कहा जाता है कि , एक जिम्मेदार इंसान अपने घर-परिवार की देखभाल , भरण-पोषण की जिम्मेदारी , अपना उत्तरदायित्व बहुत अच्छे से निभाता है ! किसी भी इंसान के ऊपर जिम्मेदारी का भार एक निश्चित उम्र के बाद ही आता है या फिर एक उम्र होती है जिसमे इंसान को हम जिम्मेदार कह सकते हैं ! ( फिर भले ही कुछ लोग शायद उम्र भर जिम्मेदार नहीं बन पाते ) मैं बात कर रहा हूँ उन छोटे छोटे बच्चों की जो खेलने कून्दने और पढ़ने-लिखने की उम्र में अपने परिवार की रोजी-रोटी की जिम्मेदारी का भार आज बड़ी ही कुशलता के साथ उठा रहे हैं ! छोटे-बड़े होटलों , ढावों, भोजनालयों पर काम करने वाले बच्चे , बंधुआ मजदूर की तरह घरों में नौकरी करने वाले बच्चे , किराना -परचून की दुकान पर काम करने वाले बच्चे , भगवान् के नाम पर किसी निश्चित दिन ( मंगलवार -शनिवार ) भिक्षा मागने वाले बच्चे , बस , ट्रेन और फुटपाथ पर भीख मांगने वाले ये बच्चे , सब कुछ अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए छोटी सी उम्र में कठिन परिश्रम करते हैं ! इन बच्चों के सिर पर भी कहीं ना कहीं एक जिम्मेदारी होती है जिसे निभाने के लिए वो कुछ भी करने को हमेशा तैयार रहते हैं ! यहाँ पर हम यदि जिम्मेदारी को मजबूरी या मजबूरी को जिम्मेदारी कहें तो गलत नहीं होगा ( ऐसा नजरिया कुछ लोगों का हो सकता है ) ऐसे बच्चों का जीवन बड़ा ही कष्टमय होता है ! ऐसे बच्चों से खुशियाँ हमेशा हजारों कोस दूर होती हैं ! जिम्मेदारियों के बोझ तले दबकर इनका बचपन कब निकल जाता है और ये कब बड़े हो जाते हैं इस बात का अहसास शायद ही इन बच्चों को कभी हो पाता हो क्योंकि ऐसे बच्चों का बचपन जब कष्ट में गुजरा हुआ होता है तो ये उसे याद करना भी नहीं चाहते ! जिम्मेदारियों के बोझ तले कुछ बच्चे शिक्षा से भी महरूम रह जाते हैं ! कुछ पढ़ना - लिखना चाहते भी हैं तो उनकी मजबूरियां उन्हें पीछे धकेल देती हैं ! कुछ बच्चों पर माँ-बाप की जिम्मेदारी होती है तो कुछ भाई-बहनों की जिम्मेदारी को अपने कन्धों पर लेते हैं ! और इस तरह के बच्चे बड़ी खूबी के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करते हैं ! और जीवन पर्यंत तक इन जिम्मेदारियों से ना कभी भागते हैं और ना ही पीछे हटते हैं ! जब ये बच्चे अपने परिवार के बारे में सोचते हैं और उनकी खुशियों के लिए दिन रात मेहनत करते हैं , तो इन्हें अपने बारे में सोचने का कभी समय ही नहीं मिलता ! ऐसे बच्चों की संख्या आज देश में बहुत है ! आज जिस दौर में हम लोग अपना जीवनयापन कर रहे हैं उस दौर में इंसान की आवश्यकताएं जरूरत से ज्यादा और और उन्हें पूरा करने के साधन बहुत कम ! कुछ आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है तो कुछ जरूरत से ज्यादा ! आज देखा गया है कि , ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले परिवार अपने बच्चों को शहरी वातावरण में भेज देते हैं कि कहीं कुछ सीख ले जो उसे उसके भविष्य में काम आये ! ऐसी स्थति में देखा गया है बच्चे किसी शराबखाने में काम करते मिल जायेंगे या किसी मंत्री या व्यवसायी की कोठियों पर झाड़ू-पौंछे का काम करते मिल जायेंगे ! सही दिशा और मार्ग-दर्शन यदि मिल गया तो ठीक वर्ना जीवन किस ओर जायेगा नहीं मालूम ! आज छोटी सी उम्र पर जिम्मेदारी बड़ी भारी है ! आज जिम्मेदारियों का बोझ हमारे देश के नौनिहाल उठा रहे हैं ! आज जिम्मेदारियों के बोझ तले बच्चों का वर्तमान निकल रहा है ! क्या भविष्य है ऐसे बच्चों का ?
धन्यवाद
ऐसे करोडों बच्चे हैं इस देश में जो अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं। यह भी सच है कि इन बच्चों का बचपन उनके माता-पिता ने ही छीना है, आज जनजातीय क्षेत्र में चले जाइए वहाँ का प्रत्येक बच्चा अपने बचपन में ही होटल, घरों, दुकानों पर काम में लगा है और उसके पिता को बैठे बिठाए वेतन मिलता है। इस पैसे से वे शराब पीते हैं और निठल्ले बनकर घर में बैठे रहते हैं।
ReplyDeleteaadarnya ajit mam,
ReplyDeletemain aapki baat se poori tarah sahmat hoon,
चिन्तनीय आलेख।
ReplyDeleteआज जिम्मेदारियों के बोझ तले बच्चों का वर्तमान निकल रहा है ! क्या भविष्य है ऐसे बच्चों का ?
ReplyDeleteबचपन में ही व्यस्क होने को मजबूर मासूमियत और क्या कहूँ ...
ReplyDeleteZimmedaaree majbooree hai! Pata nahee inka bhavishy kya hoga?
ReplyDeletechintanparak,vichaarniy lekh.
ReplyDeleteएक गंभीर आलेख !
ReplyDeleteजिम्मेदारी को मजबूरी या मजबूरी को जिम्मेदारी कहें तो गलत नहीं होगा
ReplyDeleteएक दर्दनाक सच्चाई है ये । ऐसे सभी बच्चों का बचपन हम क्यूँ नहीं लौटा सकते । आभार ।
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