आप सभी साथियों को " गुरु नानक जयंती " की लख लख बधाईयां
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अरे तुम तो बड़े ही पत्थर दिल हो , लगता है तुम्हारे अन्दर तो संवेदना या दिल नाम की चीज बिलकुल भी नहीं है लगता है तुम्हें मुझसे या बच्चों से जरा भी प्रेम नहीं है ! मैंने तो आज तक कभी तुम्हारी आँख में एक आंसू तक नहीं देखा , इससे पता चलता है कि , तुम सारे मर्द एक जैसे होते हो सिर्फ पत्थर दिल तुम्हारी आँखों में तो प्यार मुझे कभी दिखता ही नहीं ! " पत्थर दिल कहीं के " ! इस तरह की बातें जब एक पुरुष को बार-बार बोलीं जाती हैं , तो सोचिये क्या गुजरती है उसके दिल पर ? कितने आंसू वह मन ही मन रोता है ! शायद ये बात कोई नहीं जानता, सिवाय उस पुरुष के जो कभी अपने पुरुष होने का मातम मनाता है या अपने पुरुष होने पर दुखी होता है ( एक पुरुष ही पुरुष के दर्द को समझ सकता है ) क्या सिर्फ कह देने भर से पुरुष को पत्थर दिल समझ लेना चाहिए ? देखा जाय तो इंसान भावनाओं का हाड-मांस का बना एक पुतला होता है वो चाहे नर हो या नारी ! बहुत सी बातें , बहुत सी अभिव्यक्तियाँ इंसान अपनी भावनाओं के द्वारा ही हमें बताता है ! आज हम यहाँ सिर्फ पुरुष भावनाओं की बात कर रहे हैं ! हमने अपने समाज में अक्सर देखा है कि , जिस तरह लड़कियों का ठहाका लगाकर हँसना आज भी हर जगह पसंद नहीं किया जाता ! शायद ये बात हमारे संस्कारों के खिलाफ है इसलिए ऐसा समझा जाता हो , किन्तु अब ज़माना बदल गया है ! क्योंकि आज की नारी अब वो नारी नहीं रही जो परदों की चारदीवारी में कैद हो , जिसके किसी भी कार्य पर अंकुश लगाया जा सके ! ठीक उसी प्रकार किसी भी पुरुष का रोना आज हमारे समाज में, हमारे बीच में कमजोरी की निशानी माना जाता है ! क्योंकि आंसू बहाना पुरुषों का काम नहीं है ! ( मर्द होकर रोते हो ) क्योंकि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है , यहाँ पुरुष ही सर्वस्व है , क्योंकि वो हर जिम्मेदारी को आगे बढ़कर अपने ऊपर लेता है , चाहे वो घर हो या उसका कर्म क्षेत्र हो ! एक पुरुष जिम्मेदारियों का वहन करते - करते तन और मन से मजबूत हो जाता है , इसलिए पुरुषों का रोना उनकी कमजोरी को दर्शाता है ! क्या ये सही है ? क्या पुरुषों का रोना सिर्फ कमजोरी की निशानी है ? जी नहीं पुरुष कमजोर नहीं होता ! पुरुष एक हाड -मांस का बना इंसान है और उसके अन्दर भी वही संवेदनाएं होती हैं जो एक नारी के अन्दर होती हैं ! एक पुरुष अपने जीवन में कितनी चीजों से लड़ता है इस बात को हम सब लोग बहुत अच्छे से जानते हैं ! किन्तु पुरुष हर बात पर नहीं रोता , उसके अंदर सब्र का पैमाना बहुत बड़ा होता है , वो महिलाओं की तरह व्यवहार नहीं करता ! हमारे देश में अधिकांश महिलाओं का समय सिर्फ घर की चार दिवारी में चौका बर्तन और बच्चों के पालन-पोषण में ही व्यतीत होता हैं , शायद इसलिए उन्हें इस बात का अहसास नहीं होता कि, बाहर काम करने वाले पुरुष किन - किन समस्यायों का सामना करते हैं ! पुरुष हमेशा दो पाटों के बीच में