राह जायेगा...

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  3. एक और स्‍थान है, पागलखाना। वैसे जो व्‍यक्ति स्‍वयं को अपनी इच्‍छाशक्ति से नियन्त्रित नहीं कर सकता वह शराब का सहारा लेता है। पागल भी स्‍वयं को नियंत्रित नहीं कर पाते। यहाँ भी कोई भेदभाव नहीं होता।

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  4. सार्थक व सटीक लेखन ... आभार ।

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  5. बहुत खूब लिखा आपके इस लेखन से सहमत हू बधाई...
    नई पोस्ट में स्वागत है

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  6. मेल कराती मधुशाला....

    जाईये तो साहेब.... जरूर जाईये - ये भी एक दुनिया है...

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  7. सच है ...हमारी सोचने समझने की शक्ति ही हमें नुकसान पहुंचाती है अगर वो संतुलित, नियंत्रित और तार्किक ना हो जैसा कि अक्सर होता है !

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  8. दुनियां बालो किन्तु किसी दिन आ मदिरालय को देखो ...
    शुभकामनायें !

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  9. बस जीना है ,जीते जाना है ,फिर किसी एक पल ये सब कुछ लुट जाना है .दोनों रचनाएं भाव जगत का खुलासा करतीं हैं .किताबी नहीं हैं सचेत करतीं हैं .

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  10. पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए,

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