पिसता रहता है ! आज हमारे बीच का वातावरण इतना अशुद्ध हो गया है जिसमे सिर्फ परेशानिया , तनाव , काम का प्रेशर बहुत बड़ गया है ! आज पुरुष के पास कितनी समस्याएँ है यह भी हमें जानना होगा ! एक परिवार में एक शादीशुदा पुरुष की क्या स्थिती हो सकती है ? ध्यान में रखकर अंदाजा लगायी जा सकती है ! माता -पिता को लगता है कि, शादी के बाद उनका बेटा उनसे दूर हो गया है , बहन को लगता है कि , शायद अब हमे भाई का प्यार नहीं मिलेगा ! वहीँ पत्नी चाहती है कि, उसका पति सिर्फ उसका होकर रहे ! ( आजकल का माहौल लगभग ९०% घरों में है , एकल परिवार प्रणाली ) इस तरह का माहौल हमने अपने आस पास जरूर देखा होगा ! इस स्थिति में किसी भी पुरुष की क्या दशा होती होगी इसका अंदाजा सिर्फ एक पुरुष ही लगा सकता है ! मैं यहाँ सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि , अगर ऐसी स्थिती में पुरुष नहीं रोता या उसकी आँख में आंसू नहीं आते तो इसका यह अंदाजा बिलकुल भी नहीं लगाना चाहिए कि वो इन्सान नहीं पत्थर है ! वह भी महिलाओं की तरह ही एक इंसान है ! अगर इंसान नहीं होता तो क्या एक पिता का अपनी बेटी की विदाई पर रोना उसकी कमजोरी की निशानी माना जायेगा ! नहीं यह वो अभिव्यक्तियाँ हैं जो कभी भी और किसी भी तरह एक पुरुष अपने जीवन में व्यक्त करता है ! अगर पुरुष ऐसा नहीं करेगा तो उसकी सभी संवेदनाएं एक दिन धीरे-धीरे समाप्त हो जाएँगी ! अपने बुरे हालातों से लड़ते-लड़ते इंसान एक दिन टूटकर बिखर जाता है और उसकी आँखों में होते हैं सिर्फ आंसू !
इसलिए मैं कहता हूँ कि , " मैं भी एक इन्सान हूँ " एक पुरुष हूँ कोई पत्थर नहीं "
धन्यवाद
दुनिया बदल रही है अब पुरुष भी खूब रोते हैं। बात बात पर रोते हैं।
ReplyDeleteआज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बात से .. आँसू नहीं आते तो यह मतलब नहीं कि इंसान पत्थरदिल हो गया ..संवेदनाएं पुरुषों को भी छूती हैं
ReplyDeleteआपकी बातें सही है .....
ReplyDeleteवाह, आज तो मर्द-दर्द वाली बातें हो गयी.
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteहम पहले इन्सान हैं।
ReplyDeleteमानवीय भावनाएं और सरोकारों में स्त्री पुरुष सी कोई विभाजन रेखा नहीं होती...
ReplyDeletesach kaha aapne purush bhi samvedansheel hote hain lekin bachpan se hi itne majboot ho jate hain ki aansu nahi aane dete.
ReplyDeletevicharneey post.
आपकी बातों से सहमत हूँ और हमेशा सा मेरा मानना यही रहा है की चाहे पुरुष हो या नारी हैं तो दोनों ही इंसान और भावनाएं सभी में होती है बस कुछ लोग दर्शा देते हैं तो कुछ दर्शा नहीं पाते मगर इसका मतलब यह नहीं की उनके अंदर भावनाएं हैं ही नहीं सार्थक पोस्ट ....
ReplyDeleteसमय मिले तो जारूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका सवागत है
सही लिखा है आपने ..आज के सत्य को परदर्शित करता आलेख
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक भावाभिव्यक्ति
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